Book Title: Adi Purana
Author(s): Pushpadant, 
Publisher: Jain Vidyasansthan Rajasthan

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Page 9
________________ पूर्व भी ऐसे लोग थे जो ऋषभदेव की पूजा करते थे। यजुर्वेद में तीन तीर्थंकरों के नामों का उल्लेख है - ऋषभदेव, अजितनाथ और अरिष्टनेमि। भागवतपुराण भी इस बात का समर्थन करता है कि ऋषभ (इस युग में) जैन मत के संस्थापक थे।" चक्रवर्ती राजा भरत तीर्थंकर ऋषभदेव के पुत्र भरत 'प्रथम चक्रवर्ती' हुए। उन्होंने चक्ररत्न के द्वारा षट्खण्ड भरतक्षेत्र को अपने अधीन कर लिया। राजनीति का विस्तार कर उन्होंने अपने अधीन राजाओं को राज्य-शासनपद्धति सिखायी। भरत चक्रवर्ती यद्यपि षट्खण्ड पृथ्वी के अधिपति थे किन्तु फिर भी वे उसमें आसक्त नहीं रहते थे। यही कारण था कि उन्हें दीक्षा के बाद अन्तर्मुहूर्त में ही केवलज्ञान हो गया और कालान्तर में उन्होंने 'मोक्ष' प्राप्त किया। यह स्मरणीय है कि नाभिपुत्र-ऋषभदेव और ऋषभपत्र-भरत की चर्चा प्राय: सभी जैनेतर पुराणों, वेद-मन्त्रों आदि में उपलब्ध है। यह एक शुभ संयोग है कि ऋषभदेव और उनके पुत्र भरत दोनों की जन्मतिथि एक ही दिवस 'चैत्र कृष्ण नवमी' को है। इस देश का नाम 'भारत' ऋषभपुत्र 'भरत' के नाम से ही हुआ है। उक्त कथन की पुष्टि के लिए अनेक उद्धरण हैं। अपभ्रंश भारतवर्ष में प्रचलित एक सुसमृद्ध लोकभाषा थी। ईसा की पाँचवीं-छठी शताब्दी में यह साहित्यिक अभिव्यक्ति का सशक्त माध्यम बन गई थी। लम्बे समय तक यह उत्तरी भारत की भाषा बनी रही। पश्चिम से पूर्व तक इसका प्रयोग होता था। इसी से आधुनिक भारतीय भाषाओं का जन्म हुआ है। ईसा की आठवीं से तेरहवीं शताब्दी का समय अपभ्रंश साहित्य का उत्कर्ष युग कहा जा सकता है। सातवीं शताब्दी से सोलहवीं शताब्दी तक जैन कवियों द्वारा रचित अपभ्रंश साहित्य प्राप्त होता है। इस सुदीर्घ काल में जो प्रचुर साहित्य रचा गया है उसका केवल एक अंश अब तक प्रकाश में आया है। जैन ग्रन्थ-भण्डारों में अपभ्रंश भाषा का साहित्य विपुल मात्रा में सुरक्षित है। 'महापुराण' महाकवि की अपभ्रंश भाषा की रचनाओं में पहली और विशाल रचना है। कवि की यह महान कृति अपभ्रंश साहित्य में अपना एक विशिष्ट स्थान रखती है। इसमें पुराणोचित गुणों के साथ ही सभी काव्योचित गुणों के दर्शन भी होते हैं । वस्तुत: यह महापुराण कविकुलतिलक पुष्पदंत की अनुपम रचना है। महाकवि पुष्पदन्त का महापुराण एक 'महाकाव्य' है। में यह महापुराण अपभ्रंश साहित्य का एवं जैन परम्परा का एक महान ग्रन्थ है। इसमें १०२ संधियाँ हैं। यह ग्रन्थ दो भागों में विभक्त है-आदिपराण और उत्तरपुराण।'