Book Title: Adi Purana
Author(s): Pushpadant, 
Publisher: Jain Vidyasansthan Rajasthan

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Page 13
________________ पृष्ठ संख्या पृष्ठ संख्या सन्धि ८ 130-147 सन्धि ११ 191-216 (१) तप, छह माह का कठोर अनशन । (२) दीक्षा लेनेवाले अन्य लागों का दीक्षा से विचलित होना। (१) संज्ञी-पर्याप्त जीव। (२) तिर्यंच गति के विभिन्न जीवों का वर्णन। (३) भरत आदि क्षेत्रों का वर्णन। (३) उनकी प्रतिक्रियाओं का वर्णन। (४) दिव्यध्वनि द्वारा चेतावनी। (५) जिन-दीक्षा का त्याग व अन्य (४) हरिक्षेत्रादि वर्णन । (५) हिमवत् पद्म सरोवर का वर्णन । (६) पद्म-महापद्म आदि सरोवरों का वर्णन। मतों का ग्रहण; कुछ घर वापस लौट आये। कच्छ और महाकच्छ के पुत्रों का आगमन; ध्यान में लीन ऋषभ (७) जम्बूद्वीप के बाहर के अन्तर्वीप और उनके जीवों का वर्णन। (८) भवनवासी आदि देवों का वर्णन। जिन से धरती की माँग। (६) धरणेन्द्र के आसन का कम्पायमान होना। (७) धरणेन्द्र का आकर ऋषभ (९) पन्द्रह कर्मभूमियों का वर्णन, मरणयोनि का वर्णन। (१०) कौन जीव कहाँ से कहाँ जाता है, इसका जिन के दर्शन करना; नागराज द्वारा स्तुति। (८) नागराज द्वारा ऋषभ जिन का मानव जाति के लिए महत्त्व वर्णन। (११) जीवों के एक गति से दूसरी गति में जाने का वर्णन । (१२) नरकवास का वर्णन । (१३) नरकों प्रतिपादित करना; नागराज की चित्तशुद्धि। (९) नागराज की नमि-विनमि से बातचीत । (१०) नागराज उन्हें के विभिन्न बिलों का कथन। (१४-२०) नरक की यातनाओं का वर्णन। (२१-२२) पाँच प्रकार के देवों विजयार्ध पर्वत पर ले गया। (११) विजयार्ध पर्वत का वर्णन । (१२) नमि-विनमि को विद्याओं की सिद्धि। का वर्णन। (२३) स्वर्ग विमानों का वर्णन। (२४) विविध प्रकार के देवों का वर्णन । (२५) देवों की ऊँचाई (१३) नागराज ने विजयार्ध पर्वत की एक श्रेणी नमि को प्रदान की। (१४) दूसरी श्रेणी विनमि को प्रदान आदि का चित्रण। (२६) विभिन्न स्वर्गों में काम की स्थिति का, देवों की आयु का वर्णन। (२७) सर्वार्थसिद्धि की। (१५) पुण्य की महत्ता का वर्णन। के देवों का वर्णन। (२८) नरक-देवभूमियों में आहारादि का वर्णन। (२९) योग-वेद और लेश्याओं के आधार पर वर्णन। (३०) कर्म-प्रकृति के आधार पर ऊँच-नीच प्रकृति का वर्णन । (३१) कषायों की विभिन्न सन्धि ९ 148-178 स्थितियों का चित्रण । (३२) पाँच प्रकार के शरीरों का वर्णन । (३३) मोक्ष का स्वरूप, आत्मा की सही स्थिति (१) ऋषभ द्वारा कायोत्सर्ग की समाप्ति । (२) विहार । (३) श्रेयांस द्वारा स्वप्न देखना। अपने भाई राजा का चित्रण। (३४) अजीव का वर्णन । (३५) वृषभसेन द्वारा शुभ भाव का ग्रहण। ब्राह्मी-सुन्दरी आर्यिका सोमप्रभ से स्वप्न का फल पूछना। (४) ऋषभ जिन का नगर में प्रवेश। नगरजनों द्वारा ऋषभदेव को अपने- बनीं, अनन्तवीर्य अग्रणी मोक्षमार्गी हुआ। अपने घर चलने के लिए आग्रह करना। (५) राजा को ऋषभ जिन के आने की द्वारपाल द्वारा सूचना; दोनों भाइयों का ऋषभ जिन के पास जाना। (६) श्रेयांस को पूर्वजन्म का स्मरण और आहार-दान की घटना का सन्धि १२ 216-243 याद आना। (७) विभिन्न प्रकार के दानों का उल्लेख। (८) उत्तम पात्र के दान की प्रशंसा । (९) राजा