Page #1
--------------------------------------------------------------------------
________________
VĀCAKA KAMALASEKHARA'S PRADYUMNAKUMĀRA CUPAI
EDITED BY MAHENDRA B. SHAH
L. D. SERIES 68 GENERAL EDITORS DALSUKH MALVANIA NAGIN J. SHAH
ca
भारतीय
PUTRA
L. D. INSTITUTE OF INDOLOGY AHMEDABAD 9
Jain Education international
For Private & Personal use only
Page #2
--------------------------------------------------------------------------
________________
VĀCAKA KAMALASEKHARA'S PRADYUMNAKUMĀRA CUPAI
L. D. SERIES 68 GENERAL EDITORS DALSUKH MALVANIA NAGIN J. SHAH
EDITED BY MAHENDRA B. SHAH BOMBAY
L, D. INSTITUTE OF INDOLOGY AHMEDABAD-9.
endo
Em
Page #3
--------------------------------------------------------------------------
________________
Printed by (1) Text
Shivlal Jesalpura Swati Printing Press Rajaji's Street, Shahpur
Ahmedabad-380001 (2) Bhumika
Mahanth Tribhuvandasji Shastri Shree Ramanand Printing Press Kankaria Road, Ahmodabad-22.
Published by Nagin J. Shah Director L. D. Institute of Indology Ahmedabad-380009,
FIRST EDITION February 1978
"Printed with the financial assistance of the Government of Gujarat,"
PRICE RUPEES
Page #4
--------------------------------------------------------------------------
________________
वाचक कमलशेखरकृत
प्रद्युम्नकुमार चुपई
संपादक महेन्द्र बा. शाह
-
GO
प्रकाशक
लालभाई दलपतभाई भारतीय संस्कृति विद्यामंदिर अहमदाबाद-९
पदावाद
Page #5
--------------------------------------------------------------------------
________________
Page #6
--------------------------------------------------------------------------
________________
प्रधान संपादकीय
अंचलगच्छनी शेखरशाखानी उपशाखा पालोताणीय शाखाना वाचक कमलशेखरे वीरमगाम पासे मांडलमां संवत १६२६मांछ सर्गमा रचेली 'प्रद्यम्नकुमार चुपई' नुसौ प्रथम वार प्रकाशन करतां आनंद थाय छे. डॉ. श्री महेन्द्रभाईए प्रस्तुत कृतिनु संपादन उपलब्ध एक मात्र प्रति उपरथी कयु के जे घणु कठण काम छे. आ उपरांत तेमणे अभ्यासपूर्ण विस्तृत भूमिकामां (१) साँचप्रद्युम्न कथा विषयक संस्कृत, प्राकृत, अपभ्रंश, हिंदी अने गुजराती भाषानी रचनाओ, (२) पौराणिक कथासाहित्यनी रूपरेखा, (३) कृष्णकथा अने तदन्तर्गत प्रद्युम्नकथानी लोकप्रियता (४) हिंदु अने बैन परंपरानी प्रद्यम्नकथानां विविध रूपान्तरो अने तेमनी तुलना - ए प्रकारना विषयविभाग अनुसार प्रद्युम्नकथानुं ऐतिहासिक अने तुलनात्मक दृष्टिए निरूपण कयु छे. तेमांय महत्त्वनां कथाघटकोनो तेमनो अभ्यास रोचक छे. कमलशेखरनी लघुकृति 'नवतत्त्व चोपाई' अने 'सामायिके बत्रीस दोषनो भास' नु परिशिष्टमां संपादन करीने तेम ज 'प्रद्युम्नचुपई'गत महत्त्वना शन्दोनी सूचि आपीने प्रस्तुल प्रकाशनने तेमणे गुजराती भाषा-साहित्यना अभ्यासीओ माटे उपयोगी बनान्यु छे. प्रस्तुत संशोधनकार्ये तेमने मुंबई युनिवर्सिटीनी पीएच. डी. उपाधि प्राप्त करावी आषी छे. डॉ. महेन्द्र शाहे डॉ. हरिवल्लभ भायाणीना मार्गदर्शन नीचे १९६७मां आ शोध-निबंध तैयार करेलो. पोताना आवा अभ्यासपूर्ण अने श्रमसाध्य संशोधनकार्यने प्रकाशित करवानी मंजूरी आपवा बदल तेमनो हु आभार मानुई।
- मु. डॉ. भायाणीए समग्र महानिब धमांथी मुद्रण-प्रकाशन माटे योग्य भाग पसंद करी आप्यो छे तेम ज अनेक उपयोगी सूचनो कर्या छे. ते बदल तेमनो हुँ आभार मानु छ. प्रस्तुत पुस्तकना मुद्रण दरम्यान प्रफवाचनन कार्य डॉ. र. म. शाहे कर्यु छे ते बदल तेमने धन्यवाद.
आ कृतिना प्रकाशनमा आर्थिक सहाय करवा बदल गुजरात सरकारनो हूँ हार्दिक आभार मान छु. गुजरात राज्यना भाषानियामक श्री हसितभाई बुच अने नायब भाषानियामक श्री ई.शि. जोषीपुराए आ चाबतमा रस लई सहकार आप्यो छे, ते बदल तेमनो पण मारे आभार मानबो न गोईए.
ला. द. भा.. विद्यामंदिर अमदावाद-३८०००९ २६ जान्युआरी १९७८
नगीन जी. शाह
अध्यक्ष
Page #7
--------------------------------------------------------------------------
________________
अनुक्रमणिका
१-९०
४-१६ १६-४० ४०-८९
१-७६ २-१२
भूमिका १. प्रद्युम्नकुमार-चुपई नी हस्तप्रतनो परिचय २. वाचनाचार्य कमलशेखर-तेमन जोवन अने कवन ३. प्रद्युम्नकुमार-चुपई नो सामान्य अभ्यास ४. नहत्त्वना कथाघटको नो अभ्यास
प्रद्युम्नकुमार-चुपई मूल १. प्रथम सर्ग -कृष्ण-रुक्मिनी-विवाह २. द्वितीय सर्ग -जांबुवती-पाणिग्रहण ३. तृतीय सर्ग -प्रद्युम्नकुमार-विद्याग्रहण, रुक्मिणी-मिलन ४. चतुर्थ सर्ग -प्रद्युम्नविवाह ५. पंचम सर्ग -सांब-प्रद्युम्न-पाणिग्रहण ६. षष्ठम सर्ग -नेमिकुमार-दोक्षा-केवलज्ञान, प्रद्युम्न-दीक्षा-ज्ञान-निर्वाण __ परिशिष्ट १. बा. कमळशेखरकृत ' नव तत्व-चोपाई ' २. , 'सामायिके बत्रीश दोषनो भास'
शब्दकोश
१४-४७ ४८-६३ ६४-७० ७१-७६ ७७-८४ ७७-८२ ८३-८४ ८५-९३
Page #8
--------------------------------------------------------------------------
________________
भूमिका १. "प्रद्युम्नकुमार चुपई"नी हस्तप्रतनो परिचय प्रत-उपलब्धि :
वा. कमलशेखर कृत " प्रद्युम्नकुमार चुपई" नी आ एक मात्र हस्तप्रत मने श्री महावीर जैन विद्यालय, मुंबईना प्राचीन हस्तप्रतोना संग्रहमांथी उपलब्ध थई छे. त्यां आ हस्तप्रतनो क्रमांक ४९९ आपवामां आव्यो छे.
प्रत-परिचय
आ हस्तप्रतमा २४ पत्र छे. बन्ने बाजुओ मळीने कुल ४८ पानां छे. प्रत्येक पत्रनो संख्यांक, पत्रनी पाछली बाजुए डाबी तरफना नीचेना भागमां लखेलो छे. पत्रना कागळ जुना मेलाश पडता थई गयेला अने साधारण पातळा छे. हस्तप्रतमां पत्र नं ९-१०-११-१२१३ नी जमणी तरफ मथाळा नजदीक नीचे हांसियानी बाजुमां थोडो कागळ खवाई गयो छे. तेथी केटलीक कडीओना केटलाक शब्दो खवाई गया छे. ते नीचे मुजब छे. पत्र नं. ९-आगली बाजु कडी संख्यांक ' २७४: २७५: २७६: २७७: २७८ -पाछली बाजु ,
३०५ : ३०६:३०७: ३०८: पत्र नं. १०-आगली बाजु
३११: ३१२: -पाछली बाजु
३३८: ३३९: पत्र नं. ११-आगली बाजु
३४३: ३४४: , -पाछली बाजु
३७०: ३७१ः पत्र नं. १२-आगली बाजु
३७४: ३७५: , -पाछली बाजु
४०१:२०२: पत्र नं. १३-आगली बाजु- ,
४०६: ४०७: , -पाछली बाजु
४३६: ४३७ः पत्र नं. २०, २१, २२, २३ नी डाबी तरफना हांसियानी बाजुमां मथाळानी नजीक, नीचे, उपरनी माफक ज कागळ खवाई गयो छे. ते नीचे मुजब छे पत्र नं. २०-आगली बाजु-कडी संख्यांक-६४३: ६४४: ६४५: ६४६: ६४७: , -पाछली बाजु
६७४: ६७५: ६७६:.६७७: पत्र नं. २१-आगली बाजु
६७८: ६७९: ६८०: , -पाछली बाजु ,,
७०४: ७०५: ७०६: पत्र नं. २२-आगली बाजु
७०९: ७१०: ७११: , -पाछली बाज
७३८: ७३९: ७४०: पात्र नं. २३-आगली बाजु
७४२: , -पाछली बाजु
७७२: १. संख्यांक हस्तप्रतमां आपेला संख्यांक प्रमाणे ज लख्यो छे.
Page #9
--------------------------------------------------------------------------
________________
प्रद्युम्नकुमार-चुपई प्रथम पत्रनी जमणी बाजुए मध्यमां सहेज नीचे पत्रनो नानकडो कटको खरी पडवानी अणी उपर ज छे. तेथी तेनी आगली बाजुए कडी नं. १० तथा ११ अने पाछळनी बाजुए कडी नं० २० ना एक-बे शब्दो तेमां सपडायेला छे. पत्र नं. ९, कडी नं. २७३ मांना केटलाक अक्षरोनी शाही खरी गई होवाथी दुर्वांच्य बन्या छे. केटलाक पत्र उपर शाही फूटेली छे. शाही फूटी होई अने त्यां अक्षरो न लखाया होई ते पत्र अने कडोओ नीचे मुजब छ : पत्र नं. १०-कडोनों संख्यांक , ११
६४: ६५: ६६: २४:
७८८: ७८९: ७९०: ७९१: ७९२: ७९३: पत्र नं. २४नी पाछली बाजुए, पत्रना लगभग है भागमा चोपाई पूरी थई जवाथी बाकीनु पान कोळं राखी मूक्यु छे.
हस्तप्रतनु मापः- हस्तप्रतनां पानांनी लंबाईनु माप १० ३ इंचनु छे अने पहोळाईनु माप लगभग ४ इंचनु छे. पानानी अंदरना लखाणनी लंबाईनु माप ८.३ थी ८.५ इंचनु छे अने तेनी पहोळाईनु माप ३ थी ३.३ इंच सुधीन छे. छेल्ला पाने ज्यां कृति पूरी थई जाय छे, त्यां लगभग अडधा पाना परना लखाणनु माप २ इंचनु छे. प्रत्येक पानानी डाची अने जमणी बन्ने बाजुए, आगळ अने पाछळ बन्ने तरफ लगभग २ इंचनी व्रण ऊभी लाल लीटीओ वडे .८ इंचना मापनो हांसियो दोरवामां आव्यो छे.
, १२
" २४
कडी अने पंक्तिओ:-प्रत्येक पत्रमा कडी अने पंक्तिओनी संख्या एक सरखी रही नथी. कारण के पंक्तिमांना अक्षरो अने कडीमाना छंदो एक सरखा रह्या नथी. नाना, मोटा छूटा के गीचोगीच लखाता अक्षरो अने बदलाता जता छदोने लीधे पत्रमा लगभग १४ थी १८ कडीओ अने १४ थी १७ पंक्तिओनो समावेश करवामां आव्यो छे. प्रत्येक कडीनो संख्यांक अने बदलाता जता छंदोना नामो पत्रमा जुदा तरी आवे ते माटे काळी शाहीथी ते लखोने तेनी ऊपर आछेरो लाल रंग चोपडी तेमने जुदा पाडवानो प्रयत्न करवामां आव्यो छे.
शब्दो अने अक्षरोः-अक्षरो एकंदरे सुवाच्य छे. परंतु स्वच्छ, शुद्ध के मरोडदार नथी. शब्दो के अक्षरोनु धोरण एक सरखु रह्यं नथी. प्रत्येक पंक्तिमां आशरे १७ थी २१ शब्दो अने आशरे ४६ थी ६० अक्षरो लखेला छे. अक्षरो केटलेक ठेकाणे खीचोखीच लख्या छे, तो केटलेक ठेकाणे छूटा अने स्पष्ट लख्या छे. आखी हस्तप्रत एक ज हस्ताक्षरमां नहि, परंतु सरखा लागता बे हस्ताक्षरोथी कदाच लखाई होय एम लागे छे. शरूआतथी १६१ कडीओ अने त्यार पछी १६२ थी २०२ कडीओ सुधीना अक्षरो जोतां आ भेद लगभग जणाई आवे छे. १ थी १६१ कडीमांना अक्षरो मध्यम कदना अने जाडा छे, ज्यारे १६२ थी २०२ कडी सुधीना अक्षरो नाना अने सहेज पातळा छे. त्यारपछीना लखाणमां आ बन्ने प्रकारना अक्षरो अवारनवार जोवा मळया करे छे. तेथी ज जे पत्र पर मध्यम कदना अने जाडा अक्षरो छे, त्यां लगभग १४ पंक्तिओ समाई शकी छे. अने जे पत्र पर नाना अने पातळा अक्षरो छे त्यां १६ के १७ पंक्तिओ पण समाई शकी छे. बन्ने प्रकारना अक्षरो जे पत्र पर जोवा मळे छे त्यां आशरे १५ पंक्तिओ जोवा मळे छे.
Page #10
--------------------------------------------------------------------------
________________
भूमिका
३
लखती वखते लहियानी शरतचूकथी पंक्तिमां ज्यां अक्षरो, शब्दो के कडीनो संख्यांक रखवानो रही गयो होय तो ते स्थळे चोकडी के एवं कोई चिह्न मूकी ते ते खूटता अक्षरो, शब्दो के संख्यांको बाजुना हांसियामां, पत्रने मथाळे, अनुकूळता होय तो ज्यां ते खूटता होय त्यां ज अथवा तेनी सहेज आजुबाजुमां समावी लीघा छे.
प्रतनी लखावटः -- आखीय कृति जैन पद्धतिनी देवनागरी लिपिमां, पडिमात्रामा लखायेली छे. लखावटनी दृष्टिए प्रतमां नीचेनी महत्त्वनी वस्तुओ ध्यान खेचे छे
१. क. हस्तप्रतमां लगभग बधे ठेकाणे 'ख" ने स्थाने "ष" लखवामां आग्यो छे. उदाहरण तरीके - त्रिणिषंड १६ १, संघ ४५, घोडा घुरी षेड़ उछली ६५, ५१३, दुष ११२, परषरं १९७, बजूरी - परणि ३९०, षंडगवन ४९७, आऊषू ६५२, मासषमण ७४९ इत्यादि.
ख. केटलेक ठेकाणे "क्ष" नो "ख" करी, "ख" नी जग्याए "" लखवामां आव्यो छे. उदाहरण तरीके - भरहषित ३, कुसलषेम २४, द्राषइ ३९०, पित्री ४९०, दक्षिण ५१४ ३० ग. केटलेक ठेकाणे "ख" नो "ख" पण रह्यो छे. जेम के : कमलशेखर १०६ लाभशे
खर ७५८
घ. केटलेक ठेकाणे 'क्ष' नो 'क्ष" पण रह्यो छे. जेम के क्षत्री १५, लक्षण २८, अक्षोहणि ३३०, भिक्षाव्रति ४४१, दक्षण ६१४, वक्षस्थल ६४७, सत्तरभक्ष ६९१.
२. क. केटलेक ठेकाणे अनुस्वारो रही गयां छे. जेम के, सेत्रुज ३, सारिगपाणि २१, भूडु ५२, ६६८ नारायणनु रूप ५८, नही १४७ इडा १९० - १९१ कुडल २९१, अनगु ३५८, सदेह (संदेह ) ३५७, माहोमाहि ४८२, शाबकुमर ६५४, आनद ६९६, संबधि ७०३ इत्यादि.
ख. केटलेक ठेकाणे अनपेक्षित अनुस्वारो मूक्यां छे. जेमके सोरठ देंस । रीस २९, कुमारं १४१, कुंरब ( कोरव) १२१, कोंधां २१०, आंपणी ३०४, घंटं ३४३, अंगनि ४३२, देषांडु ५२३ इत्यादि.
ग. लगभग सर्व ठेकाणे "न" 'ण' अने "म" नी पूर्वना स्वर ऊपर अनुस्वार मूकवामां आव्यो छे. ज़ेम के: विमांनि २०, स्वांमी ६७, कांणि १२०, आंनंदि १४२, नांम १५८, राणी १८३, मांणस ३२१, धूमकेतु ४४४, बांण ५४९, मैन ७५९ इत्यादि...
३. "ह" स्वरसहित जुदो मळे छे. जेम के: तेहनई ३९, एहनु ५०, जेहवी तेहवी ११०, नहुँतरी १८२, नान्डु २२९, छेहडउ २९५, चूल्हउ ४३३, न्हासइ ५५७, उल्हाणी ५५९. पल्हाणाइ ६८२, केहना ७४५ इत्यादि.
४. “ळ" नो उपयोग क्यांय नथी कर्यो. जेम केः रलियामणु १, थाल ५७, शीतल ७८, बालक १४२, जाल २७९, माली (माळी) ३९३, गलई (गळा उपर) ६८७ इत्यादि.
५.. " ज्ञ" ने बदले "न्य" वापर्यो छे. जेम के: न्यान ५, आन्या ४१, न्यानी १७६ ६. स,श,ष, के श्र नी बाबतमां मोटे भागे अराजकता प्रवर्ते छे. जेम के : सोभती ८, शिशुपाल ६९, स्वेत ९६, सूर (शूरा) २३३, जोस (ज्योतिष) ४९९, सूर्पणखा ( शूर्पणखा ) ३२९, जिनेस्वर ७२४ इत्यादि.
१. कडीओनो संख्यांक में संपादन करेला पाठ प्रमाणे मूकेलो छे.
Page #11
--------------------------------------------------------------------------
________________
प्रद्युम्नकुमार-चुपई ७. केटलाक शब्द अंतर्गत अर्ध रकारनी आगळ्नो व्यंजन बेवडाववामां आव्यो छे.
जेम के:-दर्पण २७, धर्मपुत्र १६९, कर्म १३२ इत्यादि.
८. बहधा जे शब्द बेवडाववानो होय तेनी पाछळ २ नी संख्या लखवामां आवी छे. जेम केः बिमणा (२) नांखई तोर ७४, हण (२) करी हकारिउ १११, जय (२) सबद हुउ जेतलइ २४१, पुन्य बलवंत (२) अछइ संसारि २८८, ठीगतु (२) बांभण गयु ४१४, धिग (२) ए राजुमती नारि ७०७ इत्यादि. उपसंहार:
जोडणीनी अनियमितता, संख्यांकमा भूलो, शब्दोनु बब्बेवार लखाई जर्बु, विरामस्थानोनी केटलेक ठेकाणे भूलो, शब्दमांना अक्षरोनु केटलेक ठेकाणे उलटसुलट लखाई जवु, केटलीक जग्याए लखेलु हरतालथी भूसी तेना पर फरीथी लखेलुं लखाण, स्वच्छतानी केईक अंशे न्यूनता ई. विगतो लहियानी बेदरकारी अने तेनी अविद्वत्ता दर्शावे छे. क्यांक शब्दमांनो अक्षर लखवो रही गयो छे. क्यांक हस्व के दीर्घ इ के उ लखवाना रही गया छे. क्यांक पंक्ति पूरी थये दंड मूकवाना रही गया छे. क्यांक 'चिी'-आ प्रमाणे अक्षरने हृस्व अने दीर्घ बन्नेना चिह्न लगाब्यां छे. क्यांक संख्याक्रम बब्बेवार लखाई गया छे, तो क्यांक लखवाना रही गया छे. शब्दमां क्यांक खोटा के वधाराना अक्षरो घूसी गया छे. शब्दमां क्यांक पंक्तिना पूर्वार्ध के उत्तरार्ध लखवाना रही गया छे. टूकमां प्रतनुं लखाण सुवाच्य जरूर छे, परन्तु शुद्ध के स्वच्छ तो नथी.
संपादित ग्रन्थपाठमां जोडणी मूळ प्रत प्रमाणे नियम तरीके राखी छे. तेमां विसंगतता होय तो पण घणुखरू जेमनी तेम रहेवा दीधी छे, कोईक ठेकाणे स्पष्ट रीते ज कानो-मात्र के अनुस्वारनी शरतचूक थई लागती होय त्यां ते भूल सुधारी लेवामां आवी छे अने त्यां मूळ शब्द, नीचे पादटीपमां मूक्यो छे. प्रतमां कडीनी संख्यामां भूल छे, ते सुधारी लेवामां आवी छे. प्रतमां कर्ताए वच्चे वच्चे बीजा ग्रन्थीमांथो उद्धत करेला श्लोको के गाथाओने पण चालु क्रमांक ज आपेला छे. अहीं संपादित ग्रन्थाठमां तेने जुदा क्रमांक आप्या छे, जेथी कर्ताए पोते लखेली कुल कडीनी संख्या केटली, अने बहारना आगन्तुक श्लोक-गाथाओनी संख्या केटली ते मालूम पडे. संपादित पाठमां दरेक प्रसंगने पेटा-शीर्षको आपवामां आव्या छे.
२. वाचनाचार्य कमलशेखर - तेमन जीवन अने कवन संवत ११६९ मां आर्यरक्षिते, अपरनाम विजयचन्द्र उपाध्याये, विधिपक्षगच्छनी स्थापना करो, “सूरि" पद प्राप्त थया पहेलां आ उपाध्यायजीए 'विणप' नगरमां कोडी (कोटी) व्यवहारीने प्रतिबोध्यो. तेनी पुत्री समयश्रीए दीक्षा लीधी. आ व्यवहारीने जेसिंगदेए (सिद्धराज जयसिंहे) णेतानो भंडारी को हतो कुमारपाळना समयमा प्रतिक्रमण करता हेमचन्द्राचार्यने पोताना वस्त्रनो छेडी राखीने ते वांदणा देवा लाग्यो. कुमारपाळ राजाए तेने, "वस्त्रांचले केम वांदणा आपे छे ?"एम प्रश्न करता हेमचन्द्राचा कह्य के 'ते प्रमाणे सिद्धांतनो मार्ग छे.' त्यारे कुमारपाळ राजाए "विधिपक्षगच्छ' एवं नाम सार्थक छे"-एम कही प्रशंशा करी, 'विधिपक्ष' नाम राखवाने उत्सुक थई, 'अंचलगच्छ' नाम स्थाप्यु छे.' आ अंचलगच्छमां
जर कविओ-भाग २जों' पृ. ७६६.
Page #12
--------------------------------------------------------------------------
________________
भूमिका
५
"शेखर", "चन्द्र” “प्रभ", "रत्न”, “लाभ”, “मूर्ति" इत्यादि अनेक शाखाओ विस्तार पामी छे. तेमां "शेखर " शाखानो इतिहास विशेष महत्त्वपूर्ण छे. मुनिशेखरसूरि, मणिक्य शेखरसूरि, धर्मशेखरसूरि इत्यादि अनेक आचार्योए साहित्यनुं विपुल सर्जन करी, आ शाखानी प्रतिष्ठा वधारी छे कवि चक्रवर्ति जयशेखरसूरि तो आ शाखाना के गच्छना ज नहि परन्तु गुजराती साहित्यना उत्तम कोटिना कविओमांना एक हता. वा. कमलशेखर पण एक सारा ग्रन्थकार तरीके आ शाखामां ख्यातनाम हता.
आ "शेखर" शाखामांथी तेनी पेटाशाखा तरीके पालीताणीय शाखा अस्तित्वमां आवी छे. संवत १७३६ मां रचायेल श्री नयनशेखर - कृत " योगरत्नाकर चोपाई" मां आ पालीताणीय शाखानो निर्देश आ प्रमाणे छे.
श्री अंचलगच्छि गिरुआ गच्छपती, महामुनिसर मोटा यती श्री अमरसागर सूरिसर जांण, तप तेजइ करि जीवइ भाण ९२ तास ताई पषि शाखा घणी, एक एक मांहि अधिकी भणी पंच महाव्रत पालइ सार, इसा अछइ जेहना अणगार ९५ ते शाखामांहि अति भली, पालीताणीय शाखा गुणनिली पालिताचार्य कहीइ जेह, हूआ गछपति जे गुणगेह' ९६
a. कमलशेखर आ पालीताणीय शाखामां ज थई गया छे. एम वा. कमलशेखरना प्रशिष्य विवेकशेखरना शिष्य विजयशेखरे तेमनी संवत १६९४ मां रचेली "चंदराजा चोपाई" मां सूचित कर्यु छे.
श्री अचलगछि राजीयउ, प्रतपि सूरज तेजि री माइ श्री कल्याणसागरसूरीश्वरु, वंदीजइ मनहेजि री माइ १२
तस आज्ञाकारी भला, पालीताणीया वंसि री माइ कमलसेखर वाचक पद, साधुमइ थया अवतंसरी माइ १३
१. 'जैन गुर्जर कविओ' - भाग चीजो, पृ. ३५१-३५२.
श्री मोहनलाल दलीचंद देसाईए 'जैन गुर्जर कविओ-भाग २ जो' पृ.७७६ उपर एव निर्देश कर्यो छे के आ पालीताणीय शाखा अमरसागरसूरिथी नीकळी छे, अने तेनी पुष्टि अर्थे उपर्युक्त नयशेखर (नयनशेखर जोइए) कृत " योगरत्नाकर चोपई" नी प्रशस्ति जोवा सूचन्युं छे. आ अमरसागरसूरिनी समयमर्यादा तेमणे पोते संवत १६९४ थी १७६२ सुधीनी नी छे. (जुओ 'जैन गूर्जर कविओ, भाग २ जो, पृ. ७७६). तेथी ए रीते जोतां आ पालीताणी शाखा आ समयमर्यादानी पूर्वे तो अस्तित्वमां न ज होई शके. परन्तु प्रस्तुत वा. कमलशेखरनी विद्यमानता संवत १५८० थी संवत १६४८ सुधीनी लगभग गणाय छे. अने तेओ आ ज पालीताणीय शाखामां थइ गया छे तेवो निर्देश आपणने प्राप्त थाय छे. तेथी आ पालीताणीय शाखा, श्री देसाई कहे छे तेम अमरसागरसूरिथी नहि परन्तु वा. कमलशेखरनी पूर्वे लगभग सोळमी सदीना उत्तरार्धमां कोई आचार्यथी नोकळी हशे, एम अनुमान थई शके.
Page #13
--------------------------------------------------------------------------
________________
प्रद्युम्नकुमार-चुपई . नव, खंड कहिउ एणि परइ, राग धन्यासी अंग री माई विजयसेखर वाचक भणि, श्री संघ वडतइ रंगि री माइ' १८
आम विधिपक्ष-अंचलगच्छनी "शेखर" शाखामांथी पालीताणीय नामनी पेटाशाखामां वा. कमलशेखर थइ गया एवो निर्णय करी शकाय एम छे.
वा. कमलशेखरना जन्मस्थळ अने जन्मसमय विषे कोई माहिती प्राप्त थती नथी. तेमना माता-पितानु नाम, ज्ञातिविशेष तथा कुटुंब इत्यादि अंगत जीवननी बाबतो विषे पण कोई माहिती मळती नथी. छतां तेमणे पोते रचेली कृतिओ, कोई अन्य कर्तानी तेमणे करेली प्रतिलिपिनी प्रशस्ति के पुषिकाओ, तेमना शिष्यप्रशिष्योनी कृतिओनी प्रशस्तिओ के प्रत-पुष्पिकाओ वगेरे द्वारा तेमना जीवननी केटलीक बाबतो विषे कईक अंशे अनुमानपूर्वकना निर्णयो तारवी शकाय एम छे.
आज सुधीमां वा. कमलशेखरनी नीचेनी चार नानी मोटी पद्यकृतिओ उपलब्ध थई छ.
१ 'नवतत्त्व चोपाई"२ संवत १६०९ मां, आसो महिनानी त्रीजने दिवसे, सुरतमां रहीने आ कृति रचेली छे. आ कृतिना अंतमां आ प्रमाणे उल्लेख छः
"अंतर महूरत समकित धरइ, ते नर अरधु पुद्गल करइ वाचक कमलसेखर इम कहइ, गणिइ भविइ सिद्वपदवी लहइ ६४ विधिपक्षि गछि ए उदयु भाण, श्री धर्ममूर्तिसूरि सुजाण, तास पसाई लहीया भेय, बिसइ छिहुत्तरि हुआ ते ६५ सेबत सोल नवोत्तर वरसि, सूरति आसू त्रितीया दिवसि रची चुपई सोहामणो, भणतां गणतां हुई बुद्धि घणी' ६६
२ “प्रद्युम्नकुमार चुपई" संवत १६२६ नां कार्तिक सुदी १३ ने दिवसे वीरमगाम पासेना मांडलमां, चोमासु रह्याँ हतां त्यारे, छ सर्गमां रचेली आ कृतिना अंतमां आ प्रमाणे उल्लेख छ :
"विधिपक्षगछि धर्ममूर्तिसूरि विजयवंत ते गुण भरपूरि कमलशेखर रहीया चउमासि मांडलि नगरइ घणइ उल्हासि ७५४ संवत सोल छवीसई करी दूहा चुपई हीयडइ धरी काती सुदी नइ दिन त्रयोदसी कीघी चुपई मन उल्हसी वणारीस वेजराज तणा सीस दोई तेहना गुंण घणा श्री पुण्यलब्धि उवझायां ईस बीजा लाभशेखर वणारीस तास सीसि रची चुदई सुणियो भवीयां ईक मंन थई चरित्र प्रदिमनकुमारह तणू भणतां सुणतां सुख घणूं ७५७ ।। १. 'जैन गूर्जर कविओ' भाग-३ जो, खण्ड पहेलो, पृ. १००८. २. जुओ परिशिष्ट तथा 'जैन गूर्जर कविओ' -भाग श्रीजो, खण्ड १ लो, पृ. ६६०.
३. 'प्राचीन फागु संग्रह" [सं. भोगीलाल सांडेसरा तथा सोमाभाई पारेख ] मां आ कृतिनु रचनास्थळ, तेना संगदकोए "खंभात" नोध्यु छे. जुओ 'प्राचीन फागु संग्रह' पृ. २३. ते बराबर नथी, 'सुरत" ज जोईए.
४. आ संख्यांक में संपादन करेल पाठ प्रमाणे मूकेला छे.
Page #14
--------------------------------------------------------------------------
________________
भूमिका ३“धर्ममूर्ति गुरु फाग' आ कृतिर्मा तेनो रचनानो समय नोंध्यो नथी, पण 'कर्तानी उपर्युक्त बे गुजराती कृतिओनु रचनानु वर्ष जोतां आ काव्य पण विक्रमना १७ मा शतकना पूर्वार्धमा रचायु हशे एमां शंका नथी."२ रचना स्थळ खंभात छे. आ कृतिना अंतमा आ प्रमाणे उल्लेख छः
"षिमासागर गुर वंदु, नंदउ जां ससिभांण थभणपुरि गुर गाइइ पाईइ शिवपुर ठाण २२ श्री कमलशेखर कहइ वंदीई वंदोई गुरुना पाय
जे नरनारी गावइ, पावइ सुखसयांई" २३ ४ “सामायिके बत्रीश दोषनो भास :
आ कृतिमां तेनुं रचनास्थल के रचनासमय कशानो उल्लेख नथी. मात्र कर्ताना पोताना नामनो ज उल्लेख त्यां आम करेलो छ :
"कमलशेखर वाचक कहइ जी समता करउ रे सुजाण, दोष बत्रीसइ परिहरइ जो ते पामइ सिवठाण रे" । २० । जी.
-इति श्री सामायिके बत्रीस दोष भास संपूर्ण । १७ मा शतकना पूर्वार्धमा रचायेली उपर्युक्त कृतिओनां रचनास्थल अनुक्रमे सुरत, मांडल, खंभात छे. आथी आ समय दरमियान वा. कमलशेखरनो विशेष विहार गुजरात बाजु ज हशे. कदाच तेओ गुजरातमां ज जन्म्या होय.
संवत १६०० ना भादरवा सुदी १३ ने रविवारे पादशाह शाहआलमना राज्यकाळ दरमियान अलवर महादुर्गमां, गुणनिधानसूरिनी विद्यमानतामां कमलशेखरे सुश्राविका जोषीना पठनार्थे 'लघुसंग्रहणी सूत्र'नी प्रत लीखी छे, जेनी पुष्पिकामां आ प्रमाणेनो उल्लेख छ :
'संवत १६०० वर्षे भाद्रपद मासे शुक्लपक्षे १३ रवौ पातिसाह श्री साहआलम राज्ये अलवर महादुर्गे श्री ५ गुणनिधानसूरि विद्यमाने वा. लाभशेखर गणि तत शिष्य कमलशेखरेण लिखित शुश्राविका जोषी पठनार्थ । शुभं भवतु ।।"
उपलब्ध माहिती प्रमाणे कमलशेखरनो पहेलवहलो उल्लेख उपर्युक्त प्रत-पुष्पिकामांथी मळे छे. संवत १६०० मां थयेला कमलशेखरना आ नामोल्लेख साथे एम अनुमान करी शकाय के लगभग १५८० नो आसपासमां तेओ जन्म्या होय, अने त्यारबाद लगभग अढारेक वर्षनी युवानवये दीक्षा ग्रहण करी होय. उपर्युक्त सं० १६०० मां "लघु-संग्रहणीसूत्र" नी तेमणे करेलो प्रतिलिपिमा तेमणे पोताना नाम साथे "वाचक" पदनो उल्लेख नथी कों. ज्यारे सं० १५०९ मां रचेली तेमनी कृति 'नवतत्त्वचोपाई" मां "वाचक
१. आ फागुन संपादन डॉ० भोगीलाल सांडेसरा तथा सोमाभाई पारेखे. तेमना 'प्राचीन फागु संग्रह' मां करेलु छे. जुओ "प्राचीन फागु संग्रह", पृ. १२६-१२८.
२. "प्राचीन फागु संग्रह", पृ २४.
३. आ कृतिनी हस्तप्रत मने भारतीय विद्या भवन, चोपाटी रोड, मुंबई-७. ना हस्तप्रत-संग्रहमांथो उपलब्ध थई हतो. त्यां तेनो क्रमांक २५२ छे. मूल माटे जुओ परिशिष्ट,
४. जुओ "श्री प्रशस्ति संग्रह", सं. अमृतलाल मगनलाल शाह, पृ. ९९.
Page #15
--------------------------------------------------------------------------
________________
प्रद्युम्नकुमार-चुपई कमलशेखर इम कहइ--"एम कही पोताना नाम साथे "वाचक" पदनो उल्लेख करेलो छे. आथी स्पष्ट थाय छे के संवत १६०० थी संवत १६०९ नो वच्चे तेमने "वाचक" पद प्राप्त थयु हशे तेमणे प्राप्त करेली एवो बीजी पदवीओ विषे के तेमना निर्वाणसमय विषे कशी माहिती प्राप्त थई शकी नथी. अलबत्त, तेमना शिष्य-प्रशिष्योए विनम्रभावे पोतानी रचनाओमां पोताना आ पूजनीय गुरुनु स्मरण करेलुं छे.
संवत १६४३ मां महा सुद ३ने रविवारे बंमणवाडामां वा. कमलशेखरना प्रशिष्य विनयशेखरे रचेली 'यशोभद्र चोपाई" मां, तेमने पोताना गुरुमहना यशोगान गाता वाचनाचार्य तरीके बिरदावेला छे' :
"विधिपख्य नायक महिमनिधान, तपते जिहां जगि उदयु भांण दरिसन देखिइं परमाणंद, वंदउ धरममूरति सुरींद १३९ पली वंदउ सहि गुरु आपणा, जेहनइ नांमिइं नही रिधिमणा श्री श्री कमलशेखर वणारीस, समरु नाम तेहनु निसिदीस १४०२
आज कविए पोते संवत १६४४ श्रावण सुदि १३ ने रविवारे आगरामां रचेली "शांति मृगसुन्दरी चोपाई" मां पोताना गुरुना गुरु वा० कमलशेखरना गुणगान आ प्रमाणे कर्या छः
स्त्रोशंगार भ्यांन बलि वेदिई संवच्छर सुलहीजइ जी श्रावण शुदि तेरसि रविवारइ सतीयां सुगुण कहीजई जी ३२६ युगप्रधान जगि अंचलगछपति गुणमणिरयणभंडार जी श्री श्री धर्ममूरतिसूरीश्वर श्री संघकुं सुखकार जी ३२७ तास तणइ पक्षि गुणिरयणायर कमलशेखर वणारीस जी
क्रियापात्र हुआ एणि कालिइ सघलइ कित्ति विसेस जी ३२९ आथी स्पष्ट थाय छे के वाचनाचार्य कमलशेखर गुणोना भंडार तेम ज क्रियापात्र हता. चोगम तेमनी कीर्ति व्याप्त हती.
वा. कमलशेखरना आ प्रशिष्य विनयशेखर सिवाय, तेमना बीजा प्रशिष्यो श्री भाव. शेखर तथा विजयशेखरे पण पोताना गुरुना गुरुने पोतानी कृतिओमां भावभरी स्मरणांजलि आपी छे.
भावशेखरे संवत १६८१ मा रचेलो "धना महामुनि चुपई” मां वा. कमलशेखरनु स्मरण आ प्रमाणे कर्यु छ :
“संवत सोलसइं वरस एकासीइ रे अति भलु मास विइंसाख
तेरसि दिन भोमवारिइं करीजी स्वाती नक्षत्र सुभ लाख ४ देखु. १. "वाचक' अने “वाचनाचार्य" मां छेल्लु पद विशेष मानार्ह जणाय छे. शक्य छे के वडील गुरुजनो माटे ए पदवीनो उपयोग थतो होय.
___२. "जैन गुर्जर कविओ, भाग १ लो," पृ. २८५. भूलथी त्यां कर्तानु नाम "विजयशेखर" लख्यु छे “जैन गूर्जर कवि भो" भाग ३, खंड- १ लानां पृ. ७७५ उपर सुधारायुं छे.
Page #16
--------------------------------------------------------------------------
________________
भूमिका
वीर-परंपर- पाटि सोभताजी कल्यांणसागरसूरिराय मधुरी देशनवांण वरसताजी सेवि सुरनर पाय । ६ । देख तास पक्ष वाचक अति दीपताजी कमलशेखर गणिचंद तास शिष्य वाचक सत्यशेखर भलाजी । ७ । देखु०
अकवरपुरमा संघनि आदरिजी अति घणुं मन नि पुरि भावशेखर कहिं श्री संघ चरिजउजी आणंद प्रेम पडू रि । १३। देखु०
आ उपरांत आपणे आगळ जोई गया ते संवत १६९४मां रचायेली " चंदराजानी चौपई" मां तेना कर्ता विजयशेखरे पण वा. कमलशेखरने "कमलशेखर वाचक पदइ, साधुमइ थया अवतंस री माइ" एम " साधुओमां शणगाररूप" कही तेमना प्रत्येनो पूज्यभाव व्यक्त कर्यो छे. गुरु अने शिष्य-प्रशिष्योनी परंपरा
वा. कमलशेखरे 'प्रद्युम्न कुमार चुपई' नामनी पोतानी कृतिनी प्रशस्तिमां पोताना गुरु तथा तेमना गुरुना नामनो उल्लेख कर्यो छे तेमां तेमणे वा. वेलराजथी शरूआत करी छे. तेमणे वा. वेलराजना शिष्य उपाध्याय पुण्यलब्धि तथा वा लाभशेखरना नामनो उल्लेख करी, पोताने लाभशेखरना शिष्य तरीके निर्देश्या छे. आ रीते वा कमलशेखरनी टूकी गुरुपरंपरा आ प्रमाणे दर्शावी शकाय :
वा. वेलराज
1
उपा • पुण्यलब्धि
वा. लाभशेखर
भानुलब्धि
वा. कमलशेखर
Baramendica
वा. कमलशेखरना शिष्यो पण सारा ग्रन्थकारो थई गया छे. तेमणे उग्रविहार करीने उत्तर भारतनां नगरोमां पण चतुर्मास कर्या हता अने अनेक भव्य जीवोने बोध पमाड्यो हतो. इत्यादि वेशेनु सप्रमाण वर्णन अहीं अप्रस्तुत छे. मात्र भिन्न भिन्न कृतिओमांथी प्राप्त थता उल्लेखो रथी अत्यार सुधी मळेली माहिती प्रमाणे वा. कमलशेखरनी शिष्य-प्रशिष्योनी परंपरा नीचे मुजब दर्शावी छे :
वा. कमलशेखर
वा. सत्यशेखर
० विनयशेखर
रविशेखर
भुवनशेखर
भावशेखर
बुद्धिशेखर
विवेकशेखर
राजशेखर
रत्नशेखर
१. भारतीय विद्याभवन ( मुंबई ) ना हस्तप्रतना संग्रहमां आ भावशेखर कृत, संवत १६८१मां रचायेली "धना महामुनी चुपई "नी, संवत १७०१मां लखेली एक हस्तप्रत छे यां तेनो नंबर ७९ छे, एमांथी प्रस्तुत प्रशस्ति प्राप्त थई छे.
विजयशेखर
Page #17
--------------------------------------------------------------------------
________________
प्रद्युम्नकुमार- चुपई
वा. कमलशेखरना प्रशिष्य
विनयशेखर कृत " यशोभद्र चोपई" (सं. १६४३) नामनी कृतिनी पोते ज लखेली हस्तप्रतनी पुष्पिकामां आ प्रमाणेनो उल्लेख प्राप्त थाय छे :
१०
" संवत १६४४ वर्षे वैशाख शुदि १३ सोमे श्री अंचलगच्छे श्री धर्ममूर्तिसूरीश्वर - राज्ये वाचनाचार्य वा. कमलशेखर गणि तत् शिष्य रिषि श्री ६ सत्यशेखर गणि तत् शिष्य ऋ. विनयशेखरेण लिखितं श्री आगरानगरे उत्वारे । तैाद् रक्षेत् जलाद् रक्षेत् स्थलबंधनात् परहस्ते गताद् रक्षेत् एवं वदति पुस्तिका .
