Book Title: Agam 02 Ang 02 Sutrakrutang Sutra Part 01 Sthanakvasi
Author(s): Sudharmaswami, Hemchandraji Maharaj, Amarmuni, Nemichandramuni
Publisher: Atmagyan Pith
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सूत्रकृतांग सूत्र बोध प्राप्त कर लेगे, अथवा अभी क्या जल्दी है ? अभी तो बचपन है, खेलनेकूदने के दिन हैं, या अभी तो यौवन है, आमोद प्रमोद में जीवन में जीवन बिताने का समय है, बुढ़ापा आएगा तब बोध प्राप्त कर लेंगे, यह स रास र भ्रान्ति है । क्षणिक जीवन का कोई भरोसा नहीं है और अगले जन्म में भी सम्बोधि प्राप्त होने की कोई गारन्टी नहीं है । अतः अभी से, इसी जन्म में सम्बोधि प्राप्त करने का प्रयत्न करो, यह भगवान महावीर के उपदेश का आशय है ।
___ कोई यह प्रश्न कर सकता है कि एकेन्द्रिय जीवों को तो छोड़ दें, क्योंकि उनमें तो चेतना अत्यन्त सुषुप्त होती है, द्वीन्द्रिय से लेकर पंचेन्द्रिय तिर्यन्च तक के जीवों में तो चेतना उत्तरोत्तर विकसित होती है और प्रायः देखा जाता है कि इन त्रस जीवों में भूख-प्यास, सर्दी-गर्मी, सन्तान-पोषण आदि का बोध होता है। एक छोटी से छोटी चींटी को भी यह बोध हो जाता है कि अमुक जगह मेरे लिये आहार पड़ा है, अमुक दिन वर्षा होने वाली है, मुझे चौमासे भर के लिये आहार संग्रह कर लेना चाहिए, इत्यादि । हाथी, गाय, भैस, घोडे आदि विशालकाय जानवरों में तो काफी बोध होता है। ये अपने मालिक को और उसके परिवार को, अपने विरोधी एवं प्रेमी को और अपने आवास स्थान को जान लेते हैं। अपनी प्रशंसा, निन्दा और भर्त्सना का भी इन्हें बोध हो जाता है। क्या इसी को बोध नहीं कहा जा सकता? या बोध से भगवान महावीर का आशय कुछ और है ?
यद्यपि 'बुध्यतेऽनेनेति बोधः' इस व्युत्पत्ति के अनुसार जिससे जाना जाय उसे बोध कहते हैं, परन्तु इस प्रसंग में भगवान महावीर का ऐसे बोध से मतलब नहीं है। उनका तात्पर्य ऐसे बोध से है, जो आत्मा से सम्बन्धित हो, जैसा कि आचारांगसूत्र के प्रथम श्रुतस्कंध के प्रथम अध्ययन के प्रारम्भ में कहा गया है ---
"अस्थि मे आया उववाइए ? जत्थि मे आया उववाइए ? के वा अहमंसि ? के वा इओ चुओ इह पेच्चा भविस्सामि ?"
अर्थात-- "मेरी आत्मा यहाँ से दूसरे लोक में जाती है या नहीं ? मैं कौन हूँ ? भूतकाल में मैं कौन था ? मैं यहाँ से मृत्यु होने के बाद परलोक में क्या होऊँगा?"
इसी आशय की पंक्तियाँ अध्यात्मयोगी श्रीमद् राजचन्द्र की मिलती हैं ---
हु कोण छु ? क्याथी थयो ? शु स्वरूप छे म्हारू खलं ?
कोना सम्बन्धे बलगणा छ ? राखु के ए परिहरू ? "मैं कौन हैं ? मैं कहाँ से कैगे मनुष्य रूप में पैदा हुआ ? मेरा असली
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