Book Title: Adi Purana
Author(s): Pushpadant, 
Publisher: Jain Vidyasansthan Rajasthan

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Page 14
________________ पृष्ठ संख्या पृष्ठ संख्या सन्धि १४ 259-279 और युक्ति से भरत की अधीनता मानने का प्रस्ताव। (१७) दूत के द्वारा भरत की दिग्विजय का वर्णन । (१) मणिशेखर देव का आगमन और निवेदन; भरत द्वारा गुहाद्वार खोलने का आदेश; दण्डरल का प्रक्षेप। (१८) दिग्विजय का वर्णन, बाहुबलि का आक्रोश । (१९) बाहुबलि का आक्रोशपूर्ण उत्तर । (२०) दूत का उत्तर (२) गुहाद्वार का उद्घाटन होना; गुहा का वर्णन । (३-४) गुहादेव का पतन; भरत का चक्र भेजना और उसके और भरत का अपराजेयता का संकेत । (२१) बाहुबलि द्वारा राजा की निन्दा। (२२) दूत का वापस आकर भरत पीछे सेना का चलना। (५) गुहामार्ग में सूर्य-चन्द्र का अंकन, विभिन्न जाति के नागों में हलचल।(६) समुन्माना से प्रतिवेदन। (२३) सूर्यास्त का वर्णन। (२४) संध्या का चित्रण। (२५-२६) रात्रि के विलास का चित्रण। और निमग्ना नदियों के तट पर पहुँचना और सेतु बाँधना; सैन्य का पानी पार करना। (७) म्लेच्छकुल के राजाओं का पतन। (८) म्लेच्छ राजा द्वारा विषधरकुल नागों के राजा को बुलाना। (९) म्लेच्छ राजा का सन्धि १७ 335-352 प्रत्याक्रमण का आदेश, नागों द्वारा विद्या के द्वारा अनवरत वर्षा । (१०) चर्मरत्न से रक्षा । (११) सेना के घिरने (१) युद्ध का श्रीगणेश; बाहुबलि का आक्रोश । (२) वनिताओं की प्रतिक्रिया। (३) रणतूर्य का बजना; पर भरत द्वारा स्वयं प्रतिकार। (१२) मेघों का पतन। योद्धाओं का तैयार होना। (४) भरत के आक्रमण की सूचना; बाहुबलि का आक्रोश। (५) बाहुबलि की सेना की तैयारी। (६) योद्धाओं की गर्वोक्तियाँ । (७) संग्राम-भेरी का बजना। (८) मन्त्रियों का हस्तक्षेप। सन्धि १५ 279-307 (९) मन्त्रियों द्वारा द्वन्द्व युद्ध का प्रस्ताव। (१०) दृष्टि, जल और मल्ल युद्ध के लिए सहमति । (११) दृष्टि (१) सिन्धु-विजय के बाद राजा का ऋषभनाथ को प्रणामकर हिमवन्त के लिए प्रस्थान । (२) हिमवन्त युद्ध; भरत की पराजय। (१२) जलयुद्ध; सरोवर का वर्णन । (१३) भरत की पराजय। (१४) भरत का के कूटतल में सेना का पड़ाव। (३) भरत-पक्ष के द्वारा प्रक्षिप्त बाण को देखकर राजा हिमवन्त कुमार की आक्रोश। (१५) बाहुयुद्ध; भरत की हार। (१६) बाहुबलि की प्रशंसा। प्रतिक्रिया। (४) बाण में लिखित अक्षर देखकर उसका समर्पण। (५) अधीनता स्वीकार कर उसका चला जाना। (६) भरत का वृषभ महीधर के निकट जाना; उसका वर्णन; उस पर्वत के तट पर अनेक राजाओं सन्धि १८ 353-366 के नाम खुदे हुए थे; राज्य की निन्दा। (७) भरत की यह स्वीकृति कि राजा बनने की आकांक्षा व्यर्थ है, (१) बाहुबलि का पश्चात्ताप। (२) राजसत्ता के लिए संघर्ष की निन्दा; संसार की नश्वरता। (३) भरत फिर भी अपने नाम का अंकन। (८) हिमवन्त से प्रस्थान और मन्दाकिनी के तट पर ठहरना। (९) गंगा का उत्तर; भरत द्वारा बाहुबलि की प्रशंसा । (४) भरत का पश्चात्ताप । (५) बाहुबलि का पश्चात्ताप । (६) बाहुबलि का वर्णन। (१०) गंगा देवी द्वारा भरत का सम्मान। (११) गंगा का उपहार देकर वापस जाना। (१२) सेना