„„
आम संवत १६४४ मां लखायेल उपर्युक्त प्रत पुष्पिकामां वा. कमलशेखरना नामनो उल्लेख प्राप्त थाय छे. त्यार बाद आज विनयशेखरनी "शांतिमृगसुंदरी चोपई" (सं० १६४४) नी प्रत - पुष्पिकामां पण आ प्रमाणेनो उल्लेख छे :
" संवत १६४८ पोस शुदि ३ बुधे अंचलगच्छे वा कमलशेखर रिषि सत्यशेखर गणि शि. रिषि विनयशेखर रिषि विवेकशेखर लि. साध्वी विमला सध्यणी साध्वी कुशललक्ष्मी वाचनार्थ"
२
आम संवत १६४८मां लखायेली उपर्युक्त प्रत पुष्पिकामां पण वा. कमलशेखरनां नामनो उल्लेख प्राप्त थाय छे. ए पछी एमना नामनो उल्लेख कोई प्रत-पुष्पिकामां, उपलब्ध माहिती अनुसार क्यांय प्राप्त थतो नथी. आथी अनुमान करी शकाय के वा. कमलशेखर संवत १६४८ सुधी विद्यमान हशे ए पछी पण तेओ थोडु जीव्या हशे आम उपर्युक्त सर्व प्रमाणोने आधारे वा. कमलशेखरनी विद्यमानता संवत १५८० थी संवत १६४८ सुधीनी गणावी शकाय एम छे.
वा. कमलशेखर परत्वे आथी विशेष माहिती उपलब्ध थई शकी नथी. एक "धर्ममूर्ति - गुरु फाग" सिवाय एमनी बीजी कृतिओ आज दिवस सुधी अप्रकाशित होईने साहित्यकार तरीकेनी एमनी प्रतिभा वणमूलवी ज रही छे. अहीं हवे पछी वा कमलशेखरनी कवन - प्रतिभाने, तेमनी उपलब्ध चारेचार कृतिने अनुलक्षीने, निरूपवानो प्रयत्न करेलो छे. वा. कमलशेखरं साहित्य - सर्जन
वा. कमलशेखरनी अत्यार सुर्ध मां, आपणे आगळ जोयुं तेम, चार कृतिओ उपलब्ध थई ७. ए चारे य कृतिओ तेमणे प्राचीन गुजराती भाषामां रचेली छे, अने साहित्याना त्रण भिन्न स्वरूपोनो ए कृतिओ परत्वे उपयोग करेलो छे-ते छे चोपाई, फागु अने भास. "नवतत्व चोपाई " अते "प्रद्युम्नकुमार चुपई " ए वे कृतिओ साहित्य-स्वरूपे एक छतां विषयी दृष्टि साव भिन्न छे. जैनपरंपरानी दृष्टिए मोक्ष-मार्गमां उपयोगी एवा जीव, अजीव, आस्रव, संवर इत्यादि नव तत्त्वोनी समजण "नवतत्त्व चौपाई " मां पद्यबद्ध करी सामान्यजनार्थे तेनुं अर्थबोधन सरळ बनाव्युं छे, तो 'प्रद्युम्नकुमार चुपई " मां, जैन परंपरा प्रमाणेना २४ कामदेवामांना एकवीसमा कामदेव अने नवमा वासुदेव श्रीकृष्णना पुत्र प्रद्युम्ननी जैन परंपरा प्रमाणेनी कथाने चोपाई -बद्ध करी छे, आम अनुक्रमे प्रथम कृतिमां तात्त्विक चर्चा भने बीमी कृतिमां पौराणिक कथाने विषय बनावी, ए बन्ने कृतिओना कलेवरो घडेलां छे. स्यारबाद
१. जैन गूर्जर कविओ - भाग १ लो. पृ० २८५ २. जैम गूर्जर कविओ-भाग ३ जो-खंड १लो पृ० ७७७
Page #18
--------------------------------------------------------------------------
________________
भूमिका
११
पोताना समकालीन अने अंचलगच्छनी विधिपक्ष शाखाना पट्टधर धर्ममूर्तिसूरिनी प्रशस्तिरूप " धर्ममूर्तिगुरु फाग " नी रचना करेली छे. 'फागु' काव्य स्वरूपना रुढ लक्षणोथी आ 'फागु' भिन्न तरी आवे छे. छतां तेने “फागु" कही तेमां, तेमना गुरुरूप धर्ममूर्तिसूरिना जन्मस्थळ, माता-पिता, दीक्षागुरुनुं, नाम, आचार्यपद इत्यादिनी माहिती आपी, तेमना गुणोनुं संकीर्तन करेलुं छे. "सामायिके बत्रीस दोषनो भास" ए कृतिमां तेमणे जैनोना सामायिकत्रतनां आचरणसमये जाण्ये अजाण्ये मन, वचन अने कायाथी लागता बत्रीश प्रकारना दोषोनी समजण आपी, तेनो परिहार करवानो उपदेश आप्यो छे. आ रीते जोईए तो वा. कमलशेखरे जैन फिलसूफी, पौराणिक कथानक तथा जैन संप्रदायना व्रत आचारादिने पोताना विषय तरीके लीघा छे अने तेनुं जुदां जुदां पद्यस्वरूपमां निरूपण करेलुं छे. आम प्रथम दृष्टिए ज तेमना मर्यादित साहित्यसर्जनना क्षेत्रमां विषय तथा काव्यस्वरूपोनुं वैविध्य तरत ज नजरे पडे छे.
नवतत्त्व चोपाई
प्राचीन गुजराती अन्तर्गत रास- चोपाईमां रचायेलुं साहित्य अढळक छे. रास, चोपाई के चरित ए सर्वे लगभग एक ज प्रकारनां काव्य-स्वरूपो छे. आ काव्य-स्वरूपनुं विषयवैविध्य पण विशाळ छे. लौकिक, धार्मिक के पर्व व्रत कथात्मक, ऐतिहासिक, पौराणिक, चरित्रात्मक; रूपकात्मक, बोधात्मक के प्रासंगिक इत्यादि अनेक प्रकारना विषयो आ काण्यस्वरूपअंतर्गत आलेखाया छे. आ प्रकार सर्जन बहुधा जैन कविओने हाथे थयेलु होवाथी तेमां सांप्रदायिक छाप सविशेष ऊपसी आवे छे. आ सांप्रदायिक रास - चोपाईमां तात्त्विक, धार्मिक, तीर्थ- वर्णन, चैत्यपरिपाटी, गुरुमहिमा, पट्टाभिषेक-वर्णन इत्यादि अनेक प्रकारमा विषयनुं वर्णन करवामां आवेलुं छे. रास-चोपाईना सांप्रदायिक तात्त्विक विषयमां कर्मविवरण, कर्मविपाक, जीवविचार, नवतत्त्व, संग्रहणी इत्यादि अनेक विषयो चर्चाया छे. जेना विवरणार्थे 'कर्म-विवरणनो रास' - कर्ता लावण्यदेव - १६ मी सदी, 'जीवविचार - रास' कर्ता ऋषभदास ई. स. १६१९ इत्यादि अनेक प्रकारनी रास चोपाईं स्वरूपनी कृतिओनी रचना थयेली छे.
प्रस्तुत "नवतत्त्व चोपाई" ए राससाहित्यने लगता ज चोपाई नामना काव्यप्रकारमा अने लगभग संपूर्णतया ए ज बंधमां वा. कमलशेखरे संवत १६०९मां रचेली एक तात्त्विक कृति छे. जैनदर्शनमां अति महत्त्वना अने मोक्षमार्गमां उपयोगी एवा जीव, अजीव, पुण्य, पाप, आस्रव, संवर, निर्जरा, बंध अने मोक्ष - ए नामनां तत्त्वोने भाविक सरळ रीते समजी, याद राखी, बोध पामी शके अने आत्मानुं हित साधी शके ए माटे गाथामा लखायेला आ नामना सूत्र वा. कमलशेखरे रूपान्तर करेलु छे.
मूळ प्राकृत भाषामा ५९ सरळ प्रा. गुजराती भाषामा पद्यमां
रचनानो प्रारंभ सरस्वती देवी अने पार्श्वनाथनी वंदनाथी थाय छे. त्यारबाद तरत ज कवि नव तत्त्वनो संक्षेपमां विचार रजू करे छे. तेमां प्रथम जीवना चौद, अजीवना चौद, पुण्यना बेतालीश, पापना ब्याशी, आस्त्रवना बेतालीश, संवरना सत्तावन, निर्जराना बार, बंधना चार अने मोक्षना नव-एम नव तत्त्वना कुल बसो छोतेर भेदने गणावे छे. क्यांक तेना गुणधर्मोनुं
Page #19
--------------------------------------------------------------------------
________________
प्रद्युम्नकुमार-चुपई
निरूपण करे छे, तो क्यांक तेनां उदाहरणो पण आपे छे. अंतमा कवि नवतत्त्वना प्रभावना महिमा गातां कहे छे के :
भावि करी सदहि नक्तत्व अयाणनंई हुई समकित्व- ६३ अंतर महूरत समकित धरइ ते नर अरधु पुद्गल करइ वाचक कमलशेखर इम कहइ गणिइ भविइ सिद्ध पदवी लहइ-६४'
छेल्ले सद्गुरु धर्ममूर्तिसूरिनु स्मरण, कृतिनुं रचना-स्थळ अने तेनो रचना-समय तथा आ 'चोपाई" ना श्रोता-वाचक माटे आशीर्वचन इत्यादिन निरूपण करवामां आव्यु छे.
कल ६६ कडीना आ काव्यमा ३०मी अने ३१मी कडी दोहरा-छंदमां, ज्यारे बाकीनी बधी कडीओ सळग चोपाईमां लखेली छे. कर्तार जेवा सगळ छंदोबंध रच्या छे, तेवी ज तेमनी कयनशैली पण सरळ छे. सीधी सादी रीते मात्र नव तत्त्वना भेद प्रभेदन निरूपण करेलु के नथी यांय कशानां वर्णन के नथी कोई भभकभर्या अलंकारोनी शोभा. जो के तेने अहीं अवकाश पण नथी, छतां आखी य कृति कर्तानी लाघवशक्तिनो अने शब्दप्रभुत्वनो सारा परिचय करावे छे. एक उदाहरण आपुं: पुण्यतत्त्व अंतर्गत पुण्य भोगववानां बेतालीस प्रकारमां, आत्माने जे पुण्यना उदयथी पर्यकासने बेसतां जेनी चारे बाजु सरखी होय एवा संस्थान (शरीराकृति)न। प्राति तथा शुभ वर्ण, शुभ गंध, शुभ रस अने शुभ स्पर्शनी प्राप्ति थाय तेनुं कर्ताए संक्षेपमां सरळ रीते सुंदर शब्दोमां आम निरूपण के
'पंचेंद्रीपणु लहइ जे सार वरण सेत रत्त पीत उदार गंध अपूरव हुइ जेय, मधुर खट्ट कषाय रस-तेय१९ हलूउ सुहाल चीगटु, ऊहनु फरिम रुडु सामटु'
-तो काव्यनी प्रथम पंक्ति मां ज वर्णसगाई अने प्रास नुप्रास केवा अनायासे सधाया छे ते जुओ :
'सरसती सांमणि समरु माय पास जिणेसर पणमु पाय' काव्यनी प्रत्येक पंक्ति प्रासानुप्रासथी बंधायेली छे. तथा भाषा पण बहुधा संयुक्ताक्षररहित. सरळ छे. आथी सामान्य जन माटे आ काव्य याद राखवू सरळ थई जाय तेम छे अने आथी ज, प्राकृतभाषामां रचायेलों अने समजवा अघरा एवा आ धार्मिक दृष्टिए महत्त्वना सत्रनु सरळ गुजरातो पद्य रूपान्तर करी, सामान्य भविक जीवो माटे तेनो अर्थबोध सरळ करी. तेमने एन आचरण करवा प्रेरवानो कर्तानो मनोरथ अहीं सिद्ध थयेलो जणाय छे. टंकमां
ती सरळ समजती माटे समुचित शब्दनी पसंदगीनी सूझ तथा अनायास सिद्ध पद्यनिरूपणमीरीतिनो आ काव्य द्वारा आपणने परिचय थाय छे. वळी वा. कमलशेखरे आवी तात्त्विक
करती कतिन सर्जन कयु तेना उपरथी एटलु तो फलित थाय छे के तेमने जैन फिलसफीनो सारो अभ्यास हशे अने तेमनु आध्यात्मिक चिंतन पण उच्च कोटीन हो
१. परिशिष्टमां ग्रंथस्थ करेली आ कृति मुजब आ संख्यांक लखेला छे..
Page #20
--------------------------------------------------------------------------
________________
भूमिका
१३ प्रधुम्नकुमार-चुपई
आ कृतिनुं संपादन में प्रस्तुत ग्रंथमां करेलुं छे, तथा तेनी समग्र विवेचना, आगळ करेली छे. तेमां आ कृति परत्वे वा. कमलशेखरनी सर्जक-प्रतिभा विशे विस्तारथी माहिती आपेली छे. धर्ममूर्तिगुरु फाग
महद् अंशे "फागु" काव्यस्वरूपनो उद्भव वसन्तना वर्णन निमित्ते श्रृङ्गाररसनी निष्पत्ति अर्थे थयेलो छे. परंतु समयना वहेण साथे "फागु" ना आ मूळ स्वरूपमां सांप्रदायिकत्व आववा मांड्युः जैनेतर कविओए कृष्ण-गोपि के कृष्ण-रुक्मिणीने नायक-नायिकरूपे लई तेमना वसन्तोत्सव निमित्त वनक्रीडा के प्रेमकेलिना शृङ्गाररससभर फागुओनुं सर्जन कयु छे. जेम के "नारायण फागु", "भ्रमरगीता", "हरिविलास फागु" इत्यादि. ज्यारे जैन कविओए आ काव्यस्वरूपने सविशेष सांप्रदायिक रूप आपी ते द्वारा स्वधर्मना सिद्धान्तोने कथात्मक रीते उपदेश्या छे. आथी शङ्गाररसना वाहनरूप आ काव्यस्वरूप नेमिनाथ के पार्श्वनाथ जेवा तीर्थकरो, गौतम जेवा गणघरो के जंबूस्वामी जेवा केवलीओना बोधदायक जीवनचरित्रने निरूपवा न साधन बन्यु छे. एटलु जनहि परंतु समय जतां केटलाक आचार्यादि व्यक्तिविशेषो पण फागुना विषय बन्या. उदाहरण रूपे "हेमरत्नसूरे फाग", "जिनहंसगुरु नवरंग फाग", "अमररत्नसूरि फागु" इत्यादि गणावी शकाय. श्रीभोगीलाल सांडेसरा जणावे छे ते प्रमाणे, 'आवी रचनाओमां आचार्योना मातापिता, बाल्यावस्था, दीक्षा- महोत्सव इत्यादिनो वृत्तान्त आपीने वसंतर्वणन, कामविजय, संयमनी दृढ़ता, उपदेशनो प्रभाव वगेरे वर्णवेला होय छे अने ए रीते फाग' नामनी ओछेवत्ते अंशे सार्थकता साधवानो प्रयत्न थाय छे."
वा, कमलशेखरे २३ कडीनो प्रस्तुत फाग, अंचलगच्छनो विधिपक्ष शाखाना पट्टधर अने पोताना समकालीन आचार्य धर्ममूर्तिसूरिनी प्रशस्तिरूपे लखेलो छे. आ. धर्ममूर्तिसूरिना जीवननी केटलीक हकीकतोन निरूपण करतां कवि जणावे छे के धर्ममूर्तिसूरिनो जन्म खभातमा थयो हतो. तेमना, पितानु नाम हंसराज हतुं अने मातानु नाम हांसलदे हतुं. तेमनु' सांसारिक नाम धर्मदास इतं. श्रीजिनेश्वर भगवंतनी वाणी सांभळी तेमने वैराग्य थयो अने अंते घरनो भार छोड़ीने. श्रीगुणनिधानसूरि पासे दीक्षा लीधी. गुरुए त्यारबाद तेमने ध्यानथी विद्यावंत अने संघनु भलु करनार जाणीने, अमदावादमा महोत्सवपूर्वक पोतानी पाटे स्थाप्या. देशविदेशमा तेमणे घणी क्रियाओ आदरी, पंच महाव्रत धार्या, छ प्रकारना जीवनी रक्षा करी, सात प्रकारना भय निवार्या,
आठ प्रकारना मद वार्या, नवविध शील धारण करी, दसभेदे यतिधर्म शोभाव्योः अगियार प्रतिमा कही अने बार भिक्षु-प्रतिमाथी एमणे पोतानु काम पार पाडयु; तेर काठिया निवारीने तेमणे धर्मनु काम कयु. आम साधुओना छत्रीश गुणोथी युक्त आ. धर्ममूर्तिसूरिनु जन्मस्थळ, माता-पिता तथा तेमनु नाम, दीक्षा, आचार्यपद इत्यादिनो परिचय करावो तेमना आध्यात्मिक गुणोनी प्रशंसा करेली छे. - आ टंका फागुकाव्यमां आम तो बीजा कशा वर्णनने अवकाश नथी, छतां य ज्यां एवो कंइ अवकाश मळ्यो छे, त्यां कर्ता वा. कमलशेखरे पोतानी वर्णनशक्तिनो परिचय . १ प्राचीन फागु संग्रह-पृ. २३-२४
Page #21
--------------------------------------------------------------------------
________________
प्रद्युम्नकुमार-चुपई कराव्यो छे. अमदावादमां धर्ममूर्तिसूरेना 'सूरि'पदना महोत्सव प्रसंगे वागतां वाजिंत्रोना सूरोनु शब्दविधान तेमणे आम कयु छ :
ताल दमामा वाजइ, वाजइ तिवल निनाद रणतूर नफेरी मेरी य, संख सुहामणउ साद.१२ चूं घर वाजइ घमघम, मादल दो दो कार
पंचशबद धरि वाजइ, गाजइ गयण अपार. १३ रवानुसारी शब्द-प्रयोग अने वर्णसगाइथी उपयुक्त वर्णन कर्णप्रिय अने मधुर लागे छे. ते उपरांत कर्तानी अर्थ - लाघवनी शक्तिनो परिचय पण आपणने आ फागुकाव्यमां थाय छे. जैन संप्रदायनी दृष्टिए उर्ध्वगामी जीवनविकासार्थे चारित्रमय जीवनमा श्रेष्ठ आध्यात्मिक गुणो के जेना आचरणमां जीवनसाफल्यनी चरम सीमा रहेली , तेनी गणतरी अने तेनु विवेचन विद्वानोए ग्रंथो भरी भरीने करेलु छे. धर्ममूर्तिसूरिए पोताना जीवनमा करेलु ते गुणोनुं प्रस्थापन वा. कमलशेखरे मात्र आठ पंक्तिमाटूकमा सरळ अने सचोट रीते आम दर्शाब्यु छः
"आदरी क्रिया जिणि अति धगि, मइ सुणि देस विदेसि पंच महाव्रत पालइ, टालइ सयल किलेस. षटविध जीवह राखइ, दाखइ जिनवर वाणि सात भय निवारीह, वारीय मद अठ जाणि. नवविध सील सदा धरइ, करइ यति दसविधि धर्म एकादस प्रतिमा कहइ, लहइ ते सूत्रह मर्म भिखूप्रतिमा बार ए, सारए आपणउं काज
तेर काठिया निवारीय, कारीय धर्मह काज लाक्षणिक रीते एक पछी एक पांचथी तेरनी संख्याना क्रममां जैनधर्म-प्रबोधित लगभग समस्त गुणोथी गुरुने नवाजो कर्ताए गुरु प्रत्येनो पोतानो पूज्यभाव विनम्रपणे व्यक्त कर्यो छे.
सामान्य रीते आवा आचार्य विशेषादिनी उपर फागुओमां पण वसतवर्णन अने सरि द्वारा कामविजयनु अने ते द्वारा तेमना संमयनी दृढ़तानु प्रतिपादन करवामां आवे छे. परंतु
आ फागुमां वा. कमलशेखरे लाक्षणिक ढबे वसंतनुं के फाल्गुणर्नु जराय वर्णन नथी कयु. फक्त " फागुबंध" नी रचनाने लीधे तथा पुष्पिकामां एने “फागु" नाम आपेलुं छे, एने लीधे आ कृतिने "फागु" कही शकाय.
जेम कर्ताए आ कृतिमां अद्वै उ अने फाग जेवा सरळ छंदोनो उपयोग कर्यो छे, तेवी ज तेमनी आडंबररहित, सरळ अने लालित्यसभर भाषा छ:
"हंसराज घरि घरणी तुरणी ओढणी घाट" -जेवी पंक्तिमां "" अने "" वर्णना उचित विन्यासथी पदावली ललितमधुर लागे छे. वळी "फाग" स्वरूपमा, प्रत्येक पंकेमा आंतरयमानी योजना पण कर्तार शब्दार्थनी तोडफोड कर्या सिवाय अनायास सिद्ध करी छ
"संजमनउ जंग मंडीउ, छंडीउ घरनउ भार" के "उदयकरण आणदइ, वंदइ गुरुना पाय" जेवी पंक्तिओ तेना दृष्टांत लेखे आपी शकाय.
Page #22
--------------------------------------------------------------------------
________________
भूमिका
आम आ नानकडा काव्यमां पण वा. कमलशेखरनुं रचना-कौशल्य, भाषा-प्रभुत्व, वर्णन-प्रतिभा तथा लाघव-शक्तिनो ठीक ठीक परिचय थाय छे. सामायिके बत्रीश दोषनो भास
जूनी गुजरातीमां जैनरासादिना कडवाने 'भाषा' अथवा 'भास' कहेवामां आवे छे. केटलीक वार अलग काव्योंने पण भास कहे छे. जेम के 'लक्ष्मीमहत्तरा भास"-आ 'भास' नामना काव्यप्रकारमा वा. कमलशेखरे उपर्युक्त नानकडी कृति रचेली छे.
_ 'रागद्वेषरहित शान्त स्थितिमां बे घडी अर्थात् ४८ मिनिट सुधी एक आसने बेसी रहेवू एन नाम 'सामायिक' छे. एटला वखतमा आरमतत्त्वनी विचारणा, जीवनशोधननु पर्यालोचन, जीवनविकासक वैराग्यशास्त्रोनु परिशीलन, आध्यात्मिक स्वाध्याय अथवा परमात्मानुं प्रणिधान करवानु छे'.
आ व्रतना आचरण समये जाणे--अजाणे तेना व्रतीथी बत्रीस प्रकारना दोषो थई जवानो संभव के आदोषोमां दश मनना दोष, दश वचनना दोष अने बार कायाना दोष लागता होय छे. ते आ प्रमाणे छ :
मनना दोष-१. शत्रुने जोई तेना प्रत्ये द्वेष करवो. २. अविवेक चिंतववो ३. तत्त्वनो विचार न करवो. ४. मनमा उद्वेग धारण करवो ५. यशनी इच्छा करवी ६. विनय न करवो ७. भय चितववो ८. व्यापार चिंतववो ९. फळनो संदेह करवो १०. निदान-नियाणु करचुएटले फळनी इच्छा राखी धर्मक्रिया करवी.
वचनना दोष-१. कुवचन बोल, २. हुंकारा करवा ३. पाप कर्मनो आदेश करवो ४. लवारो करवो ५. कलह करवो ६. क्षेमकुशळ पूछी आगता स्वागता करवी ७. गाळो देवी ८. बाळक रमाड ९. विकथा करवी १.. हांसी करवी
कायाना दोष-१. आसन-चपळ-अस्थिर करवु २. चोतरफ जोया करवु ३. सावद्य की करव ५. आळस मरडवी ५. भीत इत्यादिनी ओथ लईने बेसवु ६. अविनये बेसवं ७. शरीर परनो मेल उतारवो ८. खरज खणवी ९. पग उपर पग चढ़ावो १० कामबासनाप अंग उघाडा राखवा ११. जंतुओना उपद्रवथी डरोने चोतरफथी शरीरने डांकवं १२. निद्रा लेवी.
प्रत्येक श्रावकने आचरवा योग्य उपर्युक्त सामायिक नामना व्रतनो महिमा गावा तथा तेना आचरण समये जाणे अजाणे तेना व्रतने लागता उपयुक्त बत्रोश प्रकारना दोषोने परिहरी शुद्ध रीते ते व्रत, पालन करवानो बोध आपवा माटे वा. कमलशेखरे आ नानकडा
करीना भास' न सर्जन कयु छे. कर्ताए प्रथम कायाना, पछी वचनना अने छल्ले मनना दोषो गणान्या छे. कृतिनो प्रारंभ तीर्थकर, गुरु के देव-देवानी स्तुतिथी करवाने बदले कर्ता जविकजनोने संसारिक इतर प्रवृत्तिभो त्यजी, समता धारी, मननो दंभ दर करी, तथा बत्रीश प्रकारना सकिना दोषने निवारी साररूप सामायिक करवानो बोध आपे छे अने पछी बत्रीश दोषी
१.महीराज कृत 'नल-दवदंतीरास(सं. डॉ. भोगीलाल सांडेसरा) पृ. १५८. २. जनदर्शन, कर्ता-पू. न्यायविजयजी, पृ. ७०
Page #23
--------------------------------------------------------------------------
________________
प्रद्युम्नकुमार-चुपई
गणावे छे. अंतमा पोताना नामोल्लेख साथे कवि कहे छे के 'बत्रीश दोषने परिहरी, समता धारी, जो सामायिक करवामां आवे तो ते मोक्षपदसाधक बनी रहे छे.' आखी कृति एक ज ढाळमां रचायेली छे. कडीनी प्रत्येक पंक्ति प्रास-अनुप्रासथी बंधायेली छे. कर्तानी कथन-शैली पण लोको समजी शके अने याद राखी शके एवी सरळ छे. कायाथो लागता “अस्थिर आसन" अने "चपळ दृष्टि" ए बे दोष केवा सरळताथी कर्ताए वर्णव्या छे, ते जुओ :
"बीजउ दोष आसण तणउ रे, आघउ पाछउ थाइ
दृष्टि चपळ त्रीजउ सुणउ रे, एकइ ठामि न रहाइ रे जीवडा " .. आ उपरांत उचित वर्णविन्यासथी पदावलि सुवाच्य पण बनी छे. जेम के : .. 'दसम दोष खाजि खणइ जी, वछइ वीसामण अग्यागि."
आम कर्तानी कथनशैली सरळ अने सुवाच्य छे. छतां मात्र समायिकना बत्रीश दोषोनु कथन ज करी, ते दोषोने परिहरी, शुद्ध सामायिक करी, मोक्षप्राप्ति करवानो सीधेसीधो उपदेश आपवानो होई, साहित्यनी दृष्टिए बीजां कोई नोधपात्र तत्त्वो आ कृतिमां खास छे नहि.'
३. "प्रद्यम्नकुमार चुपई "नो सामान्य अभ्यास "प्रद्युम्नकुमार-चुपई" ए रास प्रकारनी कृति छे. आ प्रकरणमा “प्रद्युम्नकुमार चुपई" नु एक रासकृति तरीके अवलोकन करेलु छे.
प्रथम "प्रद्युम्नकुमार चुपई" ना उद्भवस्थाननी चर्चा करी छे अने त्यारबाद तेना "रास" तरीकेना स्वरूपनी विचारणा करी छे. मध्यकालीन गुजराती साहित्य अन्तर्गत घडायेला रासकाव्य स्वरूपना जे व्यावर्तक लक्षणो छे ते आ "प्रद्युम्नकुमार चुपई" मां केवी रोंते प्रतिबिंबित थयों छे, तेनो अभ्यास करतां, साथे साथे प्रस्तुत कृतिना जुदां जुदां पासाओर्नु पण विगते अध्ययन करेलु छे. प्रद्युम्नकुमार चुपई नुं मूळ उद्भवस्थान : __हिन्दु परंपरा प्रमाणो आलेखायेला "महाभारत", "शमायण" भने “पुराणो" पैकीना अनेक पात्रोनी कथाने घणा प्राचीन समयथी जैन परंपराए पोताने अनुकूळ एवा फेरफारो साथे अपनावी तेनु जनीकरण करेलु छे. उपलब्ध माहिती प्रमाणे श्रीसंघदास गणि वाचक कृत 'वसुदेवहिंडो",श्री जिनसेनाचार्य कृत "हरिवंशपुराण", श्रीगुणभद्राचार्य कृत " उत्तरपुराण,"
१. जे हस्तप्रतमाथी वा. कमलशेखरनो आ “ सामायिके बत्रीस दोषनो भास" कृति मळी छे, तेमां बीजी "पौषधनो भास" नामनी कृति पण मळे छे. जो के तेमां तेना कर्ताना नामनो उल्लेख नथी. परंतु काव्यस्वरूप, विषय, भाषा तथा आलेखननी दृष्टिथी जोतां ए कृति पण वा. कमलशेखरनी होवानो संभव छे. अनंतनाथजी जैन देरासर, भात बजार, मुंबई-मध्येना हस्तप्रतना भंडारमा उपरोक्त बने कृतिनी त्रण पत्रनी एक प्रत नं क-२४०४ नी रहेली छे. तेमां प्रथम बे पानां मळतां नथी. छेल्ला त्रण नंबरना पाना उपर एक बाजुए 'सामायिके बत्रीस दोषनो भास" ए कृति तेनी छठी कडीथी शरू थई ते जपत्र उपर २०मी कडीए पूरी थई जाय छे. तेनी पाछळनी बाजुए १३ कडीमां "पौषधनो भास" ए कृति लखेली छे. तेनी प्रतिलिपिनो समय संवत १६८३नो नोंधेलो छे.
Page #24
--------------------------------------------------------------------------
________________
भूमिका
१७
श्री स्वयंभू कृत "रिठणेमिचरिउ,” श्री पुष्पदंत कृत "महापुराण" श्री हेमचन्द्राचार्य कृत "त्रिषष्टिशलाकापुरुषचरित्र," के सोमप्रभाचार्य कृत "कुमारपाल प्रतिबोध" इत्यादि ग्रन्थोमां जैन परंपरा प्रमाणेनी पुराणकथाओनो संग्रह थयेलो छे ते पछी तेना उत्तरकालीन कवि-लेखकोए ज्यारे पण एमांना कोई पौराणिक पात्र उपर स्वतंत्र कृति सजवानो प्रयास कर्यो छे रे तेना आधार तरीके उपर्युक्त जनपरंपरानो पुराणकथाओना संग्रड्नो उपयोग करेलो छे. अलबत्त, ते पात्रनी कथाना निरूपणमां कवि के लेखकोए निजी कल्पना अने प्रतिभाथी केटलाक फेफारे। समयान्तरे करेला छे. छतां पण कथाना मूळ उद्भवस्थान तरीके तो उपर्युक्त जैन पुराणग्रन्थो ज रहेला छे. बीजु एम पण बनवू शक्य छे के कोई कवि के लेख उपर्युक्त जैन पुराणग्रन्थाने नहि परंतु स्वभाषा के अन्य भाषामां कोई पात्र उपर स्वतंत्र रीते रचायेदी, पोताना समय पहेलानी कृतिने आधार तरीके लइ पछो ते पात्र उपर पोतानी नवी स्वतंत्र रचना करे. तो वळी ए पण बनवू शक्य छे के कर्ता पोतानी, कोई पौराणिक पात्रता उपर रचायेलो, स्वतत्र कृतिना आधार तरीके कोई एक पुराणग्रंथमांनी ते पात्र उपरनी कथा के ते पात्र ऊपर पोताना पहेलां बीजा कोई लेखके के कविए लखेली स्वतंत्र कृतिने ज न लेता, ते कथानो समा वेश करता अनेक ग्रंथो अने स्वतंत्र कृतिओनो आधार लई, ते दरेक ग्रंथ के स्वतंत्र कृतिओ. मांथो पोताने अनुकूळ ते कथाना प्रसंगो लई ते बधा प्रसंगोने साथे वणी लई पोतानी नवी स्वतंत्र रचनानु सर्जन करे. आम कोई पण पौराणिक पात्र उपर रचायेली स्वतंत्र कृतिना उद्भवस्थानना अभ्यास माटे उपर्युक्त बाबतो ध्यानमा राखवी आवश्यक छे.
जैन परंपराना उपर गणावेला लगभग बधा ज पुराणग्रंथोमां प्रद्यम्नकमारनी कथानं आले खन थयेलु छे. ते उपरांत वा. कमलशेखरे आ प्रद्युम्ननी कथा उपर पोतानी कृति रची ते पहेलां अनेक भाषामा अनेक कविओए प्रद्युम्ननी जीवनकथा उपर पोतानी स्वतंत्र रचनाओ सर्जेली छे. आमांथी कया विशिष्ट ग्रंथ के ग्रंथोने आधारे पोते पोतानी कृतिनी रचना करी छे. तेनो कशो सीधो या आडकतरो उल्लेख कर्ताए पोतानी आ कृत्मिा के अन्य क्यांय को नथी, तेथी वा. कमलशेखरे पोतानी आ कृतिमां निरूपेला प्रसंगो, तेनी रजुआतनी पद्धति, पद्यरचना के इतर माहितीओना आधारे आ कृतिना उद्भवस्थाननी विचारणा आपणे करीशुं. “प्रद्युम्नकुमार चुपई" मांना प्रसंगो, तेनो घटनाक्रम, घटनाओना आलेखननी पद्धति, अने तेनी पद्यरचना, छंदोलय, तेना अलंकारो इत्यादिनु अवलोकन करतां स्पष्ट जणाय छे के ते सर्वे अंशोनु, संवत १४११मां, कवि सधारु कृत प्राचीन हिन्दीभाषामां रचायेल “प्रद्युम्नचरित" नामनी कृतिमांना ते ते अंशोने आधारे ज निरूपण करवामां आव्युं छे. एटलुज नहि परंतु वा. कमलशेखरे केटलीय पंक्तिओ तो अक्षरशः सीधे सीधी कवि सधारुनी कृतिमाथी ज उपाडी लीधी छे. अने ते उपरांत काव्यनो घणो मोटो भाग, कवि सधारुनी कृतिमाथी, मात्र प्राचीन हिन्दीमाथी १. कवि सधारु कृत आ आदिकालिक हिन्दी काव्य, “प्रद्युम्नचरित” संपादन पं० चैन
सुखदास न्यायतीर्थ तथा कस्तूरचंद कासलीवाले कयु छे. दि. जैन अ. क्षेत्र श्री महावीरजी, महावीर भवन, सवाई मोनसिंह-हाइ वे, जयपुर, प्रथमावृत्ति सन १९६०. आगळ उपर ज्यां ज्यां आ कृतना उदाहरणो आप्यां छे ते सर्वे उपयुक्त पुस्तकने आधारे ज आपवामां आव्या छे. कडीओनी बाजुमां आपेला संख्यांक पण उपर्युक्त पुस्तकने आध रे ज नांधेलो छे.
Page #25
--------------------------------------------------------------------------
________________
प्रद्युम्नकुमार-चुपई
प्राचीन गुजरातीमां भाषान्तर करीने ज, पोतानी कृतिमां मूकी दीधो छे, जेनी में सोदाहरण चर्चा पाछळ करी छे. आम स्पष्ट रीते जोई शकाय छे के वा. कमलशेखरे पोतानी कृति माटे कवि सधारुनी “प्रद्युम्नचरित" नामनो कृतिनो मात्र आधार लीधो छे एटलुज नहि परंतु प्राचीन हिन्दीभाषामां रचाएली ए कृतिना घणा मोटा मागनुं प्राचीन गुजरातीभाषामा रूपान्तर कयु छे.
आ उपरांत वा. कमलशेखरे बीजा केटलाक एवा प्रसंगोनु आलेखन कर्यु छ के जेनु कवि सधारुए पोतानी कृतिमां निरूपण नथी कयु. ए प्रसंगोनो अभ्यास करतां एम जणाय छे के वा. कमलशेखरे ए प्रसंगोना आधार तरीके हेमचन्द्राचार्य कृत "त्रिषष्टिशलाकापुरुषचरित्र" नो उपयोग को होय. कारण के तेमांना घणा प्रसंगो विशिष्ट रीते मात्र “त्रिषष्टिशलाकापुरुषचरित्र" मां ज आलेखाया छे, एटलुज नहि परंतु वा. कमलशेखरे तेवा केटलाक प्रसंगानु आलेखन "त्रिषष्टिशलाकापुरुषचरित्र'' मांना ते ते प्रसंगना संस्कृत इलोकाने ज सीधेसीधा पोतानी कृतिमा उद्धृत करीने, करेलु छे. आनी पण विगतवार चर्चा पाछळ करेली छे.
आम 'प्रद्युम्नकुमार चुपई' ना उद्भव-स्थान तरीके कवि सधारुकृत प्राचीन हिन्दी कृत 'प्रद्युम्नचरित' अने हेमचन्द्राचार्य कृत 'त्रिषष्टिशलाकापुरुषचरित्र' ने गणावी शकाय. वळी हेम. चन्द्राचार्य अने वा कमलशेखर वच्चे लगभग चारो वर्षना गाळा रहेलो छे. तेथी एम पण बनवं संभवित छे के वा. कमलशेखरे 'त्रिषष्टिशलाकापुरुषचरित्र' नो सीधेसीधे उपयोग न पण को हाय अने बच्चेना गाळा दरम्यान काई श्वेताम्बर जैनमुनिनी, आ 'त्रिषष्टिशलाकापुरुषचरित्र' ना आधारे प्रद्युम्नकुमारनी कथा उपर रचायेली बीजी कोई कृतिमाथी ते ते प्रसंगना उद्धत थयेला संस्कृत श्लोको, पोतानी आ 'प्रद्युम्नकुमार चुपई'नी रचनामां लीधा होय. आम 'प्रद्युम्नकुमार चुपई'ना उद्गमस्थान विशेनी शक्यताओनो प्रास्ताविक विचार कर्या पछी हवे तेनो विगतवार विचार करीए. प्रथम कवि सधारुनी प्राचीन हिन्दी कृति 'प्रद्युम्नचरित'नो 'प्रद्युम्नकुमार चुपई'ना आधारग्रंथ तरीके विचार करीए. कवि सधारु कृत 'प्रद्युम्नचरित'नो 'प्रद्युम्नकुमार चुपई'ना
आधारग्रंथ तरीके विचार घटनाओ अने घटनाक्रम :
कवि सधारुए पोतानी कृतिने छ सर्गमा विभक्त करी छे. वा. कमलशेखरे पण पोतानी कृतिने छ सर्गमां विभक्त करी छे. 'प्रद्यम्नचरित'मां कवि सधारुए जे घटनाओनं आलेखन कर्य छे, ते ज सर्वे घटनाओन आलेखन वा. कमलशेखरे पोतानी कृतिमां करेलु छे. वळी आ सर्व प्रसंगोनो, कवि सधारुए आलेखननी दृष्टिए जे क्रम राख्यो छे, ते ज क्रम लगभग वा. कमलशेखरे पण राख्यो छे. तेमां - स्तुति, द्वारिकावर्णन, रुक्मिणीहरण, रुक्मी-शिशुपाळ साये कृष्णन युद्ध, रुक्मिणी-विवाह, रुक्मिणी-सत्यभामा स्पर्धा, प्रद्युम्न-जन्म-हरण, कालसंवर द्वारा प्रद्यम्नरक्षण अने तेने त्यां प्रदाम्ननुं पोषण, रुक्मिणी-विराप, नारद द्वारा सीमंधरस्वामी पासे जइ प्रद्यम्न विषेना समाचार जाणी रुक्मिगीने तेनी खबर आपवी, प्रद्युम्न अने सिंहरथराजा वच्चे युद्ध, प्रद्युम्न द्वारा विविध दिव्य वस्तु भो अने विद्याओनी प्राप्ति, कनकमालानी प्रद्युम्न परत्वे आसक्ति, प्रद्युम्न अने कालसंवर वरचे युद्ध, प्रद्युम्नतुं द्वारिकागमन, रस्तामा भीलवेषे दर्योधननी उदधिमालान हरण, द्वारिकामा मायावी चमत्कारोथी भानुकुमार, सत्यभामा, बळभद्र,
Page #26
--------------------------------------------------------------------------
________________
भूमिका
१९
वसुदेव इत्यादिने रंजाडवा, रुक्मिणी- प्रद्युम्न - मिलन: प्रद्युम्न द्वारा रुक्मिणीनुं हरण, यादवो अने प्रद्युम्न वच्चे युद्ध, प्रद्युम्न कृष्ण बच्चे युद्ध, प्रद्युम्न कृष्ण मिलन, प्रद्युम्न - लग्नोत्सव, सांचकुमारनो जन्म प्रसंग, सांच सुभानु क्रीडाओ, सुभानुविवाह, रुक्मीपुत्री साथेना विवाहनो प्रसंग, नेमिनाथ कथा, नेमिनाथ द्वारा द्वारिकाना विनाशनुं कथन, प्रद्युम्न द्वारा जैनदीक्षा ग्रहण अने मोक्षप्राप्तिना सर्व प्रसंगोनो क्रम बराबर कवि सधरु कृत "प्रद्युम्नचरित" नी माफक ज राखवामां आव्यो छे. एटलु ज नहि परंतु उपर्युक्त महत्त्वना प्रसंगोनी अंदर बनती इतर नानी नानी विगतो पण सधारुनी कृतिनी जेवो ज आलेखवामां आवो छे. जेम के, श्रीकृष्ण अते रुक्मिणीनो वनमां विवाह थवो, रुक्मिणीना उगाल द्वारा सत्यभामानो उपहास, जे सोळ गुफाओमांथी प्रद्युम्ने दिव्यवस्तुओ ने विद्याओ प्राप्त करी ते गुफाओ, वस्तुओ अने विद्याओनां नामो, रुक्मिणी साना प्रद्युम्नना मिलन वखते रुक्मिणीनी मागणी संशेषवा प्रद्युम्न द्वारा पोतानुं बाळस्वरूप बताव, प्रद्युम्न द्वारा रुक्मिणीना हरण वखते प्रद्युम्न, कृष्ण सहित यादववीगेनी वीस्तानो जे रीते उपहास करे करे छे तेनी विगतो, युद्धप्रस्थ न समये कृष्णने नडतां अपशुकनो, प्रद्युम्नने दीक्षा न लेवा माटे आग्रह करतां माता-पिताने प्रद्युम्ननी समजावट इत्यादि सर्वघटनाओ, तेनी नानी नानी विगतो अने तेनो आलेखनक्रम, वा. कमलशेखरे बराबर कवि सधारु कृत प्रद्युम्न चरितनी माफक ज राख्यो छे.
•
घटनाओ अने वर्णनोनुं आलेखन :
आलेखननी दृष्टिए जोइए तो वा. कमलशेखरे मोठा भागनी घटनाओ अने वर्णनोनुं आलेखन बराबर कवि सधारुनी माफक ज करेलुं छे. जेमां केटलेक ठेकाणे वा. कमलशेखरे, कवि धारुए प्राचीन हिन्दी कृतिमां करेला आलेखननु मात्र प्राचीन गुजराती भाषान्तर ज मूकी दधुं छे. तो वेटलेक ठेकाणे अक्षरशः पंक्तिनी पंक्तिओ उठावीने ज मूकी दीधी छे. प्रथम केटलीक घटनाओनुं आलेखन जोइए.
