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(१०) राजा अतिबल को वैराग्य । (११) पुत्र महाबल को गद्दी और उपदेश। (१२) राजा महाबल और सन्धि २३
434-453 उसके मन्त्री। (१३) स्वयंबुद्ध का उपदेश । (१४) इन्द्रिय सुख की निन्दा। (१५) विषय-सुख की निन्दा। (१) धाय द्वारा श्रीमती का चित्रपट लेकर जाना । (२) चित्रपट देखकर विभिन्न राजकुमारों की प्रतिक्रिया। (१६) स्वयंबुद्ध का उपदेश जारी रहता है। (१७) मन्त्री महामति द्वारा चार्वाक मत का समर्थन। (३-१५) पिता का विजययात्रा से लौटकर अपनी पुत्री को आश्वासन देना और अपना पूर्वभव कथन। (१८) स्वयंबुद्धि द्वारा खण्डन। (१९) क्षणिकवादी का खण्डन। (२०) सियार और मछली का उदाहरण। (१६) दार्शनिक विवेचन। (१७-२१) राजा द्वारा पुत्री श्रीमती को अपना पूर्वभव कथन। (२१) जिन के कथन का समर्थन । पूर्वज अरविन्द और उसके पुत्र हरिश्चन्द और कुरुविन्द का उल्लेख। (२२) पिता अरविन्द को दाह-ज्वर । (२३) अरविन्द द्वारा रक्त-सरोवर बनवाने के लिए कहना। (२४) सन्धि २४
454-464 कृत्रिम रक्तसरोवर में राजा का स्नान। (२५) राजा का क्रोध। उसने छुरी से पुत्र को मारना चाहा, परन्तु उस (१) पिता श्रीमती से कहता है कि आज उसका भावी ससुर आने वाला है। धाय का आगमन। पर गिरकर स्वयं मर गया।
(२-३) भावी वर का वर्णन । (४-५) वर का चित्रपट को देखकर पूर्वभव का स्मरण। (६) धाय और वर की बातचीत का विवरण। (७) वर की काम-पीड़ा का वर्णन । (८) पिता वज्रबाहु का पुत्र को समझाना।
(९-१०) वज्रबाहु का पुण्डरीकिणी नगर आना। पुत्र को देखकर नगर-वनिताओं की प्रतिक्रिया। (११) राजा सन्धि २१
402-414
द्वारा वज्रबाहु का स्वागत । वज़बाहु अपने पुत्र वज्रजंघ के लिए श्रीमती माँगता है। (१२) विवाह-मण्डप। (१) स्वयंबुद्धि महाबल को सहारा देता है । मन्त्री द्वारा पूर्वजों का कथन । (२) राजा के चित्त की शान्ति ।
(१३) विवाह। (१४) वर-वधू वर्णन। सुमेरु पर्वत का वर्णन। (३) चारण मुनियों का आगमन । उनका वर्णन। (४) मुनियों का उपदेश । राजा के दसवें भव में तीर्थंकर होने का उपदेश । (५) राजा जयवर्मा ने (जो महाबल का बड़ा पुत्र था) भी छोटे भाई
सन्धि २५
464-481 को राज्य देने के कारण संन्यास ले लिया। (६-७) वन में जाकर तपस्या करना। वन का वर्णन। (८) मुनि
(१) वज्रजंध और श्रीमती का वर्णन। (२) वज्रबाहु और वज्रजंघ का प्रस्थान। (३) वर-वधू का जयवर्मा का निदान । साँप के काटने से मृत्यु । अलकापुरी में मनोहरा का पुत्र। (९) स्वयंबुद्ध का राजा को
निवास । वज्रबाहु का दीक्षा ग्रहण करना। (४) वज्रजंघ को विरक्ति होना । कमल में मृत भ्रमर देखना। (५) राजा समझाना। (१०) स्वर्यबुद्ध महाबल से कहता है कि मुनि का कहा झूठ नहीं हो सकता। (११) महाबल
