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पृष्ठ संख्या
का प्रस्ताव। (१७) भोगावती की श्रीपाल द्वारा निन्दा। पिता कुमार को प्रेत-वन में विद्या देता है। (१८) कुमार को सर्वोषधि विद्या की सिद्धि । कुमार वृद्ध को नवयुवा बना देता है, औषधि के प्रभाव से । (१९) एक वृद्धा स्त्री से भेंट। कुमार पत्थर उठाकर रखता है। (२०) वृद्धा बेर देती है। श्रीपाल उन्हें खाता है। (२१) कुमार अपना परिचय देता है। (२२) श्रीपाल का आत्मपरिचय (२३) यौवन को प्राप्त वृद्धा अपना परिचय देती है। (२४) बप्पिला की प्रेमकथा (२५) कुमार को मालूम हो जाता है कि वह अशनिवेग विद्याधर द्वारा यहाँ लाया गया है। (२६) विद्युद्वेगा का वियोग कथन। (२७) श्रीपाल की कथा की समाप्ति ।
620-630
सन्धि ३३
(१) जिनालय में जिनवर की स्तुति। (२) भोगावती आदि का वहाँ पहुँचना । (३) जिनेन्द्र भगवान् की स्तुति । विद्या सिद्ध करते हुए राजकुमार शिव की गर्दन टेढ़ी होना। (४) श्रीपाल उसके गले को सीधा कर देता है। राजा का कुमार के पास जाना। (५) जिनमन्दिर में पहुँचना । सुखोदय बावड़ी में पहुँचना । (६) सुखावती का काम। (७) अशनिवेग का आना। (८) अशनिवेग का आक्रमण। शत्रुसेना का उपद्रव । (९) विद्याधरियों क्रीड़ा कर अपने घर जाती हैं। (१०) उसिरावती के हिरण्यवर्मा की चिन्ता श्रीपाल आपत्तियों में सफल उतरता है। (११) जिनेन्द्र की महिमा (१२) श्रीपाल सुरक्षित रहता है। (१३) विद्याधरी का दुश्चरित ।
630-639
सन्धि ३४
(१) कमलावती का भूत से ग्रस्त होना कुमार उसका भूत भगाता है। (२) पिता द्वारा विवाह का प्रस्ताव। (३) श्रीपाल का पानी लेने जाना। सुखावती नदी का पानी सुखा देती है। (४-५) श्रीपाल द्वारा सुखावती की प्रशंसा। दो विद्याधर भाइयों में द्वन्द्व युद्ध (६) श्रीपाल के पास अन्तःपुर इकट्ठा होना। (७) श्रीपाल का वास्तविक रूप प्रकट होना। (८) सुखावती का रूठना । (९) सुखावती का प्रच्छन्न रूप में सुरक्षा का आश्वासन (१०-११) मदोन्मत्त गज को वश में करना। (१२) श्रीपाल को विद्याधर कन्याओं की प्राप्ति ।
639-651
सन्धि ३५
(१) श्रीपाल का सुखावती के साथ घर के लिए प्रस्थान घोड़े का दिखना (२) घोड़े का वर्णन । (३) कुमार का तलवार से खम्भे पर आघात (४) महानाग। (५) सर्प का रत्न बनना। (६) अन्य कन्याओं
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पृष्ठ संख्या से विवाह । (७) सुखावती और धूमवेग (८) दोनों का तुमुल युद्ध मुग्धा सुखावती श्रीपाल को पहाड़ पर रखकर युद्ध करती है। (९-११) द्वन्द्व युद्ध । पूर्वभव की जननी द्वारा सुरक्षा। वह अपना परिचय देती है। (१२) सूर्यास्त का चित्रण । पंचणमोकार मन्त्र का महत्व। (१३) पानी में तिरती जिन भगवन् की प्रतिमा । उसे स्थापित कर अभिषेक (१४) यक्षिणी द्वारा अनेक उपहार विद्याधरी द्वारा राजा पर उपसर्ग । (१५) पुण्डरीकिणी नगरी की ओर प्रस्थान (१६) स्कन्धावार का वर्णन माता पुत्र से वैभव का कारण पूछती है। (१७-१८) सुखावती की प्रशंसा ।
651-666
सन्धि ३६
(१) सुखावती द्वारा सास को नमस्कार। विवाह। (२) सुखावती द्वारा अपने पिता को यशस्वती आदि का वृत्तान्त सुनाना। उसका मान करना। (३) विद्याधर का पत्र लेकर आना। अकम्पन का आगमन । (४) अतिथियों का आगत स्वागत। (५) सुखावती का आक्रोश यशस्वती से ईष्यां। (६) श्रीपाल द्वारा अपना वृतान्त कहना। (७) हरिकेतु को पट्ट बाँधना। (८) सुखावती और यशस्वती की स्पर्धा । (९) यशस्वती के सौभाग्य का कथन। (१०) सेठ का निवेदन । (११) गुणपाल का जन्म । (१२) अतिशयों से युक्त तीर्थंकर हुए। (१३) मोक्ष की प्राप्ति (१४) जयकुमार की विरक्ति (१५) नन्दनवन आदि की तीर्थयात्रा (१६) हिमगिरि पर्वत पर (१७) तडित्मालिनी का अपना परिचय (१८-२० ) तीर्थंकरों की
वन्दना ।
667-687
सन्धि ३७
(१) सुन्दरी द्वारा चैत्य-वन्दना (२) जयकुमार द्वारा मुनियों की वन्दना (३) ऋषभनाथ व गणधर वृषभसेन के दर्शन (४) ऋषभ जिन की स्तुति। (५) विभिन्न उदाहरण । (६) जयकुमार दम्पति द्वारा स्तुति । (७) जय का तप धारण करने का आग्रह । (८) पूर्वभव स्मरण। (९) दूसरों के द्वारा अनुकरण। (१०) पूर्वभव कथन। सुलोचना द्वारा तपश्चर्या ग्रहण (११) विद्याओं का परित्याग (१२) ऋषभ का उपदेश और जय के निर्वाण प्राप्त करने की भविष्यवाणी । (१३) भविष्य कथन। (१४) भरत द्वारा वन्दना (१५-१७) तत्त्वकथन। (१८) ऋषभ जिन का कैलाश पर पहुँचना (१९) भरत का अष्टापद शिखर पर जाना। (२०) ऋषभ को मोक्ष। (२१) देवताओं द्वारा ऋषभजिन के पाँचवें कल्याणक की पूजा (२२) अग्निसंस्कार । (२३) भरत का अनुताप (२४) भरत द्वारा स्तुति (२५) भरत को मोक्ष ।
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