सत्यभामा द्वारा नारदना अनादरनी घटना कवि सधारु आम आलेखे छे : "नारद हाथ कमंडल धरइ, काल रूप देखत फिरइ ।
सो सतभामा पाछर ठियउ, दर्पण माझ विरूप देखियउ ॥ ३१॥ विपरित रूप रिषि दिठउ जाम, मन विसमादी सुंदरि ताम । देखि कूडिया कीयउ कुतालु, साति करत आयउ वेताल ||३२|| वडी वार रिषि ठाढउ भयउ, दुइ कर जोड न वणिसण कहिउ । उपनो कोपु न सक्यउ सहारि, तर नाना रिषि चल्याउ पयारि ॥३३॥
उपर्युक्त वर्णननुं ज रूपान्तर करी वा कमलशेखर ए ज घटनाने आम वर्णवे छे : "नारद हाथि कमंडल करी, कलाचरित्र कलि देखइ फिरी, सो सतभामा पीठ पेखोयु, दर्पणमांहि रूप देखीयु - २७ विपरीत रूप हरि दीठउ जाम, मनि विलखाणी सुंदरि ताम, देखि कूड कपट कीयु राउ, ए लक्षण छइ यादवराउ- २८ ast वारि रखि ऊभउ रहिउ कर जोडी बइमु नवि कहिउ, तड रीसे चांपी रे नारि, चालिउ सुंदरिनई पयारि २९
Page #27
--------------------------------------------------------------------------
________________
प्रद्युम्नकुमार-चुपई
तो द्वारिकागमन प्रसंगे नारद द्वारा बनावेला विमानने तोडीने प्रद्युम्ने करेला तेमना उपहासनो प्रसंग वा. कमलशेखरे, कवि सधारुनी माफक ज लगभग अक्षरशः भाषान्तर करीने ज वर्णव्यो छे. कवि सधारु कहे छ :
"नारद खण विमाण रचि फरइ, कंद्रप तोडइ हासी करइ । वहुडि विम्वाणु धरह मुनि जोडि, खण मलयद्धउ धारइ तोडि ।२९१। विलखवदन भो नारद जाम, करइ उपाउ मयणु हसि ताम । मणि माणिकमय उदक करंतु, रचि विमाण खण धरइ तुरंतु ।२९२। विद्यावल तह रच्याउ विमाणु, जहि उदोत लोपि ससि भाणु ।
धुजा घंट घाघरि सजूतु, कुणि तिह चढयो नारायणपूत ।२९३। वा. कमलशेखरे उपर्युक्त वर्णननुं आलेखन नीचे मुजब कयु छ :
"नारद एक विमान करि धरइ, कुमर भांजि हासी ते करइ, वली... वि[मान]......जोडि, क्षणइ कुमर ते नांखइ तोडि ३४१ विलखवदन थयु नारद जाम, करइ विमान कुमर हसि ताम, विद्याबलि तिहि करिउ विमाणु, जिहि उद्योतिहि लोपिउ भाणु ३४२
ध्वजा घंट घूघरी संजुत्त, रिखिसिउं चडिउ नारायणपुत्त, . प्रद्युम्न द्वारा रुक्मिणीहरणना प्रसंगे प्रद्युम्न रुक्मिणीनो हाथ झाली, यादवसभामां आवी जे रीते यादवोने रुक्मिणीनी मुक्ति माटे पडकार फेंकी युद्ध माटे ललकारे छे, ते प्रसंगना वर्णनमां कवि सधारुए जे आलेखन कयु छे तेमां अने वा. कमलशेखरना ते प्रसंगना आले. खनमां लगभग कशो ज फेर नथी. कवि सधारुनु वर्णन जुओ:
"कोपारूढ मयण जव भयउ, वाह पकरि माता लीए जाइउ सभा नारायणु वइठउ जहा, रूपिणि सरिस सपतउ तहा ।४६३। देख सभा बोलइ परदवणु, तुम सो वलियो खत्री कवणु हउ रूपणि ले चल्यो दिखाइ, जाहि वलु होइ सु लेहु छुडाई ।४६४। तू नारायण मथुराराउ, तइ कंस भान्यो भरिवाउ ।
जरासंध तई वधौ पचारि, मो पह रूपिणि आइ उवारि ।४६५। ए ज प्रमाणे वा. कमलशेखर उपर्युक्त प्रसंगने आलेखता कहे छ :
"कोपारूढ पजनह थयु, बाह साही माता लेई गयु सभा नारायण बइठउ जिहां, रूपणिसिंउं संपतउ तिहां-४९२ देखि सभा बोलिउ परदवण, तुम्ममाहि बलवंत क्षत्री कवण है रूपणि लेई चालिउ दिखाइ, जिहि बल होइ सो लिउ छोडाई-४९३ तूं नारायण मथुराराय, तई कंस भांजिउ भडवाइ,
जरासिंधु तइ हणिउ पचारि, मुज कन्हइ रूपणि आवी ऊगारि-४९४ आवा तो अनेक उदाहरणो बीजां आपी शकाय एम छे, ज्यां कवि सधारुनी कृति "प्रद्युम्नरिमांथो अनेक घटनाओने वा. कमलशेखरे सहेजसाज शाब्दिक फेरफार साथे प्राचीन गुज. रातीमां भाषान्तर करी पोतानी कृतिमा आलेखेली छे.
Page #28
--------------------------------------------------------------------------
________________
भूमिका
२१
घटनाओना समान आलेखन पछी जो वर्णनोने तपासीशु तो ते पण, वा. कमलशेखरे कवि सधारुनां ज वर्णनोनुं रूपान्तर करी पोतानी कृतिमां आलेखेलां छे. कवि सघ रुए करेलु कृष्णनी सभानुं वर्णन जुओ :
सभा पूरि वइठउ हरि राउ, चउवल सइन न सूझइ ठाउ । अगर सुगंध वास परिमलइ कनक दंड सिंर चामरि ढलइ |२३| पंचसबदु तहि वाजई घणे, वहुत भाति पावन पेखणे । भरिहि भाइ नाचणि पउ घरइ, तालविनोद कला अनुसरइ | २४|
आ ज वर्णन वा. कमलशेखरे आम कर्यु छे :
परिगह पूरी बइठउ राउ, दल सामंतन सुहइ ठाउ अगर सुगंध वास परिमलइ सोवन दंडइ चामर - १८ वाज पंचशब्द बार्जति पणी भाति पाउला पेखति भरह भावि नाच पग घर, ताल विनोद करो मन हरइ - १९ उपर्युक्त बन्ने वर्णनो वांचतां तरत ज जणाइ आवशे के मात्र वे चार ठेकाणे शाब्दिक फेरफार करी वा. कमलशेखरे, ववि सधारुए करेल ज वर्णन सीधु पोतानी कृतिमां उतारी लघु छे. यादवसेना अने प्रद्युम्न वच्चेना युद्धनु वर्णन जुओ कवि सुधार कदे छे :
"दाउ दल सयउ मह भए, सुहृदनु सानि धनुष कर लए । इनउ साजि लए करवाल, जाणिक जीभ पसारी काल १४८९ | मयगल सिउ मैगल रण भिरा, हैवर स्यो हैवर आ मिरद |
रावत पाईक मिरे पचारि, पडइ उठ जिनवर की सारि ॥ ४९० |
केउ हाकइ के तरह फेड मार मार प्रभगई ।
केट भीरहि स्मरि रण आजि, केड कायर निकलह भाजि ४९१
आज वर्णननु वा कमलशेखर लगभग प्राचीन गुजरातीमां भाषान्तर करीने पोतानी कृतिमां आ प्रमाणे आलेखन कयुं छे :
"बेहुं दल साम्हां मेलीइ, सुभट साजि धनुष करि लीइ,
कोइ वारू लिई करवाल, जाणे जीभ पसारी काल ५१९ मयगलसिउं मयगल रणि भिडइ, रहवर स्यू रहवर आयडइ, राउत पायक बढइ पचारि, पड्या ते ऊठी कइ पुकारि ५२० को हाकई कोई हाइ, कोई मारि मारि तिहां भाणइ, कोई भिडइ समरंगणि गाजि, कोई कायर नासइ भाजि - ५२१ द्वारिकानगरीन वर्णन कवि सचारु आम आपे छे
भाइ नारद निसुणि परदवण,
यह तु चह द्वारिकापुरी, वसई मास सायरहं णिच्च । जंमिभूमिव अधि तुब, सुन्ध फटिक मणि जणित उज्जवल || कुवा वाडिउ च वणवर बहु धवलहर आवास । पहु पयाल जिणवर भुषण, पडलि कोट चोपास ॥३१४
Page #29
--------------------------------------------------------------------------
________________
२२
प्रद्युम्नकुमार-चुप
वा. कमलशेखर ए ज वर्णन प्राचीन गुजराती भाषामां आवे छे :
भइ नारद नारद निसुणि परदवण,
ए कहीह द्वारिकापुरी, वसई पासमांहि मायर,
जनक तुम्ह हूयु इहां, निरमल फटिक मणि जडिउ सरोवर कूया वावि वलि वन पवर, घणा धवलहरे आवास, बहु पयार जिणवरभवण, पोलि गढ चिहुपासि ॥ ३६२
आम आवा वर्णनोना पण थोकबंध उदाहरणों आपी शकाय, ज्यां वा. कमलशेखरे कवि सुधारुनां ज वर्णनोने सीधेसीधा पोतानी कृतिमां भाषान्तर करी उतारी लीधां छे. आ उपरांत अनेक संवादो, धर्मोपदेश, के इतर तत्त्वोना उदाहरणो आपी शकाय, ज्यां वा. कमलशेखरे, कवि सधारुमांथी ज सीधे सीधा वाक्यखंडोने लईने पोतानी भाषामां निरूपी लीधां छे. नीचे, कवि सधारुनी कृति "प्रद्युम्नचरित" मांथी अने वा कमलशेखर कृत “प्रद्युम्नकुमार चुपई” मांथी, केटलीक पंक्तिओ सरखामणी करवा माटे रजू करी छे, ज्यां वा. कमलशेखरे ते ते पंक्तिओने कां तो सीधेसीधी अक्षरशः ज पोतानी कृतिमां टांकी दीधी छे, कां तो ते पंक्तिनुं प्राचीन गुजरातीमां भाषान्तर करीने ए ज रीते मूकी दीघी छे.
प्रद्युम्नचरित
सायर माहि द्वारिकापुरी,
धणय जक्ष जो रचि करि घरी १६
नारदु आवत जवु देखियउ, नमस्कार सुरसुंदरि कीयउ ४३ नंदणवण की करहु सहेट, तिहिठा आणि कराउ भेट ४९ सतिभामा हरि दीठउ नयणा, कवण दोस स्वामी परहरी ९६ कणयमाल तर विसमउ धरइ, सिर कूटइ कुकुवारउ करइ । उर थणहर मह फारह सोइ केस छोडी विहलंघन होइ २५० जाइ जुही पाडल कचनारु ववलसिरि वेलु तिहि सारु । कुंजउ महकइ अरु कणवीरु, राचंप केवरउ गहीरु - ३४५ छपन कोटि मुखमंडल सार यह कहिए वलिभद्र कुवारु ।
प्रद्युम्नकुमार चुप
सायरमझि द्वारिकापुर, रचीय धणवइ दीध-९
नारद आवत जव देखीयु, नमस्कार तव सुंदरि कीयु - ३८ नंदनवनमाहि करू सहेट, तिहां आणी करावु भेट - ४४ सतिभामा हरि दीठs नयणि, कवण दोसि स्वामी परहरी - ८७ कनकमाल ते विसमुं घरइ, कूटइ सिरनइ कूकू करइ, उर-थणहर मुह फाडइ तेह, केस छोडि मोकला मेल्हेय. ३०७ जाइ जूही पाडल अपार, विउलसिरीनइ बेलि विचार- ३८८ कूजउ मरुउ नइ कणबीर, रायचांपु केवडउ गंभीर छपन कोड मुखमंडणसार, ए कहीइ बलिभद्रकुमार- ४७९
Page #30
--------------------------------------------------------------------------
________________
सिंघजूझ यो जाणइ घणउ, यह पीतियउ आहि तुमि तगड -४४८
तुहि नारायण हलहर भए, छल करि फूणि कुंडलपुर गये । तबहि बात जाणी तुम्होतणी, चोरी हरी आणी रुक्मिणी ४७२
गोम्व गहे तक करहि पुकार, डोम होम हुइ रहे अपार | हाथ अलावणि सिंगा लए, हाट चोहटे सब परिरहे । ६४४ मात तणउ वयण निमुणे,
तव प्रतिउतरु कंद्रपु देइ ।
लावणरूप सरीरह सारु
जम रूठे सो होइ हैं छारू ६८४
भूमिका
सिधलु जूझ अ जाणइ घणउ, ए छड़ पीतरी तुम्ह तगड, तुम्हि नारायण हलधर हूया, छल करि कुंडनपुरि गया, सयल वात जाणी तुम्हतणी, चोरी हरी आणी रुखमिणी - ५०१
ग्रीस ग्रही तब करइ पुकार,
ब ब अम्हे ह्या अपार, हाथ आलवणि सींगा लीयां, हाथ चटा सवि भरि गय - ६८२ मायतणा वयण निसुणेय,
कुमर प्रदिमन ऊतर देय -- ७४४ लावन्य रूप शरीरह सार, जिम रूठइ तु हूइ सहू छार,
आम तो अहीं ढगलाबंध उदाहरणो आपी शकाय एम छे. पण ए रीते घणो ज विस्तार यह जाय, तेथी नीचे में शब्द अने अर्थनी दृष्टिए सरखी लागती कडीओना मात्र संख्पांको जनोभ्या छे. प्रथम संख्यांक कवि सधारुनी कृतिनो समजवो अने तेनी साथेनो बीजो संख्यांक वा. कमलशेखरनी कृतिनो समजवो.
२३
१६-९ : २०–१५ २२-१७, २३ थी २४-१८ थी १९:२६ थी २९-२१ थी २४ २१ थी ३३-२७ यी २९, ३५ थी ५०- ३० थी ४५ ५१-४० ५५ थी ५६-४९ थी ५०, ५९-५६ ६१-५७ ६९ थी ७१- ६३ थी ६५ ७६ थी
७८ ७० थी ७२ ८४ थी ८८-७६ थी ८०
;
१२९-१३७
;
;
;
८९ थी ९१-८९ थी ८३, ९२ अने ९३-८४ ९४ थी ९९-८५ थी ९०: १०१-९५ १०६ थी १११-१०१ थी १०५, ११२ ११९, ११३-१२०, १२०-१२६ १३१ - १३८ ; १३२ - १३९ : १३६-१४१ अने १४२ ११८ अने १३९-१४४ अने १४५ ; १४२ - १४९ १४८-१६१; १५० अने १५१-१६३ अने १६४ १५३-१६६ : १५४-१६६, १६७ १६२-२२२ ; १६४-२२४; १८२-२४१ १८५ अने १८६-२४४ थी २४६ १८८-२४८ १८९-२५० ; १९०-२५१ थी २५२ : १९१-२५३ ; १९२-२५४; १९३ - २५४; १९३-२५४ अने २५५; १९४-२५५; १९८-२५८; १९९-२६०; २०१२६१; २०४-२६६ ; २०८-२६७; २०९२६८ : २१०–२६९ २११-२७० २१५ २२१-२७२ थी २७९ २३५-२८९ श्री २९१ २१८-२९२ २४१ - २९६ २४४-२९९ थी थी २४७ - ३०१ थी ३०३ २४९ अने २५०-३.६ अने ३०७, ; २५६- ३११ ; २५०-३१२ । २५८-३१२ २६४-३१८ २६५ थी २७५ - ३२० थी ३३०;
;
;
२५५-३१० २६२-३१७
;
;
२३३ थी ३००; २४५ २५२-३०८: २५९ - ३१३ ; २७७ अने
Page #31
--------------------------------------------------------------------------
________________
प्रद्युम्न कुमार- चुपई
२९०-३४०, ३०३-३५२
;
;
;
;
;
२७८-३३१ अने ३३२ २८२-३३३ अने ३३४, २८४- ३३६ २९१ श्री २९४-२४१ थी ३४३ २९६ थी ३०२-२४५ थी ३५१ ३०६ थो ३११-३५५ थी ३५८ ३१२-३६०३१३-३६१ ३१४-३६२ ; ३१६ ; - ३६४, २१७३६५, ११८-३६६, ३१९-३६६ अने ३६७, ३२०-३६७ अने ३३८ ३२१-३६९ ३२२-३७० ३२३ थी ३२७.३७१ थी ३७५ ३३२३७७ अने ३७८ ३३३-३७८ अने ३७९, ३३४-३७९-२८० ; ३३५ थी ३३७३८० थी ३८२ ; ३३८ अने ३३९-३८३ अने ३८४ ३४२ अने ३४३-३८६ अने ३८७ ; ३४५-३८८ अने ३८९, ३४९ - ३९१ ; ३५१-३९२, ३५२-३९३ ; ३५३-३९४ : ३५४-३९५ ; १५५ थी ३५९ - ३९५ थी ३९९, ३६० थी ३६६४०० थी ४०७ ; ३७२-४१० ; ३५२ अने ३७३ -४११ ; ३७४ थी ३७९-४११ थी ४१६ ३८१-४१९ ३८२-४१८, ३८४-४१९, ३८६-४२० २८७-४२१ ; ३८७-४२२ : ३८८ अने ३८९-४२२ थी ४२४ ३९० - ४२४, ३९१–४२६, ३९३ अने १९४-४४६ भने ४४७ ३९५-४२८ ३९६-४२९ ३९८-४३० १ ; ; ३९९-४३० अने ४३१ ४०० थी ४२७-४३१ थी ४५९ ४२९– ४६१; ४३० थी ४३२-४६२ थी ४६४, ४३३थी ४३७-४६५ थी ४६९, ४३८ थी ४४६-४७० थी ४७८ ; ४४७-४७९ : ४४८-४८० ४४८ थी ४५२-४८० : थी ४८३; ४५३ थी ४५७-४८४ थी ४८७ ; ४५८ थी ४६०-४८८ थी ४९० ; ४८१-४९१; ४६३ थी ४७३- ४९२ थी ५०२, ४७४ थी ४८३-५०३ थीं ५१३ ४८४ थी ४८८५१४ थी ५१८ ४८९ थी ४९५-५१९ थी ५२५ ४९७ थी ५३५-५२६ थी ५६६, ५३८ श्री ५४२-५६७ थी ५७० ५४१ थी ५५२- ५७१ थी ५८० ५५४ थी ५५६-५८१ थी ५८३ : ५५८ थी ५५९-५८४ ; ५६०-५८५ अने ५८६; ५६४५८७, ५६७-५८८ ५६८ थी ५७४-५८९ थी ५९६ ५७५- ६१०; ५७६६११, ५७८- ६१३ ५८० थी ५८२-६१६ थी ६१८ : ५८५ थी ५८६-६२४ अने ६२५ ५८७ थी ५८९-६२६ थी ६२८, ५९० थी ५९२-६२९ पी ६३१ ५९५-६३३ अने ६३४, ६०३-६४१, ६-४-६४२, ६०५- ६४३ ६०६-६४४; ; ६०७-६४५; ६०८-६४६ ६०९-६४७ ६१२-६५२ ६१५- ६५५ ६१६६५६; ६१७-६५७, ६१८-६५८ ६१९ अने ६२०-६५९ अने ६६०, ६२१ थी ६२४-६६१ थी ६६३ ६२५ थी ६२८-६६४ यो ६६७ ६३४-६७२, ६३५६७३ ६३६ यी ६५५-६७४ थी ६९२ ६६२-७०९ ६६३-७१० ६६४७११० ६६६ - ७१६६६७ अने ६६८-७१७ अने ७१८, ६७०-७२०; ६७४-७२२ ६७६ थी ६८०-७३४ थी ७३७ ६८०-७३९, ६८१-७४०, ६८४-७४२ अने ७४३ ६८६ - ७४४ ६८८-७४५
;
;
;
;
;
;
;
;
;
२४
;
आम उपर आपेली माहिती अनुसार जोई शकाय छे के काव्यनो मोटो भाग कवि सधादनी कृति "प्रद्युम्नचरित' "मांथी बेठेवेठो ज वा. कमलशेखरे, मात्र मूळ प्राचीन हिन्दीमांची प्राचीन गुजरातीमा भाषान्तर करीने, पोतानी कृतिमां उतारी लीधो छे.
Page #32
--------------------------------------------------------------------------
________________
भूमिका अलंकार अने छद
वा. कमलशेखरे पोतानी कृतिमा आलेखेला अलंकारो अने छंदोर्नु अवलोकन करतां जणाशे के ते पण कवि सधारुनी कृति "प्रद्युम्न-चरित"नी माफक ज आलेखाया छे. ज्यां अने जेम
ए पोतानी कृतिमां उपमा, उत्प्रेक्षा, संदेह, दृष्टांत, व्याजस्तुति इत्यादि अलंकारोनुं आलेखन कयु छे, त्यां अने ते ज रीते वा. कमलशेखरे पण करेलुं छे.
नारदे पट उपर आलेखेला रुक्मिणीना रूपने कृष्ण जुए छे अने तेने संदेह अलंकारथी कवि सधार आम निरूपे छे, :
की यह आछर की वणदेइ, के मोहणी तिलोत्तम कोई
की विजाहरि रूप सुतारि, काके रूप लिखो यह नारि ५५ ए ज प्रसंगे अने ए ज रीते वा. कमलशेखर पण ए ज अलंकार निरूपे छे:
का अपछर ए देवहतणी, कइ मोहणि तिलोत्तमवणी
कइ विद्याधरतणी कुमारि, कुणइ रूप लिखिउ संसारि ४९ प्रद्युम्ने मायामय वानरो वडे सत्यभामानी वाडी वेरणछेरण करी दीधी तेने सधार आलंकारिक रीते निरूपतां कहे छे:
लंका जइसी की हणवंत, तिम वारी की पालखयंत ३५३ "प्रद्युम्नकुमार-चुपई"मां पण ए ज दृष्टांत छ :
___ लंका जिम कीधी हनुमति तिम वाडी कीधी बलवंति ३९३ कृष्णनी तलवारनु उपमा अने उत्प्रेक्षामय आ वर्णन कवि सधारुनु छः
वीजु सरिसु चमकइ करवालु, जाणौ सु जीभ पसारै काल ५३९ तो तेनुं ते ज वर्णन वा. कमलशेखरे पोतानी कृतिमां कयु छ :
वीज सरिखु झलकइ करवाल, जाणे जीभ पसारी काल-५३८ आगळ कहेला अलंकारना पण आवा बीजां अनेक उदाहरणो आपी शकाय एम छे, के जे वा. कमलशेखरे सीधेसीधा ज कषि सधारुनी कृतिमांथी लई पोतानी काव्यकृतिने पहेरावी दीधा छे.
छंदोमां पण कवि सधारुए, जेम तेनी कृतिमां महद् अंशे चोपाई, दोहा अने वस्तुछंदनो उपयोग कर्यो छे, तेम वा. कमलशेखरे पण बहुधा चोपाई, दोहा अने वस्तुछदनो उपयोग कर्यो छे. कवि सधारुनी जेम वा. कमलशेखरनी कृतिनो मोटो भाग पण चोपाईबद्ध छे. जे छंद कवि सधारुए जे प्रकारना वर्णन माटे वापर्यो छे, महअशे वा. कमलशेखरे पण पोतानी कृतिमां ते प्रसंगना वर्णन माटे ते ज छदनो उपयोग कर्यो छे. उदाहरण तरीके रुक्मिणीनु हरण करी मता कृष्णने शिशुपाल द्वारा पडकार फेकवो ७६; छठी रात्रिए प्रद्युम्नना हरणनो प्रसंग १२७, पुण्यप्रभावन वर्णन २३१; कनकमाला पासे, युद्धमाथी पाछा आवी कालसंवर द्वारा विद्या मागता, कनकमालाए करेली बनावटथी दु:खित कालसंवरनुं वर्णन २६५, नारद द्वारा द्वारिकानगरीनु वर्णन ३१४; प्रद्युम्न अने रुक्मिणीनु मिलन ४२९, रुक्मिणी द्वारा यादवोना बळन वर्णन सांभळी क्रोधित थयेला प्रद्युम्ननु वर्णन ४६१, प्रद्युम्नना युद्ध-ललकारथी रोषे भरायेला कृष्णनु वर्णन ४७४; रणक्षेत्रमा पडेली यादवसेनानु वर्णन ५०२ के प्रद्युम्न द्वारा पोतानो परिचय अपाता गुस्से थयेला रुक्मीनु वर्णन ६४३-ए प्रसंगोमां कवि सधारुए वस्तछंदनो
Page #33
--------------------------------------------------------------------------
________________
प्रद्युम्नकुमार-चुपई उपयोग कर्श छे, तो ते ज प्रमाणे बराबर उपर्युक्त प्रसंगो वखते अनुक्रमे ७०, १३३ , २८८, ३२०, ३६२, ४६१, ४९१, ५०३ , ५३१ , ६८१ ए कडीओमां वा. कमलशेखरे पण वस्तु/दनो ज उपयोग कर्यो छे. - आम 'प्रद्युम्नकुपार-चुपई'मांनी घटनाओ, तेनो क्रम, तेना आलेखननी पद्धति तथा पद्यरचना, छंदोलय इत्यादि सर्व अंशोनुं आलेखन वा. कमलशेखरे कवि सधारु-कृत 'प्रद्युम्नचरित' माथी ज सीधेसीधु पोतानी कृतिमां करेलु छे. आधी आगळ कर्वा छे तेम 'प्रद्युम्नचरित' ए 'प्रद्युम्नकुमार-चुपई' नुं मात्र उद्गमस्थान ज नथी, परंतु एम कही शकाय के 'प्रद्युम्नकुमार-चुपई' ए मूळ हिन्दीभाषामां रचायेली कवि सधारुनी कृति 'प्रद्युम्नचरित'नु वा. कमलशेखरे प्राचीन गुजरातीभाषामां करेलु रूपान्तर ज छे. बन्ने कृतिओ वच्चे जणाता फेरफारो:
उपर जोयु तेम, कवि .धारु अने वा. कमलशेखरे पोतानी कृतिमां निरूपेली घणी घटनाओ एक सरखी रीते ज निरूपाइ छे. तो बीजा एवा केटलाक प्रसंगो छे, जेनुं आलेखन वा. कमलशेखरे कवि सधारु करतां सहेज जुदी रीते का छे. ए उपरांत बीजा पण एवा केटलाक कथाप्रसंगो छे. जेनं आलेखन वा. कमलशेखरे कवि सधार करतां पोतानी कृतिमा विशेष करेलु के. जो के आवा फेरफारो अने कथाप्रसंगोनी संख्या घणी नथी, छतां एना उपरथी एवं अनुमान थई शके एम छे के वा. कमलशेखरे 'प्रद्युम्नकुमार चुपई'नी रचना माटे तेना उदभवस्थान तरीके कवि सधारुनी कृति 'प्रद्युम्नचरित' उपरांत बीजी कोई कृतिनो पण आधार लीधेलो छे. प्रथम आपणे वा, कमलशेखरे पोतानी कृतिमां कवि सधारु करतां जुटी रीते आलेखेला प्रसंगोमांना महत्त्वना फेरफारो तथा विशेष आलेखेला प्रसंगोने जोई लईए.
१. कवि सधारु कृत 'प्रद्युम्नचरित' मां रुक्मिणीना रूपने जोई विह्वळ थयेला कृष्ण, नारदना कहेवाथी तरत ज कुंडिनपुर जाय छे, अने त्यां रुक्मिणीनुं हरण करे छे. "प्रद्युम्नकुमार -चुपई"मां रुक्मिणीना रूपने जोइ विह्वळ श्रयेला कृष्ण प्रथम दूत द्वारा भीष्मक राजा पासे रुक्मिणीना हाथनी मागणी करे छे. ते बख। रुक्मी कृष्णनो उपहास करी तेनी मागणी नकारे छे. आ वात सांभळी रुक्मिणी पोतानी धात्रीने, गमे ते गने कृष्णने मेळवी आपवानुं कहे छे. तेथी ते धात्री एक दतने गुप्त रीते बोलावी कृष्णने रुक्मिणीनु हरण करी जवानो संदेशो पाठवे छे. ए. संदेशो वांची पछी कृष्ण, बळराम -सहित कुडिनपुर जई रुक्मिणीनुं हरण करे छे. आम. कृष्णनी भीष्मक पासे रुक्मिणीनी मांगणी, रुक्मीए तेनो करेलो अनादर अने उपहास अने रुक्मिणीनी इच्छाथी धात्री द्वारा एक दूत मारफत गुप्त रीते कृष्णने रुक्मिणी-हरणनो संदेशो पाठववो ए प्रसंगो कवि सधार करतां वा. कमलशेखरे पोतानी कृतिमा विशेष आलेख्या छ. .
२. कवि सधारु “प्रद्युम्नचरित"मां सत्यभामाने रुक्मिणीनो मिलाप एक देवी तरीके बगीचामां करावे छे, ज्यारे वा. कमलशेखर “प्रद्युम्नकुमार-चुपई''मां लक्ष्मीदेवी तरीके लक्ष्मीना मंदिरमां कगवे छे.
. ३. कृष्ण द्वारा जांबुवतीना पाणिग्रहणनो प्रसंग मात्र “प्रद्युम्नकुमार-चुपई"मां ज आलेख येलो छे. ... ४. रुक्मिणी अने सत्यभामाने पुत्रजन्म थाय छे, ते पहेलां रुक्मिणीने थयेलु शुभ स्वप्नदर्शन, कृष्ण द्वारा तेना फळरूपे पोताना सरखा पराक्रमी पुत्रना जन्मनी आगाही, ते सांभळी
Page #34
--------------------------------------------------------------------------
________________
भूमिका
कल्पित स्वप्नदर्शननु कथन - ए प्रसंगो मात्र "प्रद्युम्न कुमार - चुई" मां ज
२७
सत्यभामा द्वारा आलेखाया छे.
५. प्रद्युम्न द्वारा सिद्धपुरुषनु रूप लई सत्यभामाने स्वरूपवान बनावत्राना बहाने तेनुं कपटथी शिर मूंडी तथा मोढे मसी लगाडी विरूप करवानो प्रसंग मात्र “ प्रद्युम्नकुमार-चुपई" मां आलेखायेलो छे.
६. सांचकुमारना जन्मप्रसंगमां “प्रद्युम्नकुमार - चुपई " मां कृष्ण पासे रुक्मिणीना जेवा पुत्रनी मांगणी करे छे तेथी कृष्ण त्यां हरेणेो देव आपीने कृष्णने तेनी इच्छा पूछे छे, पुत्री मांगगी करे छे. देव कहे छे के " ते मारो पूर्वजन्मनो छुआ रत्नजडे हार तने आएं छु ते जे राणी परशे, तेने "प्रद्युम्नचरित" मां सत्यभामानी प्रद्युम्न जेवा पुत्रनी मांगणीनो प्रसंग के तदर्थे कृष्णनुं तप करवु - ए प्रसंगों नथी आलेखाया. त्यां तो देव पोते ज सीधो कृष्णनी सभामां जई हार आपे छे. वळी "प्रद्युम्नच रेत" प्रमाणे देवे कृष्णने आवो दिव्य हार आप्यो ते वातनी प्रद्युम्नने एम ने एम ज खबर पडी जाय छे. “प्रद्युम्न कुमार - चुपई" प्रमाणे कृष्ण पोते ज प्रद्युम्नने ए वातश्री विदित करे छे.
एम आलेखन छे के सत्यभामा, उपवास करो देवनुं ध्यान धरे छे, वारे कृष्ण, प्रद्युम्न जेवा बीजा होदर हनो हवे हुं देव त्यां प्रद्युम्न जेवो पुत्र थशे "
.
७. "प्रद्युम्नचरित" प्रमाणे कृष्ण सत्यभामारूप बनेली जांबवतीने हार पहेरावे छे के तरत ज जांबवती पोतानु असल स्वरूप प्रकट करे छे, त्यारे कृष्णने मूळ वातनी खबर पडे छे. "प्रद्युम्न कुमार चुपई" प्रमाणे सत्यभामा बनेली जांबवतीने कृष्ण हार पहेरावे छे के तरत ज ते चाली जाय छे अने थोडीवारमां खरी सत्यभामा कृष्ण पासे आवे छे त्यारे कृष्ण कहे छे, "वळी पाछी शा माटे आवी ?" त्यारे सत्यभामा कहे छे, 'एवी वात वळी शुं करो छो ?' त्यां तरत ज कृष्ण विचार करे छे अने तेमने मूळ वातनी खबर पडे छे.
८. परणवा आवेला नेमिनाथ, तेमना विवाहोत्सवमां मिजबानी अर्थे बांधी गखेला प्राणीओनो पोकार सांभळी, परण्या वगर ज पाछा चाल्या जाय छे अने पछी दीक्षा ले छे ए प्रसंग मात्र " प्रद्युम्न कुमार - चुपई "मां ज आलेखायो छे
९. यादवकुमारो द्वारा द्वैपायनऋषिने मार मारवो अने द्वैपायनऋषि द्वारा तेमने शाप आपवानो प्रसंग पण मात्र 'प्रद्युम्नकार - चुप' मां ज आलेखवामां आव्यो छे. 'त्रिषष्टिशलाका पुरुषचरित्र' अने 'प्रद्युम्न कुमार - चुपई'
आम कवि सधारुनी कृति 'प्रद्युम्नचरित' नी सरखामणीमां वा. कमलशेखरे पोतानो कृतिमां करेला उपर्युक्त महत्त्वना फेरफारो अने विशेष आलेखेला प्रसंगोने जोतां एम जणाय छे के वा. कमलशेखरे करेला ए फेरफारो अने आलेखेला विशेषप्रसंगोने हेमचन्द्राचार्य - कृत 'त्रिष्टि शलाका पुरुषचरित्र' नो आधार हरो, कारण के वा कमलशेखरे जे रीते पोतानी कृतिमां उपर्युक्त फेरफारो करेला छे, तथा विशेष प्रसंगोनुं आलेखन करेलु छे, लगभग ते ज प्रमाणे 'त्रिषष्टिशलाका ० ' मां तेनुं निरूपण आपणने मळे छे. आनी चर्चा पाछळ करी छे. एटलु ज नहि परंतु उपर्युक्त कहेला प्रसंगोमांथी केटलाक प्रसंग - विशेषोनुं तो वा. कमलशेखरे 'त्रिषष्टिशलाका पुरुषचरित्र' मांथी ते ते प्रसंगना संस्कृत श्लोकोने ज सीधे सीधा पोतानी कृतिमां मूकी दईने आलेखन करेलुं छे.
Page #35
--------------------------------------------------------------------------
________________
२८
प्रद्युम्नकुमार-चुपई __ 'त्रिषष्टिशलाकापुरुषचरित्र'मां नारदे पट उपर आलेखेला रूपने जोता कृष्ण कामविह्वल थइ, दत द्वारा भीष्मक पासे रुक्मिणोना हाथनी मांगणी करे छे. ते वखते रुक्मी जे वचनो उच्चारे छे ते आम छे :
हसित्वोवाच रुक्म्येवं गोपो हीनकुलोऽप्यहो। मज्जामि याचते मूढः कोऽयं तस्य मनोरथः॥
[त्रि.श.पु.च.-पर्व ८मु-सर्ग ६ठो- लोक २०] 'प्रद्युम्नकुमार-चुपई' मां पण लगभग आबुज आलेखन छे:
"एह वात जव कांने सुणी महितइ जई मागी रुखमिणी दृतवचनि ते हसिउ कुमार गोपी हीनकुलइ अवतार ५१ अन्याई ए भूडु घणउं
कंस वधी इहां आविउ सुणउं मूढ मनोरथ मोटउ करइ, ऊत्तम राय कुमरि किम वरइ ५२ अने त्यारपछी, पर्व ८. सर्ग ६ना लोक २१ अने २२'के जेमां रुक्मी शिशुपालने ज मॅक्मिणी आपवानो निर्धार करे छे, ते बन्ने संस्कृत श्लोको वा. कमलशेखरे पोतानी कृतिमा सीधेसीधा उतारी लीधा छे. वळी पोतानो विवाह शिशुपाल साथे थवानो छे, त्यारे रुक्मिणी, गमे तेम करीने कृष्णने मेळवी आपवानु पोतानी फोईने कहे छे त्यारे, 'त्रिषष्टिशलाकापुरुषचरित्र' मां एम आलेखन छे के
कृष्णेऽभिलाष रुक्मिण्या ज्ञात्वैवं सा पितृष्वसा ।
सद्यः प्रच्छन्न-दूतेन कृष्णायैवमजिज्ञपत् ॥२॥ वा. कमलशेखरे पण तेवा ज प्रकारनु आलेखन करतां को छे के
कृष्ण-अभिलाष माइ जाणोयु, एक दूत प्रछन आणीयु
कहि तु जइनइ यादवराय, चीरी आपी लागी पाय । ५४ स्यारबाद, 'त्रिषष्टिशलाकापुरुषचरित्र' माथी पर्व ८, सर्ग ६, लोक २९थी ३२-ए चार प्रलोको के जेमां, रुक्मिणीनी फोईए कृष्णने, माघमासनी शुक्ल अष्टमीए नगरबहारनी वाडीमाथी रुक्मिणीनु हरण करी जवानो पाठवेलो संदेशो; रुक्मिणीने परणवा माटे शिशुपालन डिनपुरमां आगमन अने तेने आवेलो जाणी कलहप्रिय नारद द्वारा कृष्णने खबर आपवा-तेनुं निरू.
छे. ते बा. कमलशेखरे पोतानी कृतिमा अक्षरशः उतारी लीधुं छे. आम कृष्णनी भीष्मक पासे रुक्मिणीनी मांगणी, रुक्मीए करेलो तेनो अनादर अने उपहास अने रुक्मिणीनी इच्छा. थी फोई द्वारा एक दूत मारफत गुप्त रीते कृष्णने रुक्मिणीना हरणनो संदेशो पाठववो-ए प्रसंगो कवि सधारु करतां वा. कमलशेखरे जे पोतानी कृतिमा विशेष आलेख्या छे. ते सर्व, उपर्युक्त रीते जोता, 'त्रिषष्टिशलाकापुरुष' ना आधारे आलेखाया छे एम निःशंकपणे कही शकाय.
आ उपरांत, शिशुपाल अने रुक्मी मोटी सेना लई राम-कृष्णनी पाछळ पडे छे त्यारे बन्ने भाईओने एकला जोइ भयभीत थयेली रुक्मिणीने कृष्ण, तालवृक्षनी श्रेणिने एक ज बाणथी छेदी नाखी तथा अंगुठा अने आंगळीनी वच्चे राखीने पोतानी मुद्रिक्रानो हीरो मसूरना
१ त्रिषष्टि-ना अहीं सर्वस्थाने आपेला पर्व, सर्ग अने लोकना संख्यांक, श्रीजैनधर्म प्रसारक सभा, भावनगर तरफथी प्रकाशित थयेल आवृत्तिने आधारे आपेला छे.
२ त्रिषष्टि० पर्व ८, सर्ग ६, लोक २८.
Page #36
--------------------------------------------------------------------------
________________
भूमिका
२९ दाणानी जेम चूर्ण करी, पोताना बळनी प्रतीति करावी, आनंदित करे छे. ते प्रसंगनं पण वा. कमलशेखरे, "त्रिषष्टिशलाका०" पर्व ८,सर्ग ६हाना लोक ४२ थी४७ ए छ लोकोने सीधे सीधा ज पोतानी कृतिमां मूकी दईने आलेखन करेलु छे.
वळी, ज्यारे रुक्मिणीनु पाणिग्रहण करी कृष्ण द्वारिकामां आवे छे त्यारे रुक्मिणी कृष्णने "मने तो एकली केदीनी जेम लई आव्या छो, तो हुं मारी सपत्नीओनी आगळ हास्यपात्र न थाउं एम करो" -एम कहे छे, त्यारे कृष्ण "तने ह सर्वथी अधिक कराश" एम कही सत्यभामानी पडखेना एक महेलमा रुक्मिणीने उतारे छे. ए प्रसंगर्नु पण वा. कमलशेखरे, “त्रिषष्टिशलाका. पुरुषचरित्र" पर्व ८, सर्ग ६ट्राना लोक ६१थी६३-ए त्रण लोकोने सीधेसीधा ज पोतानी कृतिमां मूकी दईने आलेखन करेलु छे.
कृष्ण द्वारा जांबुवती-पाणिग्रहण प्रसंगमां, एक वखत नारदमुं आगमन, कृष्ण द्वारा तेमने कोई आश्चर्यकारक स्थान जोवामां आव्यु होय तो तेना विषे पूछवु, तेना संदर्भमां नारद द्वारा वैतादयगिरी उपर जांबवाननी अनुपम स्वरूपवान पुत्री जांबवतीनी वात करवी -ते प्रसंगनुं निरूपण पण वा. कमलशेखरे, “त्रिषष्टिशलाकापुरुषचरित्र" पर्व ८, सर्ग ६हाना लोक ७७थी७९-ए त्रण प्रलोकोने सीधेसीधा ज पोतानी कृतिमा मूकी दईने करेलुं छे. त्यार पछी गंगाकिनारे क्रीडाथै आवेली जांबवतीनुं कृष्ण द्वारा हरण, जांबवान अने कृष्ण वच्चे युद्ध, जांबवानने पराजित करी जांबवती अने तेना भाई विश्वकसेन साथे कृष्णन द्वारिकामां आवQ अने जांबवतीने रुक्मिणीना महेलनी बाजुना महेलमा उतारवी-५ प्रसंगर्नु आलेखन पण लगभग 'त्रिषष्टिशलाका०' पर्व८, सर्ग६, श्लोक ८० थी . ६मां आलेखायेला ते ज प्रसंगोने आधारे करेलुं छे. केटलीक पंक्तिओ तो जाणे संस्कृतमांथी महअंशे वा. कमलशेखरे प्राचीन गुजरातीमां न रूपान्तर करीने मूकी होय एवी लागे छे. जेम के 'त्रिषष्टिशलाकापुरुषचरित्र'मांथी
'प्रद्युम्नकुमार-चुपई'मांथी यथोक्ता नारदेनेयं तथैवेति वदन् हरिः ।८२। कही नारदरखि जेहवी
मय दीठी कुमरं तेहवी ११० अपमानाद्विरक्तस्तु प्रव्रज्यां स्वयमाददे । ८४ । दुःख वइरागिइ संजिम लीइ-११२ रुक्मिणीसदनाभ्यणे तस्या हयं ददौ हरिः । ८६। रुखमणि नइ पासइ आवासि
जांबवति मेल्ही ते पासि ११३ योग्यमन्यच्च सा त्वासीद्रुक्मिण्या सह सख्यभाक् ।८७ । बहिन पणा बेहुजिणीइं कीध
कृष्ण मुरारइ मांन घण दोध ११४ आम जांबवती-पाणिग्रहणनो प्रसंग पण, उपर प्रमाणे जोतां, वा. कमलशेखरे 'त्रिषष्टिशलाका.' ना आधारे ज निरूप्यो छे तेम कही शकाय.
