________________
आदिपुराण - विषय-सूची पृष्ठ संख्या
पृष्ठ संख्या सन्धि १ 1-16 सन्धि ४
60-77 (१) ऋषभ जिन की वन्दना । (२) सरस्वती की वन्दना। (३) कवि का मान्यखेट के उद्यान में प्रवेश (१) देवियों द्वारा बालक का अलंकरण विद्याभ्यास और समस्त शास्त्रों और कलाओं का ज्ञान। और आगन्तुकों से संवाद। (४) राज्यलक्ष्मी की निन्दा। (५) भरत का परिचय। (६) भरत द्वारा कवि की (२-३) जिन के रूप-गुण का वर्णन। (४-५) शैशव क्रीड़ा। (६) नाभिराज द्वारा विवाह का प्रस्ताव । प्रशंसा और काव्य रचना का प्रस्ताव। (७)कवि द्वारा दुर्जन-निन्दा। (८) भरत का दुबारा अनुरोध और कवि (७) पुत्र की असहमति, इन्द्रिय-भोग और विषयसुख की निन्दा। (८) चारित्रावरण कर्म के शेष होने के की स्वीकृति। (९) कवि द्वारा स्व-अल्पज्ञता का कथन और परम्परा का उल्लेख (१०) गोमुख यक्ष से कारण ऋषभदेव की विवाह की स्वीकृति; कच्छ और महाकच्छ की कन्याओं से विवाह का प्रस्ताव। (९) प्रार्थना। (११) स्व-अल्पज्ञता की स्वीकृति के साथ कवि द्वारा महापुराण लेखन का निश्चय । जम्बूद्वीप भरतक्षेत्र विवाह की तैयारी। (१०) मण्डप का निर्माण। (११) वाद्यवादन । (१२) विवाह के लिए तैयारियाँ, वर
और मगध देश का चित्रण। (१२-१६) राजगृह का वर्णन। (१७) राजा श्रेणिक का वर्णन । (१८) उद्यानपाल वधू के कंकण बाँधा जाना। (१३) वाद्य-वादन, विवाह की तैयारी। (१४) दोनों कन्याओं से पाणिग्रहण। द्वारा वीतराग परम तीर्थंकर महावीर के समवसरण का विपुलाचल पर आगमन की सूचना और राजा श्रेणिक (१५) सूर्यास्त का वर्णन । (१६) चन्द्रोदय का वर्णन। (१७) नाट्य प्रदर्शन। (१८) विभिन्न रसों का नाट्य। का वन्दना-भक्ति के लिए प्रस्थान।
(१९) सूर्योदय। ऋषभ जिन राज्य करने लगे।
सन्धि २ 17-38 सन्धि
77-98 (१) नगाड़े का बजना और नगरवनिताओं का विविध उपहारों के साथ प्रस्थान। (२) राजा का पहुँचना, (१) यशोवती का स्वप्न देखना। (२) स्वप्नफल पूछना। (३) गर्भवती होना; पुत्रजन्म। (४) बालक देवों द्वारा समवसरण की रचना। (३) राजा द्वारा जिनेन्द्र की स्तुति । (४-८) गौतम गणधर से महापुराण की का वर्णन, नामकरण। (५) बालक का बढ़ना; उसके सौन्दर्य का वर्णन; सामुद्रिक लक्षण। (६) रूप-चित्रण अवतारणा के विषय में पूछना, गौतम गणधर द्वारा पुराण की अवतारणा करते हुए काल द्रव्य का वर्णन। और ऋषभ द्वारा प्रशिक्षण। (७-८) अर्थशास्त्र व नीतिशास्त्र का उपदेश । (९-१०) क्षात्रधर्म की शिक्षा। (९-११) प्रतिश्रुत आदि कुलकरों का जन्म। (१२) नाभिराज कुलकर की उत्पत्ति, भोगभूमि का क्षय और (११) राजनीतिशास्त्र । (१२) राज्य-परिपालन की शिक्षा । (१३) अन्य पुत्रों का जन्म । (१४) बाहुबलि का कर्मभूमि का प्रारम्भ। (१३) मेघवर्षा, नये धान्यों की उत्पत्ति। (१४) कुलकर का प्रजा को समझाना और