का ऋषभ जिन के दर्शन करने जाना; ऋषभ जिन की संस्तुतिजिन-दीक्षा और पाँच महाव्रतों को धारण करना। और नदी का श्लिष्ट वर्णन । (१३) विजयार्ध पर्वत की पश्चिमी गुहा में प्रवेश। (१४) किवाड़ का विघटन। (७) परिषह सहन करना। (८) घोर तपश्चरण। (९) भरत का ऋषभं जिन की वन्दना-भक्ति के लिए जाना; (१५) मन्त्रियों द्वारा वहाँ के शासक नमि-विनमि का परिचय। (१६) दोनों भाइयों के द्वारा अधीनता स्वीकार। स्तुति के बाद बाहुबलि से पूछना; भरत का बाहुबलि से क्षमायाचना करना। (१०) बाहुबलि का आत्मचिन्तन (१७) नमि-विनमि द्वारा निवेदन; भरत द्वारा उनकी पुनःस्थापना । (१८) सैन्य का प्रस्थान; गुहा द्वार में प्रवेश; और तपस्या; दश उत्तम धर्मों का पालन। (११) चारित्र्य का पालन; केवलज्ञान की प्राप्ति । (१२) देवों का सूर्य-चन्द्र का अंकन । (१९) पर्वत गुफा से निकलकर कैलाश गुफा पर पहुँचना। (२०-२१) कैलास पर्वत आगमन। (१३) भरत का अयोध्या नगरी में प्रवेश। (१४) भरत की उपलब्धियाँ और वैभव। (१५) भरत का वर्णन। (२२) कैलास पर आरोहण। (२३) ऋषभ जिन के दर्शन। (२४) ऋषभ जिन की स्तुति। की ऋद्धि का चित्रण। (१६) विलास-वर्णन। सन्धि १६ 307-335 सन्धि १९ 366-378 (१) साकेत के लिए कूच, सैन्य के चलने की प्रतिक्रिया, अयोध्या के सीमा द्वार पर पहुँचना, स्वागत की (१) भरत का दान के बारे में सोचना। (२) कंजूस व्यक्ति की निन्दा। (३) गुणी व्यक्ति कौन। तैयारी। (२) चक्र का नगर सीमा में प्रवेश नहीं करना। (३-४) इस तथ्य का अलंकृत शैली में वर्णन; भरत (४) राजाओं को बुलाया गया। ब्राह्मण वर्ण की स्थापना। (५) ब्राह्मणों के बाद क्षत्रिय वर्ण की स्थापना। के पूछने पर राजा का इसका कारण बताना। (५) बाहुबलि के बारे में मन्त्रियों का कथन । (६) बाहुबलि की (६-७) ब्राह्मण की परिभाषा। ब्राह्मणों को दान। (८) अशुभ स्वजावली का दर्शन । (९) भरत द्वारा ऋषभ अजेयता का वर्णन; भरत की प्रतिक्रिया। (७) दूत का कुमारगण के पास जाना; कुमारगण की प्रतिक्रिया। जिन के दर्शन और अशुभ स्वप्न का फल पूछना। (१०) ऋषभ जिन द्वारा ब्राह्मणों के दुष्कर्मों की आलोचना। (८) भौतिक पराधीनता की आलोचना। (९) बाहुबली के अतिरिक्त शेष भाइयों द्वारा भौतिक मूल्यों के लिए (११) भविष्य कथन। (१२) अशुभ स्वप्न-फल कथन। (१३) भविष्य कथन। नैतिक मूल्यों की उपेक्षा किये जाने की निन्दा। (१०) कुमारों का ऋषभ के पास जाना, स्तुति और संन्यास ग्रहण; बाहुबलि की अस्वीकृति । (११) दूत का भरत को यह समाचार देना; भरत का आक्रोश। (१२) भरत का दूत सन्धि २० 378-401 को सख्त आदेश। (१३) दूत का बाहुबलि के आवास पर जाना; पोदनपुर का वर्णन। (१४) दूत की बाहुबलि (१) पुराण की परिभाषा। (२) लोक के कर्तृत्व का खण्डन । (३-४) लोक का वर्णन। (५) विजयार्ध से भेंट । (१५) दूत के द्वारा बाहुबलि की प्रशंसा; बाहुबलि का भाई के कुशल-क्षेम पूछना। (१६) दूत का उत्तर पर्वत का वर्णन। (६-७) अलकापुरी का वर्णन । (८) राजा अतिबल का वर्णन। (९) रानी मनोहरा का वर्णन। Jain Education Intematon For Private&Personal use Only www.jainelibrary.org

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