आ उपरांत रुक्मिणी अने सत्यभामाने पुत्रजन्म थाय छे ते पहेला रुक्मिणीने आवेला शुभ स्वप्न अने कृष्ण द्वारा तेना फळरूपे पराक्रमी एवा पुत्रना जन्मनी आगाही : आ वातनी पोतानी दासी द्वारा सत्यभामाने जाण थतां तेनुं पण कृष्ण पासे कल्पित स्वप्नन कथन इत्यादि प्रसंगो पण लगभग 'त्रिषष्टिशलाका०' ना आधारे 'प्रद्युम्नकुमार-चुपई' मां आलेखाया छे. बन्ने राणीओने जे प्रकारनां स्वप्नां आव्यानो वात 'त्रिषष्टिशलाका, मां कहेवाई छे ते ज प्रकारे 'प्रद्युम्नकुमार-चुपई'मां पण कहेवाइ छे.
Page #37
--------------------------------------------------------------------------
________________
प्रद्युम्नकुमार-चुपई 'त्रिषष्टिशलाका' मां रुक्मिणीना शुभस्वप्नदर्शननु वर्णन आम छे :
अन्यदा रुक्मिणी स्वप्ने बलक्षवृषभस्थिते । विमाने स्व समारुढं ददर्श प्रत्यबोधि च ॥११८
[ पर्व८,-सर्ग ६] 'प्रद्युम्नकुमार-चुपई' मां ए ज प्रकारना स्वप्ननी वात कहेली छे:
रूपणि सुपन वृषभ पेखंती, चडी हुँ अमर विमानइ भति ११५ तो सत्यभामानु कल्पित स्वप्न 'त्रिषष्टिशलाका' मां आम छे :
सापि स्वप्नं कल्पयित्वोपेत्याख्याच्छार्गपाणये । हस्तिमल्लोपमो हस्ती स्वप्नेऽद्य ददृशे मया ॥१२२
[पर्व८,सर्ग६] 'प्रद्युम्नकुमार-चुपई। मां थोडाक फेर साथे लगभग एवी ज वात करी छ:
... ... ... ... .... ... कलपित्त स्वप्न कहइ ते वली ११७
स्वामी सुणउ सुपन मइ दीठ, मोटउ मयगल मुखि पईठ ११८ आम रुक्मिणी अने सत्यभामाने,पुत्रजन्मनी आगाहीरूप, स्वप्नदर्शननो प्रसंग जे कवि सधारुए नथी आलेख्यो, तेनुं वो. कमलशेखरे 'त्रिषष्टिशलाका' ना आधारे आलेखन क्यु होय एम लागे छे.
प्रद्युम्न द्वारा स्वरूपपरिवर्तन करी सत्यभामाने स्वरूपवान बनाववाना बहाने तेनुं शिर मेंडी तथा मसी लगाडीने विरूप करवानो प्रसंग, जैन पुराणग्रन्थोमा मात्र 'त्रिषष्टिशलाका०'मां ज विशिष्ट रीते आलेखायो छे.' तेथी 'प्रद्युम्नकुमार-चुपई'मां आलेखायेला ए प्रसंगनी कथानो आधार "त्रिषष्टिशलाका०' ज होवो जोइए. 'प्रद्युम्नकुमार चुपई-एक रासकृति :
आम “प्रद्युम्नकुमार-चुपई"ना उद्भवस्थाननी चर्चा कर्या पछी हवे तेना रास तरीके ना स्वरूपनी विचारणा करोए.
मध्यकालीन गुजराती साहित्यमा जन कविओ रासने 'चरित' 'आख्यान', 'पवाडु', 'प्रबंध एम जुदा जुदां नामे ओळखावता तो वळी भालण, नाकर, विष्णुदास वगेरे आख्यानने रास पण कहे छे-आम, आ सर्व साहित्यप्रकारो अमुक अंशे भिन्न भिन्न होवा छतां रचनादृष्टिए तेमा केटलीक समानता पण रहेली होवाथी ते एकचीजाना पर्याय तरीके केटलीक वार वपराता आ ज रीते घणी "चोपाई"नामधारी कृतिओ पण वस्तुतः रासकृतिओ ज हती. पोतानी कृतिमा चोपाई छंदना सविशेष अयोगने कारणे तेनो कवि ते कृतिने "चोपाई" नाम
आपतो. मध्यकालीन गुजराती साहित्यमां आवा अनेक रासकृातेओ "चोपाई" नाम पामी छे, जेमां संवत १३३१ मां जगडुए रचेली "सम्यक्त्वमाइ-चउपई", चौदमा शतकना आरंभमांना वरसोनी आसपासमां रवायेली विनयचंद्रमूरि-कृत 'नेमिनाथ चतुष्पदिका", वि. सं.१४६२मां रचायेली वस्तिग-कृत "चिहुँ गति चई", न.१५५१ मां कवि कोर्तिहर्षे रचेली "सनत्कुमारचोपाई', संवत १६७२मां ज्ञानमेरूए रचेली "गुगकरंडक चोपाई", कीर्तिसागर-शिष्ये सं.१७. ४२मां रचेली "भीमचोपाई', सं. १७४५मां कुशलसागर-कृत "वीरभाण-उदयभाण चोपाई" इत्यादि असंख्य कृतिओ गणावी शकाय.
१. 'त्रिषष्टिशलाकापुरुषचरित्र' पर्व ८९, सर्ग ६ठो, लोक ४२५-४४२. २. 'प्रद्युम्नकुमार-चुपई' कडी ५९८ थी ६०९
Page #38
--------------------------------------------------------------------------
________________
भूमिका
प्रस्तुत "प्रद्युम्नकुमार-चुपई" पण वस्तुतः रासकृति ज छे. काव्यान्ते कविए भले, तेमां चोपाई छंदना सविशेष उपयोगथी, “इति प्रद्युम्नकुमार चुपई समाप्त" एम कही पोतानी. कृतिने चोपाई कही होय, परंतु काव्यना आरंभे कविए पोते ज 'रास रचु रलियामणु' १: एम कही आ कृतिने गसकृति तरीके गणावी छे. आम “प्रद्युम्नकुमार-चुपई" ए एक रासकृति ज़ छे अने तेनु मूल्यांकन पण एक रासकृति तरीके ज करवु योग्य जणाय छे. आथी प्रथम रास स्वरूपना लक्षणो तारखी तेने अधारे "प्रद्युम्नकुमार-चुपई" नु अहीं मूल्यांकन करवानो प्रयत्न करेलो छे. 'प्रद्युम्नकुमार-चुपई' मां प्रतीत थतां रासस्वरूपना सामान्य लक्षणो:
__उपर कडं ते प्रभाणे रास, प्रबंध, पवाडु, चोगई इत्यादि साहित्य-प्रकारोमा रचनादृष्टिए खास कोई फरक नथी अने रास अने आख्यान प्रकार वच्चे पण घणु साम्य रहेलु छे. आथी रासकृतिना जे लक्षणो तारवीए तेमांनां केटलांक लक्षणो उपर कहेला अन्य माहित्य-प्रकारोमां सामान्य होय ए स्वाभाविक छे. एटले ते लक्षणो चुस्त रीत मात्र रासस्वरूपनां ज छे । शकाय. अही १२मी शताब्दीथी १८मी शताब्दी वच्चे सर्जायेला राससाहित्यमांथी प्रतीत थतां सामान्य लक्षणोने रामस्वरूपना लक्षणो तरीके गणाव्यां छे अने तेने आधारे "प्रद्युम्नकुमार-चुपई". नु रासकृति तरीकेनु मूल्यांकन करेलु छे.. - डॉ. भारती वैद्य तेमना "मध्यकालीन राससाहित्य-१२मीथी १८मी सदी" नामना पुस्तकमां ते समय दरमियान रचायेली केटलीक रासकृतिओना अभ्यास परथी रासना स्वरूप विषे केटलांक चोक्कस अनुमानो बांध्यां छे, तेने अनुलक्षीने, सहु पहेलां आ साहित्य-प्रकारना आकारनो विचार करीए: : १ रासनो प्रारंभ : (क) रासनो प्रारंभ नमस्कारात्मक रहेतो. प्रारंभमां सरस्वती,२४ जिनदेवता, पंच परमेश्वर के गुरु अथवा बधांने प्रण,म करवामां आवता. सरस्वतीदेवी उपरांत अंचिका के चक्रेश्वरी देवीनु पण आ मंगळाचरणमां स्मरण करवामां आवतु. "मांकण रासो" जेवी कोईक कृतिमां अपवादरूपे प्रारंभमां गणपतिने नमस्कार करवामां आव्या छे. सामान्य रीते तिनो आस्तुतिखड ब्रद लांचो नथी होतो, छतां ज्या २४ तथैकर, देवी, गुरु इत्यादि सर्वनी आशीर्वादात्मक सुति करवामां आवी होय छे त्यां सहेजे पंदर-वीस कडीओनौ विस्तार थई जाय छे
(ख) क्यारेक रासना प्रारंभमां रचनाना विषयनो निर्देश पण करवामां आवतो अथवा वस्तु क थी लीधु ले तेनेा निर्देश पण करवामां आवतो.
वा. कमलशेखरे “प्रद्युम्नकुमार चुपई" नो प्रारंभ पण सर्व जिनश्वरो, सरस्वतीदेवी अने गरु ने नमस्कार करीने करेलो छे अने ते मात्र एक कडीमां ज. अने पछी तरत ज पोतानी रचनानो विषयनिर्देश करतां कहे छे के "यादवनी सरस कथा हूं एक चित्तथी कहीश (तेमां आवतु) प्रद्युम्नकुमारनु सुंदर चरित्र तमे सांभळो." विषयनिर्देश पछी कर्ताओ वस्तु क्यांथी लीघु छे तेनो कोइ निर्देश को नथी. आपणे आगळ जोयु ते प्रमाणे वा. कमलशेखरे कवि सधारुकत "प्रद्युम्नचरित" नो पात्र वस्तु माटे आधार लीधो हतो एटलुज नही, परंतु तेमांथी केटलीये कडीओ पोतोनी कृतिमां सीधेसीधी अथवा तो भाषान्तर करीने मकी दीधी ले. छतां वा. कमलशेखरे तेनो जराये ऋणस्वीकार कर्यो नथी.
Page #39
--------------------------------------------------------------------------
________________
३२
प्रद्युम्नकुमार-चुपई
Tul.
"प्रद्युम्नचरित" उपरांत वा. कमलशेखरे "त्रिषष्टिशलाकापुरुषचरित्र" नो पण आधार लीधो छे, ते पण आपणे जोयु छतां तेनो पण कर्ताओ क्यांय निर्देश नथी कर्यो.
२. रासनो अत: (क) रासना अंतमां फलश्रुति आपवामां आवती. आमां रासना पठनथी, श्रवणथी के कीर्तनथी थनारा लाभ वर्णववामां आवता.
(ख) केटलीक कृतिओमां कविए पोतार्नु नाम पण प्रारंभमां जणाव्यु होय छे, पण साधारण रीते कवि पोतानं नाम रचनाने अंते आपतो होय छे. आ साथे केटलीक वार
य छे. आ साथे केटलीक वार कवि पोताना गच्छनी विगत, गुरुनु नाम के गुर्वावलिनुं निरूपण पण करतो होय छे.
(ग) आ उपरांत रचनानो समय, रचनास्थल, रचनानो ढाळ होय तो ढाळनी संख्या अथवा पद्यसंख्या-आ बधी विगत पण कवि अंते आपतो होय छे.
(घ) कवि अंतमा सहुना कल्याणनी कामना व्यक्त करतो होय छे.
(च) वळी पोते रचनामां जे कां होय ते आगमथी विरुद्ध होय अथवा पोतानी कई भूलचूक होय तो ते बदल क्षमायाचना पण कवि अंते करतो होय छे, अथवा बीजानी सरखामणीमा पोतानी नम्रता पण दर्शावतो होय छे.
वा. कमलशेखर “प्रद्युम्नकुमार-चुपई"ना अंतमा पोताना गच्छ तथा गच्छनायकनां नामोना उल्लेखमा जणावे छे के "विधिपक्षगच्छमां अत्यन्त गुणवान एवा धर्ममूर्तिसूरि हता (७५४)', पछी पोतान् नाम. रचनानु स्थळ तथा रचनाना समयनो निर्देश करतां जणांवे छे के "घणा उल्लासपूर्वक कमलशेखर मांडल नगरमा चोमासु रह्या हता त्यारे (तेमणे) संवत सोळसो छवीशमा कार्तिक सुदि तेरशने दिवसे दूहा अने चोपाई हैये धरीने (आ) चोपाई करो" (७५७). अहों एक विशेषता ए छे के कवि पोतानां नाम, रचनास्थल अने समयनी साथे कृतिमां सविशेष आलेखायेला छंदोनों पण उल्लेख करे छे. कर्ताए अहीं अंतमां पोताना नामनो उल्लेख करेलो छे. परंतु ते पहेला प्रथम सर्गने अंते "बीजउ सर्ग जंबवति तणु, वाचक कमलशेखर कहा सण, (१०६) एम कही पोताना नामनो उल्लेख करेलो छे. आम अहीं कर्ता पोताना नामनो पहेला अने छल्ला सर्गमां एम बे बखत उल्लेख करे छे. ए उपरांत संक्षेपमा पोतानी गरु-परंपरा दर्शावतां कवि कहे छे के "वणारीस वेलराजना बे गुणवान शिष्यो (ते) उपाध्याय पुण्यलब्धि अने वणारीम लाभशेखर (अने) तेमना शिष्ये (आ) चोपाई रती." आम अहों तेमणे पोताना गुरु, गुरुबंधु अने गुरुना गुरु एम त्रणेयनां नामनु स्मरण करेलु छे. कृतिने अंते कर्ताए तेनी कुल गाथा-संख्या ७९३नी नोंघेली छे. जो के कृतिनी वच्चे केटलेक ठेकाणे लहेशानी भलथी के गमे तेम पण कडीसख्वा लखवामां भूल थयेली छे. वळी, बहारथी उद्धत करेला लोको के गाथाओने पण कृतिमा चालु सख्यांक आपेलो छे. आथी जो कडी संख्यानी भूलो सुधारीए तथा बहारथी उद्धृत करेला श्लोको के गाथाओने न गणीए तो ते प्रमाणे कुळ ७५९ कडीओ थाय छे. अहीं सर्वना कल्याणनी कामना, कोई भूलचूक के एना माटे क्षमायाचना के अन्य कविनी सरखामणीमा पोतानी नम्रतानो वा. कमलशेखरे कोई उल्लेख करेला नथी.
३. छंदोलय : रासमा छंदोवैविध्य रहेतु, पण रासनी रचना मोटे भागे चोपाई. दुहा जेवा मात्रामेळ छंदमां थती. चोपाई, दुहा उपरांत १६+१६+१३नी त्रिपादी, सोरठा, वस्त. रोळा, त्रोटक, वदना, पद्धडिया, मदनावतार, कवित, कुंडळिया, सवैया जेवा छंद पण
Page #40
--------------------------------------------------------------------------
________________
भूमिका
३३
वपराता. जो के १५मा सैकानी जयशेखरसूरिनी रचना " अर्बुदाचलवीनती” द्रुतविलंबितमां, तथा शालिभद्रसूरि कृत “पंचपंडवचरित्र - रासु" आखी संस्कृत अक्षरगणमेळ छंदोमां छे, पण ते तो मात्र अपवादरूपे; नवीनता अने वैविध्य खातर आ कविओए अक्षरमेळ छंदोमां रचना करी होय एम मानवु रघु आ उपरांत रासो गेय होई छंदनी देशीओमां, कोई लोकप्रिय अथवा लोकजीभे वसी गयेला गीतना ढाळमां के शास्त्रीय रागमां गाई शकाता अने ते अंगे जरूरी सूचनाओ मूकवामां आवती.
" प्रद्युम्न कुमार - चुपई " ए शीर्षक उपरथी ज सूचवाय छे तेम ए आ कृतिमां चोपाई छंदनो सविशेष उपयोग थयेलो छे. ए उपरांत दुहा, वस्तु छंद तथा एक ठेकाणे ढालनो पण कर्ताए प्रसंगानुकूळ उपयोग करेलो छे.
चोपाई :- संख्यानी दृष्टिए गणीए तो कविए चोपाई छंदमां ६८८ कडीओ रचेली छे. आ रीते जोईए तो पोणा भाग उपरांतनी कृति चोपाईमां छे, जे कृतिने आपेला शीर्षकनी सार्थकता सिद्ध करे छे. चोपाईनु बंधारण आ प्रमाणे छे :
मात्रा १५, चरण ४, ताल चार -१, ५, ९, १३मी मात्राए. छेवटना बे अक्षरो अनुक्रमे गुरु भने लघु
४
४
गाल
यार
राउत २११
करी स १२१
११११
२१ = १५.
सामान्य रीते उपर प्रमाणेनु चोपाईनु बंधारण रधुं छे, छतां जोडणीभेदने लईने केटलेक ठेकाणे तेनी मात्रा इत्यादिमां वधघट थई छे.
दुहा : - दुहामां बावन कडीओ रचायेळी छे. एनुं बंधारण सामान्य रीते नीचे मुजबं छे:
मात्रा २४, यति १३मी मात्राए, ताल ६-१, ५, ९मी मात्रा ए पूर्वार्धमां त्रण, अने एवी रीते उत्तरार्धमा ऋण द्विदळ रचना.
प्रथम दळना पूर्वार्धमा १३ अने उत्तरार्धमा ११ - विषमचरण एटले पहेला अने त्रीजा चरणमां १३ मात्रा, अने सम एटले बीजा अने चोथा चरणमां ११ मात्रा; समचरणनी
११मी मात्रा लघु.
दादा
गढ मद
११११
४
जउ हथि
दादा मंडप
दाललल धवलहर
१ १ १ १ १,
२ १ १
1
१३ मात्रा
वस्तु छंद :- आ उपरांत वस्तुछंदनो पण कविए बंधारण सामान्य रीते आ प्रमाणे छे : प्रथम चरण १५ १५ मात्रानु, चोथु १३ मात्रानुं अंते १३-११ : वरणमां प्रथम सात मात्रा आवर्तन थतुं होय छे.
दादा जिन मं १ १ २
दादा गाल दिर अति सार १ १ १ १ २ १
1 ११ मात्रा
अगियारवार उपयोग कर्यो छे, तेनुं मात्रानु, बीजु १३ मात्रानु, त्रीजुं १३-११ ना मापवाळो दुहा. पहेला बीजा चरण अने चोथा चरणनी १३
Page #41
--------------------------------------------------------------------------
________________
३४
प्रद्युम्न कुमार- चुपई
मात्रानुं बंधारण, दुहाना विषम चरणना बंधारण जेवुं होय छे. त्रीजा अने चोथा चरणनी १५ मात्रा ३+३+५+४ ए रीते वहेंचायेली छे. त्रीजा अने पांचमा चरणनो प्रास मेळवेलो होय छे. ढाल :- मात्र एक ज वार, प्रद्युम्नहरणथी दुःखी रुक्मिणीना विलापनु (कडी १४६ थी १५३) वर्णन कविए ढालमां कयुं छे, पण ते दुहानी ज देशी छे. आ रीते जोईए तो वा. कमलशेखरे प्रस्तुत कृतिमां मात्रामेळ छंदनो विशेष उपयोग कर्यो छे. वर्णनो सामान्य रीते चोपाईमां ज आलेखायां छे, तो बीजी एक नोधनीय वस्तु ए छे के शिशुपाळ, प्रद्युम्न, कृष्ण के रुक्मी जेवा वीर पुरुषो ज्यारे क्रोधमां आवीने युद्ध करे छे के युद्ध माटे पडकार फेंके छे त्यारे तेनुं शब्द-चित्र आलेखवा माटे कर्ताने वस्तुछंद विशेष योग्य लाग्यो जणाय छे. अनुक्रमे कडीसंख्या ७०, ४९१, ५०३, ६८१ एनां उदाहरणो छे.
४. विस्तार अने विभाग :- (क) रासकृतिना विस्तार परत्वे १३-१४मा सैकामां ५० कडी जेटला विस्तार आसपास प्रमाण साधारणपणे देखाय छे. पण ते पछी १५ मा सैकामां ५० कडीनी रचना ओछी पण १००-१५०थी २००-३०० कडीनी रचनाओ वधु प्रमाणमा देखाय छे. आ ज सैकामां एक बे हजार कडीना विस्तारनी रचना देखावा मांडे छे. पण ते बहु ज थोडी. आम १५मा सैकामां एक हजारथी वधु कडीनी रचनानुं वलण शरू यु एम कही शकाय १६मा सैकामां २००थी ४०० कडीनो विस्तार साधारणपणे स्थिर थतो जणाय छे, अने ते सामे ५००-६०० थी मांडी बे हजार कडीना विस्तारनी रचनाओनु प्रमाण वतु जाय छे. ते पछी १७-१८मा सैकामां एक हजारथी मांडी छ हजार करतां पण वधु कडीनी विस्तृत रचनाओ प्राप्त था छे. आम शरूआतना रास ट्रंका हता पण पाछळथी तेनो विस्तार वधवा मांडयो.
(ख) शरूआतना रासाओनां विभाग पाडवानुं वलण ओछु हतुं, पण पाछळथी तेना विभाग पाडवानी पद्धति दाखल थई, रासना कडवा, ठवणि, वाणि, भाषा, आदेश, खंड, उल्लास, ढाल एवा विभागो पाडवामां आवता. आमां "ढाल " विभाग हमेशां कथानो विभाग न सुचवतां लढणसूचक अर्थमां वपरायेलो घणीवार जोवा मळे छे. पठननी अनुकूलता के श्रोताओना रसनी जळवणी अर्थे रासना विभाग पांडवानी पद्धति शरू थई होय.
आपणे आगळ जोयु तेम, वा. कमलशेखरे प्रस्तुत कृतिनी रचना ७५९ कडीओमां करेली छे. आम, पचास के सो कडी जेटलो ट्रंको य नथी अने हजारथी बे हजार कडीओ जेटली लांचो पण नथी, परंतु तेनो विस्तार सामान्य रीते मध्यम ज गणाय. लांबी लचक स्तुतिओ, निरर्थक वर्णनो, अप्रस्तुत आडकथाओ के कडीओनी कडीओ सुधी लंबातो धर्मोपदेश इत्यादि विगतो कृतिना लंबाणनुं कारण होय छे. परंतु प्रस्तुत कृतिमां उपर्युक्त सर्व अंगो प्रमाणसर ज आलेखायां छे. काव्य-विभागना नामकरण परत्वे आ कृति नोधनीय छे उपर जणावेला कडवा, ठवणि, खंड, ढाळ इत्यादि विभागोने बदले, महाकाव्यनी रीते वा. कमलशेखरे आ काव्यने जुदा जुदा छ सर्वोमां विभक्त कर्यु छे, रासकृतिना विभागोना नाम पैकी आ 'सर्ग' नो उल्लेख एक अपवादरूप होय तेम जणाय छे डो. भारती वैद्ये पण तेमना पुस्तकमां, रासकृतिना विभागने कोई ठेकाणे कोईए सर्ग कह्यो होय तेतुं नोंध्युं नथी. कदाच वा. कमलशेखरे, प्रस्तुत कृतिना एक आधारग्रन्थ कवि सधारु कृत ' प्रद्युम्नचरित'ना अनुकरणमां ज, पोतानी कृतिना विभागोने सर्ग कह्या होय.
Page #42
--------------------------------------------------------------------------
________________
भूमिका
'प्रद्युम्नकुमार-चुपई'ना वा. कमलशेखरे प्रसंगालेखननी दृष्टिए नीचे प्रमाणे छ विभाग पाड्या छ :
(१) कृष्ण-रुक्मिणी विवाह : कडी १थी १०६-कुल कडी १०६ (२) जांबवतीपाणिग्रहण : कडी १०७थी ११४-कुल कडी ८ (३) प्रशुम्नविद्याग्रहण तथा माता रुक्मिणी साथे मिलन : कडी ११५थी ४६४-कुल
कडी ३५० ४) प्रद्यम्नविवाह : कडी ४६५थी ६३१-कुल कडी १६७ (५) शांव-प्रद्युम्नपाणिग्रहण : कडी ६३२थी ६९६-कुल कडी ६५ (६) नेमकुमार-दीक्षा, केवळज्ञान तथा प्रद्युम्नकुमार-दीक्षा, ज्ञान अने निर्वाण : कडी
६९७थी ७५९-कुल कडी ६३ दरेक विभागने अंते कर्ताए संस्कृत भाषामां, विभाग-अंतर्गत आलेखायेला विशिष्ट कथाप्रसंगोनो उल्लेख करी ते दरेक विभागने 'सर्ग' कह्यो छे. जेम के त्रीजा सर्गने अंते कवि लखे छे -"इति प्रदिमनकुमारचरित्रे विद्याग्रहण रुखमिणीमातामिलनो नाम तृतीय सर्ग: ।”
उपयुक्त विभागो जोता एम जणाय छे के ज्यांथी कथानो नवो तबक्को शरू थाय के त्यांथी नवो विभाग शरू थाय छे. रुक्मिणी-कृष्णना विवाहनो मुख्य प्रसंग अने सत्यभामा द्वारा नारदनो . अनादर के रुक्मी-शिशुपालन कृष्ण साथै युद्ध इत्यादि प्रसंगोने लईने कर्ताए प्रथम सर्गनी योजना करी छे. रुक्मिणी विवाहना प्रसंगनी समाप्ति करी बीजा सर्गमां तहन नवो ज प्रसंग के जेने पहेला सर्ग साथे कंई संबंध नथी ते जांबवती-पाणिग्रहणनो प्रसंग मात्र आठ ज कडीमां आलेखायो छे. प्रद्युम्नकुमारनी कथामां पूर्वभूमिकारूपे रहेला आ वे महत्त्वना प्रसंगो पछी, त्रीजा सर्गथी प्रद्युम्नकुमारनी कथानो आरंभ थाय छे. तेमां प्रद्युम्नना जन्म अने तेना अपहरणथी मांडी तेनी विद्याप्राप्ति, तेना अवनवा साहस अने मायावी पराक्रमोनी कथाना आलेखन बाद सोळ वर्षे तेनी माता रुक्मिणीने मळे छे त्यां सुधीनी घटनाओर्नु आलेखन करेलुं छे आम आ सर्गमां प्रद्युम्नना जीवननी महत्त्वनी घटनाओन आलेखन थयु होवाथी तेनो विस्तार अन्य स्र्गनी सरखामणीमां वधु रह्यो छे. चोथा सर्गना आरंभे भले कवि "एतलई अवर कथांतर हउ (४६५)" एम कहे, परंतु तेमां पण कोई नवो बनाव न बनतां त्रीजा सर्गनी माफक मायावी विद्याबळथी प्रद्युम्न द्वारा अन्य पात्रोनी कनडगत अने युद्धनुं निरूपण करेलुं छे. त्रीजा सर्गमा भानुकुमार, सत्यभामा, वसुदेव के रुकमणीने प्रद्युम्न पोतानी मायावी विद्याओनो परचो बतावे छे, तेम ते चोथा सर्गमा बलिभद्र, अन्य यादवो, कृष्ण तथा पुनः सत्यभामाने पोतानी मायावी विद्याओनो चमत्कार अने साहसवृत्तिनो परिचय करावे छे. आथी चोथो सर्ग ए कथाप्रवाहमां कोई नवु वहेण नथी दाखवतो, परंतु त्रीजा सर्गना कथाप्रसंगनो विस्तार ज साधे छे. वळी आ सर्गमा कृष्णनी साथे प्रद्युम्नकुमारनुं मिलन याजाय छे, ते पछी प्रद्युम्न द्वारा सत्यभामाने रूपधान बनाववाना बहाने विरूप बनाववानो जे प्रसंग योजायो छ ते संकलनानी दृष्टिए उचित नथी लागतो, कारण के प्रद्युम्न साथे कृष्णर्नु मिलन योजाय छे, ते पूर्व प्रद्युम्न द्वारा मायावी विद्याओ वडे तेना स्वजनोने रंजाडवाना सर्व प्रसंगोनुं आलेखन थई गयु होय छे अने ते पछी कृष्णनी साथे मळी प्रद्युम्न द्वारिकामां ठाठमाठ साथे आवे छे अने ते वखते त्यां आवेला तेना पालक पिता कालसंवरनी रति नामनी पुत्री साथे तेना विवाह
Page #43
--------------------------------------------------------------------------
________________
३६
प्रद्युम्नकुमार-चुप
निश्चित थाय छे अने तेना विवाहोत्सवनी तैयारीओ थाय छे. आ लग्नप्रसंगना आलेखननी वच्चे वळी पार्छु स्वरूपान्तर करी प्रद्युम्न द्वारा सत्यभामाने स्वरूपवान बनाववाना बहाने विरूप बनावी रंजाडवाना प्रसंगनुं आलेखन, चालु कथा - वणमां विक्षेप पाडी रसक्षति करे छे. आ प्रसंग अहीं आलेखन कर्यु, तेना करतां आगळ ज्यां प्रद्युम्न पोतानी मायावी विद्याओ वडे पोताना स्वजनोने रंजाडे छे त्यां जो कोई उचित जग्याए ते मूक्यो होत तो प्रसंगालेखननी व्यवस्था सचवात. वळी आ सर्गने “ प्रद्युम्नविवाह " ए नाम आप्युं छे तेना करतां "प्रद्युम्न - कृष्ण - मिलन” एवं नाम वधु सार्थक गणात, कारण के आखाय सर्गनी १६७ कडीओमांथी प्रद्युम्नना विवाहनी वात अने तेना विवाहोत्सवनुं वर्णन तो सर्गने अन्ते मात्र पंदरसोळ कडीमां ज थयुं छे, ज्यारे प्रद्युम्न - कृष्णना मिलननो प्रसंग तथा तेनी पूर्व - भूमिकारूपे रहेलां प्रद्युम्न द्वारा रुक्मिणी हरण, प्रद्युम्न द्वारा यादववीरोनो उपहास तथा कृष्ण-प्रद्युम्न युद्धनो प्रसंग आखाय सर्गनो घणो मोटो भाग रोके छे.
पांचमा सर्गथी कथाना वहेणमां नवो वळांक आवे छे. शांत्रकुमार-जन्म, शांत्र-सुभानुक्रीडा अने सर्वथी महत्त्वनो रुक्मीनी पुत्रीओ साथे शांब - प्रद्युम्नना विवाहनो प्रसंग आमां आलेखायो छे. शांत्र - प्रद्युम्नना रुक्मीपुत्रीओनी साथे पाणिग्रहणनो आ प्रसंग आखा सर्गनी ६५ कडीमांथी लगभग ३५ कडी जेटलो आलेखायो छे. सर्गना अडधा उपरांतनो भाग रोकता आ प्रसंगने अनुलक्षीने आ सर्गने 'शांव- प्रद्युम्न - पाणिग्रहण' एवं नाम आप्युं छे, ते सार्थक छे. "जांबवती - पाणिग्रहण" नामनो जे बीजो सर्ग छे ते आ सर्गनी पूर्व भूमिकारूपे रहेलो छे.
छट्ठासी प्रद्युम्नकथामांनो छेल्लो अने नवो तबको शरू थाय छे. ज्यांथी कथा अंत तरफ ढळती जाय छे. प्रद्युम्नकुमारनी दीक्षा अने तेमना निर्वाणनी कथानी पूर्व भूमिकामां नेमिनाथनी कथा, द्वारिकाना विनाशनी आगाही, यादवकुमारो द्वारा द्वैपायनमुनिनी सतामणी तेथी द्वैपायनमुनिए आपेलो शाप, अग्निकुमार बन्या बाद द्वारिका बाळवाने माटे द्वैपायनमुनिनु अव पण नगरजनोनी तपश्चर्याना बळथी पाछा जवु, ते वखते अनेक नगरजनो द्वारा नेमिनाथ पासे दीक्षा ग्रहण करवी इत्यादि प्रसंगोनु संक्षेपमां आलेखन करेलुं छे. छेल्ले माता-पिताने धर्मोपदेश दई प्रद्युम्नकुमार पण नेमिनाथ पासे दीक्षा लइँ, अणसण करी, शुक्लध्यान धरतां धरतां केवलज्ञान पामी मोक्षे जाय छे त्यां कथानक पूर्ण करी, ग्रन्थकार पोतानो परिचय आपी, रचना - मिति तथा स्थळ जणावी, फळश्रुति साथे कृतिनी समाप्ति करे छे. आखी कथामां प्रसंगो एक पछी एक झडपथी बनता जाय छे तेथी वाचक के श्रोताओ उपर कथानकनी पकड सारी रहे छे. वळी काव्यने प्रभावशाली बनाववा अवान्तर कथाओनु आलेखन पण आवश्यक होई आ कृतिमां रुक्मिणीहरण, जांबवती - पाणिग्रहण, सिंहरथ-युद्ध, भानुकुमार विवाह वर्णन, सुभानु-शांनी क्रीडाओ, नेमिनाथ-कथा इत्यादि अवान्तर कथाओनुं पण निरूपण थयेलुं छे. तेनाथी " प्रद्युम्न कुमार - चुपई " ना काव्यत्वमां वृद्धि थयेली छे. आ अवान्तरकथाओ काव्यमा कां तो आवता प्रसंगनी प्रस्तावनारूप होय छे, कां तो पाछळथी बनता कोई प्रसंग साये सीधा या आडकत संबंध धरावनी होय छे. आधी काव्यमां ते निरर्थक नहीं परंतु आवश्यक बनी रहे छे. आम वस्तुना विभागीकरण अने आयोजननी दृष्टिथी जोईए तो कर्ताए, कथामां बनता अनेकानेक अवनवा प्रसंगोने, कथाप्रवाहने अनुकूल थाय ए रीते विभागी, रोचक रीते ए घटनाओनो श्रृंखलाबद्ध क्रम राखी, तथा ए घटनाओने तेने योग्य एटला प्रमाणमां आलेखीने पोतानी आलेखनसूझनो सारो एवो ख्याल आप्यो छे.
Page #44
--------------------------------------------------------------------------
________________
भूमिका
३७ रास-साहित्यनां अन्य अंगोमां हवे तेनो विषय, कथानो झोक अने रचनाना उद्देश विशे विचार करीए.
५. रासोनो विषय :-(क) रासोनो विषय मोटे भागे चरित्रकथननो रहेतो. मोटा भागना रास कोई क जैनपुराणप्रसिद्ध, इतिहासप्रसिद्ध के कल्पित पात्रना जीवनर्नु अथवा तेना जीवनना कोई कसोटीभर्या प्रसंगनुं वर्णन करता. आ उपरांत धार्मिक सिद्धांत के व्रतमाहात्म्य दर्शावता तेम ज रूपकात्मक, बोधात्मक गुरुमहिमान गान करता के दीक्षाप्रसंग, चत्यपरीपाटी, तीर्थस्थळ इत्यादिनु वर्णन करता रास पण रचाता. आ विषयोना रास प्रमाणमा ओछा छे.
प्रद्युम्नकुमार ए जैनोना नवमा वासुदेव श्रीकृष्णना चरमशरीरी एवा ज्येष्ठपुत्र छे, तथा चोवीश कामदेवमांना एक छे. आम ए जैन-पुराणग्रन्थोनु एक प्रसिद्ध पात्र छे. वा. कमलशेखरे. उपर का छे ते प्रमाणे जैनपुराणप्रसिद्ध पात्रना चरित्रनु वर्णन करवा आ रासनी रचना करेली छे.
(ख) लगभग बधा ज चरित्रात्मक रासोमा पूर्वजन्मनी वात आवती अने ते द्वारा कर्मवादना सिद्धांतनु प्रतिपादन करवामां आवतु. केटला रासाओमां अंते पूर्वजन्मनी वात जाणी संसारनी असारता समनी मुख्य पात्र तथा तेनी आसपासनां अन्य पात्रो दोशा लेतां होय छे.
'प्रद्युम्नकुमार-चुपई'मां पण प्रद्युम्नकुमार, शांब तथा रुक्मिणीना पूर्वभवोनु वर्णन करवामां आत्यु छे, अने ते द्वारा कर्मना सिद्धांतनु प्रतिपादन पण करवामां आव्यु छे. घणीवार कर्मना सिद्धांतना प्रतिपादनार्थे तथा कथा-विस्तारना लोभे रासकारो पात्रोना पूर्वभवनी लांबी लांची जीवनपटमाळनु आलेखन करता, अने तेथी रासकृतिनुं धोरण काव्यत्वनी दृष्टिए नीचुं जतु. परंतु प्रस्तुत कृतिमां कर्ताए प्रद्युम्न, शांब अने रुक्मिणीनां पूर्वजन्मनी कथाओनु निरूपण खूब संक्षेपमां करेलुं छे. कुल ७५९ कडीमाथी मात्र ४४ कडीओमां ज (कडी १७० थी २१३) आ त्रणे पात्रोना पूर्वजन्मनी कथाओनु समुचित रीते आलेखन करेलु छे. अहीं नोधनीय ए छे के घणा रासाओमां, उपर का तेम पूर्वजन्मनी कथाओनु आलेखन कृतिना अंतमां आवतु' होय छे अने ते सांभळी मुख्य तथा अन्य पात्रो दीक्षा लेतां होय छे, त्यारे प्रस्तुत कृतिमा पूर्वजन्मनी कथाओ, कथानी वच्चे तेना योग्य स्थाने ज कर्ताए रजू करेली छे. बाळक प्रद्युम्ननु जन्मतावेंत ज हरण केम थयु अने तेनु अपहरण करनार साथे तेने दुश्मनावट केवो रीते थई ते, प्रद्युम्ननो शोध माटे गयेला नारदना प्रश्नना उत्तरमा सीमंधरस्वामी, प्रद्युम्नना पूर्वजन्मनी तथा रुक्मिणीने कया कारणसर सोळ वर्षनी पुत्रवियोग थयो तेना जवाबम तेना पूर्वजन्मनी वात, कहे छे. आथी अन्तमां प्रद्युम्न तथा अन्य पात्रो पोताना पूर्वजन्मनी कथाओना श्रवणथो संसाग्नी असारता समजी दीक्षा ले छे एम नथी बताब्यु, परन्तु द्वारिकाविनाशनी आगाहो परत्वे नेमिनाथ प्रभुना अदेशथी विरक्त थई प्रद्युम्न तथा अन्य पात्रो दोक्षा ग्रहण करे छे
६. रासनी रचनानो हेतु : राताओना विषय अने तेना कथानकनु वलण जोतां एटलु स्पष्ट जणाय छे के रासकृतिनी रचना पाछळ तेना कर्तानो हेतु कोई उत्कृष्ट साहित्यकृति रचवानो नहि परंतु कृति द्वारा धर्म-उद्बोधन अने जैनधर्मना सिद्धान्तोनो प्रचार करी तेनु माहात्म्य गावानो हतो. लोकोने सीधेसीध) नर्यो उपदेश आपवा करतां दृष्टांतात्मक रीते कोई आदर्शभूत व्यक्तिना धार्मिक चारजना श्रधगठनथी, ए प्रहारनु जीवन जोववानी प्रेरणा मळे अने ते रीते जैनधर्मनु आकर्षण वघे ए दृष्टिथी चरित्रात्मक रासाओन निर्माण थ.
Page #45
--------------------------------------------------------------------------
________________
प्रद्युम्नकुमार-चुपई 'प्रद्युम्नकुमार चुपई' मां तेना कर्ताए पोतानी आ रचना पाछळना कोई विशिष्ट हेतुनो क्याय निर्देश नथी कर्यो. छतां काव्यमां ठेरठेर कथाप्रसंगने अनुषंगे ज्या ज्यां कर्ताने तक मळी छे त्यां त्यां धर्मोपदेश आपेला छे. आ रीते कर्ताए पुण्यनो प्रभाव दर्शाव्यो छे, स्त्री उपर विश्वास मूकवाथी भोगववा पडतां दुष्परिणामोनु ब्यान करेलु छ, अहिंसानो उपदेश दीधो छे, संयमनो महिमा गायो छे, पार्थिव पदार्थोनी असारता बतावी छे, अने कर्मना सिद्धांतनु प्रतिपादन करेलु छे.
