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कवि ने काव्य के प्रारम्भ में कहा है कि मंत्री भरत ने मुझसे इस काव्य की रचना करवायी, इसी फाल्गुन शुक्ल १३ है। इस समय जोगिनीपुर (दिल्ली) के महादुर्ग पर सुल्तान आलम पातिसाह का प्रकार अन्त में भी स्पष्टरूप से स्वीकार किया है कि उसने मंत्री भरत' के अनुरोध पर नाना रस- राज था। तब 'पाल' नामक शुभस्थान में 'चौधरी राइमल' द्वारा महापुराण के आदि खंड की यह भावों से युक्त 'पद्धड़िया' छन्द में महापुराण की रचना की। पद्धड़िया उस युग में अपभ्रंश काव्यों प्रति लिखवाई गई। लेखनकार्य 'विश्नुदास' नाम के ब्राह्मण व्यक्ति के द्वारा किया गया और चित्र की विशेष-लोकप्रिय शैली थी। कवि महापुराण पूर्ण करने का श्रेय अपनी प्रतिभा को और मंत्री भरत 'हरिनाथ कायस्थ' और उसके परिवार द्वारा बनाये गये हैं। की उदारता को देते हैं। मंत्री भरत की त्यागशीलता पर कवि को बड़ा गर्व था। पुष्पदन्त ने अपने काव्य की प्रत्येक सन्धि के अन्त में अत्यन्त गौरव से 'भरत' के नाम के साथ 'महाभव्य' विशेषण
६८७ पृष्ठों की इस पाण्डुलिपि में तीर्थंकर ऋषभदेव के जीवन-चरित के अनुरूप ५४१ रंगीन चित्र का उल्लेख किया है। महाकवि पुष्पदन्त जैसे स्वाभिमानी, निर्लोभी और संसार से उद्विग्न व्यक्ति को
अंकित हैं। मूल पाण्डुलिपि में पत्र संख्या-१०, १५, ८७, ९६, १३२, १३३ कुल छः पत्र तदनुसार अपने घर रखकर 'महापुराण' जैसे विशाल ग्रन्थ की रचना करवा लेना मंत्री भरत की अपनी विशेषता
पृष्ठ संख्या १८-१९, २८-२९, १७२-१७३, १९०-१९१, २६२-२६३ तथा २६४-२६५ अनुपलब्ध है। वे नर-पारखी तथा गुणग्राही थे । निःसन्देह मंत्री भरत की उदारता के कारण ही विश्व को अपभ्रंश
हैं। उनका अपभ्रंश पाठ' आदिपुराण' की ( भारतीय ज्ञानपीठ से) मुद्रित/प्रकाशित प्रति से साभार लिया
गया है। ऐतिहासिक महत्व की यह सचित्र पाण्डुलिपि अनुपम है, अद्वितीय है, अनूठी है। का यह महान ग्रन्थ उपलब्ध हो सका। 2. मंत्री नन्न
___ दिगम्बर जैन बड़ा मन्दिर तेरहपंथियान, जयपुर की प्रबन्धकारिणी कमेटी के अध्यक्ष -
श्री (डॉ.) सुभाष कासलीवाल, मंत्री - श्री (डॉ.) समन्तभद्र पापड़ीवाल तथा अन्य सभी सदस्यों महाकवि 'महापुराण' की समाप्ति (अर्थात् ९६५ ई.) तक मंत्री भरत के ही आश्रय में थे किन्तु
के हम अत्यन्त आभारी हैं जिनके सौजन्य से यह पाण्डुलिपि प्रकाशन हेतु जैनविद्या संस्थान को प्राप्त 'णायकुमारचरिउ' की रचना के समय (९६६-९६८ ई. के बीच) वे मंत्री भरत के पुत्र नन्न के आश्रय
हुई। इस कार्य में बड़े मन्दिर की प्रबन्धकारिणी कमेटी की ओर से मनोनीत श्री विनयचन्द पापड़ीवाल में रहने लगे थे। इससे प्रतीत होता है कि जब पुष्पदन्त ने 'महापुराण' की रचना की तब भरत मंत्री
