Book Title: Agam 03 Ang 03 Sthanang Sutra Part 05 Sthanakvasi
Author(s): Ghasilal Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
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स्थानाङ्गसूत्रे
इति । स्ववचननिरस्तो यथा - यदहं ब्रवीमि तदनृतमिति । लोकरूढिनिरस्तो यथा - नरकपालं पवित्रमिति १| तज्जातदोषे = तज्जातदोषविषये विशेषो भेदो जन्ममर्मकर्मादिभिः । तत्र जन्मादाय तज्जातदोषविषये विशेषो यथा - कच्छुल्लयाए घोडीए, जाओ जो गद्दहेण छूटेण । तस्स महायणमज्झे आयारा पायडा होंति ॥ १॥"
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छाया -कच्छुमत्यां (कण्डूयनरोगमत्यां) घोडयां जातो यो गर्दभेन क्षिप्तेन । तस्य महाजनमध्ये आकाराः प्रकटा भवन्ति ॥१॥
शब्द में नित्यता अनुमान से बाधित है अतः नित्यत्व विशिष्ट शब्द रूप पक्ष अनुमान निरस्त है ।
प्रतीति निरस्त पक्ष इस प्रकार से है जैसे -" शशीन चन्द्रः " स्व. वचन निरस्त पक्ष इस प्रकार से है - " यदहं ब्रवीमि तद्वृतम् " जो मैं कहता हूं वह झूठ कहता हूँ, लोकरूढिले निरस्त पक्ष इस प्रकार से है " नरकपालपवित्रम् " यहां नरकपाल रूप पक्ष पवित्रता लोक रूढिसे निरस्त है १ ।
इसी प्रकार से तज्जात दोष के विषय में जो जन्म, मर्म, कर्म आदि द्वारा भेद है, वह भी अनेक प्रकारका है- इनमें जन्मको लेकर जो तज्जातदोष के विषय में भेद है वह इस प्रकार से है
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"" कच्छुल्लयाए घोडीए " इत्यादि ।
कण्डूयन रोगवाली घोडो में जो गर्दा भके संयोगसे सन्तान उत्पन्न होती है उसके आकार में भेद होता है और उसका वह आकार महाશબ્દમાં નિત્યતા અનુમાન વડે ખાષિત છે. તેથી નિત્યત્વ વિશિષ્ટ શબ્દરૂપે પક્ષ અનુમાન નિરસ્ત છે.
प्रतीति निरस्त पक्ष मा प्रहारनो छे- “ शशीन चन्द्रः સ્વવચન નિરસ્ત पक्ष मा प्रहारनो छे-यदहं ब्रवीमि तदनृतम् " हुँ' ? उडु छु ते नूहु उडु छु" ४३ढि निरस्त पक्ष मा अमरनो छे - " नरकपालपवित्रम् ” सहीं नर• પાલ રૂપ પક્ષ પવિત્રતા લેાકરૂઢિની અપેક્ષાએ નિરસ્ત (ખાધિત) છે.
એજ પ્રમાણે તજજાતદોષના જન્મ, મ, કમ આદિ દ્વારા અનેક ભેદ પડે છે. તજાત દોષને જે જન્મની અપેક્ષાએ ભેદ પડે છે તેનુ' સ્વરૂપ या अारनु छे-" कच्छुल्लयाए घोडीए" इत्याह---
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ક'ફૂયન રાગવાળી ઘેાડી સાથે ગભના સયેાગ થવાથી જે સ'તાન ઉત્પન્ન થાય છે તેની આકૃતિમાં ઘણા તફાવત હેાય છે. તેથી તેના તે આકાર
શ્રી સ્થાનાંગ સૂત્ર : ૦૫