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॥ श्री।। पंजाब केसरी प्रा० मा० श्री वल्लभसूरी के पट्टधर प्रा० मा० श्री १००८ श्री समुद्रविजयजी का
प्राशीर्वाद! धर्मलाभ साथ विदित किया जाता है कि महात्मा फतेहचन्दजी, स्वर्गवासी गुरुदेव पंजाब केसरी युगवीर आचार्य श्री १००८ श्रीमद् विजय वल्लभसूरीश्वरजी महाराज के गुणानुरागी और आत्मानन्द जैन गुरुकुल गुजरानवाला पंजाब के विद्यार्थी हैं। इन्होंने गुरुकुल में रहकर धार्मिक अभ्यास अच्छा किया है ये श्रद्धालु व क्रिया प्रिय हैं, एवम् इनमें धार्मिक संस्कार होने से जैन साहित्य के प्रति अच्छा रस लेते हैं, और आगे भी साहित्य की सेवा करते रहें ऐसा हमारा आशीर्वाद है। ___ इन्होंने कई पुस्तकें भी लिखी हैं जो मैंने देखी हैं, और अति प्राचीन ग्रंथ 'अध्यात्म कल्पद्रुम का हिन्दी में स्वतन्त्र विवेचन किया है जो सुन्दर, सरल तथा उत्तम शैली से लिखा है। ___मैंने इस 'अध्यात्म कल्पद्रुम' को सुना है जो कि श्रद्धालु के लिए पढ़ने और मनन करने योग्य है, अतः इस उत्तम कार्य में उनको सहायता देकर ज्ञान में वृद्धि कर धर्म की जागृति करे, इस पुस्तक की कम से कम एक-एक प्रति तो हरेक घर में अवश्य होनी ही चाहिए।
लि. समुद्रसूरी का धर्मलाभ सं०२०१५ वैसाख कृष्णा ३ गाम-चांदराई (राज.) शांतमूर्ति आचार्यदेव श्रीमद् विजय समुद्रसूरीश्वरजी
म० सा० की आज्ञा से -जनकविजय