जन्म और यौवन की प्राप्ति । (१५) प्रथम कामदेव बाहुबलि के नवयौवन और सौन्दर्य के प्रति नगरवनिताओं जीवनयापन की शिक्षा देना। (१५-१६) मरुदेवी के सौन्दर्य का वर्णन। (१७) नाभिराज और मरुदेवी की की प्रतिक्रिया। (१६) नगरवनिताओं की चेष्टाएँ। (१७-१८) ब्राह्मी और सुन्दरी का जन्म, ऋषभ जिन द्वारा जीवनचर्या, इन्द्र का कुबेर को आदेश। (१८) नगर के प्रारूप का वर्णन। (१९) कर्मभूमि की समृद्धि। उन्हें पढ़ाना। (१९) कल्पवृक्षों की समाप्ति; ऋषभ के द्वारा असि-मसि आदि कर्मों की शिक्षा । (२०) उस (२०) समृद्धि का चित्रण। (२१) नगर के वैभव का वर्णन।
समय की समाज-व्यवस्था का चित्रण। (२१) गोपुरों की रचना। (२२) ऋषभ द्वारा धरती का परिपालन।
सन्धि ३ 38-59 सन्धि
98-106 (१) इन्द्र द्वारा भावी तीर्थंकर के छह माह बाद उत्पन्न होने की घोषणा। (२) सुरबालाओं का जिनमाता (१-२) ऋषभ राजा के दरबार और अनुशासन का वर्णन। (३-४) इन्द्र की चिन्ता कि ऋषभ जिन को की सेवा और गर्भशोधन के लिए आगमन।(३) देवांगनाओं द्वारा जिनमाता का रूप-चित्रण । (४) देवांगनाओं किस प्रकार विरक्त किया जाये। (५-९) नीलांजना को भेजना और संगीत शास्त्र का वर्णन । नीलांजना का द्वारा जिनमाता की सेवा। (५) माता द्वारा १६ स्वप्न देखना। (६) राजा द्वारा भविष्य-कथन। (७) रत्नों की नृत्य करना और अन्तर्धान होना, ऋषभ जिन द्वारा विस्मित होना। वर्षा । (८) जिन का जन्म। (९) देवों का आगमन और उनके द्वारा स्तुति। (१०) विभिन्न वाहनों पर बैठकर देवों का अयोध्या आगमन। (११) माता को मायावी बालक देकर इन्द्राणी द्वारा (तीर्थकर) बालक को बाहर सन्धि ७
107-129 निकालना; बालक को देखकर इन्द्र द्वारा प्रशंसा।(१२) इन्द्र के द्वारा स्तुति; सुमेरु पर्वत पर ले जाना पाण्डुशिला (१-१४) बारह अनुप्रेक्षाओं का कथन । (१५-१९) आत्मचिन्तन और लौकान्तिक देवों द्वारा सम्बोधन। के ऊपर सिंहासन पर विराजमान करना । (१३) सुमेरु पर्वत द्वारा प्रसन्नता प्रकट करना। (१४) नाना वाद्यों (२०-२१) दीक्षा का निश्चय, और भरत से राजपाट सम्हालने का प्रस्ताव; प्रतिरोध करने के बावजूद भरत के साथ देवों के द्वारा अभिषेक। (१५) स्नान के बाद अलंकरण। (१६) जिन का वर्णन। (१७) गन्धोदक को राजपट्ट बाँध दिया गया। (२२) सिंहासन पर आरूढ़ भरत और ऋषभनाथ । (२३) वाद्य-गान और उत्सव की वन्दना। (१८) सामूहिक उत्सव। (१९) स्तुति । (२०) विभिन्न वाद्यों के साथ इन्द्र का नृत्य; उसकी के साथ भरत का राज्याभिषेक। (२४) ऋषभ जिन द्वारा दीक्षा ग्रहण के लिए प्रस्थान । (२५-२६) सिद्धार्थ व्यापक प्रतिक्रिया। (२१) जिन-शिशु को लेकर अयोध्या आना; उनका वृषभ (ऋषभ) नामकरण। वन का वर्णन; दीक्षा ग्रहण करना।
Jain Education Internation
For Private & Personal use only
www.jainelibrary.org