का वैराग्य-चिन्तन । (६) पुत्र अमिततेज को राजपाट सौंपने का प्रस्ताव। पुत्र अमिततेज की अस्वीकृति। द्वारा स्वयंबुद्ध की प्रशंसा । (१२) जिनवर की पूजा-वन्दना। संल्लेखना से मरण। (१३-१५) महाबल का
(७) राजा वज्रदन्त व पुत्र अमिततेज द्वारा संन्यासग्रहण। (८) रानी का परिताप। (९) रानी लक्ष्मीवती का देवकुल में उत्पन्न होना। अवधि-ज्ञान से वह सारी बात जान लेता है।
चिन्तन । उसका वज्रजंघ को लेख भेजना। (१०) वज्रजंघ का पत्र पढ़ना। (११) वनजंघ का प्रस्थान।
(१२) वन में मुनियों को आहारदान। (१३) पूर्वभव का स्मरण। (१४-२०) पूर्वभव कथन। (२१) हलवाई सन्धि २२
415-433 का आख्यान। (२२) वनजंघ का पुण्डरीकिणी पहुँचना। बहन का राज्य सँभालना। (१) ललितांग देव की माला का मुरझाना। उसकी चिन्ता। (२) धर्माचरण। (३-४) पुष्कलावती के उत्पलखेड़ नगर का वर्णन, वहाँ के राजा वज्रबाहु के ललितांग देव का वज्रजंघ नामक पुत्र के रूप में जन्म। सन्धि २६
481-493 पुत्र दिन दूना रात चौगुना बढ़ता है। (५) देवी स्वयंप्रभा का विलाप । वह पुण्डरीकिणी नगरी में गई। नगरी (१) श्रीमती और उसके पति का निधन। (२) उत्तर कुरुभूमि में जन्म। (३) कुरुभूमि का वर्णन। का वर्णन। (६) वज्रदन्त राजा। (७) स्वयंप्रभा राजा वज्रदन्त के श्रीमती नाम की कन्या हुई। (८) ललितांग (४) दोनों का सुखमय जीवन। (५) शार्दूल आदि का कुरुभूमि में जन्म लेना। (६) पूर्वभव कथन। (७) वेद का स्मरण। (९) पूर्वजन्म के वर ललितांग की याद। पिता का यशोधर के केवलज्ञान-समारोह में जाना। का अर्थ । (८) सच्चे गुरु की पहचान। (९) तत्त्वों का कथन । शार्दूल आदि के जीवों को सम्बोधन । (१०-११) यशोधर का वर्णन। राजा को पूर्वभव की याद आती है। (१२) घर आकर अपनी कन्या को (१०) मुनियों का आकाश-मार्ग से जाना। व्याघ्र आदि का स्वर्ग में जाना। (११) पूर्वभव कथन । समझाता है और पूर्वभव का कथन करता है। (१३) धाय पुत्री का मर्म पूछती है। (१४) गन्धिल्ल देश के (१२-१८) सम्भिन्नमति आदि के पूर्वभव का कथन। भूतग्राम का वर्णन । नागदत्त वणिक् । उसके कई पुत्र-पुत्रियाँ थीं। अन्तिम कन्या निर्नामिका। (१५) सिर पर लकड़ियों का गट्ठा रखे हुए वह जैन मुनि के दर्शन का योग पाती है। (१६) मुनि को नमस्कार किया। सन्धि २७
494-504 (१७) मुनि पिहितास्त्रव द्वारा पूर्वभव कथन। (१८) जैनधर्म का उपदेश। (१९) व्रतों का विधान । (१) अच्युतेन्द्र की आयु के क्षीण होने का वर्णन। (२) पूर्वभव का कथन । (३) लौकान्तिक देवों का (२०) मुनिनिन्दा का फल। निर्नामिका घर आती है। (२१) मरकर स्वर्ग में स्वयंप्रभा नाम की देवी उत्पन्न वज्रसेन को प्रबोध देना। (४-५) वज्रनाभि के तप का वर्णन। (६) ऋद्धियों की प्राप्ति । वज्रनाभि का अहमिन्द्र होना।
होना। (७) अवधिज्ञान से पूर्वभव का ज्ञान। (८-१०) ऋषभदेव के पूर्वभव-कथन। (११) पूर्वभव-कथन For Private & Personal use only
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