Book Title: Agam 03 Ang 03 Sthanang Sutra Part 05 Sthanakvasi
Author(s): Ghasilal Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti

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Page 649
________________ ६२० स्थानाङ्गसूत्रे यावत् स्तनितकमाराणाम् ॥७। चादरवनम्पतिकायिकानाम् उत्कर्षेण दश वर्षसहस्राणि स्थितिः प्रज्ञप्ता ॥ ८॥ व्यन्तरदेवानां जघन्येन दशवर्ष सहस्राणि स्थितिः प्रज्ञप्ता ॥ ९॥ ब्रह्मलोके कल्पे उत्कर्षेण देवानां दश सागरोपमाणि स्थितिः प्रज्ञप्ता ॥ १० ॥ लान्तके कल्पे देवानां जघन्येन दा सागरोपमाणि स्थितिः प्रज्ञप्ता ११॥२०६३ ॥ टोका-'दसविहा' इत्यादि नैरयिकाः नारका दशविधाः प्रज्ञप्ताः, तद्यथा-'अनन्तरोपपन्ना' इत्यादि। नत्र-अनन्तरोपपन्नाः-न विद्यते अन्तरं व्यवधानमस्येति अनन्तरः अन्यवहितःवर्तमानः समयः, तत्र उपपन्नाः सबोजाता इत्यर्थः । येषां नैरयिकाणामेकोऽप्युत्पत्तिसमयो नातिक्रान्तस्ते नैरयिका अनन्तरोपपन्ना इति भावः ॥ १ ॥ तथा___ उपधिके वशसे जिस प्रकार काल द्रव्यके भेद होते हैं, इसी प्रकारसे उपधिके वशसे नारकादि जीवद्रव्योंके भी भेद होते हैं, यही पात अब सूत्रकार प्रकट करतेहैं-"दसविहा नेरइया पण्णता" इत्यादि ॥सूत्र६३॥ टीकार्थ-नारक जीव १० प्रकारके कहे गयेहैं-जैसे-अनन्तरोपपन्न १, परम्परोपपन्न २ अनन्तराचगाढ ३, परम्परावगाढ ४ अनन्तराहारक ५, परम्पराहारक ६, अनन्तरपर्याप्त ७ परम्परपर्याप्त ८ चरम ९, और अचरम १० इनमें सद्योजात-उसी समय-उत्पन्न हुए जो नारक हैं वे अनन्त. रोपपन्न हैं अन्तर नाम व्यवधानका है, जिसका व्यवधान नहीं है वह अनन्तरहै, ऐसा अनन्तर वर्तमान समय रूप होता है, इस वर्तमान समयमें जो उत्पन्न हुए हैं ये अनन्तरोपपन्न नैरयिक हैं । अर्थात् जिन ઉપધિને આધારે જેમ કાળદ્રવ્યના ભેદ પડે છે, એ જ પ્રમાણે ઉપધિને આધારે નારકાદિ જીવના પણ ભેદ પડે છે. એજ વાત હવે સૂત્રકાર પ્રકટ કરે છે __ " दसविहा नेरइया पण्णत्ता"-(सू. १३) ટીકાર્થ–નારક જીવન નીચે પ્રમાણે દસ પ્રકાર કહ્યા છે– (૧) અનન્તરો૫૫ન, (२) ५२२५२।५५न, (3) अनन्तराषाढ, (४) ५२००५२॥4॥८, (५) मनन्त। डा२४, (6) ५२२५२।७।२३, (७) मनन्त२५/४, (८) ५२२५२५र्यात, (6) यरम भने (10) अयम, જે નારકે સોજાત-આ સમયે જ નારક રૂપે ઉત્પન્ન થયેલા છે તેમને અનન્ત૫૫ન્ન નારકે કહે છે અન્તર એટલે સમયનું વ્યવધાન જેને લાગુ પડયું હોતું નથી તેને અનન્તર કહે છે. એવું અનન્તર વર્તમાન સમયરૂપ હોય છે. તેથી આ વર્તમાન સમયમાં જ જેઓ ઉત્પન્ન થાય છે તેમને અનન્ત૫૫ન શ્રી સ્થાનાંગ સૂત્ર : ૦૫

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