आदिपुराण' प्रथम भाग है जिसमें तीर्थंकर ऋषभदेव एवं उनके पुत्रों के जीवन-चरित्र का वर्णन किया गया है, इसमें प्रारम्भ में कुलकरों का वर्णन है फिर ऋषभदेव के कल्याणकों का वर्णन है। बीसवीं सन्धि से उनके पूर्वभवों का वर्णन किया गया है। इसे 'नाभेयचरित' भी कहा जाता है। यह भाग प्रारम्भ की ३७ सन्धियों में वर्णित है। शेष भाग 'उत्तरपुराण' कहा जाता है जो शेष ६५ संधियों में वर्णित है। इस प्रकार 'आदिपुराण' या 'नाभेयचरित' महापुराण का ही प्रारम्भिक भाग है। महाकवि पुष्पदन्त ___पुष्पदन्त अपभ्रंश के ही नहीं अपितु भारत के महान कवियों में से एक हैं। वे अनेक उपाधियों से विभूषित थे। उन्हें 'काव्यरत्नाकर', 'कविकुल-तिलक', 'सरस्वती-निलय' और 'कव्व-पिसल्ल' (काव्य पिशाच) आदि कहा गया है। महापुराण 'महापुराण' जैन साहित्य में एक विशेष शब्द है। इसमें त्रेसठ जैन महापुरुषों के जीवन का वर्णन होता है। चौबीस तीर्थकर, बारह चक्रवर्ती, नौ नारायण, नौ प्रतिनारायण और नौ बलभद्र-इन्हें जैन परम्परा में प्रेसठ शलाका पुरुष कहा जाता है। जिस ग्रन्थ में इन शलाका पुरुषों का वर्णन किया जाता है वह ग्रन्थ 'त्रेसठ शलाका पुरुषचरित' या 'महापुराण' कहलाता है। जैन वाङ्मय में संस्कृत भाषा में आचार्य जिनसेन (ईसा की नवीं शताब्दी) द्वारा 'आदिपुराण' की और उनके शिष्य आचार्य गुणभद्र (ईसा की नवीं शताब्दी) द्वारा 'उत्तरपुराण' की रचना की गई। इसके पश्चात् महाकवि पुष्पदन्त (ईसा की दसवीं शताब्दी) ने अपभ्रंश भाषा में महापुराण' की रचना की। १. भारतीय दर्शन, पृ. २३३, राजपाल एण्ड सन्स, सन् १९८९. २ आदिपुराण, आचार्य जिनसेन, संपा-अनु,-पं. पन्नालाल जैन, १५.१४१, पृ. ३३७, भारतीय ज्ञानपीठ, चतुर्थ संस्करण, १९९३. ३. विशेष विवरण के लिए परिशिष्ट द्रष्टव्य है। ४. २४ तीर्थंकर- १. ऋषभदेव, २. अजितनाथ, ३. सम्भवनाथ, ४, अभिनन्दन, ५. सुमतिनाथ, ६. पद्मप्रभ, ७. सुपार्श्वनाथ, 8. चन्द्रप्रभ, ९. पुष्पदन्त, १०. शीतलनाथ, ११. श्रेयांसनाथ, १२. वासुपूज्य, १३, विमलनाथ, १४. अनन्तनाथ, १५. धर्मनाथ, १६. शान्तिनाथ, १७. कुन्थुनाथ, १८. अरनाथ, १९. मल्लिनाथ, २०. मुनिसुव्रतनाथ, २१. नमिनाथ, २२. नेमिनाथ, २३. पार्श्वनाथ, २४. वर्धमान महावीर। १२ चक्रवर्ती - १. भरत, २. सगर, ३. मघवा, ४. सनत्कुमार, ५, शान्तिनाथ, ६. कुन्भुनाथ, ७. अरनाथ, ८. सूभूम, ९. महापद्म, १०. हरिषेण, ११. जयसेन, १२. ब्रह्मदत्त। ९नारायण- १. त्रिपृष्ठ, २. द्विपृष्ठ, ३. स्वयंभू, ४. पुरुषोत्तम, ५. पुरुषसिंह, ६. पुण्डरीक, ७. दत्त, ८. लक्ष्मण, ९. कृष्ण। ९ प्रतिनारायण-१. अश्वग्रीव, २. तारक, ३. मेरुक, ४. निशुम्भ, ५. मधुकैटभ, ६. बलि, ७. प्रहरण, ८. रावण, ९. जरासन्ध। ९ बलभद्र- १. विजय, २. अचल, ३. सुधर्म, ४. सुप्रभ, ५. सुदर्शन, ६. नान्दी, ७. नन्दिमित्र, ८. राम, ९. बलराम। .... Jain Education International www.jainelibrary.org

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