द्वारा प्रदत्त सहयोग उल्लेखनीय रहा है। इस कार्य हेतु उनके द्वारा दिया गया समय एवं किया गया थे किन्तु महापुराण पूर्ण होने के बाद या तो भरत का निधन हो गया या उन्होंने वैराग्य ग्रहण कर
अथक परिश्रम श्लाघनीय है। लिया। भरत के पुत्र नन्न' को पिता का उत्तराधिकारी बनाया गया तो 'नन्न' ने भी महाकवि को आश्रय प्रदान किया तथा अपभ्रंश में काव्य रचने की प्रेरणा दी। नन्न प्रकृति से सौम्य तथा हृदय से शुद्ध थे। जिन उदारमना महानुभावों ने आर्थिक सहयोग प्रदानकर इस ग्रन्थ-प्रकाशन के कार्य को सहज अपने पिता की भाँति ही वे भी धार्मिक प्रवृत्ति के थे और जैनागमों के अर्थ का गम्भीरतापूर्वक अध्ययन बनाया उन सभी के प्रति हम हृदय से कृतज्ञ हैं। उनके नाम परिशिष्ट में सादर अंकित हैं। और चिन्तन किया करते थे, चारों प्रकार के दान दिया करते थे। उनके आश्रय में कवि ने
इस पाण्डुलिपि के प्रकाशन की स्वीकृति के लिए हम दिगम्बर जैन अतिशय क्षेत्र श्री महावीरजी 'णायकुमारचरिउ' और 'जसहरचरिउ' काव्यों की रचना की।
को प्रबन्धकारिणी कमेटी एवं जैनविद्या संस्थान समिति के सदस्यों के आभारी हैं। दिगम्बर जैन अतिशय क्षेत्र श्री महावीरजी द्वारा संचालित 'जैनविद्या संस्थान' जैन दर्शन, संस्कृति,
इसके प्रकाशन कार्य में संस्थान के कार्यकर्ताओं, विशेषरूप से सुश्री प्रीति जैन का सहयोग कला, आचार-विचार आदि को सुरक्षित रखने एवं उसके प्रचार-प्रसार के लिए समर्पित है। अपने इस
उल्लेखनीय रहा है। उद्देश्य के अनुरूप संस्थान द्वारा 'आदिपुराण' की इस सचित्र पाण्डुलिपि का प्रकाशन किया गया है।
इस सुन्दर एवं कलात्मक मुद्रण के लिए जयपुर प्रिन्टर्स प्रा. लि. जयपुर के श्री प्रमोदकुमार जैन 'आदिपुराण' की इस सचित्र पाण्डुलिपि का प्रकाशन पहली बार किया गया है। अपभ्रंश
___ एवं श्री आलोक जैन धन्यवादाह हैं। भाषा की यह मूल सचित्र पाण्डुलिपि आर्ट पेपर पर हिन्दी अर्थसहित प्रकाशित की गई है। (स्व.) डॉ. देवेन्द्रकुमार जैन कृत हिन्दी अर्थ भारतीय ज्ञानपीठ से प्रकाशित 'आदिपुराण"
नरेशकुमार सेठी नरेन्द्रकुमार पाटनी डॉ. कमलचन्द सोगाणी (सन् २००१) से साभार लिया गया है।
अध्यक्ष मंत्री
संयोजक प्रस्तुत पांडुलिपि जयपुर के दिगम्बर जैन बड़ा मन्दिर तेरहपंथियान के शास्त्र भण्डार में संगृहीत
प्रबन्धकारिणी कमेटी
जैनविद्या संस्थान समिति है। इस पांडुलिपि में ३४४ पत्र (६८७ पृष्ठ) हैं। इसका लिपिकाल संवत् १५९७ (ई. सन् १५४०) दिगम्बर जैन अतिशय क्षेत्र श्री महावीरजी १. महाकवि पुष्पदन्त विरचित 'अपभ्रंश महापुराण' का प्रथम एवं द्वितीय भाग।
तीर्थंकर महावीर निर्वाण दिवस, कार्तिक कृष्ण अमावस्या, वीर निर्वाण संवत् २५३१, १२.११.२००४
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