प्रद्युम्नकुमारने तेना पुण्योदयथी ज दिव्य वस्तुओ अने विद्याओनी प्राप्ति थई हती एम वर्णवता कवि कहे छे :
पुन्य बलवंत बलवंत अछइ संसारि, पुन्यइ सेवइ सुर सयल, पुन्य पुहवि अरिहंत भाखइ पुन्यइ अणचितिउं फलइ, मरणभय ते पुण्य राखह रिद्धि वृद्धि पुन्यइ मिलइ, पुन्यइ राजभंडार
पुन्यइ सवि आवी मिलइ, जिम प्रदिमनकुमार (२८८) प्रद्युम्न ज्यारे कोलगुफामां कालासुरने हरावे छे त्यारे ते तेना पराक्रमथी प्रसन्न थई तेने छत्र तथा चामर आपे छे. कवि एने पण पुण्यनु ज फळ गणे छे :
कुमर प्राक्रम देखी तेय, आविउ छत्रचामर करि लेय पाय लागीनइ दीधा सोय, पुण्यतणां फल एह ज जोइ (२६०)
तो "पजून वीवाह पुन्यइ फलिउ" (६१७) एम कही पुण्यने ज तेना लग्नना कारणरूप कवि माने छे. कृष्ण पण पोतार्नु अपमान करनार प्रद्यम्न उपर गुस्से नथी थता तेना कारण कृष्ण पोते प्रद्युम्नना पुण्यने ज कारण तरीके लेखावता कहे छे, "पुन्यवंत तु क्षित्री होइ तुझ ऊपरि मुझ कोप न कोई" (५४१). आम पुण्यनो महिमा कविए घणे ठेकाणे गायो छे. . स्त्रीनो विश्वास जीवनमां अधःपतन आणे छे, तेना समर्थनमां कवि स्त्रीचरितोना केटलाक दाखला आपी मानवीने स्त्रीनो विश्वास न करवानो बोध आपे छे. कवि कहे छे, "स्त्री तण जे वेसासह करइ, तेय माणस अखूटइ मरइ" (३२१) “जुलु' बोलई ठुलवइ, निज प्री मेल्हि अवर भोगवई" (३२२) के
स्त्रोनह साहस विमणु होइ, स्त्री-चरित्र नवि जाणइ कोइ स्त्रीनी बुद्धि नीची नितु रहइ, उत्तम छोडि नीच संग्रहइ ३२३
आ प्रमाणे "एहवी असतितणु सभाउ” (३२४) एम कही कवि तेना समर्थनमां, पोतानी पत्नीने पोतार्नु राज्य सोपनार उजैनना राजा बिबिमारनुं दृष्टांत, पोताना पतिने विषना लाडवा खवडावो कोई कुनडा साथे क्रीडा करनार, अमृतादेवी (?) अने तेना पति राजा यशोधरन दृष्टांत,हापाशेठ-के जेने दोरडाधी बांधो, तेनी पत्नी शरम नेवे मूकी, एक धर्तने घरमां घाला भरथार बनावे छे - तेनु दृष्टांत आ उपरांत सुदर्शन शेठ अने अभपाराणीनुं दृष्टांत, राममां मोह पामेली शूणखाए द्वेषमां रावग द्वारा सीता हरण करावी रामरावण वच्चे युद्ध जंगाव्यु, परिगामे लंका दहन अओ रावगनो वध थयो ते दृष्टांत, अमरकंकानारीमाथी युद्ध मचावी कृष्णे पद्मनाभ द्वारा हरण करायेली द्रौपदी पाछी आणी तेनी दृष्टांतकथा, एम अनेक दृष्टांतकथाओनो त्यां उल्लेख करे छे. आ प्रमाणे स्त्री पर विश्वास न राखवानो सदुपदेश पण कविए पोतानी कृतेनां आपेठो छे. तो परणेरा जमा नेनकुमार, पोताना लग्ननी उगवणीमा
Page #46
--------------------------------------------------------------------------
________________
भूमिका
३९
मिजवानी अर्थे बांधेला पशुओनो पोकार सांभळी, परण्या विना ज पाछा वळे छे अने संयम धारण करे छे, ते आखाय प्रसंगमा (कडी७०२ थी ७०८) कविए अहिंसानो आदेश दीधो छे. तो नेमिनाथ प्रभुना उपदेशथी जालि, मयालि इत्यादि यादवकुमारो, कृष्णनी पटराणीओ तथा चीजा लोको अने प्रद्युम्नकुमार पोते संसारना अढळक सुखने ठोकर मारी दीक्षाग्रहण करे छे. अथवा तो प्रद्युम्ननी पूर्व जन्मनी कथाओमां ज्यां ज्यां तेणे चारित्र्यग्रहण कयु छे त्यां तेने देवलोक के उत्तम मनुष्यकुळमां जन्म मळ्यानु कथन छ- ए सर्व ठेकाणे कविए संयमनो महिमा गायो छे.
अंतमां दीक्षाव्रत अंगीकार करता प्रद्युम्नकुमारने तेना मातापिता तेम न करवा वीनवी द्वारिकानु राज्य भोगववा कहे छे, त्यारे प्रद्युग्नकुमार जे उपदेश आपे छे तेमां कविए संसारना सर्व संबंधो अने वस्तु प्रोनी असारतानुं खून वेधक निरूपण कयु' छे. कृष्ण ज्यारे प्रद्युम्नने तेना विद्याबळ अने पुरुषार्थनां वखाण करी दीक्षा लेवा करतां द्वारिकानुं राज्यसुख भोगववान कहे छे त्यारे ते सर्वनी असारतार्नु, प्रद्युम्नना जबाब द्वारा, कवि आम वर्णन करे छे:
नारायणना वयण सुणेय, वलतु ऊतर पजमन देइ केहनां राज-भोग घरबार, सुपनांतर जेहर्बु संसार इस कायाका कुण भरुंसा, जगजाइ सुपनंतर जइसा. सर्व तिजइ जीव चलइ एकला, वीछड्या पीछइ मिलन दुहेला ७४० केहनां धन पवरख बल घणा केहना बाप कुटुंब कहतणा
घडीमांहि जाइ विहडाइ, आविई मरणि न सइ रहवाइ ७४१ पोताना पुत्रने दीक्षा लेवा तत्पर थयेल जाणी रुक्मिणी विलाप करती कहे छे के, "हे पुत्र ! तुं केवी रीते भिक्षा मांगीश, अने माथाना केशनु लूंचन करतां तो घणु कष्ट पडशे, माटे तु संयम न लईश." त्यां प्रद्युम्न शरीरनी क्षणभंगुरता समजावी संसारनी असारता समजावतां उपदेश आपे छे:
लावन्य रूप शरीरह सार, जिम रूठई तु हूठ सहू छार म करि शरीर दुख बहूत, कहनी माइ नइ केहना पूत ७४५ अरहटमाल जिम ए संसार, स्वर्ग पाताल पुहवि अवतार पूर्वजन्मनउ संबंध जाणि, मिलइ जीवइ ठाणोठांणि ७४६
कर्मना सिद्धांतनुं प्रतिगदन करवा पात्रना दुःखनु कारण एना पूर्वजन्मनी करणी छे, एनी साबिती माटे पूर्वजन्मनी कथाओ उपरांत बीजा अनेक प्रसंगे अमुक कार्यना कारणरूपे कर्मने ज गणवामां आव्यु छे. अनेक पंक्तिओमों कर्मनु माहात्म्य कविए दर्शाव्यु छ :
कर्मयोगि जउ जुडइ संयोग, तु हुई नारायणनु योग ३६ पूर्वकर्म न मेटइ कोइ, जेहनइ सिर जी परणइ सोइ ४२ पूवकर्म न मेटइ कोइ, कर्म करइ ते निश्चिइ होइ १३२ परवि भव कर्म बांध्या घणा रुखमणि फल लाधा तेहतणां १८७ सोलमास राखिउ ते मोर, बांधा कर्म तिहिं अतिहि कठोर सोल मासनां सोल वर्ष थीयां,मोरमयूरी वनमांहि गया १९८ फल दुर्गछाकर्मह तणु, सचर सतम दिनि विणठ घणु २०१
Page #47
--------------------------------------------------------------------------
________________
४०
प्रद्युम्नकुमार-चुपई पूरव लखित न मेटइ कोइ, प्रदिमन विद्या लेई गयु सोइ ३३१
असुभ कर्म जब आवइ वही, सुजन हुइ ते वयरी सही ३३२
आवी बीजी अनेक पंक्तिओटांकी शकाय ज्यां कक्एि कर्मनी महत्ता गाई छे. आम जोई शकाय छे के वा. कमलशेखरे पोतानी तिमां अनेक रीते धर्मनी देशना दीधेली छे, आथी एम कही शकाय के ''एकचित्ते यादवनी सरस कथा (२)" कहेवानी साथोसाथ धर्मोपदेश देवानो पण कविनो हेतु रहेलो छे.
४. महत्त्वनां कथाघटकोनो अभ्यासः प्रास्ताविक:- कोई पण एक प्रजानां वार्तासाहित्यनो, कोई अन्य प्रजाना वार्तासाहित्य साथे तुलनात्मक दृष्टिथी विचार करीए तो ते बन्नेमां केटलीक एवी कथाओ, फईक विगतभेदे परन्तु समान कही शकाय ए रोते रूपान्तर पामेली मळी आवे छे. ए रीते कोई एक देश विशेषना परंपरागत वार्तासाहित्यना तुलनात्मक अध्ययन बाद जणाइ आवशे के तेमांनी केटलीक कथाओमां केटलाक अंशो एवा होय छे के जे कईक विगतभेदे पण समानरीते निरूपायेला आपणने प्राप्त थाय छे. आ रोतना कथा के कथाघटकना संवादीपणामां कथा के कथाघटकनी पोतानी आगवी आकर्षक प्रतिभा उपरांत भिन्न संस्कृतिओनी परस्पर असर, अने साथे साथे भिन्न भिन्न भाषा, समाज के संस्कृतिनी नीचे मूलगत मानवप्रकृतिनी केटलीक समानता कारणरूप होय छे.
Stith Thompson' नामना लोककथा विषयक विद्वाने आ जातना कथा-स्वरूप अने कथाघटक वच्चेनो तफावत समजावतां स्पष्ट कर्यु छे के कथास्वरूपनु स्वतंत्र अस्तित्व होय छे अने तेने पोताना तात्पर्य माटे अन्य कोई कथा परत्वे आधार राखवो नथी पडतो. ज्यारे कथाघटक ए एवी कथाओमांनो नानामां नानो अंश छे के जे पर परामां टकी रहेवाने समर्थ होय छे. आ प्रकारचें सामर्थ्य तेमांना असाधारण के वैचित्र्यवाळा तत्त्वने आभारी होय छे.
आ रीते भिन्न भिन्न प्रजाओमा समयान्तरे अमुक कथास्वरूप के कथाघटको अनेकरूपे प्रचलित हतां, तेनो अभ्यास पाश्चात्य विद्वानोए करेलो छे. विश्वना परंपरागत कथासाहित्यनां स्वरूपोनी सूचि आने अने टोम्सने [ Arne and Thompson) तेमना 'The Type of the Folk Tale' नामना ग्रंथमां करेली छे. ते उपरांत टोम्सने तेना 'Motif Index of Folk Literature' ए नामना पांच खडोमां विभक्त पुस्तकमां कथाघटकोनी विस्तृत यादी तैयार करेली छे.
आपणा गुजराती साहित्यमां आ प्रकारनी शोध अने तेना अभ्यासनी दिशामां छेल्ला दशकामां कईक प्रगति थयेली जणाय छे. डॉ. हरिवल्लभ भायाणीने आ प्रकारनी शोध अने तेना स्वाध्याय माटे आद्य अने अग्रणी गणी शकाय. "सिंहासनवत्रीशी". "वेतालपचीशी" के "मदनमोहना' जेवी कथाओना ताणेवाणे वणायेलां आवां कथाघटकोनी तेम ज "जादई पक्षी", "ठगारुं मागणु अरे ठगारी चूकवणी", "मायावी सृष्टि", "आंधळे बहेंरु". "नाची फाटेली मोजडी अने देवदमनी", "एक सांताली लोककथा" के "लोककथामां
1. 'Folk-tale'-Stith Thompson-p. 415
Page #48
--------------------------------------------------------------------------
________________
४१
भूमिका आळ' इत्यादि कथास्वरूपों के कथाघटक विषयक विगतपूर्ण माहिती तेमणे आपेली छे.' डॉ. भारती वैद्ये तेमना • मध्यकालीन गससाहित्य १२मीथी १८मी सदी” नामना पुस्तकमां केटलीक रासकृतिओना अभ्यास परथी ते रासागत कथासामग्रीमांथी मळता विविध कथाघटकोनो अभ्यास करेलो छे. आ उपरांत डॉ. जनक दवेए पण एमना अप्रकाशित महानिबंधमां शामळनो "सिंहासनबत्रीशी " नो २८ थी ३१ सुधीनी वार्ताओनां केटलाक महत्त्वनां कथास्वरूप के कथाघटकोने तारवी, तेमनुं मुख्यत्वे भारतीय कथापरं पराने अनुलक्षीने तुलनात्मक अध्ययन करेल छे. * हिन्दीभाषामां डॉ. सत्येन्द्रे तेमना “मध्ययुगीन हिन्दी साहित्यका लोकतात्त्विक अध्ययन " - ए नामनां पुस्तकमां केटलीक कृतिओमांना कथाघटकोनी तारवणी करी तेने लगती कथा ओना उल्लेखा करेला छे. तेमां तेम " प्रद्युम्नचरित "मांना केटलांक कथाघटकोनी तारवणी करी तेने लगती कथाओ सामान्य उल्लेख कर्यो छे.
अहीं, में संपादित करेली वा. कमलशेखरनी " प्रद्युम्न कुमार चुपई "मांना केटलाक महत्त्वनां अने रसप्रद कथाघटकानी तारवणी करी तेने लगतां जेटलां बनी शक्यां छे तेटलां कथानको संकलन करी, तेनेा सामान्य अभ्यास रज् कर्यो छे. कथासाहित्यनी विशाळता अने तेनु वैविध्य एटल अगाध छे के अहीं तारवेला कथाघटको अंगे षण बीजी घणी दृष्टान्तात्मक माहिती प्राप्त थाय. अहीं में जे कथाघटकोनी तुलनात्मक माहिती आपी छे ते दृष्टांतरूप के प्रतिनिधिरूप ज समजवी. ते उपरात बीजा अनेक रूपान्तरो प्राप्त थवानी शक्यता छे ज. तुलनात्मक अध्ययन करेल कथाघटको :
( १ ) कोई बेदरकार - बेध्यान पात्र द्वारा ऋषि-मुनिनो अनादर अने तेथी क्रोधित बनेला ते ऋषि-मुनि द्वारा कराती शिक्षा.
(२) चित्रपट द्वारा अनुराग
(३) जन्मतां ज बाळक
अपहरण
(४) मोटा भाईनी इर्ष्या अने विजेता नानो भाई
(५) आळ - भ्रष्टाचारनु आळ
(६) परपुरुष साथै छानो संबंध राखती पत्नी
(७) छळ-कपट द्वारा दिव्य विद्या के वस्तुनी प्राप्ति
(८) पिताथी विखूटा पडेला पुत्रनुं अज्ञात पिता साथै युद्ध के स्पर्धा
१. कोई बेदरकार - बेध्यान पात्र द्वारा ऋषिमुनिना अनादर अने तेथी क्रोधित बनेला ते ऋषिमुनि द्वारा कराती शिक्षा :
-
भारतीय पौराणिक कथा - साहित्यमां ऋषिमुनिना पात्रनुं आलेखन अनेकविध रीते थयेलुं छे. तेओ दैत्योना संहारक के भक्तोना परम उद्धारक होय छे. तेओ पोताने प्रसन्न करनार व्यक्तिने वरदान आपी तेना जीवनने समृद्ध बनावी दे छे, तो क्यारेक तेओ पोताने क्रुद्ध करनार व्यक्तिना जीवनने क्रोधना साक्षात् अवतार बनी, छिन्नभिन्न करी नांखे छे. तेओने समृद्धिनी
१. जुओ तेमनुं पुस्तक 'शोध अने स्वाध्याय'.
२ "Shamal's Sinhasanbatrisi : Preparation of an Authenticedition of Tales Nos. 28, 29, 30, 31 from the original Mss together with a Critical Studay of These Tales", 1964.
६
Page #49
--------------------------------------------------------------------------
________________
४२
प्रद्युम्नकुमार-चुपई
स्पृहा करतां आदर अने भक्तिनी किंमत वधारे होय छे. आवा निस्पृह ऋषिमुनिओ, राजाओना मुख्य सलाहकार, संकट समयना मददगार अने हितेच्छु होई तेमने मन खूब पूज्य होय छे. आथी ज ज्यारे ज्यारे तेओनु आगमन पोताना शहेरमां, सभामां के अंतःपुरमां थाय छे त्यारे गजवीओ तेमना हृदयपूर्वकनो सत्कार करे छे. उत्तम चारित्र्यवाळा आ ऋषिमुनिओ कशा अवरोध विना छुटथो गमे त्यां गमे त्यारे जई आवी शके छे अने ज्यां ज्यां तेओ जाय आवे छे त्यां त्यां तेमनो आदरपूर्वक सत्कार करवामां आवे छे.
हवे ज्यारे आ ऋषिमुनिओर्नु आगमन थयुं होय त्यारे जो यजमान द्वारा तेमना सत्कार न थाय, तो स्वमानने सर्वथी अधिक मानता आ ऋषिमुनिओ, ते अविवेकी व्यक्तिने तेनी शिक्षा करी, तेनो बदलो ले छे. कथा-साहित्यमां आ प्रकारना दृष्टान्तो मळी आवे छे.
आवा दृष्टान्तोमां कदोक यजमान व्यक्ति कोई विचारमा तल्लीन होय अने ते वखते कोई ऋषिन आगमन थाय तो ते बेध्यान व्यक्ति तेमनो आदर करी शकती नथी. आथी क्रोधित बनी ते ऋषिमुनि तेने शिक्षा करे छे. पुराण-प्रसिद्ध दुष्यन्त-शकुन्तलानी कथामां दुष्यन्तना प्रेममां रंगायेली शकुन्तला, पोताना प्रियतमना विचारोमां लीन थई, बारणे आवेला दुर्वासा मनि प्रत्ये बेध्यान बनी, तेमनो सत्कार करवानो विवेक चूके छे त्यारे दुर्वासा मुनि पोताना आदरनो बदलो त्यांने त्यां ज शाप आण चूकवे छे-जे व्यक्तिना विचारोमा लीन थई ते मुनि-सत्कारनो धर्म चूके छे, ते ज व्यक्ति तेने, याद कराववा छतां पण शापना प्रभावे भूली जाय छे. व्यक्तिविशेष प्रत्येनो अति प्रेम विवेक चुकावी तेना ज वियोगर्नु कारण बने छे.
क्यारेक कोई व्यक्ति आगन्तुक ऋषिमुनिना बिहामणा वेषथी गभराई जई, तेनो आदरसत्कार करवाने बदले दूर भागे छे, त्यारे पण ऋषिमुनिनु स्वमान घवाय छे अने ते, अनादरनां वेरनो बदलो ले छे. 'त्रिषष्टेिशलाकापुरुषचरित्र'मां सीताचरित्र अंतर्गत आबु दृष्टान्त प्राप्त थाय छे. ते टूकमां आ प्रमाणे छे' :
जानकीना रूपनु वर्णन सांभळीने तेने जोवा माटे नारद ऋषि आव्या अने कन्यागृहमां प्रवेश को. पीळां नेत्रवाळा, पीळा वाळवाळा, मोटा पेटवाळा, हाथमा छत्री अने दंड राखनार, मात्र लंगोटी धारण करनार, कुश शरीरवाळा अने ऊडता वाळवाळा भयंकर नारदने जोई सीता भी कंपती कंपती 'हे मा!' अम बोलती गर्भागारमा पेसी गई. आ सांभळीने दासीओ तथा द्वारपाळो तत्काळ दोडी आव्या अने नारदने पकडी लीधा. त्यां तो शस्त्रधारी मारो नाम बोलता दोडी आल्या. नारद तेमनी पासे थी मांड मांड छटी, ऊडीने वैताढयगिरि
आव्या अने विचार्यु के 'आ गिरिनी दक्षिण श्रेणिमा भामंडळ नामे चन्द्रगतिनो युवान पुत्र छे तो एक पट ऊपर सीताने आलेखी तेने बतायु जेथी ते बळाकारे तेनुं हरण करशे अटले तेणेमारी ऊपर जे कर्यु तेनो चद ठो मळशे' आवो विचार करी नारदे सीतानु अनुपम रूप पट ऊपर आलेखी भामंडळने बत' घु, भने तेने सीता प्रत्ये कामातुर बनान्यो तेथी ते कामथी पीडाव' लाग्यो. ज्यारे चन्द्रगतिअ आ वात जाणी त्यारे नारदषिने बोलावी सीतानो वृत्तान्त पछयो. त्यारे नारदे सीताना खूब गुणगान गायां.
तेथी चन्द्रगतिए तरत ज जनकराजानु अपहरण कर्यु अने तेनी पुत्री सीतानी, पोताना पुत्र भामंडळ माटे, मागणी करी. पण जनके, 'ते तेो दशरथना पुत्र रामने आपी दीधेली छे' एम
१, त्रिषष्टि शलाकापुरुषच रेत्र'--पर्व ७- सर्ग ४. गुज. भाषांतर--पृ. ७१
Page #50
--------------------------------------------------------------------------
________________
भूमिका
४३
कझुं. त्यारे चन्द्रगतिअ तेने बे धनुष्य आप्या अने कछु के, 'जो आ बे धनुष्यमाथी एकने पण राम चढावशे तो तेनाथी अमे पराजित थई गया एम समजशु, पछी ते तमारी पुत्री सीताने सुखेथी परणे'. त्यारबाद रामे ते धनुष्य मिथिलानी भर सभामां चढायुं त्यारे चन्द्रगति विलखो थई भामंडळ सहित पोताने स्थानके गयो.
आम अह्न ऋषि, पोतानो अनादर करावनार व्यक्तिनुं अपहरण करावी तेने शिक्षा करे छे. ए ज रीते 'त्रिषष्टिशलाका पुरुष ० ' मां 'द्रौपदी चरित्र' मां पण आ कथाघटकने निरूपता वृत्तान्तनुं कथन छे. कथानो टूक सार आ प्रमाणे छे :
पांडवो ज्यारे हस्तिनापुरमां द्रौपदी साधे हर्षथी क्रीडा करता हता त्यारे एक वखत नारद फरता फरता द्रौपदीने घेर आव्या. त्यारे आ अविरत छे एम जाणीने द्रौपदीए तेमनो सत्कार कर्यो नहि. तेथी आ द्रौपदी केवी रीते दुःखी थाय एम विचारता नारद धातकीखण्डना भरतक्षेत्रमां गया. त्यांचंपानगरीमा रहेनारा कपिल नामना वासुदेवनो सेवक, अमरकंका नगरीनो स्वामो पद्मनाभ राजा व्यभिचारी हतो तेनी पासे आव्या. त्यारे तेणे पोताना अन्तःपुरनी सर्वं स्त्रीओ बतावीने क' के 'हे नारद ! तमे आवी स्त्रीओ कोई स्थानके जोई छे ?' ते वखते नारदे द्रौपदीना रूपना तेनी पासे वखाण कर्यां अने चाल्या गया.
त्यारबाद पद्मनाभ राजाए, द्रौपदीने मेळववा पाताळवासी देवनी मददथी, तेनुं अपहरण क अने भोग भोगववानुं जणान्यु, द्रौपदीए कह्यु' के 'एक मासनी अंदर जो कोई मारो संबंधी अहीं नहीं आवे तो पछी हुं तमारुं वचन मान्य राखीश' त्यारबाद कृष्ण, पद्मनाभ साथै भयंकर युद्ध खेली, द्रौपदीने पाछी लाव्या.
आम ऋषि-मुनिनो ज्यारे ज्यारे बेदरकारी के बेध्यानपणाथी अनादर थाय छे, त्यारे तेना फळरूपे व्यक्तिने मुनि द्वारा ज लवातां संकटो सहन करना पडे छे. (२) चित्रपट द्वारा अनुराग'
कथासाहित्यमा नायक-नायिकाना प्रणय संबंधनी अनेक कथाओ अनेक रीते कहेवाई छे. प्रणयनी ए लीलाओनी रसाळ कथाओए कथासाहित्यनी ताजगीने ओसरवा नथी दीधी. आ प्रणयकथाओमां नायक-नायिकाना सफळ के विफळ प्रणयनी कथाओ केम अने केवी रीते शरू थाय छे तेनो वृत्तान्त खरेखर रसिक छे.
सामाजिक अने नैतिक बंधनो वच्चे पण नायक के नायिकाना हृदयम प्रेमनु प्रथम वार बीजारोपण अनेक रीते थई जतु होय छे. ज्यां स्त्री-पुरुष छूटथी एक बीजाने मळतां होय त्यां तो प्रथम दृष्टिए प्रेम जागी जवानी शक्यता होय छे, पण ज्यां नायक के नायिका एक बीजाथी दूर अने अन्योन्यथी अजाण होय छे त्यां कथाकार माटे उभयना प्रणय-मिलननो कोयडो आवीने ऊभो रहे छे. आवी परिस्थितिमां कथाकार नायक-नायिकाना हृदयमां अनुराग जन्माववानी इतर अनेक योजनाओ शोधी पोतानी कथामां निरूपे छे.
नायक-नायिकाना हृदयमां प्रेमांकुर त्रण रीते फूटता होय छे-दर्शनथ, श्रवणथी अने स्मरणथी एक बीजानी पासे के दूर वसता नायक-नायिका, अमुक वस्तु के
२
व्यक्तिने जुए
१.
२
Motif - Index T11. 2 मां आ कथाघटक समाववामां आव्युं छे.
आ विषय परत्वे डॉ. हरिवल्लभ भायाणीना एक संशोधनात्मक लेख 'प्रेमकथा ओमां अनुरागबीजनो उद्गम ' - ' शोध अने स्वाध्याय' - पृ. २८७ - २८९ मां सारी एवी माहिती आपेली छे.
Page #51
--------------------------------------------------------------------------
________________
४४
प्रद्युम्नकुमार-चुप
के. सांभळे अने तेनाथी पूर्वभवनुं स्मरण थतां आगळना भवना पति-पत्नी तरीकेनो पोतानो संबंध जुए अने पछी अन्योन्य प्रत्ये प्रीति जन्मे – आम स्मरण द्वारा बनतु होय छे.
-
श्रवण द्वारा ज्यां अन्योन्य प्रत्ये प्रीति जन्माववानी योजना होय छे, त्यां कोई साधु, मुसाफर, पंखी के नारद जेवी देवी व्यक्ति के शक्ति दूर वसतां नायक-नायिकानां रूपगुणनुं एकबीजानी पासे आवी ब्यान करता होय छे अने ए रीते उभयनी हृदयभूमिमां प्रेमनां बीज रोपी जतां होय छे. दर्शन, प्रत्यक्ष अने परोक्ष उभय प्रकारनं होई, ज्यां प्रत्यक्ष दर्शननो अनुराग जन्माववामां उपयोग थाय छे त्यां नायक-नायिका कोई उत्सवप्रसंगे कोई स्थळे भेगां मळी जनां होय छे, कदि देवमंदिरे के कदि नदी-सरोवर- कांठे अनायासे मळी जतां होय छे, कदि संकटग्रस्त नायिकाने बचावता नायक साथे तेनुं मिलन योजाय छे, तो कदिक सहाध्यायीरूपे विद्याभ्यास करतां पण तेओ प्रेममां पडतां होय छे. ज्यां परोक्षदर्शन द्वारा नायक-नायिकाना हृदयमां प्रेम प्रकटाववानो होय त्यां ते परोक्षदर्शन चित्र, मूर्ति के स्वप्न द्वारा कराववामां आवे छे.
अहीं 'चित्र द्वारा अनुराग' - ए कथा - घटकनो, केटलीक कथाओ लईने सामान्य अभ्यास रजू कर्यो छे. डॉ हरिवल्लभ भायाणीए, चित्रकार पासे थी राजकुमारीनुं चित्र जोईने प्रेममां पडवानी घटना परत्वे मल्लि, मालविका - अमिमित्र, उदयन - रत्नावलीनी कथाओनो उल्लेख करेलो छे. आ उपरांत 'त्रिषष्टिशलाकापुरुष ० ' मां नेमिनाथादिना चरित्रमां धनुकुमारनी कथामां आ कथाघटकनुं निरूपण थयेलुं छे. टू कमां कथासार आ प्रमाणे छे :
1
जंबुद्विपमां अचळपुर नामना नगरमा विक्रमधन नामना राजाने धारिणी नामनी राणीथी धनुकुमार नामनो पुत्र थयो. अनुक्रमे ते यौवनने प्राप्त थयो. ए अरसामां कुसुमपुर नामना नगरमा सिंह नामना राजाने विमळा नामनी राणोथी धनवती नामनी पुत्री उत्पन्न थई. अनुक्रमे ते पण यौवनमां आवी त्यारे वसंतऋतुमां उद्याननी शोभा जोवा ते सखीओ साथे त्यां गई. तेवामां अशोकवृक्ष नीचे हाथम चित्रपट लईने ऊभो रहेलो एक चित्रकार तेना जोवामां आव्यो. तेना हाथमांथी धनवतीनी सखीए बळात्कारे चित्रपट लई लीधुं तो तेमां सुंदर पुरुषनुं रूप चित्रे
तु तेनी सखीए ज्यारे आ रूपवान विषे चित्रकार ने पूछयुं त्यारे तेणे धनकुमारनं नाम जणायुं. ज्यारे नवती आ चित्र जोयुं त्यारे ते तेना अनुरागमां अत्यन्त लोन थई गई अने अनेक प्रकारनी प्रेमपीडा अनुभववा लागी ...
'समराईच्चकहा ' मां समरादित्यराजाना आठमा भवनी कथा - ' गुणचन्द्र अने रत्नवती' नी कथाम पण 'चित्र द्वारा अनुराग'नुं कथाघटक निरूपायुं छे. कथा टूकमां आम छेः *
अयोध्या नामनी नगरीमां मैत्रबळ नामना राजाने पद्मावती नामनी राणीथी गुणचन्द्र नामे पुत्र थयो. ते चित्रकळानो शोखीन हतो. ए अरसामां शंखपुरना राजा शंखायननी राणी कान्तिमतीथी रत्नवती नामनी पुत्री हती. तेना मातापिताए चतुर पुरुषोने तेने योग्य वर माटेनी शोध करवा मोकल्या, तेमांथी चित्रमती अने भूषण बन्ने अयोध्यामां आव्यां त्यां गुणचन्द्रने जोयो पण तेनो अपूर्व कान्ति चित्रमां चीतरी शक्या नहि, तेथी तेओ पाछा शंखपुरमां गया अने रत्नवती एक चित्र दोरी पाछा अयोध्या आवो कुमारने मळया अने तेनी सामे रत्नवतोनुं १. 'त्रिषष्टिशलाका पुरुष चरित्र' - पर्व ८- सर्ग १ गुजराती भाषांतर पृ. १९८ २. हरिभद्राचार्य - 'समराइच्च-कहा' गुजराती भाषांतर - हेमसागरसूरि पृष्ठांक- २९ मु.
Page #52
--------------------------------------------------------------------------
________________
भूमिका
४५
चित्रपट मूक्युं ते वखते गुणचन्द्रे चित्रनां वखाण करी, 'तमे आ रूप क्यां निहाळयुं छे ?' एम पूछ एटले बन्नेए तेने रत्नवतीनो वृत्तान्त जणाव्यो त्यारथी गुणचन्द्र रत्नवती प्रत्ये अभिलाषावाळो थयो. तेणे पोते रत्नवतीनुं चित्र आलेख्यु बनेए ते लईने, तथा गुणचन्द्रनी छबी चीतरी लईने ते रत्नवतीने बतावी त्यारे रत्नवती गुणचन्द्र प्रत्ये अनुरागवाळी थई ..
उपर्युक्त बे कथाओमां जेम पहेली कथामां चित्रकार अने बीजी कथामां चित्रमती तथा भूषण द्वारा चित्रनी प्राप्ति थतां नायक-नायिका वच्चे अनुराग प्रकटे छे तो वळी 'राणी चेलणा अने श्रेणिकराजानी कथा मां कोई एक तापसी द्वारा नायकने नायिकाना चित्रनी प्राप्ति थतां ते नायिकाने प्राप्त करवानी योजना करे छे. ट्रकमां कथा आ प्रमाणे छे' :
एकदा कोई एक तापसी चेटकराजानी सुज्येष्टा नामनी पुत्रीनुं चित्र लईने श्रे णकराजानी सभामां आवी. राजाने ते चित्र जोईने ते राजकन्याने परणवानी इच्छा थई. तेथी राजाए ते विषे अभयकुमारने आज्ञा करी. एटले अभयकुमारे गांधीना वेशे चेटकराजानी विशाखानगरीमां जई राजाना अंतःपुरनी पासे दुकान मांडी. पछी ज्यारे सुज्येष्टानी दासी तेनी दुकाने कंई वस्तु लेवा आवे त्यारे अभयकुमार श्रेणिकराजाना चित्रनी पूजा करे. ते जोईने एकदा दासीए तेने पूछ के 'आ कोनुं चित्र छे !' त्यारे तेणे 'श्रेणिकराजानु छे' -एम क. ते सांभळीने दासीए अभयकुमार पासेथी ते चित्र मागी लईने सुज्येष्टाने बताव्यु ते जोई सुज्येष्ठा कामातुर थईने बोली के, 'हे दासी ! आ राजा मारो पति थाय.' ते वात दासीए अभयकुमारने जणावी त्यारे अभयकुमारे तेना अंतःपुरथी मांडी राजगृह नगरी सुधीनी सुरंग खोदावी. ते रस्ते पिताने अमुक दिवसे त्यां आववानुं जणान्युं ..
आम नायक के नायिका चित्र अनायासे कोई व्यक्ति पासेथी प्राप्त थाय छे, कां तो कोई व्यक्ति पोते ज चाहीने ते चित्र बतावे छे. कां तो चित्रने अमुक विशेष व्यक्ति पासे पहोंचाडवा कोई योजना घडवामां आवे छे.
अनुराग जगाववा युक्तिपूर्वक इच्छित व्यक्तिने चित्र बताववानी वात, 'कथासरित्सागर' मांनी 'पृथ्वीरूप राजा अने रूपलता राणी'नी कथामां आलेखवामां आवी छे. आ कथानो टूक सार आ प्रमाणे छे :
प्रतिष्ठान नामना नगरमां पृथ्वीरूप नामना राजा पासे बे बौद्ध साधुओए मुक्तिपुरना राजानी रूपलता नामनी कानां रूपगुणना वखाण कर्या. आ सांभळी पृथ्वीरूप राजा कामातुर थयो अने तेणे पोताना कुमारिदत्त नामना चित्रकार पासे पोतानी छबी चितरावी अने कछु के 'तु' आ छबी लई आबे साधुओ साथे मुक्तिपुर जई रूपधर राजा अने रूपलताने कोई युक्तिथी आ मारी छबी बतावजे. अने रूपलतानी छत्री चित्रमां आलेखी अहीं मारी पासे लावजे. '
मुक्तिपुरमां पहोंची ते चिताराए राजानी छबीवाळो पडदो मुख्य बजारमां लटकावी सर्वने जगान्यु' के 'मारा जेवो श्रेष्ठ चितारो दुनियामां नथी. ' राजा रूपधरे आ सांभळी चिताराने बोल अने पोतानी पुत्री रूपलतानुं चित्र आलेखवा कं. चिताराए रूपलताने कपड़ा उपर तादृश आलेखी. ते जोई योग्य जमाई मेळववानी इच्छाथी राजाए योग्य पुरुष जो जोयो होय 'उपदेशप्रासाद' - स्तंभ ३ जो व्याख्यान ३६ मुं, पृ. १८६ - कर्ता विजयलक्ष्मीसूरि
१.
[ गुज. भाषां. ]
'कथासरित्सागर' - 'अलंकारवती लंबक' - तरंग १ लो - गुज. भाषांतर. पृ. ६१७
२.
Page #53
--------------------------------------------------------------------------
________________
प्रद्युम्नकुमार-चुपई
तो चिताराने पूछयु. आ सांभळी चिताराए पृथ्वीरूप राजानां वखाण करी तेनी छची बतावी. रूपलता आ चित्र जोतां ज अत्यंत कामातुर थई गई. ते जोई रूपधर राजाए चिताराने रूपलतानु चित्र आपी पृथ्वीरूप राजा पासे मोकल्यो. चित्रकारे पृथ्वीरूप राजा पासे आवी संदेशो कह्यो अने चित्रमा आलेखेली रूपलता बतावी. पृथ्वीरूपराजा ते जोई आभो ज बनी गयो. बीजे दिवसे ते मुक्तिपुर तरफ विदाय थयो. इत्यादि.......
उपग्नी कथामां, चित्रकार बजारमा राजानी छचीवाळो पडदो लटकावी राजाने आकर्षेछ, ज्यारे कथासरित्सागर'नी 'कनकवर्ष अने मदनसुंदरी'नी कथामां एक चित्रकार पोतान) निपुणतासूचक एक पडदो सिंहपोळ उपर लटकावी राजकंवरने आकर्षे छे. ट्रकमां कथा आम छे':
कना
कनकपुर नामना नगरमा प्रियदर्शननी राणी यशोधराने पेटे कनकवर्ष नामनो कुमार जन्म्यो हतो. एक दिवस आ कनकवर्ष चित्रप्रासादमां गयो, त्यां प्रतिहारे आवीने कां के विदर्भदेशमाथी रोलदेव नामनो चित्रकार आव्यो छे. पोतानी निपुणतासूचक एक पडदो सिहपोळ पर लटकावी रहेलो ते पोताने सर्वश्रेष्ठ गणे छे.' राजाए तेने तेडी मंगाव्यो अने चित्रकारनी विनतीथी तेने पोतार्नु चित्र दोरवा जणाव्युं, त्यारे त्यां बेठेलाओए कह्य के 'आ चित्रमा एकला राजाने जोवा नथी इच्छता, माटे चितरेली भींत उपर जे राणीनां चित्र आलेखेलां छे तेमाथी योग्य राणीने राजानी पडखे आलेखो.' त्यारे चित्रकारे कर्तुं के, 'आमाथी कोई राणी कनकवर्षने योग्य नती, परन्तु तेने योग्य विदर्भदेशमा कंडिनपुर नगरमां राजा देवशक्तिनी अनंतवती राणीना मदनसुंदरी नामनी राजकन्या छे.' एम कही, ए मदनसुंदरी पण राजा प्रत्ये कामातुर थई कामज्वरमां प्रजळे छे एम जगाव्यु. ते सांभळी राजाए ए मदनसुदरीनु चित्र रोलदेव पासे माग्यु त्यारे एक पेटीमाथी एक सुंदर चित्रपटमां आलेखेली मदनसुंदरी तेणे राजाने बतावी. कन्याद् अदभुत लावण्य जोई राजा तरत ज मदनवश थई गयो अने मदनसुंदरीनुं मागुं कर्यु. देवशक्ति राजाए ते वचन कबूल कयु।
आगळ जोयुं तेम कोई कथामां तापसी के कोई कथामां चित्रकार, चित्रद्वारा अनुराग उपजावधामा निमित्तरूप थाय छे. 'कथासरित्सागर'मांनी 'सुंदरसेन अने मंदारवतीनी कथा'मां कोई एक साधुडी चित्र द्वारा नायक-नायिकामां अनुराग उत्पन्न करे छे. टूकमां कथा आ प्रमाणे छे:
नैषधदेशनो राजकुमार सुंदरसेन मृगया माटे वनमा जतो हतो एवामां कात्यायनी नामनी माधडीप तेनी पासे आवी, 'राजकुमारनो विजय थाओ'-एम का', पण राजकुमारे सांभळ्य नहि तेथी ते साधुडी गुस्से थईने बोली के 'जुवानी अने बीजा गुणोने लईने तने मत्सर छे, पण ज्यारे त हंसद्वीपना राजानी मंदारवती कन्याने परणीश त्यारे तुं एटलो मदमत्त थर्डश के कोईन सांभळोश नहि !'
गजकुमारे मंदारवती विषे पूछयुं त्यारे साधुडीए तेना गुणगान गायां. त्यारबाद राजकुमारे तेन रूप बताववा का त्यारे साधुडीए झोळीमांथी वांसनी एक भू गळीमा राखेली, एक कपडा पर दारेलो मंदारवतीनी छवी राजकुमारने बतावो. चित्र जोतां ज सुंदरसेन स्तब्ध बनी गयो अने १. कथासरित्सागर'--'अलंकारवती लंक' -तरंग ५मो-गुज भाषां. पृ ६८१. २. 'कथासरित्सागर'-'शशांकवती लंबक'-तरंग ३४मो, गुज. भाषां. पृ. १२१९.
Page #54
--------------------------------------------------------------------------
________________
भूमिका
तेने कामज्वर लागु पड्यो. आ वात राजाराणीनां जाणवामां आवतां मंदारवतीना पिता पासे मागुं मोकला. दूते मंदारदेवना दरबारमां जई राजकुमार सुंदरसेननु चित्र बताव्यु तेने जोई राजकुमारी अने राजाराणी प्रसन्न थयां अने मार्ग कबूल्यु.
'कथासरित्सागर' मां 'कमलाकर अने हंसावलीनी कथा'मां पण युक्तिपूर्वक चित्र द्वारा अनुराग प्रकटाववानो वृत्तान्त आवे छे. आ कथानो टूक सार नीचे प्रमाणे छे' :
कोशलानगरीमां विमळाकर राजाने स्वरूपवान एवो कमळाकर नामे पुत्र हतो. तेना एक परिचित बंदीने वारंवार एक गाथा गातो जोई, ते विषे तेने पूछयुं त्यारे बंदीजन बोल्यो के " एकवार विदिशा नगरीनी राजकुंवरी हंसावलीनुं नृत्य अने रूप जोतां मने एम थयुं के आ कन्याने योग्य कमळाकर कुमार ज छे, तेथी ते आपने वरे ए माटे में युक्ति करी. नृत्य थई रह्या पछी हु राजमहेलना बारणा उपर गयो अने एक चित्र तैयार करी, तेनो पदो लटकावीने बधाने जणाव्युं के, 'जे कोई मारी साथे चित्र दोवानी स्पर्धा करवा इच्छतो होय तेणे कोई चित्र चीतवु' आखा गाममां कोईए पराक्रम बताव्यु नहि. एटले राजाए मने बोलाव्यो अने पोतानी पुत्रीना महेलमां चित्रकामनो मने अधिकारी निम्यो. पछी राजपुत्रीना महेलना ओरमां भींत पर में तमारु चित्र दोर्यु अने राजकुमारीने कोई पण उपाये तमागे परिचय आपवानो उपाय शोधावा लाग्यो.
.
त्यारपछी मारा मित्रनी साथे गुप्त संकेत करीने तेने शीखव्युं के 'तु' महेलमां जई गांडपणनो ढोंग करीने कमळाकरना गुण, राजकन्या तथा तेना भाईओ आगळ गाजे'. मारा मित्रे तेप्रमाणे त्यारे राजकुमारीए मने, “आ गांडो कोना गुणो गाय छे अने तमे कोनुं चित्र दोर्यु छे ?' एम पू. में तमारा खून गुणगान गायां तेी तेनुं मन प्रेमातुर भई गयुं. एवामां तेनो चाप त्यां आव्यो अने तेणे मने अने मारा मित्रने बहार काढी मूक्या. परंतु राजकन्याने तमारो विरह सालतां मने मंदिरे बोलावी वस्त्रोनी भेट आपी, तेमांना एक वस्त्रन भरेली कोरवां तमारे माटे एक गाथा लखेली जणाई. ए हुं वारंवार गाउ छु. - एम कही बंदीए गाथावाळु वस्त्र कमलाकरने बताव्यु अने तेथी ते पण प्रेमातुर थई गयो.
४७
कोई चित्रकार, नायकने नायिका प्रत्ये अनुराग प्रकटाववा माटे नहि, परंतु आकस्मिक तेज नायिका चित्रपट नायकने आपे, अने ते जोई नायक ते नायिका प्रत्ये कामातुर बने तेवी एक कथा पण 'कथासरित्सागर'नी 'मलयवर्तीनी कथा' मां निरूपाई छे. कथा टूकमां आ प्रमाणे छे":
१.
२.
