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विभोर हो गया। प्रकृति पर मानव की विजय का गौरव यहां अनुभव में आता है । कदंबवाड़ी का दृश्य जीवन में कभी नहीं भूला जा सकता है। चारों तरफ फव्वारे चलते हैं। हरित, पीत, रक्त विद्युत शाखाओं (ट्यूब) की शोभा अपूर्व है । लताएं तो बस अपने स्वामी रूप जड़वंश (बांस) से वेष्ठित होकर एक पक्षीय प्रेम का स्वरूप बता रही थी और आत्मा को एकाकीपन का, व निरालंब का पाठ पढ़ा रही हैं। विद्युत के प्रकाश से ही उद्दीप्त वह देव मण्डप सा मनोहर स्थान कई आत्माओं की तृप्ति कर उन्हें कह रहा था कि हे मानव तू इसीमें लुब्ध मत हो जाना, यदि इसीमें लुब्ध हो गया तो बस इस आवागमन के चक्र में से निकल न सकेगा। इस वक्त मैं जैसा प्रकाशित हूं व मेरे क्षेत्र में प्रकाश फैला है वैसा तू भी बन, अपनी आत्मा में प्रकाश की किरणें उत्पन्न कर और अपनी चिर शोभा को बढ़ा। पानी के अंदर भी अनेक रंग की बिजली रखी गई है। फब्वारे भी कई रंगों के छूट रहे हैं। वह स्थान दर्शनीय है। प्रति शनिवार व रविवार को ही रोशनी होती है। मैसूर का चंदन के तेल का कारखाना व रेशम का कारखाना दर्शनीय है।
वास्तव में दक्षिण भारत की नैसगिक, आध्यात्मिक, धार्मिक व वैयक्तिक भावनाओं से मैं बहुत प्रभावित हुवा हूं अतैव इस पाठ से इस पुस्तक का सम्बन्ध न होते हुए भी लिखने के लोभ को नहीं रोक सका हूं अतः पाठक मुझे क्षमा करें।