द्वारा (१) भरत की विजय यात्रा, शरद् ऋतु का वर्णन। (२) प्रस्थान। (३) राजसैन्य के कूच का वर्णन। ऋषभ जिन को पड़गाहना। (१०) इक्षुरस का आहार दान । (११) पाँच प्रकार के रत्नों की वृष्टि । (१२) भरत (४) सैन्य सामग्री का वर्णन, चौदह रत्नों का उल्लेख । (५-७) भरत का प्रस्थान; गंगानदी का वर्णन। (८) नदी द्वारा प्रशंसा; आदि जिन का विहार; ज्ञानों की प्राप्ति। (१३) पुरिमतालपुर में ऋषभ जिन का प्रवेश। को देखकर भरत का प्रश्न; सारथि का उत्तर, सेना का ठहरना। (९) पड़ाव का वर्णन। (१०) रात्रि बिताना, (१४) पुरिमतालपुर उद्यान का वर्णन। (१५) ऋषभ जिन का आत्मचिन्तन और कर्मक्षय। (१६) केवलज्ञान प्रातः पूर्व दिशा की ओर प्रस्थान। (११) गोकुल बस्ती में प्रवेश, वहाँ की वनिताओं पर प्रतिक्रिया। की प्राप्ति । (१७-१८) इन्द्र का आगमन; ऐरावत का वर्णन। (१९) विविध वाहनों के द्वारा देवों का आगमन। (१२) शबरबस्ती में। (१३) भरत का गमन। (१४-१५) समुद्र का चित्रण। (१६) भरत द्वारा समुद्र पर बाण (२०) देवांगनाओं का आगमन । (२१-२३) समवसरण का वर्णन। (२४) धूम्र-रेखाओं से शोभित आकाश चलाना । (१७-१८) मागध देव का क्रुद्ध होना। मागध देव का आक्रोश । (१९) भरत के बाण के अक्षर पढ़कर का वर्णन। (२५) ध्वजों का वर्णन। (२६) परकोटाओं और स्तूपों का चित्रण; नाट्यशाला का वर्णन। क्रोध शान्त होना। (२०) मागधदेव का समर्पण। (२७) सिंहासन और वन्दना करते हुए देवों का वर्णन। (२८) आकाश से हो रही कुसुमवृष्टि का चित्रण। (२९) देवों द्वारा जिनवर की स्तुति । सन्धि १३ 244-258 (१) भरत का वरदाम तीर्थ के लिए प्रस्थान। (२) उपसमुद्र और वैजयन्त समुद्र के किनारे राजा का सन्धि १० 178-191 ठहरना, सैन्य का श्लेष में वर्णन, राजा द्वारा उपवास, कुलचिह्नों और प्रतीकों की पूजा। (३) सूर्योदय, धनुष (१) इन्द्र द्वारा जिनवर की स्तुति । (२) सिंहासन पर स्थित ऋषभ जिनवर का वर्णन; दिव्यध्वनि और का वर्णन। (४) धनुष का श्लिष्ट वर्णन। (५) वरतनु का समर्पण । (६) भरत द्वारा बन्धन-मुक्ति और पश्चिम गमन का वर्णन। (३) केवलज्ञान प्राप्त होने के बाद ऋषभ जिन के विहार के प्रभाव का वर्णन; मानस्तम्भ दिशा की ओर प्रस्थान, सिन्धुतट पर पहुँचना । (७) सिन्धुनदी का वर्णन (श्लेष में); भरत का डेरा डालना। का वर्णन । (४-८) विविध देवों-देवांगनाओं द्वारा ऋषभ जिन की स्तुति । (९) ऋषभ जिनवर द्वारा तत्त्वकथन(८) सन्ध्या और रात का वर्णन, सूर्योदय। (९) भरत द्वारा उपवास और प्रहरणों की पूजा के बाद लवण जीवों का विभाजन। (१०) जीवों के भेद-प्रभेद; पृथ्वीकायादि का वर्णन।(११) वनस्पतिकाय और जलकाय समुद्र के भीतर जाना; बाण का सन्धान करना, प्रभास का आत्म-समर्पण। (१०-११) विजयार्द्ध पर्वत की जीवों का वर्णन। (१२) दोइन्द्रिय-तीनइन्द्रिय आदि जीवों का कथन। (१३) द्वीप समुद्रों का वर्णन। ओर प्रस्थान; म्लेच्छों पर विजय; विभिन्न जनपदों को जीतकर विजयार्द्ध पर्वत के शिखर पर आरूढ़ होना; (१४) जलचर प्राणियों का वर्णन। विजयार्द्ध की पराजय। सेना का पड़ाव; विन्ध्या के गज का नाश । Jain Education Internatione For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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