Book Title: Adi Purana
Author(s): Pushpadant, 
Publisher: Jain Vidyasansthan Rajasthan

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Page 16
________________ पृष्ठ संख्या पृष्ठ संख्या और भरत का प्रश्न। (१२) ऋषभ द्वारा भावी तीर्थंकरों और चक्रवर्ती आदि की पूर्व घोषणा। (१३) भविष्य- कथन। (१४) भरत द्वारा ऋषभ जिन की स्तुति। सन्धि ३० 561-577 (१) राजा लोकपाल और वसुमती का कथानक। ऋषि को देखकर पक्षियों का पूर्वभव स्मरण। (२) पूर्वभव कथन । मुनि उनके पूर्वभव बताते हैं। (३-१०) पूर्वभव-कथन। (११) प्रभावती के वैराग्य का कारण। (१२) पूर्वभव कथन । विद्याधरी का साँप के काटने का बहाना। (१३) विद्याधर का दवा लेने जाना। (१४) कुबेरकान्त का विमान स्खलित होना। श्रावक धर्म का उपदेश। (१५) मुनियों के सम्मान के बाद प्रस्थान। (१६) रतिषेण मुनि की वन्दना। (१७) कुबेरप्रिया का दीक्षा ग्रहण करना। (१८) पूर्वभव कथन (१९) तलवर भृत्य का आर्यिका से प्रतिशोध। उसे जला दिया। (२०) प्रजा की करुण प्रतिक्रिया। (२१) स्वर्णवर्मा विद्याधर का वहाँ पहुचना । (२२) मुनि की वन्दना । (२३) माली की कन्याओं द्वारा जैनधर्म स्वीकार करना। सुलोचना जय को पूर्वभव बताना जारी रखती है। सन्धि २८ 504-537 (१) भरत द्वारा शान्तिकर्म का विधान । राजा के आचरण का कथन। (२) भरत का आत्मचिन्तन। (३) राजनीतिविज्ञान का कथन । (४) भरत की दिनचर्या । (५) राजा का कथन। (६) कुगुरु आदि की संगति का परिणाम । (७) धर्म की महिमा का कथन। (८) प्रजा के धर्म और न्याय की रक्षा। (९) सोमवंशीय राजा श्रेयांस के पूर्वभव का कथन। (१०-११) दीवड़ जाति के नाग और नागिन की कथा। (१२) जयकुमार से द्वारपाल की भेंट। राजा अकम्पन की रानी सुप्रभा का वर्णन। सुप्रभा के सौन्दर्य का वर्णन। उसकी कन्या सुलोचना । (१३) उसके सौन्दर्य का चित्रण । वसन्त का आगमन । (१४-१५) वसन्त का चित्रण। (१६) कन्या का ऋतुमती होना। राजा की चिन्ता। स्वयंवर की रचना। (१७-१८) सुलोचना का स्वयंवर में प्रवेश। (१९) राजाओं के प्रतिक्रिया। (२०) सारथि का जयकुमार की ओर रथ हाँकना । (२१) जयकुमार के गले में वरमाला डालना। (२२-२३) भरतपुत्र अर्ककीर्ति का आक्रोश। नीति-कथन । (२४) युद्ध के नगाड़ों का बजना । (२५) योद्धाओं का जमघट । (२६-२७) युद्ध का वर्णन । (२८) घमासान युद्ध । धनुष का आस्फालन। (२९) हाथियों और घोड़ों में भगदड़। (३०) तीरों का तुमुल युद्ध। (३१) अर्ककीर्ति की गर्वोक्ति। (३२) जयकुमार को चुनौती। गजों का आहत होना। (३३-३४) युद्धभूमि का वर्णन । रात्रि में युद्ध करने से मना करना। (३५) स्त्रियों की प्रतिक्रिया। (३६) प्रात:काल युद्ध का वर्णन। (३७) जयकुमार के युद्धकौशल की प्रशंसा। (३८) सुलोचना की प्रतिज्ञा। अर्ककीर्ति का पकड़ा जाना। सन्धि ३१ 578-598 (१-६) मणिमाली देव का पूर्वभव स्मरण। (७) सुनार की कथा। (८) राजा गुणपाल की कहानी। (९) नवतोरण नाट्यमाली की कथा। (१०) वेश्या और सेठ का प्रेम। (११) वह सेठ का अपहरण करवाती है। (१२) हार की घटना। (१३) राजा द्वारा दण्ड और सेठ द्वारा क्षमायाचना। (१४) कामरूप धारण करने वाली अंगूठी। (१५) प्रतिमायोग में स्थित सेठ की परीक्षा। (१६) पुरदेवता का हस्तक्षेप। (१७) सेठ का तप करने का संकल्प। (१८) पूर्वजन्म संकेत। (१९) देव-मुनि संवाद । (२०) मुनि को केवलज्ञान, व्यन्तर देवियों का आना। (२१) व्रतधारण। (२२) राजा धर्मपाल को पुत्री का लाभ। (२३) पूर्वभव कथन। (२४-२८) नागदत्त का आख्यान। (२९) नागदत्त का नाग को वश में करना। सन्धि ३२ 598-620 सन्धि २९ 538-561 (१) जयकुमार के पूछने पर सुलोचना श्रीपाल का चरित कहती है । पुण्डरीकिणी नगरी में कुबेर श्री अपने (१) अर्ककीर्ति का आत्मचिन्तन । (२) भरत की प्रताड़ना। (३) अकम्पन भरत से क्षमा याचना करता पति के लिए चिन्तित है। महामुनि गुणपाल का आगमन। (२) वह वन्दना-भक्ति के लिए गयी। उसके पुत्र है, भरत का नीति कथन । (४) जयकुमार द्वारा ससुर की प्रशंसा। (५) पुत्री की विदाई। (६) गंगातट पर भी दूसरे रास्ते से वन्दना-भक्ति के लिए गये। उन्होंने जगपाल यक्ष का मेला देखा। (३) नर-नारी के जोड़े पड़ाव और जयकुमार का भरत से जाकर मिलना। (७) जयकुमार की भरत द्वारा विदाई। (८) मगर का का नृत्य। (४) जोड़े का परिचय। श्रीपाल पुरुष रूप में नाचती हुई कन्या को पहचान लेता है, जो राजकन्या हाथी को पकड़ना। देवी द्वारा सुलोचना की रक्षा। (९) देवी द्वारा पूर्वभव-कथन । (१०) नागिन की कथा। थी। एक चंचल घोड़ा उसे ले जाता है। (५) घोड़ा श्रीपाल को विजयार्ध पर्वत पर ले गया। (६) वेताल (११) विद्याधर जोड़ी देखकर जयकुमार को पूर्वभव स्मरण से मूछा। (१२) सुलोचना द्वारा पूर्वभव कथन। बताता है कि श्रीपाल ने पूर्वभव में उसकी पत्नी का अपहरण किया था। जगपाल यक्ष उसकी रक्षा करता (१३) पूर्वभव कथन शक्तिषेण और सत्यदेव की कथा। (१४-१५) पूर्वभव कथन । (१६) धनेश्वर का डेरा है। (७) यक्ष का वेताल से द्वन्द्व। (८) वेताल कुमार को छोड़कर भाग जाता है। सरोवर में पानी पीने जाना। डालना। दो चारण मुनियों को आहारदान। (१७) मेरुदत्त का निदान। (१८) मुनि द्वारा पूर्वभव कथन। एक बाला से भेंट। (९) कुमार का वर्णन। (१०) कन्या अपने परिचय के साथ अपना संकट बताती है। (१९) भूतार्थ और सत्यदेव का परिचय। सत्यदेव घर वापस नहीं जाता। (२०) शक्तिषेण, नवदम्पति को (११) वह श्रीपाल को अपना पति मानती है, और अपना हाल बताती है। (१२) अशनिवेग ने उन्हें यहाँ सेठ को सौंपता है, परन्तु शक्तिषेण शोभापुर में आकर उसे आश्रय देता है । (२१) भवदेव सत्यदेव दम्पति लाकर छोड़ दिया है। (१३) श्रीपाल उनकी रक्षा का उत्तरदायित्व अपने ऊपर लेता है। विद्युवेगा को देखकर को आग में जला देता है। वे सेठ के घर में कबूतर-कबूतरी हुए। वे पूर्वभव का कथन करते हैं। लड़कियाँ वन में भाग जाती हैं। (१४) विद्याधरी से कुमार की बातचीत। विद्याधरी उसे छिपाकर जाती है। (२२-२५) पूर्वभव कथन। (२६) बूढ़े मन्त्री कुबेरमित्र का उपहास। (२७) वापिका के पानी का लाल रंग भेरुण्ड पक्षी उसे ले जाता है। (१५) श्रीपाल को सिद्धकूट जिनालय के निकट छोड़कर पक्षी भागता है। होने का कारण। (२८) सुलोचना कथा कहना जारी रखती है। जिनवर की स्तुति। (१६) सिद्धकूट के किवाड़ खलना। वस्तुस्थिति का पता चलना। भोगावती से विवाह For Private & Personal use only www.jainelibrary.org Jain Education Intematon

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