विक्रमादित्य राजानी पासे नगरस्वामी नामनो एक फक्कड चितारो हतो. ते बब्बे दिवसे एक एक नवी स्त्रीनं चित्र चीतरीने राजाने आपतो. एक दिवस उत्सवने कारणे चित्र दोरायु नहि. राजाने चित्र अर्पण करवानो दिवस आव्यो त्यारे ते चिंतामां पड्यो एटलामां दूरदेशवासी एक पथिक तेनी पसे आवी चढ्यो अने ते नगरस्वामीने एक पोथी आपी चाल्यो गयो. पोथी खोलतां तेमां नगरस्वामीए लावण्यमयी स्त्रीनं चित्रपट जोयुं. आथी आनन्दित थई नगरस्वामीए ते दिवसे ते ज चित्र राजाने भेट धर्यु. चित्र जोतां ज राजा खूब विस्मय पाम्यो अने
" कथासरित्सागर " शशांकवती लंबक - तरंग ४थ गुज. भाषा. पृ. ९२६. 'कथासरित्सागर' - 'विषमशील लंबक ' -- तरंग ३जो-गुज. भाषां. पृ. १५३१.
Page #55
--------------------------------------------------------------------------
________________
४८
प्रधुम्नकुमार-चुपई
चिताराने साची हकीकत जणाववा को. त्यारे नगरस्वामीए साचेभाचो वृत्तान्त राजाने जणाव्यो. राजान मन ए चित्रपटमा चीतरेली सुंदरी उपर बेहुं अने ते तेनी ज झंखना करवा लाग्यो.
एक दिवस राजाए एक स्वप्नमां ए ज स्त्रीने बीजा द्वीपमा प्रत्यक्ष जोई अने तेने कामज्वर लागु पड्यो. भद्रायुध नामना प्रतिहारोए राजाने सोसानो जोई तेनु कारण पूछय त्यारे राजाए स्वप्नमां जोयेलो सर्व वृत्तान्त कह्यो.
त्यारबाद भद्रायुधना कह्या मुजब राजाए स्वप्नमां जोयेल नगर. राजमार्ग वगेरे चीतरीने आप्यु, प्रतिहारे एक नवीन मठ करावी तेमां ते चित्र लईने टांग्यु. एक दिवस त्यां शंबरसिद्धि नामना भाटे ते चित्र जोयुं अने तेने ओळख्यु तेथी गजसेव को तेने राजा पासे लई गया. त्यां तेणे, राजाने जेवू स्पप्न आव्यु हतुं ते ज प्रमाणे मलयवती नामनी राजकन्यानी वात करी अने कह्म के 'मलयवती पण स्वप्नमां जे वीरपुरुषने जोयो छे, तेना कामज्वरमां बळी रही छे,
आम अहीं एक परदेशी द्वारा अजाणताथी ज नायिकानुं चित्रपट प्राप्त थाय छे. परन्तु घणीवार नायकने नायिकानु चित्र केवळ आकस्मिक ज प्राप्त थाय छे. कोई व्यक्ति ते चित्र तेने आपती नथी. उत्तरप्रदेशनी एक लोककथामां नायकने आम आकस्मिक प्राप्त थता नायिकाना चित्रनो वृत्तान्त छे, जेना वडे ते नायिका प्रत्ये अनुरक्त थाय छे. कमां कथा आ प्रमाणे छे':
एक दिवस एक राजकुमार अने मंत्रोपुत्र के जेओ जिगरजान मित्र हता, तेओ शिकार माटे वनमां गया. रस्तामां राजपुत्र तरस्यो थयो तेथी तेने वृक्ष नीचे बेसाडी मंत्रीपुत्र जळनी शोधमां नीकळयो. पाणी शोधतो शोधतो ते एक तळावने तीरे आवी पहोंच्यो अने त्यांथी पाणी
मारने पायुं. पाणीनो स्वाद चाखी राजकुमारने तळाव जोवानी इच्छा थई. मंत्री तेने बताववा तैयार थयो, परंतु तेने तरत ज याद आव्यु के तळावने तीरे पोते एक स्वरूपवान कन्यानी छबी जोई हती. हवे जो राजकुमार ए छबी जोशे तो कदाच ते तेने परणवानो आग्रह करशे. तेथी तेणे राजकुमारने 'आ तळाव गंदु छे' एम कही न जवा विनव्यो. पण राजकुमार मान्यो नहि. अंते तळावने तीरे तेओ बन्ने गया अने तरत ज राजकुमारे त्यां पेली सौन्दर्यवान कन्यानं चित्र पडेलु जोयु अने तरत ज ते प्रेमातुर थई गयो. तेणे मंत्रीपुत्रने का के 'जयां सुधी मने आ चित्रमांनी कन्या परणाववामां नहि आवे त्यां सुधी हुँ अहींथी खसीश नहि ' प्रधानपुत्रे तेने कन्या लावी आपवानु वचन आप्यु, इत्यादि .....
सिंधनी लोककथामां पण एक आम आकस्मिक रीते ज नायकने नापिकान चित्र प्राप्त थाय छे, एवं कथानक. प्रचलित छे. कथानु शीर्षक छे-"आठमी चावा". टूकमां कथा आ प्रमाणे छे' :
सिंधदेशमा एक राजाने मोटी उमरे एक पुत्र थयो राजा ज्यारे मरणपथारीए हतो त्यारे तेणे प्रधानने बोलावीने पोताना आठ खजानानी आठ चावीओ सुप्रत करी अने कहयं के, 'ज्यारे राजकुमार उमरलायक थाय त्यारे प्रथम सात खजानानी चावी तेने आपजो. पण ज्यां सुधी ए पांच वर्ष सुधी बराबर राज न चलावे त्यां सुधी आठमा खजानानी चावी न आपता' प्रधाने ते वात कबूली अने राजाए प्राण छोड़या.
ज्यारे राजकुमार उम्मरलायक थयो त्यारे प्रधाने प्रथम सात खजानानी सात चावी तेने सुप्रत १. 'Folktales of Hindustan'-by Willian Cro.pke, C. S. जुओ :
Indian Antiquary' Vol XXI, p. 185
Page #56
--------------------------------------------------------------------------
________________
भूमिका
४९ केरी. आ साते चाबीओथी राजकुमारे साते खजाना खोली जोया अने तेमांथी सोनु, चांदी अने रत्नो मळेलो जोई खुश खुश थयो अने प्रधाननी वफादारी माटे खूब राजी थयो.
वखत जतां कोई एक दुष्ट वृद्धपुरुष के जे प्रधाननी अदेखाई करतो हतो, तेणे राजकुमार पासे आठमा खजानानी चावीनी चाडी खाधी. राजकुमारे प्रधानने धमकावीने पूछतां तेणे आठमी चावी आण. तरत ज राजकुमारे आठमो खजानो खोल्यो त्यारे ते साव खालीखम हतो. मात्र त्यां एक लावण्यमयी कन्यानुं चित्र हतु. आ चित्र जोतां ज राजकुमार तेना अगाध प्रेममां डूबी गयो अने धीमे धीमे भान भूली जतां मूर्छा खाई पडी गयो.
आम जोई शकाय छे के "चित्रद्वारा अनुरागर्नु कथानक कथा-साहित्यमा व्यापक छे. चित्रकार, साधु, प्रवासी, अनेक प्रकारनी व्यक्तिओ द्वारा अनेक प्रकारे अवनवा स्थळोएथी, नायक-नायिकाने एकमेकनी छबीओ प्राप्त थाय छे. उपरांत आकस्मिक रीते कोईपण व्यक्तिनी मदद विना अनायासे ज नायक-नायिकाने एकमेकनी छबी मळी जाय अने ते जोतां ज जोनार पात्रनी हृदयभूमिमां प्रेमबीज रोपाई जाय ए प्रकारनां वृत्तान्तनो, प्रेमकथाकारोए पोतानी कथाओमां उपयोग करी नायक-नायिकानो प्रणयमिलनां गोठवेलां छे. (३) जन्मतां ज बाळकनु अपहरण
पूर्वजन्मना कोई वेरने लईने अन्य भवमां कोई व्यक्ति तेना बदलारूपे पोताना वेरीन अपहरण करी तेने मारी नाखवानो प्रयास करे एवा प्रसंगर्नु निरूपण विशिष्ट रीते जैनपरंपराना कथासाहित्यमांनी केटलीक कथाओमां थयुं छे. तेमांय खास करीने वेरीनो ज्यारे हजी मात्र क्यांक जन्म ज थयो होय छे त्यां तो पूर्वजन्मनं :वेर याद आवतां ते व्यक्ति तेनं अपहरण करे ए कथाघटकनो, अहीं एक-बे उपलब्ध थयेलां दृष्टान्तो द्वारा विचार कर्यो छे.
धूमकेतु प्रधुम्नन जन्मतांवेंत ज अपहरण करे छे कारण के पूर्वभवमां प्रद्युम्न ज्यारे मधु नामनो राजा हतो त्यारे तेणे, धूमकेतु के ने पूर्वजन्ममां कनकरथ नामनो राजा हतो, तेनी चन्द्राभा नामनी स्वरूपवान स्त्रीनें कपटथी अपहरण कयु हतु: आम गत जन्ममा पोतानी स्त्रीना अपहरणना वेरना बदलारूपे आ भवे धूमकेतु प्रद्युम्न जन्मतां ज अपहरण करे छे.
आ ज प्रमाणे 'त्रिषष्टिशलाकापुरुष'मां सीताना भाई भामंडळनु पण जन्मतांवेंत ज अपहरण थाय छे. टूकमां कथा आ प्रमाणे छः'
जंबूद्वीपना भरतक्षेत्रमा दारु नामना गाममां वसुभूति नामना ब्राह्मणने अनुकोशा नामनी स्त्रीथी अतिभूति नामे एक पुत्र थयो. अतिभूतिने सरसा नामे पत्नी हतो. एक वखत क्यान नामना ब्राह्मणे अनुरागथी तेनुं हरण कयु. अतिभाते तेने शोधवाने पृथ्वी पर भमवा लाग्यो
अने ए पुत्र-पुत्रवधूनी पछवाडे अनुकोशा अने वसुभूति पण भमवा लाग्या. पण पुत्र अने पुत्रवधूनो पत्तो न लाग्यो. अंते मुनिनी पासेथी धर्म सांभळीने बन्ने जणाए व्रत ग्रहण कर्यु. काळयोगे मृत्यु पामी तेओ सौधर्म देवलोकमां देवता थया. वसुभूति त्यांथी च्यवी वैताढय पर्वत पर रथनूपुर नगग्नो चन्द्रगति नामे राजा थयो अने अनुकोशा तेनी पत्नी पुष्पवती थई. सरसा दीक्षा लई मृत्यु पामी, ईशान देवलोकमां देवीपणे उत्पन्न थई. सरसाना विरहमां पीडित अतिभूति मृत्यु पामी, अनेक भवभवान्तरो ममी, विदग्ध नामना नगरमा प्रकाशम्हि राजानी प्रवरावली
१. 'त्रिषष्टिशलाकापुरुषचरित्र'-पर्व ७मु, सर्ग चोथो.
Page #57
--------------------------------------------------------------------------
________________
प्रद्युम्नकुमार-चुपई
नामनी राणीथी कुंडलमंडित नामनो पुत्र थयो. पेलो क्यान चिरकाळ भवभवान्तर भमी, चक्रपुर नगरना राजा चक्रध्वजना पुरोहितनो पिंगल नामे पुत्र थयो. आ पिंगटने चक्रध्वजनी अतिसुंदरी नामनी पुत्रीनो साथे एक गुरु पासे भणतां परस्पर अनुराग थयो अने पिंगल छळथी अतिसुं अपहरण करी विदग्ध नगरे चाल्यो गयो. त्यां राजपुत्र कु डलमंडितना जोवामां ते अतिसुंदरी आवतां तणे तेनं हरण कयें. आथी पिंगल उन्मत्त थई पृथ्वी पर भमत्रा लाग्यो, त्यारबाद तेणे दीक्षा लीधी.
आ कुडलमंडित त्यांथी मृत्यु पामी मिथिला नामनी नगरीमा जनकराजानी स्त्री विदेहाना गर्भमां पुत्रपणे उत्पन्न थयो. पिंगल मृत्यु पामी सौधर्म कल्पमां देवता थयो. तेणे अवधिज्ञानथी
वैभव जोयो, एटले पोताना पूर्वभवना वेरी कुडलमंडितने जनकराजाना पुत्ररूपे जन्मतो दीठो. पूर्वजन्मना वैरथी कोप करीने तेणे तेने जन्मतां ज हरी लीधो, अने विचार्यु के, आने शिलातळ उपर अफळावी हणी नाणु.' पण बाळहत्या बडे वळी पाछा अनंत भव परिभ्रमण करवू पडे ए बीकथी तेणे बाळकने वैतादयगिरिनी श्रेणीमां रथनूपुर नगरना नदनोद्यान त्यांना राजा चक्रगतिने ते प्राप्त थयो अने तेनुं नाम भामंडळ पाड्यु.
आम भवोभवनु अपहरणनु वेर व्यक्ति पासे जन्मतावेत ज तेना वेरीरूप बाळकनु अपहरण करावे छे. तो केटलीक वार भवान्तरना इतर प्रकारना बेरथी पण व्यक्ति पोताना वेरी बाळकनु आ जन्ममा अपहरण करे छे. 'कुवलयमाला'मा 'वनसुदरी एणिकानी कथा'मां बाळकनुं जन्मतावेतं ज आ रीते अपहरण थाय छे. ढूंकमां कथा आ प्रमाणे छे'
उज्जयिनी नगरीमां श्रीवत्स नामना राजाने श्रीवर्धन नामे पुत्र हतो अने श्रीमती नामनी एक पुत्री हती. तेने विजय नामना राजाना सिंह नामना पुत्र साथे परणावी हती. आ सिंहने निर्दयपणे गमे तेम लूटफाट करतो जोई विजयराजाए तेने देशनिकाल कर्यो. एटले ते पोतानी भार्या श्रीमतीने लई सीमाडाना गाममा रहेवा लाग्यो.
केटलाक समय पछी श्रीवर्धन राजपुत्र धर्मरुचि नामना एक साधु पासे धर्मश्रवण करी वैरागी बनी साधु बन्यो. विहार करतां करता ते साधु पोताना बहेन-बनेवीना गाममां आव्या अने गोचरी अर्थे विचरतां विचरतां बहेनना घरे आव्या. पोताना भाईने जोईने बहेन स्नेहथी कंठे वळगी पडी अने आलिंगन दई रडवा लागी. एटलामां तेनो पति सिंह बहारथी आब्यो. पेलाने आलिंगन करातो जोई, 'अरे ! आ कोई पाखंडी परपुरुष मारी पत्नीनी अभिलाषा करे छे-अम विचारी तलवार खेंची तेणे मुनिने हणी नाख्या. आ दुःसह वध जोई ते स्त्रीए पतिने एक लाकडा वती प्रहार को एटले ते मूर्छित थईने पड्यो, पण पडतां पडतां तेणे तलवारथी पोतानी भार्याने पण हणी नाखी, अने त्यारबाद पोते मरण पामी नरकमां गयो. तेनी पत्नी पण नरके गई अने साधु सौधर्म विमानमा उत्पन्न थया.
पछी सिंहकुमार नरकमांथी नीकळी भवान्तरे ज्योतिषदेवमां उत्पन्न थयो अने केवळी पासे जई पोताना भवान्तरो पूछयां. भगवाने तेना भव कह्यां. ते सांभळी तेने क्रोध उत्पन्न थयो. 'अरे ! मारी पत्नीए मने मारी नाख्यो, माटे ते दुराचारिणी अत्यारे क्या हशे ?' अम विचारतां तेने देनायु के ते स्त्री नरकमांथी नीकळी पद्मनगरना पद्मराजानी श्रीकान्ता नामनी पत्नीना १. उद्योतनसूरि-कृत 'कुवलयमाला', गुजराती भाषांतर-हेमसागरसूरि, प्रकरण १५मु,
पृष्ठांक २०८-२११.
Page #58
--------------------------------------------------------------------------
________________
भूमिका
उदरमा पुत्री तरीके उत्पन्न थई छे. ते बखते हजु ते तरत ज जन्मेली हती. तेने जोतां ज क्रोधित बनी तेने मार! नाखवानी इच्छाथी ए ज्योतिषदेव, त्यां आवी, बाळकीनुं अपहरण करी ऊंचे उड्यो. परंतु स्त्रीहत्या अने बाळहत्याना डरथी तेने पोते मारी नहि. 'वनमा पक्षीओ चांचथी फोली खाशे'-एम विचारी आकाशमांथी तेणे तेने नीचे फेंकी.
ते वाळकी वेलीओ अने पांदडाओवाळी सलामत जग्याए पडतां बची गई. ते ज वखते एक गर्भिणी हरणीए त्यां ज प्रसव कर्यो. प्रसव-बेदनानी मूर्छा वळतां तेने मृगबाळक अने बाळकी देखायां. मृगलोए 'आ पोतार्नु ज जन्म आपेलु जोडलु छे' एम जोणी पोताना दूधथी तेने पाळवा लागी. हरिणोथी उछेराती ते बाळकी एणि कापुत्री कहेवाई.
आम अहीं आपणे पूर्वजन्मना वेरथी, जन्म पामतां ज बाळकनु अपहरण थाय छे ते कथाघटकनो विचार कर्यो. (४) मोटाभाईनी ईर्ष्या अने विजेता नानोभाई'
सौथी नानाभाईनां पराक्रमो अने तेना विजयनी कथा, कथासाहित्यनु एक लोकप्रिय कथाघटक छे. सगा के अपर एवा घणा भाई ओमां जे सौथी नानो भाई होय छे ते मातापितानो लाडको अने तेमना पक्षपाती प्रेमनो विशेषाधिकारी होय छे. आम सौथी नानापुत्र उपरनो मातापितानो सविशेष प्रेम तेना मोटा भाईओमां ईर्ष्या प्रेरे छे. मोटा भाईओमां नाना भाई प्रत्येनी ईर्ष्याना आ सिवाय बीजां कारणोमां मोटा भाईओ ज्यारे खुब काम-महेनत करी घरनो बोजों उपाडसा होय छे त्यारे नानो भाई निष्क्रिय बनी, आळसु अने रखडेल जीवन जीवतो, लहेर करतो होय छे; आम पोतानी मजूरीभरी जिन्दगीनी सामे नाना भाईने मोजमजा करतो जोई मोटा भाई ओमां द्वेषाग्नि प्रकटे छे. ए उपरांत कोई विशेष प्रसंगे कोई साहसभर्या कार्यमां मोटा भाईओ पराजय पामे छे त्यारे नानो भाई पोताना बुद्धियातुर्यथी. कुशळताथो के आत्मबळथी तेमां फत्तेह मेळवे छे. आथी मोटा भाईओ ते काम न करी शकवाथी झंखवाणा पडो जईने, अने ते काम पार पाडवा बदल नानाभाईने मळनार समृद्धि ना द्वेषथी, तेनी ईर्ष्या करे छे. आ उपरांत सौथी नाना राजकुमारना पराक्रम अने बुद्धियातुर्यथी आकर्षाइ राजा पोतानी गादी मोटा राजकुमारोने न सोंपता नाना राजकुमारने आपे छे त्यारे पण मोटा भाईओ नाना भाईंनी ईर्ष्या करे छे. ___आ रीते अनेक प्रकारे नाना भाई प्रत्ये मोटा भाईओनी ईयां प्रज्वलित थाय छे. तेनाथी क्रोधित थई मोटा भाईओ नाना भाईनो कांटो दूर करवाना पेंतरा रचे छे. ए पेंतरा मुजब तेओ नाना भाईने अनेक मरणोन्मुख स्थळोए फसावे छे, अनेक संकटोमां तेने नाखे छे, परन्तु ते सर्वमांथी दैवयोगे के पोताना पराकमथी ते बची जाय छे. एटलुज नहि परंतु संकटोनो सामनो करतां करतां ते अनेक प्रकारनी सुख-सगवडो, खिताबो के दिव्य वस्तु-विद्याओ- एम अलौकिक के लौकिक सिद्धिओ प्राप्त करे छे अने सुखवैभवनो चिरअधिकारी बने छे. उपर्युक्त कथाघटकनो जे कथानकोमा उपयोग थयेलो जणाय छे, तेमां महाभारतमां कौरवो अने पांडवोनी कथा तो सर्वने विदित छ ज. ते उपरांत नळ-दमयंतीनी कथामां पण नळ अने तेना नाना भाई कृवरनो ईर्ष्यानो प्रसंग आवे छे. ट्रंकमां ते प्रसंग आ प्रमाणे छे:
१Motit-Index मां LO थी L99 ना क्रमांकमां आ कथाघटक समाववामां आव्युं छे. २. त्रिषष्टिशलाकापुरुषचरित्र-पर्व ८मुं, सर्ग ३जो.
Page #59
--------------------------------------------------------------------------
________________
प्रद्युम्नकुमार-चुपई
उपयु
जबुद्वीपना भरतक्षेत्रमा अयोध्या नगरोमां निषध राजा राज्य करतो हतो. तेने बे पुत्रो हता, तेमां नळ उत्तन पुरुष हतो अने कूबर नीच अने कपटी हतो.
आ नळराजा कुंडिननगरना भीमराजानी पुत्री दवदंती साथे परण्यो हतो. अन्यदा निषध राजाए नळने राज्य पर अने कूवरने युवराजपद उपर स्थापन करीने व्रतग्रहण कयु. नळना राज्यमां सर्व सुखी हता, पण तेनो अनुज बंधु कूबर नळना हमेशां छिद्रो ज शोधतो. नळराजाने द्यूत प्रत्ये विशेष आसक्ति हती ए जाणीने '९ आ नळ पासेथी सर्व पृथ्वी द्यूत रमीने जीती लडे' एवा नठारा आशयथी नळने द्यूत रमवाचं आमंत्रण आप्यु. नळराजा यत रमवा बेठा. तेमां ते सर्व राज्य हारी बेठा. दवदंतीए नळराजाने घणु रोक्या पण ते रोकाया नहि. छेवटे ते पोताना राज्य साथे दवदंतीने पण हारी गया, त्यारे कूवरे तेने पोतार्नु राज्य छोडी देवानो आज्ञा करी. नळराजा जवा लाग्या एटले दवदंती पण तेनी पाछळ जवा लागी. ए जोई कूबरे तेने रोकी अने भयंकर शब्दो वडे पोताना अंतःपुरने अलंकृत करवानें कहयु'. पण मंत्री इत्यादिना समजाव्याथी तेणे दवदंतीने जवा दीधी त्यारबाद नळ-दवदंतीए वनवास वेठतां अनेक कष्टो सहन कर्या अने नळे पाछा अयोध्या आवी कूबर साथे द्यूत रमी पोतान राज्य पाछु मेलव्यु.'
उपर्युक्त कथामां नाना भाईनो मोटा भाई प्रत्येनी ईर्ष्यानो वृत्तान्त छे, असे नानो भाई पोतानी भाभी प्रत्ये आसक्ति सेवेछे. पण नेमि राजर्षि नो कथामां मोटो भाई नाना भाईनी स्वरूपवान पत्नीने जोई, तेने पोतानी करवा नाना भाईनी हत्या करे छे एवी कथा पण निरूपाई छे. कथानो टू कसार आ प्रमाणे छे.
अवन्तीदेशमां सुदर्शन नामना नगरमा मणिरथ नामे राजा हतो. तेनो नाना भाई युगबाहु युवराजपद उपर हतो. तेने मदनरेखा नामनी अति स्वरूपवान स्त्री हती. मदनरेखाने नीरखीने मणिरथ राजा कामातुर थयो अने तेने वश करवा निरंतर दासी द्वारा पुष्प, तांबूल इ० मोकलवा लाग्यो 'आ तो जेठनी प्रसादी छे'-एम मानी मदनरेखा ते ग्रहण करवा लागी.
एकदा राजाना कहेवाथी दासीए मदनरेखा पासे राजानी इच्छा जगावी गरे मदनरेखाए शीलनो महिमा समजावी राजाए आवु अयोग्य वचन न कहेवा, दासीने जगाव्यु. दासीए राजाने ज्यारे आ बात जगावी त्यारे रागलुब्ध राजाए नाना भाईने मारी नाखी, मदनरेखाने कबजे करवोनो विचार कर्यो.
एक वखत युगबाहु अने मदनरेखा उद्यानमां क्रीडा करी रात्रिअ पण त्यां ज कदलीगृहमां सूई रह्यां. ते अवसर जोईने गुप्त रीते राजाए खड़ग लई, कुलमर्यादानु उल्लंघन करी, कदलोगृहमां
सी नाना बंधुनो शिरच्छेद कर्यो. ते ज वखते मदनरेखा जागृत थई. तेणे राजानु कुकृत्य जोयु, छतां मौन रहीने मरण पामतां युगबाहुने सुवचनो संभळाव्या. युगबाहु मरण पामी पांचमा देवलोकमां गयो.
१. राज्यलोभ ए भाई प्रत्येनी इल्नु कारण छे. केटलीकवार ए लोभ भाईने भाईनी हत्या
करवा सुधी असंयमी बनावी दे छे. इतिहासमां औरंगझेबनो दाखलो मोजुद छे. तेमां
औरंगझेबे पोताना दारा, सूजा अने मुराद नामना भाईओनी हत्या करी, राज्यगादो
मेळवा हती एम कहेवाय छे. २. 'उपदेशप्रासाद'-कर्ता श्री विजय लक्ष्मीसूरि. गु. भाषांतर. श्री जेन धर्म प्रसारक सभा,
भावनगर, स्तंभ चोथो, व्याख्यान ५२मु, पृष्ठांक २५० गु. भाषां. त्रीजी आवृत्ति
Page #60
--------------------------------------------------------------------------
________________
भूमिका
आ उपरांत जैन परंपरामां धन्यकुमारनी कथामां पण आ कथाघटकनुं निरूपण जोई शकाय छे. जेमां धन्यना भाईओ तेना पर द्वेष राखता हता एटले ते घरबार नगर छोडी चाली नीकळयो त्यारबाद राजा श्रेणिके तेने पोतानी सोमश्री नामनी कन्या परणावी. तेनी बजी पत्नी सुभद्राना महेणाथा ते दीक्षा लई मोक्षपदने पाम्यो. '
बंगाळनी लोककथाओमां मोटा भाईओनी ईर्ष्या अने नाना भाईनी विजयकथानु वृत्तान्त अनेक कथा ओमां निरूपायुं छे. 'लाल माणेकनी उत्पत्ति' ए कथामां आ कथाघटक परत्वे नीचेनु कथानक रजु थयुं छे:
कोई एक राजा पोतानी पाछळ चार पुत्रोने मूकी मरण पाम्यो. राणीने सौथी नाना कुंवर प्रत्ये खूब वात्सल्य होई तेने सारा सारा कपडां, घोडां तथा राचरची वगेरे आपती. आथी मोटा त्रण पुत्रो नाना भाईनी ईर्ष्या करवा लाग्या अने तेनी सामे षड्यंत्र रची तेने जुदा घरमा राख्यो अने राज्यनो कबजो लई लीधो.
५३
एक दिवस नदीमां नहाता तेणे एक नावडी जोई अने माताए ना पाड्या छतां ते तेमां बेसी मा साथै मुसाफरीए नीकळयो. रस्तामा तेणे अनेक लाल माणेक पाणी पर तरतां जयां, तेमांथी एक माणेक लई लीधुं पछी एक बंदर पर ऊतरी राणी अने नानो कुंवर झूपडामां रहेवां लाग्यां.
एक दिवस राजाना दीकराओ ज्यारे लखोटीथी रमी रह्या हता त्यारे आ राजकुमार लाल माणेकथी रमवा लाग्यो. तेवामां राजकुवरीए ते माणेक जोई राजा पासे हठ करी ते मेळवी लीधु अने बीजा माणेकनी मागणी करी. नानो राजकुमार नावडी लई दरियामां ज्यां अनेक लाल माणेक तरतां हतां तेना मूळनी अंदर डूबकी मारीने पडयो. त्यां जई पराक्रमथी एक स्वरूपवान कन्याने लई ते पाछो फर्यो अने अनेक लाल माणेक साथे लीधां अने बंदर ऊपर जई राजाने मोकलाव्यां. राजाए तेना पराक्रमथी खुश थई पोतानी राजकुंवरी तेने परणावी. नानो भाई बन्ने सुंदर कन्याओ साथै सुखमां दिवसो गुजारवा लाग्यो.
आ कथामां तो मात्र मोटा भाईओनी ईर्ष्या अने न ना भाईनी विजयकथा आवे छे, पण बीजी एक कथामां तो ते उपरांत मोटा भाईओ नाना भाईने पोतानुं इच्छित साधवा मरणना मुखमा धकेली देतां पण अचकाता नथी. आ कथा आ प्रमाणे छेः *
एक राजाने दुहा अने सुहा नामनी बे पत्नी हती. सुहाने बे पुत्रो अने दुहाने मात्र एक लंगडो पुत्र हतो. एक रात्रे स्वप्नमां राजाए जेने चांदीनुं थड, सोनानी डाळी, हीरानां १. 'मध्यकालीन राससाहित्य' डॉ. भारती वैद्य पृष्ठांक ३६१-३६२. २. 'Folktale; of Bengal' - Day L. B. pp. 211-216 ३. गुजरातीमां आ कथा माटे जुओ :
-
'भारत लोककथा' - भाग ७मो 'माणिक्यनी उत्पत्ति' - पृष्ठांक १ थी ५.
आ उपरांत पात्र अने प्रसंगना विगतफेर साथे आवी ज कथा माटे जुओ: 'Folklore in Western India'-Putalibai D. H. Wadia. 'The Indian Antiquary'-vol. XVI Page-210-214. "Lal Pari and Kevada Paris
४. Bengali Folklore - ' A legend from Dinajpur' - Damant G. H. जुओ: 'The Indian Antiquary ' vol. I Page - 115-120.
Page #61
--------------------------------------------------------------------------
________________
प्रद्युम्नकुमार-चुपई पान, मोतीनां फळ अने जेना पर नाचता मोर फळ खातां हतां-एवा अद्भुत वृक्षने जोयु ने तरत ज ते आंधळो बनी गयो. फरीथी तेने स्वप्नु आव्यु के ज्यारे ए खरेखर आ वृश्चने जोशे त्यारे तेनी दृष्टि पाछी आवशे.
प्रथम सुहाना बे पुत्रो अद्भुत वृक्षनी शोधमां चाली नीकळया. तेमनी साथे दुहानो पुत्र पण पछीथी जोडायो. रसोईया तरीके मोटा भाईओए तेने पोतानी साथे राख्यो.
रस्तामा आ लंगडो नानो भाई नागना भयमांथी पक्षीना बच्चाने छोडावे छे ते वखते पक्षी पोताना बच्चाने कहे छे 'आ अद्भुत वृक्ष, जो राजकुमार नीचेना कूवामां ऊतरे तो मळी शके.' ज्यारे दुहाना पुत्रे आ वात सांभळी त्यारे तेणे तेना भाईओने कूवामा ऊतरवा का. तेओए ना पाडी. दुहानो पुत्र पोते ऊतरवा तैयार थयो अने जणाव्युं हुं दोरडु हलावु नहि त्यां सुधी तमारे बीजे क्यांय जवु नहि अने ज्यारे हलावू त्यारे दोरडुं उपर खेची लई भने काढजो' एम कहीं कम्मरे दोरडु बांधी कूवामां नीचे ऊतर्यो.
नीचे ऊतर्या बाद ते राक्षसना नगरमां जाय छे. त्यां एक स्त्रीनी मददथी ते राक्षसना मरणनो भेद जाणी खूब खतरनाक एवा साहस बडे राक्षसने मारी नाखे छे. वच्चे ते एक नाग अने वाघने खाडामाथी बचावे छे त्यारे तेओ संकट समये मदद करवान वचन आपे छे.
___ केटलाक दिवस बाद तेने पोताना पितानी वात याद आवता पेली स्त्रीने तेणे अद्भुत वृक्षनी वात कही, त्यारे पेली स्त्रीए 'हवे अहीं नथी रहेवु' एम जणावी कमंडळमां दस दिवसनो खोराक भरी लीधो अने घरमांथी अदर-बहार जाव-आव करी मोडु करवा लागी. आथी क्रोधे भराई दुहाना पुत्रे मोटी छरी लई तेने मारी के तरत ज ते पेला अद्भुत वृक्षमा फेरवाई गई. दुहानो पुत्र स्त्रीने मारी नाखवा बदल पस्तावा लाग्यो. एवामां तेना हाथमाथी छरी पडी गई के तरत ज वृक्षमाथी पाछी पेली स्त्री थई गई. आम नाना राजकुमारे छरी वडे स्त्रीमाथी वृक्ष अने वृक्षमांथी पाछी स्त्री बनाववानो मर्म जाणी लीधो.
त्यारबाद कुवामां द्वार पासे आवी दोरडु हलाव्यु के मोटा भाईओए बन्नेने बहार काढथा. आवी सुन्दर कन्या जोई तेओए नाना भाईने मारी, आ कन्या हाथ करवानो ईरादो कर्यो. रस्तामां वहाणमां तेओए दुहाना पुत्रने बांधीने दरियामां माख्या. पेली स्त्री के. जे आ बधुं जोती हती तेणे पेलुं खाराकवाळु कमंडळ दरियामां फेंक्यु, जेना वडे दुहानो पुत्र तरवा लाग्यो अने खोराक खाई जीववा लाग्यो. - आ बाजु पेला बे भाईओ राजा पासे आव्या अने पोते वृक्ष न गोती शक्या पण आ कन्या गोती छे एम जणाव्यु. आ बाजु दुहाना पुत्रे पेला नाग अने वाघनी मददथी घरे आवी, राजाने, स्त्रीने छरी मारी स्वप्न मुजबना अद्भुत वृक्षना दर्शन कराव्यां अने आंख पाछी लावी आपी. पण बीजा भाईओ ईर्ष्यामां कहेवा लाग्या के 'आ स्त्री तो अमने मळी छे अने नाना भाईए पडावी लीधी छे.' त्यारे राजाए जो शक्ति होय तो वृक्षमांथी पाछी स्त्री बनाववान जणाव्यु, पण तेओ तेम करी न शक्या. अंते नाना राजकुमारे छरी जमीन पर पाडीने तरत वृक्षमांथी पाछ' स्त्री करी. राजाए तेने राज्य आप्यु अने पेला दुष्ट राजकुमाराने देशनिकाल कर्या.
आ ज प्रकारनी पण प्रसंगालेखननी दृष्टिए भिन्न एवी एक बीजी कथामां पण मोटा भाई ओनी नाना भाई प्रत्येनी ईया छतां अंते नाना भाईना विजयनी कथा कहेवाई छे. ट्रंकमां कथा आम छे:' १. “Folklore in Western India'-Putalibai D. H. Wadia. जुओ: The Indian Antiquary'-vol. XIX. Page-152-155
'The wonderful tree'
Page #62
--------------------------------------------------------------------------
________________
एक गजाने सात पुत्री हतो. तेमांथी पहेली पुत्रीने एक दीकरो अने चीजीने बे दीकरा हता. राजाने बीजी पुत्रीनां बे पुत्रो प्रत्ये अथाग प्रेम हतो, ज्यारे पहेली पुत्रीना एक दीकरा प्रत्ये ते बेदरकार हतो.
एक दिवस राजाए स्वप्नमां आकाश सुधी पहोंचतां एक वृक्षने जोयु, जेनुं थड चांदीन, डाळीओ सोनानी, पांदडां माणेकनां अने फळ मोतीनां हता. राजाए ए वृक्ष मेळववानी हठ पकडी. एटले प्रथम तेना बे मानीता मोटा पौत्रो पुष्कळ पैसा लई ऊपड्या, पण खराब मित्रोनी सोबतमां बीजे गाम जई पैसा उडाडवा लाग्या.
त्यारबाद आ राजानो नानो पोत्र आ अदभुत वृक्षनी शोधमा नीकळयो. रस्ते चालतां तेणे एक जंगलमां लाल नागने महात कर्यो. लाल नाग मरण पाम्यो के तरत ज तेनी सामेलबोपहोळो रस्तो जोयो. तेना पर थई ते चालतो चालतो एक बागमां आव्यो. त्यांनी परए आ नाना राजकुमारने जायो के तरत ज पिताना मृत्युनी खातरी थतां ते रडवा मांडी स्यारे नाना राज. कमारे तेने सान्त्वन आप्यु के पोताना बचाव माटे तेणे तेना पिताने मार्या छे. पण ते तेने वाळ पण वांका नहि करे, पण एक शरत के ते तेने चांदीना थडवाळु, सोनानी डाळवाळू, माणेकनां पादडांवाळु अने मोतीनां फलवलं वृक्ष बतावे. परीए तेने कह्य के, 'ह रजतपरी छु, मारे सुवर्णपरी, माणेकारी अने मोतीपरी एम त्रण बहेनो छे. तुं अमने चारेयने एक साथे करी दे तो तु तरत ज ते वृक्ष जोई शकीश.' एक पछी एक ते नानो राजकुमार दरेक परी पासे गयो. छेल्ली मतीपगए तेने एक तलवार आपी अने का के ते तलवारने अमुक रीते राखशे एटले ते चारेय बहेनोने साथे करी शकशे अने ते चारेय चहेनो ए अद्भुत वृक्षमा फेरवाई जशे. नाना राजकुमारे ते प्रमाणे कयु एटले तरत ज अद्भुत वृक्ष खड थई गयं. अने पाळतेणे ते वृक्षने चार परीमां फेरवी नाख्यं अने तेने साथे लईने पोताने वतन पोछो फर्यो.
रस्ते चालतां ते एक शहेग्मां आव्यो, ज्यां नेना मोटा भाईओ [ पित्राई भाईओ] मोजमना करता हता. त्यां जई नाना भाईए निखालसपणे पोतानो बधो वृत्तान्त कह्यो आ सांभळीने ए बे मोटा भाई ओंनी दानत बगडो अने नाना भाईना कांटो काढवानो पेंतरो रच्यो.
त्यांथी बधा साथे पोताने नगर जवा नीकळ्या. रस्तामा बे भाईओए कपट करी नाना भाईने कुवामां धकेली दीधो अने जादुई तलवारनो कबजो करी लीधो. चार परीओ तेमनो प्रपंच समजी गई, पण लाचार बनी कई पण बोल्या वगर तेमनो साथे चाली नीकळी, पण रस्तामा तेओ पोताना वाळ तोडी वेरती गई.
बन्ने भाईओ घरे आव्या अने चार परीमाथी वृक्ष बनाववा जादुई तलवार आम तेम बधी रीते फेरववा मांडी पण तेनो उपयोग न जाणवार्थी ते परीमांथी वृक्ष न करी शक्या. राजा तेमनी वर्तणुक पर खूब गुस्से थई गयो.
आ बाजु नानो भाई कोई रस्ते जता अजाण्या मुसाफरनी सहायथी कूवामाथी बहार नीकळी परीओना तटेला वाळना पगेरे पगेरे घरे आव्यो अने राजाने बधी बात करी. जादई तलवार लाववा का. पछो तलवार अमुक रीते राखी के तरत ज पेली चार परीमाथी पेलु अदभुत वृक्ष खडु थई गयु. राजा खूब हर्ष पाम्यो अने नाना पौत्रने गादीनो वारस बनावी, बे मोटा पौत्रोने
Page #63
--------------------------------------------------------------------------
________________
प्रद्युम्नकुमार-चुपई
फांसीनी सजा करी.'
आ उपरांत 'मोनेरी पोपट,' ए नामनी कथामां पण आ ज प्रकारनां कथा घटकनो उपयोग थयेलो छे. टूकमां कथा आ प्रमाणे छः ।
एक गजाने सात पुत्रो हता आ राजा पक्षीओनो खूब शोखीन हतो. एक दिवस स्वप्नमां तेने कोई भूते आवीने तरता टापु उपर रहेता परीओनी राणी पासेना सोनेरी पोपटनी वात करी. बीजे दिवसे सवारे राजाए साते पुत्र ने बोलावी जणाव्यु के जे कोई सोनेरी पोपट लावी आपशे तेने पोते, नानामोठाना भेद वगर अधैं राज आपशे. ___आ सांभळी प्रथम छ मोटाभाईओए नानाभाईने बोलावी एक दूधना पात्रमा वच्चे तीर ऊर्भु राखी तेने छापरे मूकी राखवा जणाव्युं अने कां के 'अमे सोनेरी पंखीनी शोधमा जईए छीए, जो संकटमां घेराई जइशुं तो आ दूध लाल रंगमा फेरवाई जशे. तुं जो बनी शके तो मददे आवजे, अने जो अमे अमारा काममां फतेह मेळवशुं तो तीर नीचं नमी जशे,' आम कही छ भोटा भाईओ चाली नीकळया.
चालता चालतां गत्रे एक पथिकाश्रममां तेओ आवी पहोंच्या, पण त्यां लूटाराओ वेशपलटो करी तेमने लूटी गया. आथी छए राजकुमारो पासे पैसा न रहेतां पथिकाश्रमना मालिकन देवु चूकववा तेओने तेना गुलाम थईने रहेवू पड्यु.
आ बाजु दूध लाल रंगमा फेरवाई जतां नानो भाई तरत ज मोटा भाईओनी शोधमां अने सोनेरी पोपटनी आशामां घरेथी नीकळी पडयो.
रस्तामा नाना भाईए एक वृद्ध संन्यासीने प्रसन्न करी सोनेरी पंखी माग्यु. त्यारे संन्यासीए तेने का, 'अहीं एक सरोवरमां सवारे परीओ कांठे पोतानी पांखो उतारी नहावा पडे त्यारे तेमाथी एक जोडी पांख लई, परीओनी पाछळ पाछळ ऊडी तेमना देशमा जई, बपोरे त्यां ज्यारे परीओ आराम करती होय त्यारे तु सोनेरी पंखी लई झडपथी पाछो आवतो रहेजे.'
संन्यासीना कहेवा मुजब नानाभाईए कयु अने सोनेरी पंखी लई आव्यो. अने जे परीनी पांख लई पोते ऊडयो हतो तेने पोते ते पांख क्यांकथी शोधी लाव्यो छे एम बतावीने पाछी आपी. तेथी खुश थईने ते परीए तेने सोनेरी बैसरी आपी अने का', 'संकटसमये मध्यरात्रिए वांसळी बजावतां हतारी मददे आवीश.' एम कही परी गई'.
आम सोनेरी पोपट अने बंसरी लई ज्यां मोटाभाई गुलाम तरीके रहेता हता त्यां आवी तेओ जाणे नहि ते रीते तेमनुं देवू चूकवी मुक्त कर्या. छए भाईओ मुक्त थई पोताने वतन जवा
कळया. त्यां रस्तामां नानाभाइने सुवर्णना पोपट साथे जोतां तेनी फतेह उपर तेओ ईण्याथी बळी ऊठ्या अने सोनेरी पंखी लूटी नानाभाईने मारी नाखवानो मनसूबो घड़यो.
१. पात्र अदे प्रसंगालेखनमां कंडक विगतफेर साथे आबा ज प्रकारना कथानक माटे जुओ: 'सोनारूपानं झाड', 'गुजरात तथा काठियावाड देशनी वारता-भाग २ जो, पृष्ठांक १२३-१२९. आवृति २जो
2. 'The Golden Parrot-“The Orient Pearls' (Indian Folklore)pages-29-36 .by Tagore Shovona devi ,
Page #64
--------------------------------------------------------------------------
________________
भूमिका
आवा दुष्ट निश्चय पछी तेओ ज्यारे एक कूवा प्रासे आव्या त्यारे त्यां कपट करी, नानाभाईने क्वामां धकेली दई, सोनेरी पोपट लई घर तरफ चाल्या.
आ बाजु मध्यरात्रिए नाना भाईए सोनेरी बंसरी बजावीने परीने बोलावी. तेनी मददथी कृवामाथी बहार नीकळी, तेनी पांखो पर बेसी, राजा-राणी पासे पहेलां आवी पहोंच्यो अने कह्यु के, 'मोटा भाईओ सोनेरी पोपट लावशे'.
थोडा समयमा मोटा भाईओ सोनेरी पोपट लईने आव्या अने अडधु राज्य माग्यु, पण त्यां नाना माईने सुखरूप घरे जोई दिग्मूढ बनी गया. त्यारबाद नाना भाईए माता-पिताने सर्व वृत्तान्त जणाव्यो. आ जाणी राजाए छए मोटा भाईओने देशनिकाल करी नानानी साथे राज्य भोगव्यु'.
बीनी एक बंगाळनी लोककथामां पण, साहसिक कार्य करवामां पराजित मोटा भाईओ ते कार्यमा विजयी नीवडेला नाना भाई प्रत्ये इर्ष्यामां सळगता दगो करी मारी नाखवानो प्रयत्न करे छे. कथानुं शीर्षक छे-सुवर्णनु पक्षी. कथासार आ प्रमाणे छे :
एक राजाना उद्यानमा एक वृक्षना सुवर्णनां पाननी घणी चोकी करवा छतां चोरी थती हती तेथी राजाए पोताना त्रण पुत्रोने चोकी करवानु का. प्रथम बे कुमारो चोर पकडी न शक्या. सौथी नाना पुगे रातना जागरण करी उद्याननो पहेरो भरवा मांडयो. ते समये जोयं तो एक सोनेरी पंखी त्यां आवी सुवर्णन एक पान तोडी लई जतु तु. नाना राजपुत्रो ताकीने तीर माय. परन्तु ते पंखी मरी न जा मात्र तेनु सुवर्णतुं पीछु नीचे पड्यु. नाना पत्रे पीक लई राजाने बताव्यु अने बधी वात जणावी. राजाए अणे गजकुमारोने सुवर्णर्नु पक्षी लाववानी आशा करी.
प्रथम मोटो राजकुमार सुवर्णपंखीनी शोधमां नीकळथो. रस्तामा एक शियाळे शीखामण आपी के, 'आगळ जतां जे बे धर्मशाळा आव तेमांथी जेमा नाचगान थतां होय तेवी धर्मशाळामां न मतां जे अंधारी धर्मशाळा होय तेमां रहेजे.' आगळ जतां राजकुमारे ते प्रमाणे बे धर्मशाळा नोई, पण शियाळनु को अवगणी नाचगान थतां हतां ते धर्मशाळामां उतयों भने मुग्ध बनी सुवर्णपंखीनी वात वीसरी गयो. वचला राजकुमारे पण ते ज प्रमाणे कयु.
आखरे सौथी नानो पुत्र सुवर्णपंखीनी शोधमां नीकळ्यो. तेणे शियालनी शिखामण मानी अने अंधारी धर्मशाळामा उतो. एने बीजे दिवसे सवारमा शियाळ मळयु. त्यार बाद शियाळनी मददथी ए नाना पुत्रे अनेक पराक्रमो बतावी सुवर्णपंखी, सुवर्णसुंदरी, अने सुवर्णअश्व प्राप्त कयां.
ते लईने नानो भाई नगर पासेनी ए ज बे धर्मशाळा पासे आव्यो. त्यां फांसीनी शिक्षा पामेला पोताना बन्ने भाईओने तेणे हजार सुवर्ण-महोरो आपी छोडाव्या. अणे भाईओ स्वदेश आववा नीकळ्या.
रस्तामां सुवर्णसुंदरीन रूप जोई मोटो कुंवर तेना पर मोहित थई गयो. तेने प्राप्त करवा बन्ने मोटा भाईओए षड्यंत्र रच्युं अने ते मुजब ज्यारे एक नदी पासे आवी त्यारे तेओए नाना १. पात्र अने प्रसंगालेखननी दृष्टिए विगतफेर साथे आवा प्रकारचें कथानक आ ज पुस्तक
मां (The Sand river, The Stone Boat and The Monkey
Ferryman' ए नामनी कथामां निरूपायुं छे. पृ. ७२-७८ २. 'भारत लोककथा'-भाग-८मो पृ. १६४-१६७ संपा० गुजराती प्रेस
Page #65
--------------------------------------------------------------------------
________________
५८
प्रद्युम्नकुमार-चुप
भाईने धक्को मारीने नदीमां नाखी दीघो. नानो भाई अगाध जळमां तणावा लाग्यो. पण शियाळनी मददथी ते कीनारे आव्यो, त्यांथी जलदी ते पितानी पासे आग्यो अने बधी वात जणावी. त्यां तो बने मोटा कुंवरो आव्या अने तेमणे 'सुवर्णपक्षी पोते लाग्या छे' एम जाहेर कर्यु". पण सुवर्णसुन्दरीए तेमनुं पोकळ फोडी नाख्युं. नाना कुंत्ररने पनि तरीके पसंद कर्यो. राजाए मोटा बन्ने राजकुमारने जन्मटीपनी सजा करी. '
नाना भाईनी सुख - सगवडोनी सामे पोतानी गरीबी जोई अदेखाई थी तंग आवी मोटा भाईओ तेने खतम करी नाखवाना केवा दावपेच खेले छे अने तेनी सामे बुद्धिचातुर्यथी नानो भाई उलटा तेमने ज फसावी केवी रिद्धिसिद्धि मेळवे छे तेनुं एक बंगाळी कथानक, आ कथाघटकनु सुंदर उदाहरण छे. कथानो टू कसार जोईए:
सात भाईओना एक कुटुंबमां छ परणेला हता अने तेओ जुदा रहेता हता. सौथी नानो खूडेह [Khoodeh] कुंवारो हतो. ते तेना पिताने खूब लाडको होई तेमणे गायोना धण अने पैसाना वारसामांथी मोटो भाग खूडेहने आप्यो हतो. तेथी छए भाईओ इर्ष्याथी बळता हता अने खूडेने विक्कारता हता. मोटा भाईओने तो खावाना फांफां हता, ज्यारे नानो भाई खुडेह सानु - कुळताथी रहेतो हतो. अदेखाईथी तंग थई तेओए एक दिवस खूडेहने खतम करी नाखवानो विचार कर्यो अने एक योजना करी. ए योजना मुजब तेओए ख़ूडेहने लग्न करवा कछु . भाई ओना पेटनो दगा जाणतो होवा छतां खूड़ेहे हा पाडी. थोडा दिवस पछी एक सवारे खूडेहना मोटा भाई ओए तेने खोटेखोढुं जणान्यु के कन्या तैयार छे, आज रात्रे ज लग्न पताववाना छे अने तेथी सांजे ज तेणीना पिताना घर तरफ जवानुं छे. भाईओए गोठवेल छटकाने जाणतो होवा छतां खूडेहे तेमनी साथै प्रयाण कर्यु..
रस्तामां नदी पार करवानी आवी त्यारे खडेहे तेना भाईओनी पछी नदी पार करवानी योजना करी अने छटकी गयो. अने रस्तामांथी एक गोवाळने परणवानो लोभ बतावी, पोताना कपsi पहेरावी, पोतानी जग्याए मोकल्यो अने तेंनी गायो लई घरे पाछो गयो. आ बाजु ज्यारे गोवाळ वरराजाना बेशे त्यां आग्यो त्यारे सांजना अंधारामां तेना भाईओए तेने खुडेह धारी नदीनी अधवच धकेली दीधो.
ज्यारे भाईओ पाछा आव्या त्यारे खुडेने सांजनु खाणुं रांधतो जोई नवाई पाम्या, पण धीरज गुमाव्या वगर कछु 'भाई खूडेह ! नावडीने मोटो धक्को लागतां तुं बहार फेंकाई गयो. अमे बचाववा घणी महेनत करी. पण कांइ नहि, चाल आपणे भेटीए. पण आ गायो तने क्यांथी मळी ?' खूडेहे कहा, 'भगवाने आपी.'
खूडेहना भाईओए पोतानी निष्फळताथी अने खुडेहनी समृद्धिथी बळी ऊठी, रात्रे खूडेहना घरने बाळी नाखवानो दुष्ट विचार कर्यो. गमे ते रीते खूडेहने खबर पडी गई. ते
१.
2.
आवा प्रकार कथानक कंईक पात्रना नाम अने आलेखनना थोडा फेरफार साथै फ्रेन्च लोककथाम पण कहेवायुं छे. जुओ 'The Golden Bird', 'Tales from the French Folklore of Missouri'-by Josheph Medard Carriere. Page-60
'Khoodeh the Youngest Born', 'Bengali Fairy Tales' Pages 17- 22. by F. B. Bradley - Birt.
Page #66
--------------------------------------------------------------------------
________________
भूमिका
राने ते बहार बीजे क्यांय सूइ रह्यो. योजना मुजब मोटा भाईओए खूडेहना घरने बाळी नाख्यु. अने ज्यां त्यां कोलसाना ढगला कर्या. खूडे हे आवी पोतानी एक गाय उपर राख अने कोलसानी गुण मूकी वेचवाना बहाने बजारमा जई युक्तिपूर्वक एक रूपिया भरेली गुण साथे अदलाबदली करी घरे आव्यो अने सवारे भाईओनी बहुओ सांभले तेम रूपिया भरेली गुण खाली करी रूपिया गणवा लाग्यो. पछी एक भाभीने त्यांथी त्राजवा मंगावी तेनी नीचे एक रूपियो चोंटाडी दीधो, अने पछी पार्छ मोकल्यु. आ जोई मोटा भाईओ विचारमा पडी गया के नानो आटलु बधुं धन लाग्यो क्याथी के जेने तोलवा माटे त्राजवानी जरूर पही? मोटा भाईओए तेनी पासे जईने आ बाबत विषे पूछयुं, त्यारे खूडेहे का, 'मार घर बळी गयु अने खूब कोलसा-राख मळया. थोडे दर एक गाममां कोलसानी खूब किंमत उपजे छे. लोको एक कोलसानी गुणने बदले एक गुणी भरीने रूपिया आपे छे. हु तमने पण तमारा घर बाळी मूकवानी सलाह आपुंछ अने पछी तेना कोलसा लई बाजुना गाममां जई बूम मारजो के, "कोलसाथी भरेली गुणीनी किंमत तेवही ज मोटी गुणी भरीने रूपिया छे !'
त्यारबाद ते प्रमाणे मोटा भाईओए कयु अने पोतानां घर बाळी मार्या अने गुणो भरीने कोलसा लीघा अने बोजुना गाममां जई खूडेहना कहेवा मुजब बूमो मारवी शरू करी. गामना लोकोए तेमने गांडा गणी, मार मारीने त्यांधी तगडी मूल्या. तेओ निराधार थई गया अने झूपडा बांधी मजुर तरीके खेतरमां काम करवा लाग्या. खूडेह समृद्धिवान थयो, एक सुंदर कन्या परण्यो अने सद्रामा घणु कमायो. त्यार बाद भाईओने साथे-बोलाव्या अने एक पण पाई लीधा वगर धंधामां भागीदार बनाव्या अने सुखेथी रहेवा लाग्या.
आम, आ कथामां नानो भाई, ईष्याळु मोटा भाईओना अपकारनेो बदला उपकारथी वाळे छे. आ ज प्रमाणे पेक्युनो जोआओ [Pequeno Joao] कथामां पण ते पोताना दगाबान भाईओना अपकारने बदले ऊंचो दरज्जो अपावी तेमनु मान वधारे छे. कथानी ढूंकी रूपरेखा आ प्रमाणे छे:'
एक राजाने त्रण दीकरा हता. तेमाथी पहेला बे अभण अने मूर्ख हता. ज्यारे त्रीजो पेक्युनो जोआओ विचक्षण गुणवाळो हतो. राजाए जोयु के प्रथम बे पुत्रो नकामा छे त्यारे तेणे ते पुत्रोने अमुक रकम आपी पोतपोतानु फोडी लेवाजण व्यु. आथी श्रीजो सौथी नानो पुत्र पेक्युनो राजाना वारस तरोके रह्यो, परन्तु पेक्युनोए राजानु कह्य मान्यु नहि अने पोताना बे भाईओ साथे चाली नीकळयो.
रस्तामा तेओ एक राक्षसना घरमा रातवासो रह्या त्यारे राक्षसनी, सर्वनो कोळियो करी खाई जवानी युक्तिने पेक्युनोए बुध्धि-चातुर्यथी निष्फळ बनावी अने तेनी छ लाल टोपीओ लईने भाईओ साथे बीजा शहेरमां आव्यो. ते शहेरना राजाए आ त्रणेयने उत्तम पुरुषो धारीने सौथी मोटाने कारभारी, बीजाने अध्यक्ष अने पेक्युनोने भरवाड तरीके नोकरीमा राख्या.
रोज सवारे पेक्युनो घेटां चारवा जतो, त्यां वांसळी बजावतो. वासळीना सूरथी ए राजानी कवरी आकर्षाइ. तेने पेक्युनोनी टोपी आकर्षक लागी. तेणे पोताना प्रणयनो पेक्युनो पासे एकरार करी छ टोपीओ मेळवी अने पिताने कहीने पेक्युनोने बढती अपावी.. १. 'Karne da PequenoJoao' (Folklore in Salsette)G.F. D'penha
जुओ : Indian Antiguary' Vol. XVI P. 327-332.
Page #67
--------------------------------------------------------------------------
________________
६०
प्रद्युम्नकुमार-चुपई
पोताना नाना भाईने राजा द्वारा बढती मळेली जोईने तेना बे मोटा भाईओ इर्थ्यांना मार्या बळा जवा लाग्या अने तेने खतम करी नाखवानी योजना घडवा लाग्या.
एक दिवस राजा मांदो पड्या त्यारे मोटा भाईओए नाना भाईने राक्षस पासे मोकली मारी नाखवाना हेतुथी राजाने का, 'जो तमे राक्षसना सोनेरी पोपटन दर्शन करशो तो सामा थशो' अने राजाने ते माटे नाना भाईने मोकलवानी सलाह आपी. नानो भाई बहादुरीपूर्वक राक्षसने त्यां गयो अने चतुराइपूर्वक पोपट लई आव्यो. ते रीते मोटा भाईओए राक्षसने त्यांथी मारी नाखवा माटे नाना भाईने राक्षसनी घोडी, रत्ननी वीटी अने कांबळी लई आववा जणाव्यु. ते नानो भाई लई आव्यो. अंते मोटा भाईओए छेल्लो दाव अजमाव्यो. राक्षसने पकडी लावी, राजा जो तेनी उपर सवारी करे तो साजो थाय-एम कही राक्षसने पकडवा नानो भाईने मोकल्यो. स्यारे पण नानो भाई युक्तिपूर्वक राक्षसने पकडी लाग्यो. राजाए तेना उपर सवारी करी अने दैवयोगे साजो थई गयो, तेथी खुश थई राजाए पोतानी राजकुवरी परणावी, राजपाट आप्यु. पेक्युनोए पोताना मोटा भाईओ प्रत्ये वेरनो बदलो न लेतां तेओने ऊंचा दरज्जे स्थापी मान वधार्य:
आम अहीं इानी आगमां सळगता मोटा भाईओ नाना भाईने अनेकवार मरणोन्मुख स्थळे धकेले छे. पण हमेशां त्यांथी विजयी थईने ज नानो भाई पाछो आवी सुख-वैभवनो अधिकारी बने छे.
रायपुर जिल्लानी एक लोककथामां पण आ कथाघटकनो सुंदर रीते उपयोग थयो छे. ट्रॅकमां कथा आ प्रमाणे छे:' . एक राजाना खेतरने भूडो खूब नुकसान करता होई पोताना सात दीकरामांथी एक एकने तेनी चोकी करवा माटे रात्रे मोकल्या. परन्तु प्रथम मोटा छ तो रात्रे ऊघो गया अने खेतरनी चोकी न करी शक्या. सौथो नाना पुत्रे रात्रे खेतरमां जई पोतानी आंगळीनु टेरवु कापी तेना पर मोठु भभराव्यु, जेथी तेनो पीडामां रात्रे ऊंघ न आवी जाय. आम ते रात्रे जागतो हतो त्यारे मध्यरात्रोए सात घोडाआ अनाज खावा आव्या त्यारे नाना पुत्रे तेमांथी एक घोडाने पकडी पाड्यो. पकडायेला ते अश्वे संकट-समये मदद करवानु वचन आप्यु त्यारे नाना पुत्रे तेने छोडी मूक्यो .
बीजो सवारे खेतरने सहीसलामत जोई राजा खुश थई गयो. राजाए बाकीना मोटा पुत्रोने देशनिकाल कर्या. परन्तु नानो पुत्र तो मोटा भाईओनी पाछळ ज गयो. ज्यारे मोटा भाईओए तेने जोया त्यारे तेने खूब मार मार्यो अने तेने खलास करी नाखवा मांडया. ते वखते सौथी मोटा पुत्रे तेने गुलाम तरीके राखवा कह्य.
। केटलाक समय पछी तेओ बीजा राजाना गाममां आया. राजाने एक कुंवारी कन्या हती. राजाए ढंठेरो पीटायो के, 'जे कोइ पोताना घोडा वडे राजमहेल कुदावी जशे तेने पोतानी दोकरी परणावशे.' सोथी नाना पुत्रे भगवानना घोडानी मददथी राजमहेल कुदाम्यो अने राजकुवरी परण्यो. आ सांभळी तेना भाई ओर योजना करो के मोठा शब्दोथी ललचावीने नाना भाईने मारी नाखवो अने राजकंवरीने पडावी लेवी.
१ The Youngest Son. (A God-dhuka Lohar Story from Raipur Districit) From 'Foktales of Mahakoshal' by Verrier Elwin
Page #68
--------------------------------------------------------------------------
________________
भूमिका
६१
आम विचार करी घर तरफ जतां रस्तामां नाना भाईने मोटा भाई ओए भेगा मळी कुवामां धकेली दीधो अने राजकुवरीने उठावी गया. आ बाजु पेलो नानो भाई भगवानना घोडानी मददथी बहार नीकळी तेना पर बेसी पोताना घरे आव्यो अने पिताने सर्व वात जाहेर करी. ज्यारे छ ये भाईभो घरे पहोंच्या त्यारे तेओए नाना भाईने जोयो. राजाए छएने मारी नाख्या. नाना पुत्रे रामकुंवरी साये सुख भोगवतां रान कर्यु
पोते महेनत मजुरी करे अने नानो भाई लहेर उडावे ए जोई मोटा भाई ओ नाना भाई प्रत्ये इाल बनी तेने मारी नाखवानी कर योजना घडे तेवु कथानक कारिकोट [Karikot] तरफ प्रचलित छे. ते कथा टूकमां आ प्रमाणे छे' :
एक वृद्धने सात पुत्रो हता. जेमांथी सोथी नानो कुवागे हतो. ज्यारे वृद्ध मरण पाम्यो त्यारे छये भाईओ मेगा रहेवा मांड्या. छए भाई ओ खूब महेनतमजुरी करवा लाग्या अने नानो भाई रखडवामां अने रमवामां वखत गाळतो. पोताना नानो भाईने आम बेफिकरो जोई छए जणे खेतरमां ऊंडो स्त्राडो खोदी दाटी मारवानी योजना करी. ए राते ते ओए नाना भाईने आवती कालथी रांडवु लईने खेतरमा आववानुजणव्यु अने नहीं आवे तो मारी नाखवानी धमकी आपी.
बीजे दिवसे नानो भाई खेतरमां आवे ते पहेलां सौथी मोटा भाईए पोतानी कुहाडी खाडामां नाखी. ज्यारे नानो भाई आव्यो त्यारे मोटा भाईए खाडामाथी कुहाडी काढी आपवाना बहाने तेने खाडामां उतारी उपरथी कादव अने पथ्थर मारीने दाटी दीधो अने रडता रडता घरे ग
आ बाजु नानो भाई खाडामां उंदरे करेला दर मारफते जंगलमां नीकळी आव्यो अने पाछो घरे गयो. त्यां मोटा भाईओ तेनी उत्तरक्रिया करता हता. नाना भाईने जोई तेओ भय पामी गया. नाना भाईए पोतानो सर्व वृत्तान्त कह्यो अने जणाव्यु के पोते हवे तेओनी साथे नहि रहे. आम कही ते जंगलमा गयो अने छाणनुलींपेलु घर पोताना माटे बनान्यु'. थोडा वखत पछी महापुरबे एक माछीकन्या तेनी पासे मोकलावी. तेने ते परण्यो अने बन्ने सुखेथी छाणना घरमा रहेवा लाग्या.
रायपुर जिल्लामां बीजी एक आ ज कथाघटकने निरूपती कथा प्रचलित छे. जेमां नाना भाई प्रत्ये माता-पिताने खूब पक्षपाती प्रेम होवाथी मोटा भाईओ इामां प्रज्वळतां, तेनो कांटो दूर करवानी योजना करे छे. पण अंते नानो भाई विजेता बनी सुखसमृदिनो स्वामी ट्रॅकमां कथा आ प्रमाणे छे' :
एक राजाने पांच पुत्रोमांथी सौथी नाना पुत्र उपर खूब प्रेम होई तेने मनमानी उत्तम चीजो अपावतो हतो. ते जोई चारे य मोटा भाईओए अदेखाइथी बळता होई, नाना भाईने जंगलमां लई जई मारी नाखवानो निर्णय कर्यो.
एक दिवसे शिकारना बहाने मोटा भाई ओए नाना भाईने जंगलमां लई जईने रखडतो की दीधो अने घरे आवी राजाने जणाव्यु के 'वाघे तेने फाडी खायो छे' आ बाजु नानो भाई रखहतो रखडतो मधुवनमां आव्यो अने सुरभि गायनी साये रहेवा लाग्यो. एक वखत एक वृद्ध ब्राह्मण
१. 'Escape from the Pit' [ A Kuruk story from Karikot on the Indrawati River, Baster state] From : 'Folktales of Mahakosala' by Verrier Elwin.
२. The Iron Cart' (A God-dhuka Lohar Story from Raipur District ) From 'Folktales of Mahakoshal,' by Verrier Elwin
Page #69
--------------------------------------------------------------------------
________________
६२
प्रद्युम्नकुमार-चुपई
तेने उपाडी जवा लाग्यो त्यारे सुरभि गायोए तेने छोडाववा प्राण आपी दीधा. परंतु त्यांथी छटकी नानो भाई चमरगुरुनी सेवा करवा लाग्यो. वरदानमा नाना भाईए अमृतजळ मांगी सुरभि गायोने नीवित करी अने पाछो तेमनी साथे रहेवा लाग्यो.
एक दिवस एक राजा, पोतानी नानी पुत्रीने योग्य आ ज वर छ-एम जाणी नाना भाईने रथमां बेसाडी पोताने महेल लई आव्यो. जेवी तेणे राजानी कुंवरी जोई तेवी ज तेने गमी गई. तेनी साथे लग्न करीने ते सुखेथी रहेवा लाग्यो.
मंडल जिल्लानी एक कथामां एक नानो भाई निर्धन होवा छतां समृद्धिनी स्वप्नील शंखना करे छे. ते जोई मोटा भाईओ तेने धुत्कारी मृत्युना मुखमां धकेले छे. पण तेमांथी ते बची पोताना पुरुषार्थ वडे झंखेली समृद्धि मेळवीने ज जंपे छे. कथा ₹कमां आ प्रमाणे छे' :
पांच गरीब भाईओ हता अने लाकडां कापी वेचवानो धंधो करता हता. एक दिवस लाकडां वेचवा जता हता त्यां रस्तामा एक झरणाने कांठे आराम लेवा बेठा अने गप्पां मारवा मांडल्या. एवामां नाना भाईए कह्यु, 'हूं अही वच्चे हाथीघोडानां रहेठाणो सहितनो एक राजमहेल बांधीश अने मारा नोकरो पण अहीं रहेशे' आ सांभळी मोटा भाईओ क्रोधे भराइ बराडया के, 'तारा जेवू भूख्यु प्राणी वळी राजमहेल शुबांधवानु?' लाकडा वेची आवती वखते मोटा भाईओए पोते तरस्या थया छे एq बहानु बतावी पाणी लेवा माटे नाना भाईने कुवे मोकल्यो अने तेमां धक्को मारी नाखी दीधो.
बीजे दिवसे एक हजामे तेने कूवामांयी बहार काढ्यो अने तेने राजा पासे लई गयो. राजाए उपचार करी तेने जीवाड्यो अने चपरासी तरीके राख्यो. त्यां तेने हजाम साथे दोस्ती थई. एक दिवस हजाम अने नानो भाई वेपार करवा देशान्तरे जवा तैयार थया, रस्तामा एक निर्जन गाममां
आव्या. त्यांना बधां रहेवासीओने एक राक्षस भक्षी गयो हतो अने त्यांनी दोलतनुरक्षण तेनो दीकरो करतो हतो. नाना भाईए अने हजामे आखा गाममा रखडी पुष्कळ धन एकठ कयु: नानो भाई तो वे धन लई पोताना घोडा उपर चाली नीकळयो अने हजाम अति लोभथी बीजी उत्तम चीजो लेवा रोकायो. एटलामां राक्षस त्यां आव्यों अने हजामने खाई गयो आ बाजु आ दोलत वडे नाना भाईए पेला झरणा पासे एक राजमहेल बंधाव्यो ....
आ उपरांत फ्रेन्च लोककथामां पण आ कथाघटकनु निरूपण करतां कथानको प्राप्त थाय छे. 'सोनेरी वाळवाळी सुंदरी' नामनी कथामां नाना भाईनी विजयकथा साथे मोटा भाईओनी ईर्ष्यानु वृत्तान्त आम कहेवायु छे :
एक आंधळा राजाए पोताना त्रण दीकरामांथी जे कोई सोनेरी वाळवाळी सुंदरीना फुवारामांथी जादई जळ लावी आपी पोतानी आंखो सारी करशे तेने पोतानु राज्य आपवानु वचन आप्यं. प्रथम बे मोटा भाई ओ जादुई जळनी शोधमां नीकळया. पण रस्तामा पथिकाश्रमां रोकाया ज्यां तेमणे पोतार्नु बधु धन गुमाब्यु अते त्यांनी माल कणना गुलाम बनी रह्या. १. The Palace by the Stream (A Baiga story from Pandpur
Mandal District) From "Folktales of Mahakoshal' By Verrier Elwin. (The Fair Lady of the Golden Locks' From : Tales from the French Folklore of Missouri' P. 167. - by Medard Carriere.
-
-
Page #70
--------------------------------------------------------------------------
________________
भूमिका ज्यारे तेओ पाछा न फर्या त्यारे पीटर नामनो सौथी नानो राजकुमार जादुई जळनी शोधमा नीकळयो. ते पण आ पथिकाश्रममां आव्यो. अने त्यांनी मालकणनी बधी मिलकत जीती लीधी. ते मालकणे तेने जणाव्यु, 'सोनेरी वाळवाळी सुंदरीना किल्लामां बपोरे ज्यारे बधां ऊंघता होय त्यारे त्यांना फुवारामांथी जादुई जळ लई लेवू'. बीजे दिबसे नाना भाईए किल्लामां जई त्यांनी सुंदरी साये क्रीडा करी अने फुवारामांथी जादुई जळ लई पाछा फरतां तेणे पोताना बे भाईआने मुक्त
. कर्या..
रस्तामा सौथी मोटा भाईए दगाथी जादुई जळने चोरी लई तेनी जग्याए खारु' पाणी मूकी दीधुं. ज्यारे पीटरे तेना पिताने ते जळ जादुई गणी आप्यु अने आंखे छांट्यु त्यारे तेने दगाबाज गणी देहांतदंडनी सजा करी. परंतु माराए तेने छोडो मूक्यो. पीटरे एक राजाने त्यां नोकरी स्वीकारी.
एवामां सोनेरी वाळवाळी सुंदर ए पुत्रने जन्म आप्या. तेणे पीटरना पिताने, जे जादुई जळ लई गयो हतो ते राजकुंवरने मोकलवा जणाव्यु. ज्यारे सौथी मोटो पुत्र त्यां गयो अने सुदरीना प्रश्नोना जवाब न आपी शक्यो त्यारे सुंदरीए फरीथी राजाने साचो राजकुंवर मोकलवा जणाव्यु'. त्यारबाद राजाने जादुई जळनी अदलाबदलीनो वातनी खवर पडी. अंते पोटरने शोधो कादयो अने सोनेरी वाळवाळी सुंदरी साथे ते परण्यो.
बीजी एक फ्रेन्च लोककथामां नाना भाईना विजयथी मोटा भाईने इा आवता ते तेने मारी नाखे छे. त्यारबाद चमत्कारिक रीते मृत्यु बाद वासळीरूपे जन्मेला नाना भाई मोटा भाईन पोकळ बहार पाडे छे. कथा ट्क मां आ प्रमाणे छे':
एक राजानी राजकुंवरीए एक गुलाबनु फूल माग्यु. राजा ते लाग्यो. परंतु रस्तामा ते फूल ऊडी गयु. राजाए पोताना त्रण दीकराओने बोलावीने का, 'जे कोई आ गुलाबनु फूल लावी आपशे तेने हु' राजगादी आपीश.'
सौथी नानो कुवर आ फूल शोधीने लावतो होय छे त्यां रस्तामां तेने तेनो मोटो भाई मळे छे. मोटो भाई तेने रस्तामा ज मारी नांखे छे अने वचला माईने आ वात गुप्त राखवाना सोगद आपे छे. आ बे दगाखोर मोटा भाईओ त्यारबाद, नाना भाईन शब जमीनमां दाटी दे छे. परंतु तेम करतां अजाण रीते नाना भाईना शबनी टचली आंगळी बहार रही जायले
एक दिवस एक भरवाडे रस्तामां कइक चळकतु जोयु. ते लेतां जाण्यु के ते एक वांसळी हती. तेणे जेवी वासळी वगाडी के अवाज आव्यो, 'वगाड वगाड. तें गुलाबना फल माटे मने नथी मार्यो'. भरवाड आ वांसळी राजदरबारमा लई गयो. त्यां राजा राणी वचेट दीकरो-ए बधए ते वगाडो. आगळनो माफक ज तेमांथी अवाज नीकळयो. मोटा भाईए ज्यारे ते वगाडी के तरत ज तेमांना अवाजे तेने दोषित ठराव्यो. राजाए तेने फांसी आपी.
आ रीते मात्र गुजराती कथासाहित्यमां ज नहि परन्तु इतरप्रान्तिय अने ते उपरांत विदेशी कथासाहित्यमां पण आ कथाघटकनी लोकप्रियता अने व्यापकता जोई शकाय छे. १. 'The Rose of Peppermette' From 'Tales from the French
fo lklore of Missouri'. P.240. Joseph Medard Carriere
Page #71
--------------------------------------------------------------------------
________________
प्रद्युम्नकुमार-चुपई ५. आळे-भ्रंशाचारनु आळ'
एक व्यक्ति द्वारा अन्य व्यक्ति उपर जुठो दोषारोप मूकवानां कथाबिंब के कथाघटकों निर्देश आपणने भारतीय परंपराना साहित्य उपरांत विदेशी साहित्यमां पण अनेक ठेकाणे जोवा
छ. आ प्रकारनां कथाघटक परत्वे डॉ. हरिवल्लभ भायाणीए तेमना 'शोध अने स्वाध्याय नामनां पुस्तकमा 'लोककथामां आळ'' ए शर्षक नीचे एक माहितीसभर संशोधनात्मक लेख आपेलो छे. त्यां तेमणे प्रपंचना एक प्रकार तरीके आळने शंका अने वहेम करतां जुदु दावी आळनो लोककथामा कई कई रीते उपयोग थयो छे तेनु विश्लेषण कयु छे. प्रथम तेमणे आळना उद्भव परत्वे विचार करतां दर्शाव्यु छे के 'आळ का तो अकस्मात-योगानुयोगथी आवे, कां तो कोईथी हेतुपूर्वक उद्भवित होय. प्रागर्वाचीन समयमा तेमज निरक्षर समाजोमां ने लोककथानी सृष्टिमां आळ मोटे भागे उद्भावित ज गणवानु रहे. कथाओना निरूपणनी जुदी जुदी कोटिओ अनुसार तेना उदभावक तरीके मनुष्य के अलौकिक सत्व पण होय. कोई वार मनुष्य इतर सत्ताथी प्रेराया वगर स्वतंत्रपणे आळनो उद्भावक होय, तो क्यांक मनुष्य के अलौकिक सत्त्व नसीब के कर्म जेवा व्यापक बळथी राईने आ प्रकारचें कार्य करतु निरूपायु होय छे. समूहमां लोकोथी मूकायेलु आळ ते लोकापवाद'.
आम आळनो उद्भव अने तेना उद्भावकनो विचार कर्या पछी तेओए तेना कारणोमां मनुष्यकृत स्वतंत्रपणे मूकायेला आळमां, स्वभावगत दुष्टता, निष्कारण शत्रुता, टीखळवृत्ति, परपोडनवृत्ति, वेर, अदेखाई, स्वार्थ ने प्रभुत्ववृत्ति इ.ने कारणभूत गणाव्या छे. आळ चोरीनु, चारित्र्य-भ्रष्टतानु, मनुष्यवधनु के विद्रोहन एम अनेक प्रकारनु होय छे.
आ आळ ज्यारे सत्य हकीकत आपमेळे योगानुयोगथी बहार आवे त्यारे ऊतरी जाय छे. अथवा तो आळनो भोग बनेली व्यक्तिनी निजी आगवी शक्ति द्वारा के अलौकिक बळनी सहायताथी पण ऊतरी जाय छे. आ उपरांत केटलीक वखत अंतरनो डंख असह्य बनता आळ मुकनार पोते ज कार्यसिद्धिने अंते आळ ऊतारवानी गोठवण करे छे.
आळ परत्वेना उपर्युक्त विश्लेषण पछी तेओए दृष्टान्त लेखे संयोगोथी उदभावित आळमा स्यमंतक मणि अने मेतार्य मुनिना दृष्टान्त आप्यां छे, तो अलौकिक व्यक्ति के शक्तिथी उभावित आळमां गुणश्री, नळ -दमयंती अने पद्मश्रीना कथानकोनु संक्षेपमा आलेखन करे छे. लोक के व्यक्तिथी ठभावित आळमां सीताना लोकापवादनु दृष्टान्त टांक्युं छे, तो व्यभिचारनी मागणी नकारनार पर बलात्कारना दाखलाओमां प्राचीन मिसरी-साहित्यनी "बे बंधुओनी वार्ता" नो, "इलि अड" मांनो बेलेरोफोननी कथानो, 'बाईबल" मांना जोसेफ अने पोटिफरना प्रसंगनो, 'चुल्ल पदुम" के "कुणाल" जातक जेवी जातककथ'ओनो, रामायणनी शूर्पणखानी वातनो, कथासरित्सागरनी केटलीक कथाओनो, "हंसावली" नी वार्तानो तथा "पुरन भगत"नी दंतकथानो उल्लेख करेलो छे. १. Stith Thompson कृत 'Motif Index of Folk-Literature'-ए ग्रंथमां
'False Accusation-ए कथाघटकना, के-२१०थी-२१९९ सुधी क्रमांकोमां, आ कथाघटकनो क्रम के२१११ दर्शावायो छे अने तेनु नामाभिधान 'Potiphar's wife' तरीके थयु छे. 'Standard Dictionary of Folklore'-ए पुस्तकमां
तेना पृ. ८८२ उपर तेनी विगतो प्राप्त थाय छे. २. पृष्ठांक २७० थी २८६
Page #72
--------------------------------------------------------------------------
________________
भूमिका
६५
आ उपरांत शत्रुने वहेमनो भोग बनावी तेने सीधो करवाना संबंधमां आळना प्रसंगरूपे तेमणे "पडमसिरिचरिउ "मांनी धनश्रीनी कथानुं, जैन वार्तासाहित्यनी "नटपुत्र रोहक "नी वार्तानुं, पूर्णभद्रना "पंचाख्यान " मां अने पश्चिम भारतीय "पंचतंत्र "मां आवतो दंतिल श्रेष्ठ अने गोरंभनी वातनुं तथा सोळमो सदीना अंतमां रचायेला बल्लाल - कृत “भोजप्रबंध" मांनी एक दंतकथानु टूकमां निरूपण करेलु छे.
अदेखाईथी प्रेरित आळमां तेमणे "महाउम्मग्ग जातक" तेम ज भोज - कालिदासनी दंतकथाओनो उल्लेख करेलो छे. आम डॉ. भायाणीए आळना कथाघटकनी पृथक्करणशील सोदाहरण चर्चा करेली छे.
आ उपरांत डॉ. जनक दवेए तेमना अप्रकट महानिबंधमां पण आळना कथाघटकनो विचार कर्यो छे. दोषारोपना घणां कारणोमांथी वेरवृत्ति पण एक कारणरूप छे एम जणावी, खोड आळ मूकवानां अनेक कथानकोनु तेमणे ट्रंकमां निरूपण करेल छे. तथा साथे साथे तुलनात्मक अभ्यास पण करेलो छे. आळना कथाघटक परत्वे तेमणे जे जे कथानकोनु निरूपण करेल छे ते नीचे प्रमाणे छे :
१ भर्तृहरिनी कथा २. बंधनमोक्षजातक ३. एना जेवुं ज एक बीजी जातककथानु कथानक ४. "त्रिषष्टिशला कापुरुष चरित्र" तथा "वसुदेवहिंडी" अंतर्गत प्रद्युम्ननी कथा ५. इजिप्सना वार्ता साहित्यमांनी "अनपू अने बाटानी कथा' ६. " कथासरित्सागर" कथापीठ लंबक - तरंग ५मांनी " वररुचि चितारा" नी कथा ७. पंडित शुभशीलगणिकृत "विक्रमचरित्रम् " प्रकरण ३७मांथी "शारदानंद गुरुनी कथा " ८. "कथासरित्सागर" कथापीठ लंबक-तरंग ५मांनी “आदित्यवर्मा राजा अने शिववर्मा मंत्रीनी कथा " ९शुभशीलगणिकृत "विक्रमचरित्रम्" ना प्रकरण ५६मांनी शतबुद्धि, सहस्त्रबुद्धि, लक्षबुद्धि अने कोटिबुद्धि - ए चार वफादार सेवकोनी वात १०. “पंचतंत्र "मांनी नोळियानी वात ११. " दृष्टांतशतक "मांना १००मा दृष्टांतनी कथा १२. पंडित शुभशीलगणि कृत “विक्रमचरित्रम्" द्वितीय खंडमांनी, प्रकरण ५७मांनी एक जुगारीनी कथा १३. पूरन भगत अथवा चौरंगीनाथनी कथा. १४. “ जहांदारशा अने हुरमनुरझांहा "नी कथा १५. अमरसेन - वयर सेननी कथा १६. हंसराज - वच्छराजनी कथा १७. वीरभाण-उदयभाणनी कथा १८. “ होथल पदमणानो कथा १९ " कथासरित्सागर " - " शक्तियशा लंबक " - तरंग ७मांनी " यशोधर अने लक्ष्मीधर "नी कथा - आम अहीं डॉ. दवेए जुदां जुदां कथानकोमां प्रतीत थतुं आळनु कथाघटक केवी रोते आलेवायुं छे तेनो सारो एवो ख्याल आप्यो छे."
१.
२.
३.
४.
५.
"Shamal's Sinhasanbatrisī-Preparation of an Authentic Edition of Tales Nos. 28, 29, 30, 31 from the Original Manuscripts together with a Critical Study of these Tales." 'The Jatak' vol. I Pages 120 Ed. Cowel E.B.
'The Jatak' vol. IV Page 117. Ed. Cowel E.B. "पंचतंत्र " संपादक डॉ. भोगीलाल सांडेसरा पृ. ३३५-३३७
आ कथानको जे जे पुस्तकोमांथी लीधां छे तेनी सविस्तर माहिती ते महानिबंधमां पृ. ६७२ थी ६९२ सुधीमां, ते ते कथाना उल्लेख प्रसंगे नीचे फूटनोटमां आपेली छे.
९
Page #73
--------------------------------------------------------------------------
________________
६
प्रद्युम्नकुमार-चुपई
आपणी प्रद्युम्नकथामां प्रद्युम्ननी पालकमाता कन कमाला प्रद्युम्ननी बीरता, रूर अने गुणधी आकर्षाई तेनी पासे अणछाजती मागणी करे छे. प्रद्युम्न, माता तरफनो पोतानो पूज्यभाव प्रकट करी चाल्यो जाय छे. त्यारे पोतानी कामवासना पूर्ण न वाथी रोषे भरायेली कनकमाला तेना पर चारित्र्यभ्रष्टतानु आळ मूके छे.
आगळ जोयु ए प्रमाणे आळ अनेक प्रकारनां होय छे. तेमांथी अहीं मात्र चारित्र्यभ्रष्टताना आळ विषे वधु विचार करेलो छे. चारित्र्यभ्रष्टतानु आ आळ स्त्री कोई परपुरुष उपर, पोताना ओरमान के पालकपुत्र उपर के दियर उपर मूके छे. स्त्री उपर्युक्त कोई पण व्यक्ति उपर तेनी वीरता, रूप, गुण के यौवनथी आकर्षाई आसक्त थाय छे. अने त्यारबाद ते पक्तिनी पासे पोतानी इच्छाने तृप्त करवा ते शारीरिक हावभाव के शृंगारिक चेष्टाओ वडे नम्र बनी मागणी करे छे. आवी मागणी करती स्त्री साधेना पोताना संबंधनो ख्याल करी तथा नीति अने फरजना भान साथे पेली व्यक्ति ए स्त्रीनी नठारी मांगणीनो ज्यारे अस्वीकार करे के त्यारे पोतानी इच्छा बर न आववाना कारणे वेरथी उद्दित थई तथा पोताना आ कुकर्म उपर दांकपिछेडो करवाना हेतुथी पोताना शरीरनी विकृति करी, पेली व्यक्ति उपर, पोताना पर बलात्कार करवानु आळ ओढाडे छे. कदिक पोताने अणगमती व्यक्तिने दूर करवा माटे पण तेना पर चारित्र्यभ्रष्टतानु आळ ओढोडवामां आवे छे.
परंतु घणी वखत स्त्री, जे व्यक्ति उपर आळ मूके छे ते व्यक्तिने तेणे पहेलां क्यारेय जोइ नथी होती. परंतु अकस्माते ए व्यक्ति रात्रीना अंधकारमां के एकांता पोतानी तरफ आवती होय के पोताना शयननी बाजुमां ऊभी होय त्यारे स्त्री ए व्यक्ति पोतानुचारित्र्य भ्रष्ट करवा ज आवती होय छे अथवा ऊभी होय छे एम समजी तेना पर जाण्या बूझ्या वगर ज, चारित्र्यभ्रष्टतानु आळ मूके छे.
अंते आ आळ, साची वस्तुपरिस्थितिनी जाणथी, आळ मूकायेली व्यक्तिनी वीरताथी के तेना शीलमाहात्म्यथी प्रसन्न थयेली कोई अलौकिक शक्ति वडे तरी जाय छे. कदिक चारित्र्यभ्रष्टताना आळ्थी कोइ व्यक्ति देहांतदंड भोगवे छे अने तेना मरण पछी साची वात बहार आवती होय छे. कदिक आळ मुकायेली व्यक्ति आळ ऊतरी जतां लोकोमा पूजाय छे अने आळ मकनार व्यक्ति, पोतानी पोल पकडाइ जवाथी लोकोमा निंदापात्र थाय छे. अने तेनी बीके घणीवार ते गळे फांसो खाई जीवननो अंत लावती होय छे.
आम चारित्र्यभ्रष्टताना आळ विषे आटलो प्रास्तविक विचार कर्या पछी केटलांक कथानको द्वारा ते कथाघटकने समजवानो प्रयत्न करीए. डॉ० भायाणी तथा डॉ. दवेए लीधेलां कथानकोनी नोंध आगळ आपी छे. तेमणे निरूपेलां कथानकोनो अहीं उपयोग नथी कर्यो. ते उपरांत बीजां केटलांक नवा कथानकोन अहीं निरूपण करेलुं छे.
बौद्धसाहित्यमा राजा अशोकनु कथानक आवे छे. तेमां तेना पुत्र कुणालनी करुण कथा आलेखवामां आवी छे. कुणाल नामनां पक्षी जेवी सुंदर आंखो घरावतो आ अशोक-पुत्र कुणाल राजसभानी खटपटोथी हमेशां दूर ज रहेतो होय छे. राजानी राणीओमांनी एक तिष्य मदर अने युवान कुणाल प्रत्ये प्रेममा सळगती होय छे. ते राणीए कुणाल पासे आवी अघटित मागणी करी, परंतु तेनी विनंति के धाकधमकी बधु नकामु गयु. वेरनी आग संतोषवा तेणे एक कात्रु रच्यु. ते मुजब तेणे कुणालने दूरना प्रान्तमां मोकल्यो अने पछी चोरीछुपीथी
Page #74
--------------------------------------------------------------------------
________________
भूमिका
राजानी मुद्रावाळो एक आज्ञापत्र लखी त्यां कुणालनी आंखो फोडी नाखवानो हुकम लखी मोकलाव्यो. ते प्रमाणे तेनी बन्ने आंखा फोडी नाखवामां आवी.. ___त्यारबाद ते भिखारीनी हालतमां तेनी पत्नी साथे अशोकनी नगरीमां आव्यो अने त्यां राजमहेलनी सामे वीणा बजाववा लाग्यो. राजाए अवाज सांभळता तेने बोलाव्यो. साची वस्तुनी जाण थई. राजाए गुस्सामा राणीने मारी नाखवानो हुकम कर्यो, पण क्षमावंत कुणाले विनंतिथी तेने जीवितदान आप्यु अने कह्यु के "ए मारी माता प्रत्ये मने हजी पण अपार लागणी छे. जा आ शब्दो साचा होय तो मारी आंख पाछी जेवी हती तेवी थई जाओ." अने तरत ज तेनी आंखो पहेलांना जेवी सुदर थई गई..
__ आ कथामां अपरमानी अघटित मागणी अने पुत्र द्वारा अनादरनी वात आवे छे. जो के आमां उघाडा आळनी वात नथो आवती, परंतु अनादरथी उद्दिप्त थयेला वेरनी वसुलातनी वात आवे छे.
जैनसाहित्यमां सुदर्शन श्रेष्ठिनो कथामां भ्रष्टाचारना आळनी वात आवे छे. शीलनो प्रभाव अने तेना माहात्म्य अर्थे जैन कथासाहित्यमां आ कथा खुब प्रचलित छे. तेनी कथा ट्रंकमां आ प्रमाणे छे :
चंपापुरीमां ऋषभदास नामना श्रेष्टिने अहंदासी नामनी स्त्री हती. तेने सुदर्शन नामनो पुत्र थयो. ते सुदर्शन युवावस्था पाम्यो त्यारे तेने श्रेष्ठिए मनोरमा नामनी कन्या परणावी. सुदर्शनने राजाना पुरोहित कपिलनी साथे गाढ मैत्री हती. एक वखत कपिलना मुखथी सुदर्शननी प्रसंशा साभळी तेनी स्त्री कपिला तेना पर अनुरक्त थई.
एक दिवस एकांतनो वखत जोईने कपिला सुदर्शनने घेर गई अने तेने कह्य', 'आजे तमारा मित्रने शरीरे ठीक नथी. माटे तेनी खबर लेवा माटे घरे चालो, ते बोलावे छे'. एम कही सुदर्शनने पोताने घरे तेडी गई. त्यां गुप्त गृहमां तेने लई जई बारणा बंध करी, लज्जा त्यागीने तेणे भोगनी प्रार्थना करी. त्यारे सुदर्शन पोते नपुंसक छे एम कही त्यांथी बहार नीकळी पोताने घेर गयो.
___एकदा राजा, पुरोहित अने सुदर्शनने साथे लई उद्यानमां क्रीडा करवा गयो. ते वखते वाहनमां बेसोने ते राजानी अभया नामनी राणी कपिलाने साथे लई उद्यानमां आवी. तेवामा मार्गमां कपिलाए एक स्त्रीने छ पुत्रो सहित मार्गे चाली जती जोईने, 'आ स्त्री कोण छे ?' एम अभया राणीने पूछय. त्यारे ते बोली के, 'आ तो सुदर्शन शेठनी स्त्री छे. अने आ छ तेना पुत्रो छे.' ते सांभळोने कपिलाए का के, 'शेठ तो नपुंसक छे. तेने पुत्रो क्याथी ?' एम कही तेणे पोतानो सर्व वृत्तान्त राणीने जणान्यो. राणीए ते सांभळी कह्य' के "तुं तो मुख छे, ते शेठे तने कपट करीने छेतरी छे.” कपिला बोली, "हे देवी! तमारी चतुराइ तो हुँ त्यारे ज जाणुं के ज्यारे तमे एक पण वखत ते सुदर्शन शेठ साथे क्रीडा करो." राणीए वचन अंगीकार कयु. १. अपरमाता पोताना दीकरानी आंखो पोताना पति पासे ज फोडी नखावे छे. ए प्रकार कथानक फ्रेन्च लोककथामां पण छे. जुओ: Tales from the French Folklore
of Missouri-by Joseph Medard Carriere-[कथा नं. ४२ पृ० २०८] २. 'Buddha and the Gospel of Buddhism.'
-आनंद कुमार स्वामी पृ० ३१४-३१५ ३. "उपदेशप्रासाद"-कर्ता विजयलक्ष्मीसूरि, गु० भाषांतर-श्री जैनधर्म प्रचारक सभा, भावनगर,
[३जी आवृत्ति ] स्तंभ ४यो, व्याख्यान ५३मु, पृ. २५६
Page #75
--------------------------------------------------------------------------
________________
६८
प्रद्युम्नकुमार-चुपई
एकदा राजा इत्यादि सर्वे क्रीडा करवा उद्यानमां गया हता. महेलमां अभया राणी एकल हती. ते वखते पंडिता नामनी पोतानी धात्रीने सुदर्शन शेठने तेडी लाववानु का. ते धात्री सुदर्शनने घेर गई तो एक घरमा सुदर्शनने कायोत्सर्गे रहेलां जायां तेने धात्रीए उपाडी रथमां नाखी राणीना महेलमां लइ गई. एकांतमां राणोए हावभावपूर्वक कामविकार देखाडी तेनी घणी प्रार्थना करी तो पण सुदर्शननुं मन क्षोभ न पाम्यु. छेवटे राणी थाकी गई त्यारे तेणीए पोकार करी सिपाईओने बोलावीने "आ सुदर्शन मारा पर बलात्कार करवा अहीं आव्यो छे"-एम कह्य' सिपाईओ सुदर्शनने पकडी राजा पासे लई गया. राजाए साची वात पूछी, त्यारे तेणे राणोनी दयाने लीधे कई पण कयु नहि. त्यारे तेने दुषित धारी शूळीए चढाववानो हुकम कर्यो. राजाना सेवकोए तेने शूळी पर चढाव्यो. तो ते शूली, शीलना प्रभावथी सुवर्णनु सिंहासन थइ गई. सिपाईओए तेनो वध करवा कंठ, मस्तक, कान तथा हाथपग उपर खड्ग वडे प्रहारो काँ. तो अनुक्रमे त्यां हार, मुकुट, कुंडल अने कडां थई गया. ते आश्चर्यकारक बनाव सिपाई
ओए राजाने कह्यो. राजाए ज्यारे आग्रहपूर्वक साची वात जणाववा का त्यारे तेणे राणीने अभयवचन अपावी बधी वात करी. आ वृत्तान्त जाणी अभयाराणी गळे फांसो खाई मत्यु पामी. पंडिता पाटलिपुत्रमा कोइ वेश्याने त्यां जती रही. अनुक्रमे शेठ वैराग्य पामी दीना लई मोक्षे गया. ___आम अहीं हेतुपूर्वकना आळनी वात आबे छे, पण आळमां फसायेली व्यक्ति अलौकिक शक्तिथी बची जाय छे अने आळ ओढाडनार पोते मृत्यु पामे छे. वळी आळमा फसायेली व्यक्ति युक्तिपूर्वक छूटी पण जाय छे. आळना कथाघटकनु आ एक सुंदर उदाहरण छे.
आ उपरांत लाखाफूलाणीनी कथामां' पण तेनी विमाता राणी धण तेना पर मोहित थाय छ. परन्तु अनादर पामता ते तेना पर भ्रष्टाचारनु आळ मूके छे. कथा टूकमां आ प्रमाणे छः
केलाकोट नामनी वस्तीमां फूल नामे राजा हतो. ते गाममा सुकाळ वर्ततो होवाथी त्यांना पाणियाने अनाजना धंधामा खोट जती हती. तेथी मंत्र-युक्तिथी तेमणे दुकाळ वर्ताव्यो. फूलने काने वोत आवता तेणे वनमां जई मन्त्रयुक्ति खेरवी नाखी अने त्यां मुशळधार वरसाद बरसवो शरू थई गयो. ते दरमियान फूल पाछो फर्यो. तेना साथीओ बधा विवश थई गया अने पाछळ पडी गया. वरसादमां रखडतो कूटातो फूल अचेत थई गयो. तेनो घोडो तेने खेडी गाममां लई पहोंच्यो. त्यां जमला आहीरनी मोटी कुंवारो पुत्रीए, तेना पितानी संमतिथी फलनी साथे ए ज अवस्थामां लग्ननां फेरा फरीने बे प्रहर सुधा फूलने छातीसाथे भीडावी चेतन आप्य. ज्यारे अडधी रात्रे फूल जाग्यो त्यारे तेने बधो वात जणावी. फूल खुश थयो अने शेष रात्री रसरंगमां वितावी. ए ज रात्रीए कन्याने गर्भ रह्यो.
प्रभात थतां फूल अश्वारूढ थई, कन्याने कोई कलंकित न कहे ते माटे मद्रिका निशानी को आपी अने एक लखाण करी ओपी पछी केलाकोट चाल्यो गयो. अने पटराणो धणना प्रेमभावमां लीन थई आ आहीर कन्याने भूली गयो.
आ बाजु अवधि पूर्ण थतां पेली कन्यानो पेटथी लाखानो जन्म थयो. ते ओठ-दश वर्षो भयो त्यारे पिता विशे पूछतां तेनी माताए बधो वृत्तान्त जणावा, लाखाना कहेवाथी तेने फूले आपेली मुद्रिका अने लखाण आपी केलाकोट मोकल्यो. १. 'मुहणोत नैणसीरी ख्यात' खंड-२ संपा. ही. गौ. ओझा, अनु० रामनारायण दुग्गड,
प्रकरण १७, पृ. २२९.
Page #76
--------------------------------------------------------------------------
________________
সুমি
केलाकोटमां पिताने बधी बस्तुओ बतावी. फूले लाखाने हर्षपूर्वक पोतानी पासे राख्या. फूलने बीजो कोई पुत्र हतो नहि. फूल प्रायः केलाकोटमा रहेतो नहि अने लाखो केलाकोटमा काम चलावतो. ते रूप गुणनो भंडार हतो. एनु रूप जोईने राणी घणना मनोभावमा विकार थया. एकवार राणीए तेने पोताना महेलमा बोलावी पोतानी दुष्ट वासना प्रकट करी. लाखाए तेना प्रत्ये माताभाव दर्शावी तेम न करवानी वात साफ जणावी दीधी. वेरथी प्रज्वलतो धण राखीए एक सांढणी-सवार मारफत एक पत्र फूलनी पासे माकलाव्यो. काइ आवश्यक काम होय तो ज सांदणीसवार आवतो. तेथो फूले तेने आवतो जोई आ अडधो हो पूछया :
"कच्छ करीर छडियो कु देसडो कु सुत्त।" तेना उत्तरमा कासिदे का
"लाखो फूल महलियाँ खिण देवर खिण पुत्त ।" -धणे आ समाचार कहेवडाव्या छे. सांभळतानी साथे फूले क्रोधथो सरदारोने लाखाने देशनिकालनो हुकम कर्यो. ज्यारे आ वातनी लाखाने खबर पडी त्यारे तेणे कह्य के मारा पितानी वृद्धावस्थाए तमे मने काढी मूको छो, पण याद राखजो के जे कोई आवीने मने फल मरी गया छे ए शब्द कहेशे तेनी जीभ कापी काढीश.” आम कही पाताना मामाने त्यां ते जतो रह्यो. फूलनु मृत्यु थतां धण राणी तेनी साथे बळी मरो. आ समाचार लाखाने जणाववा कोई तैयार न थयु. परंतु डाही डोमनीए जईने युक्तिपूर्वक लाखाना ज मोढेथी कहेवडाव्य के "शु फल मरी गया ?" आम पोताना मुखेथी ज ए शब्दों सांभळता ते पातानी जीभ काणे नाखवा तैयार थया, पण समजावटथी सोनानी जीभ सात वार कापी अने पछी ते केलाकोटनी राजगादीए बेठो.
आम आ कथामां विमाता द्वारा आळ ओढाडाय छे, परन्तु ते आळ उसर्यानी वात अहीं आवती नथी.
आमळ भदनी "सिंहासनबत्रीशी"मांनी पचीशमी "जोगणोनी वार्ता"मां अपरमानी पत्र प्रत्येनी कामवासनानी वात भावे छे. तेनो सार नीचे प्रमाणे '.
उज्जैणोमां एक घेलो देखातो युवान आवी चढूयो अने अणबोल्यो तंबोळीनी दुकाने रहेवा लाग्यो. विक्रमनी सभामां ए घेलानी पेर काढवानी होड थई अने राजार तेनी पासे जई तेना चित ओळखी ते बत्रीशलक्षणो होवानु का. पछी तेने पोताना महेलमा लावी पेरे पेरे तेनो पार पामी लीधो. तेणे विक्रमने कह्य, "रतनपुराना हु राजकुमार छु. मारा पिता. विदर्भमा राजानी चढाइ आवता राज मूकी नासी गया. मारो अपरमाना महेलमा एकदा मारो डो
में पडयो. ते लेवा हु त्यां गयो एटले मारा यौवनथी आकर्षा तेणे सोनाली माथे रंगे रमवा का. में ना कही एटले मारे माथे भ्रष्टाचारनो आरोप मकी मारा पिताने ए प्रमाणेनो पत्र पाठव्यो. तेमणे कई पण तपास कर्या विना
आज्ञा मोकली. शाणा प्रधाने पोतानी पुत्री द्वारा मारुं शील तपासाव्यु. है ए प्रधानपत्रीनो पायो न लपटायो. प्रधानने मारा सञ्चारित्र्यनी खातरी थइ. आथी तेणे पोतानी पुत्री मारी साथे पणावी. त्यारबाद तेना आवासमां हु गुप्तरीते रहेवा लाग्यो. परंतु सासरे वधारे वखत रहे योग्य न लागता हु घोडे चडीने त्यांथी भागी नीकळयो इत्यादि .... इत्यादि.... १ 'सिंहासन बत्रीशी' कर्ता शामळ भट्ट सं. हरिहर पुस्तकालय (असल बत्रीश पतळीनी
मोटी वार्ता)
Page #77
--------------------------------------------------------------------------
________________
७०
प्रद्युम्नकुमार-चुपई
गेडीथी दडो उछळी अपरमाना घरमां पडतां ते लेवा राजकुमार जाय अने त्यां अपरमा तेने जोई तेना रूप-यौवनथी आकर्षाई अघटित मागणी करे अने अनादर पामतां चारित्र्यभ्रष्टतानु आळ मूके ए प्रकारनु कथाघटक "हसावली"नी कथामां पण प्रतीत थाय छे.
आ ज प्रमाणे गेडीथी उछळेलो दडो अपरमा पासे पडतां ते लेवा आवतां ओरमान पुत्र उपर तेनी अपरमा ते अणगमतो होवाथो तेनो कांटो दूर करवानी इच्छाथो एकांतनो लाभ लई, शरीरनी विकृति करी, तेना पर व्यभिचारनु आळ ओढाडे तेवी एक कथा पश्चिम भारतमां पण प्रचलित छे. कथानो ढूंक सार आ प्रमाणे छे':
एक राजा पोतानी एक राणी अने बे संतानो साथे रहेतो हतो. थोडा दिवस बाद राणी मरण पामी अने राजा बीजी राणी परणी लाग्यो. आ बीजी राणी पहेली राणीनां बाळको प्रत्ये अदेखाई करवा लागी अने राजा तथा पोतानी साथेथी बाळकोने टाळवा लागी. बाळको अपरमानी आ बर्तणूकथी समजीने दूर रहेतां हता.
एक दिवस राणी बगीचामां महालती हती. तेवामां हीरामोतीथी जडेलो एक दडो तेना पग आगळ आवो पड्यो. आवो अमूल्य दडो पोताना ओरमान पुत्रोनो ज छे एम जाणीने ते ते लेवा जती हती त्यां तेनो ओरमान दीकरा भींत कुदीने बगीचामां आव्यो अने ज्यां राणी हती त्यांथी दडो लई झडपथी भागवा लाग्यो. पण तेणे पीठ फेरवी के तरत ज राणीए शोर मचावी मूक्यो, छातीफाट रुदन करवा लागी, पोताना वाळ फेंदी नाख्या अने कपडां फाडी नाख्यां. एवामां चोकीदारो त्यां दोडी आव्या अने शोक-संताप माटे पूछतां राणीए तरत ज रोषमां ते मोटा ओरमान दीकरा पर बदचलननु आळ ओढाड्यु. चोकीदारो तेने पकडी राजा पासे लई गया. राणीए राजा पासे मोटा दीकरा विरुद्ध काळी कहानी रजू करी. गुस्साथी कंपता राजाए राणीना कह्या मुजब बन्ने राजकुमारोने मारी नाखी तेमनी आंखो हाजर करवानो माराओने हुकम कर्यो.
त्यारबाद मारानी दयाथी बन्ने भाईओ बची जाय छे अने नासी छूटा पडी जाय छे. तेमांथी एक भाई पर हाथणी कळश ढोळे छे, एटले ते बीनवारस गादीनो राजा थाय छे. बीजो रखडतो रहे छे. केटलांक साहसिक पराक्रमो पछी ए पण राजा थाय छे. अंते भाईओनो मेळाप थाय छे. बन्ने मळी पिता पासे आवे छे. ओरमान मा पोतानो गुनो कबूल करे छे. राजा तेने गाम बहार धकेली दे छे. पितापुत्रो आनन्दथी राज्य करे छे.
एक मणिपूरी कथामा उपर्युक्त कथानु ज कंइक विगतभेदे निरूपण करवामां आव्यु छ. राजानु नाम हेमांगसेन अने राणीनु नाम अनंगम जरी छे. तेना बे पुत्रोनु नाम तूरी अने वसंत छे. अहीं तेआनी मा मरी जतां जे नवी मा आवे छे ते ओरमान पुत्रो प न मकतां नवो प्रपंच खेले छे. मांदगीनो ढोंग करी गुप्त रीते शाणा माणसने बोलावी तेने राजा
१. Folktale in Western India No. 11-by Putali H.wadia. The Indian Antiquary Vol. XVII March 1881, P.75-81
२. आ ज प्रकारनी कथा 'अमरसेन-वयरसेन'नी वार्तामां, हंसराज-वच्छराज'नी वार्तामा अने 'वीरभाण-उदयभाण'नी वार्तामां कंइक विगतभेदे कहेवाय छे.
३. 'The Two Brothers' by Damant G. H., The Indian Antiquary Vol IV. 1875 p.260.-264
Page #78
--------------------------------------------------------------------------
________________
भूमिका
ने एम कहेवानु शीखवे छ के-आ राणी जो तमारा बैदीकरा तरी अने बसंतनां लोहीथी स्नान करे तो साजी थाय. राजा ज्यारे शाणा माणसने राणीनी मांदगीनु कारण पूछे छे त्यारे ते राणीना शीखव्या प्रमाणे ज जणावे छे. राजा पुत्रोने मारी नाखवानो हुकम करे छे. पण माराओनी दयाथी छूटी जाय छे ..........इत्यादि............
__ आवा ज प्रकारनी एक बीजी कथा काश्मीरनी लोककथामां पण कहेवाई छे.' तेनी कथा उपर प्रमाणेनी ज छे. तेमां फेर एटलो जछे के नवी राणी ए वजीरनी पुत्री होय छे. नवी राणी राजाने पोतानो मानीतो बनावी पछी भ'भेरे छे के तेना बे पुत्रो स्वच्छंदी छे अने पोताना तरफ खराब वर्तनवाळा छे. राजा आ सांभळी बाळकोने मारी नाखवानो हुकम करे छे. माराओ ज्यां मारवा जाय छे त्यां देवीना प्रतापथी तेमनी तलवार लाकडानी थई जाय छे. आथी तेओ ते छोकराओने जंगलमां छोडी दे छे इत्यादि......
काश्मीरनी एक बीजी लोककथामा अपरमा पोताना पुत्र पासे अघटित आचरण करवानु जणावे छे. त्यारे तेओ ए वातनो अनादर करे छे. अपरमा वेरथो प्रज्वलित थई तेमना पर आळ ओढाडी राजा पासे ते बे पुत्रोना हृदयनी मागणी करे छे. वाताना ट्रंक सार आ प्रमाणे छ '
एक राजा अने एक राणीने बे बाळको हतां. थोडा समय पछी राणी मृत्यु पामी अने राजा बीजी वार परणीने नवी राणी लाव्यो. बन्ने बाळकोए एकमेकनी सलाह लई विचार कर्यो के आपणे नवीमाने इक अभिनंदनात्मक भेट धरीए. तेथी ते ओए हीरा-माणेकथी एक थाळ भर्यो अने नवी माना चरणोमां धर्यो. नवी रागीए तेनो स्वीकार कर्यो, ते वखते आ बे राजकुमारो पर तेनी नजर चोंटी. राजकुमारो चाल्या गया. दिवसे दिवसे तेओ नवी राणी माटे एवी ज रीते मेट-वस्तुओ लेता आवता हता.
आम करता एक दिवस नवी राणीना मनमां ते ओरमान पुत्रो प्रत्ये कामवासना जागृत थई अने तेणे ते पुत्रोने पोतानी साथे अनीति आचरवान कयु. पण तेओ बोल्या के, 'तमे तो अमारी माता थाओ. तमारी अने अमारी वच्चे आवु कदापि संभवे नहि.' आम कही तेओ चाल्या गया.
सांजे ज्यारे राजा अंतःपुरमा गयो त्यारे राणीए पोतानु द्वार वासी राख्यु. राजाए खखडाव्यु तो पण तेणे उघाड्यु नहि. राजाए कारण पूछयु त्यारे ते बोली, 'हुतमारी पत्नी छ के तमारा बे बाळकोनी ?' आम कही तेणे ते बाळको पर व्यभिचारनु आळ ओढाड्यु. अने कह्य, "हवे ज्यां सुधी तमे मने तमारा बे पुत्रोना हृदय काढीने नहि आपो त्यां सुधी हुं द्वार खोलवानी नथी.” राजाए त्यारबाद वजीरने ते बाळकोने मारी नाखवा जणाव्यु पण वजीरनी दयाथी तेओ जंगलमां नासी नीकळया इत्यादि .. १. Folktales of Kashmir by Knowls. J. H. [बीजी आवृत्ति] [पृष्ठांक १६६] 2. Hatim Tales. Kashmiri Stories and Songs by Sir Aurel
Stain and GA Grierson P. 45
आ उपरांत पात्र अने प्रसंगना आलेखनमां कइक विगतफेर साथे आ ज प्रकारनी बीजी काश्मोरी कथा माटे जुओ Folktales of Kashmir by Knowls G.H.ए पुस्तकमांनी पृष्ठाक ४१५ थी ४४१ सुधी आपेली 'The Four Princes'-चार राजकुमारो ए नामनी कथा.
Page #79
--------------------------------------------------------------------------
________________
७२.
प्रद्युम्नकुमार चुपई
वार्ता आगळ चाले छे. तेमां पण फरीथी राजकुमार उपर भ्रष्टाचारनी शंका आवे छे. ते आ प्रमाणेः
रखडतां रखडतां बे राजकुमारो एक बीजा गाममां पहोंच्या त्यांना राजाए तेमने उत्तमकुळना जाणी नोकरीमा राख्या अने पोताना बे वृद्ध अंगरक्षकोनी साथे ते बे नणने पण अंगरक्षक तरीके नीम्या.
रात्रीना प्रथम प्रहरे मोटो राजकुमार चोकी करवा आव्यो अने ते राजाराणी सूतां हतो ते शयनगृह आगळ चोकी करवा मांड्यो. रात्रीने वखते एक मोटो सर्प छत ऊपरथी नीचे सरतो तेनी नजरे पड्यो सरतो सरतो ते राणी पासे पहोंच्यो. तरत ज मोटा राजपुत्रे पोतानी तलवारथी ए सर्पना कटका करी नाख्या अने तेने पथारी नीचे मूकी दीघा अने पोतानी तलवारने एक लूगडांमां वींटी लीधी. पछी एक लूगडांथी राणीनुं शरीर लुछवा गयो कारण के तेने थयुं के कदाच सर्पनु विष राणीनां शरीरने लाग्युं होय. जेवो ते राणीना शरीरने लछवा जाय छे त्यां राजा जागी जाय छे अने जुए छे तो राणीनी पासे तेनो आ अंगरक्षक ऊभो होय छे. राजा कंह बोलतो नथी. पण पछी त्यारबाद आवता दरेक अंगरक्षकने ए पूछे छे के, 'जे सेवक पोताना मालिकने दगो दे तेने शुं सजा करवी?' दरेक अंगरक्षक जवाब आपे छे के, 'तेनो शिरच्छेद करवो'. पण ते वखते उतावळे कार्य करवाथी हानि थाय छे ए विषे एक एक दृष्टान्त कहे छे. त्यारबाद मोटा राजपुत्रे आवी रात्रीनो सर्व वृत्तान्त जणान्यो अने पोतानी निर्दोषता साबित करी.
अहीं मात्र भ्रष्टाचारनी राजाने शंका ज आवे छे पण आज प्रकारनुं जे कथानक बंगाळनी लोककथामां खूब प्रचलित छे तेमां तो राणी स्पष्ट रोते भ्रष्टाचारनुं आळ ओढाडे छे. बंगाळनी आ कथा आ प्रमाणे छे :
9
एक राजाने त्रण पुत्रों हता. राज्यमां चोरोनो त्रात थयो होवाथी राजाए त्रणे पुत्रोने ते त्रास दूर करवानी आज्ञा आपी. प्रथम बन्ने भाईओ रात्रे फरवा नीकळ्या. पण बन्नेने चोरनी भाळ लागी नहीं. त्यारबाद सौथी नानो पुत्र शहेरमां नीकळयो. राजमहेलना दरवाजा पासे आवता तेणे राजमहलमाथी एक स्वरूपवान कन्याने बहार नीसरती जोई एने पूछयुं के, 'तुं कोण छे ? अने रात्रीने समये क्यां जाय छे?' एटले कन्याए कछु के, 'हुँ राज्यलक्ष्मी छु आज रात्रीए राजानु मृत्यु थवानुं छे. तेथो अह हवे मारो जरूर नथी. हुं बहार चाली जाउं छु” नाना राजकुमारे तेने राजाने बचावबानु वचन आपी, राजमहलमां पाछी वाळी.
•
राजकुमार त्यांथी सीधो पिताना शयनगृहमां गयो. त्यां जोयुं तो राजा भर ऊंघमां हतो अने बाजुनी शय्यामां तेनी बीजी युवान राणी सूती हती. त्यां तो राजकुमारे एक मोटा नागने राजाना पलंगनी आजुबाजु फरतो जोयो. राजकुमारे पोतानी तलवारथी ते नागना बे टूकडा कर्या. छतां पण संतोष न थवाथी तेणे ए नागना सेंकडो टूकडा कर्या अने पाननी थाळीमां मूक्या.
परन्तु ज्यारे राजकुमार सर्पना टूकडा करतो हतो त्यारे ए नागना लोही विषमय टीपु तेनी युवान ओरमान माना स्तन उपर जईने पड्यु. राजकुमारे जेम पिताने तेम माताने बचाववानो निश्चय करी पोतानी जीमे सात पडवाळो लूगठानो टूकडो वींटाळीने तेना वडे तेनी ओरमान माना स्तन पर पडेलु लोहीनुं टीपुं लूछवा गयो. ज्यां ते नीचो वळीने टीपुं लूछे छे एटलामां तो राणी तरत ज राजकुमार शयनगृहमांथी दोडी गयो. नाना राजकुमारनो नाश करवाना
लागी गई.
१. Folktales of Bengal by L.B. Day [ पृष्ठांक १४०-१५१ ]
Page #80
--------------------------------------------------------------------------
________________
भूमिका
हेतुथी राणीए राजाने जगाडीने कां के, ‘में हमणा तमारा सौथी नाना पुत्रने मारा स्तननो स्पर्श करता पकड्यो छे. नक्की ते बददानतथी अहीं घूस्यो हतो.' राजा आ सांभळी स्तब्ध बनी गयो. आ बाजु नानो राजकुमार पोताना भाईओ पासे पाछो आव्यो अने कइ पण बोल्यो नहि
वहेली सवारे मोटा पुत्रने अने त्यारबाद बीजा पुत्रने बोलावीने राजाए पूछय के, “ए मानवी के जेनी पासेथी में मारी कीर्ति अने जिंदगीनो भरोसो राख्यो होय ते न दगाबाज नीवडे तो मारे शुरू करवु?' बन्नेए अनुक्रमे 'शिरच्छेदनी शिक्षा ज करवी घटे' एम जणाव्यु. परन्तु उदाहरणो द्वारा समजाव्यु के 'प्रथम एनी खात्री करी लेवी जोइए के ते खरेखर गुनेगार छे के नहि'. सौथी नाना पुत्रने ज्यारे बोलाववामां आव्यो त्यारे तेणे पण एज रीते जवाब आपीने पछी गई रात्रीनी वधी वात जणावी. राजा खुश थयो अने तेने खूब चाहवा लाग्यो.'
उपर्युक्त बन्ने कथाओमां आलेखननी दृष्टिए बंगाळनी कथा अवश्य कलात्मक रीते कहेवाई छे. काश्मीरनी कथामां राजा परपुरुष पर राणी प्रत्येना भ्रष्टाचारनी शंका सेवे छे, ज्यारे अहीं बंगाळनी कथामां अपरमाता ओरमान नाना पुत्र उपर पोते ज तेना विनाशार्थे बदचलननु आळ मूके छे.
आ उपरांत बंगाळनी एक बीजी 'शीत अने बसंत' ए नामनी कथामां पण अपरमाता तेना ओरमान पुत्र पर व्यभिचारनु आळ ओढाडे छे -ए कथाघटकनो उपयोग थयेलो छे. ते कथा टंकमां आ प्रमाणे छे:
एक राजाने सूओ नामे मानीती अने दूओ नामे अणमानीती राणी हती. सूओ दुष्ट हती अने दूओने कष्ट आपती हती. सूओ निःसंतान हती. दूओने शीत अने बसंत नामना बे पुत्रो हता.
एक दिवस बन्ने राणीओ नदीए नहावा गइ, त्यारे सूओए युक्तिपूर्वक दूओने माथे कंइक नाखीने पोपटी बनावी दीधी. घरे आवीने सूओए जाहेर फयु के दूओ नदीमां डूबी गई छे.
आ बाजु वखत जतां सूओने त्रण दीकरा अवतो. तेओ साव दोरी जेवा पातळा हता. ज्यारे शीत अने बसंत भरावदार हता. तेथी तेनी ओरमान मा तेमने खूब दुःख आपती. एक दिवस शीत अने बसंतने बदनाम करवाना हेतुथी तेओ ज्यारे शाळाएथी घरे आव्या त्यारे ओरमान माए पोताना वाळ तोडी खूब शोर मचावी गुस्सामा एक दासीने बोलावी राजा पासे कहेवडाव्यु के तमारा दीकरा शीत अने बसते तेमनी ओरमान माने खूब गलीच भाषामां बदनाम करी के. राजा ज्यारे क्रोधमां भभूकतो आव्यो त्यारे राणीए तेने ते बे पुत्रोना रक्तथी स्नान करवानी इच्छा जणावी. राजाए तेम करवानी आज्ञा आपी. परंतु माराओनी दयाथी तेओ छूटी गया. इत्यादि...
आ उपरांत सिंधनी लोककथामां लाल शाहबाझ नामना एक महापुरुषनी कथा प्रचलित छे. आ 'लाल शाहबाझ'नी कथामां पण भ्रष्टाचारना आळनी वात आवे छे. ते ट्रंकमां आ प्रमाणे छ: 3 १. आ कथा 'शिक्षा अने शांति' ए शीर्षक नीचे 'भारत लोककथा' संपादक : ठक्कर
वसनजी, भाग चोथामां पृ. २१८ थी २२८सुधीमां आपेली छे. २. Bengal Fairy Tales by F.B.Bradly-Birt p.153 ३. Folktales of Sind and Gujarat (पृष्ठांक७ थी१२) कर्ता-Kincaid C.A
Page #81
--------------------------------------------------------------------------
________________
७४
प्रद्युम्नकुमार-चुपई
लाल शाहबाझर्नु खलं नाम हझरत सैयद उस्मानशाह मारवाडी हतु. जीवननी शरूआतनां वर्षोमां ज तेओ आध्यात्मिक जीवन तरफ वळया हता. बार वर्षनी क्ये, कहेवाय छे के, तेमणे आंधळाने देखतां कर्या, बहेराने सांभळता अने मूगाने बोलता कर्या.
तेमने त्रण साथीदारो हता. तेमना नाम शेख बहावलदीन, शेख फरीदगंज शंकर अने मखदून जलालुदीन. लाल शाहबाझने आ 'लाल शाहबाझ' नाम एमणे बतावेल चमत्कारना परिणामे मळेलु हतु.
शेख जलाल नामना फकीरने पराजय आपीने लाल शाहबाझ तेमना उपयुक्त त्रण साथीदारो साथे मुक्का अने मदीना गया हता. त्यांथी पाछा फरतां तेओ एक गाममां रातवासो करवा रोकाया ते वखते शेख फरीदगंज साथीदारो माटे बहार पांउ खरीद करवा गया. कमनसीबे पांड पकाववावाळानी दुष्ट पत्नीने आ युवानने जोतां कामवासना जागृत थई. तेणे ज्यारे अघटित मागणी करी त्यारे शेख फरीदगंजे तेनो अनादर कर्यो. आथी तेणे शेख फरीदगंज उपर भ्रष्टाचारनु आळ मूक्यु. तरत ज तेने पकडवामां आव्यो. अने तेने देहांतदंडनी सजा थई. ज्यारे लाल-शाहबाझे आ सांभळयुं त्यारे तरत ज पोताना मित्रने छोडाववाना पगलां लीघा. तेमणे बाकीना बे मित्रोमांथी एकने हरण बनावी वधस्तंभ तरफ छाडी मूक्यो. लाको घेला थईने आ हरण पकडवा तेनी पाछळ पड्या. तरत ज लाल शाहबाझे तेना बीजा मित्रने बनावी दोघा. तेने जोई मारा भागी गया. अंते संत बाज पक्षीनु रूप लई शेख फरीदगंजने उपाडी सलामत स्थळे लई गया. आ चमत्कारथी ते संत "शाहबाज, कहेवाया, जेनो सिंधीभाषामा "बाज पक्षी" एवो अर्थ थाय छे.
आम आ कथामां एक पर स्त्री एक संतपुरुष उपर मोह पामी आळ ओढाडे छे. ए आ कथाघरकना निरूपणमांनु एक नोंधनीय तत्त्व छे. आ उपरांत मध्यप्रदेशमांनी एक गोंडलोककथामां पण एक भ्रष्टाचारना आळनुकथानक आवे छे. टूकमां आ कथानक आ प्रमाणे
एक पक्षीनां बे इंडांमाथी गुंजमरा अने गुजहिरा (Gurjmara and Gunjhira) नामना बे कुमारो पेदा थाय छे. मोटा थई तेओ एक राज्या जाय छे. त्यां नानो कुमार गुंजहिरा ते गाममा त्रास फेलावनार मत्स्यने मारी नांखे छे. राजाए जाहेर कर्यु होय छे के जे मत्स्यने मारशे तेने राजकुवरी परणावी मोटी समृद्धि आपवामां आवशे..
गंजहिराना पराक्रमथी राजकन्या तेना प्रेममां पडी जाय छे. अने राजा पोतानी शरत मुजब मत्स्यने मारनार आ गुजहिराने ते राजकुंवरी आपे छे. परंतु गुंजहिरा ते राजकन्याने पोताना मोटा भाई गुंजमरा साथे परणाववानु कहे छे. अंते राजकन्या गुंजहिरा प्रत्ये प्रेममा परोवायेली होय छे छतां, साथे रहेवाना लोभे गुजमरा साथे परणे छे अने बधां साथे रहे छे.
एक दिवस गुजमरा शिकार माटे बहार गयो होय छे त्यारे भाभी गुजहिराने अंदर जमवा बोलावे छे. बन्ने अंदर गया त्यारे भाभी बनेली राजकन्याए गुंजहिरा पासे अघटित मागणी करी. जेनो गुंजहिराए अनादर कयौँ त्यारे गुस्से थई राजकुंवरो बोली, 'हुं मरी जईश अने तने पण मारी नाखोश'. एम कही ते दही लावी अने तेने पोताना आखा शरीरे चोपड्यु अने बिलाडी१. Folktales of Mahakoshal'-P.178 byVerrier Elwin
Page #82
--------------------------------------------------------------------------
________________
भूमिका
७५
ओने पोतानु शरीर चाटवा बोलावी. बिलाडीओए नहोर इत्यादिथी तेने मरणतोल करी नाखी. सांजे ज्यारे मोटो भाई घरे अव्यो त्यारे पत्नीनी आ हाल विषे पूछयुं. त्यारे ते गुंजहिरा उपर आळ ओढाडती बोली, 'तमारा भाईए मारा पर बळात्कार करवानो प्रयत्न करी मारी आ हालत करी मूकी छे.' क्रोधे भराई गुंजमरा फांसो खावा जाय छे. पण गुंजहिरा 'पंच समक्ष आ वातनो फेंसलो थशे' एम कही पाछो वाळे छे. अंते गुंजहिरा पंच समक्ष तपावेला लोखंडना थांभलाने भेटा, सहीसलामत रही पोताना चारित्रनी साक्षी आपी जंगलमां चाल्यो जाय छे.
आम आ कथानकमां आळ मूकवा माटे स्त्री पोताना शरीरनी सामान्य रीते जे प्रमाणे पोताना ज हाथे कपडां फाडो, वाळ तोडी, कृत्रिम विकृति करे छे, तेना करता कंइक विचित्र ते बिलाडीओ पासे ए प्रकारनी विकृति कराववानु आलेखन नोंधनीय छे. अहीं आरोपी शोलप्रभावे भयंकर कसोटीमाथी पसार थई, तेमांथी हेमखेम पार उतरी पोतानी पवित्रता साबित करी पोतानां कलंकने धोई नाखे छे.
आ ज प्रकारनी एक मुरिआ कथामां पण आळनुं कथानक आवे छे. '
एक राजाना थूकथी एक हरणीने गर्भ रह्यो अने ज्यारे बाळक अवतर्यु त्यारे वृक्ष नीचे मूकी दीधु राजा निःसंतान होई तेने महेलमां लई जईने उछेरवा मांड्यो क्रमे क्रमे ते मोटो थयो . एक दिवस राजा शिकार करवा गयो ते वखते राजानी राणी अने आ छोकरो एक ज खंडमां सुतां हतां. राणी आ छोकराने जोई कामातुर थई अने तेने पोताने आलिंगन आपवा माटे दबा कर्यु. छोकराए तेनु कद्दु मान्यु नहीं. तेथी राणी खूब गुस्से थई. राजानो ज्यारे आववानो समय थयो त्यारे राणीए कांटाओ वडे पोतानु शरीर उझरडी नाख्यु अने भय पडी गई. राजाए ज्यारे कारण पूछयुं त्यारे तेणे पोताना पर बळात्कार करवा आळ पेला छोकरा पर ओढाड्युं. राजाए तेने जेलमां धकेली दीघो. त्यारबाद पेली हरणी युक्तिपूर्वक तेने छोडावे छे अने साची वात राजाने जणावे छे. तेथी राजा ते राणीने जीवती दाटी दे छे. अने ते हरणी हरणी मटी सुंदर कन्या बनी जाय छे.
आम आ कथानकमां प्रद्युम्नकथानी माफक पालकमाता तेना पालकपुत्र प्रत्ये मोह पामी, पोतानी अघटित मागणीओना अनादर थतां भ्रष्टाचारनु आळ मूके छे.
मध्यप्रदेशनी एक कथामां वळी एक राणी पातानी ओरमान कुंवारी पुत्री उपर भ्रष्टाचारनु आळ ओढाडे छे एवं आलेखन थयेलुं छे. कथा टूकमां आ प्रमाणे छे :
एक राजाने एक राणी अने बे बाळकोमां एक दीकरी हती. राणीना मरण बाद राजा बीजी राणी लाग्यो. ते आ बाळकाने असह्य दुःख आपवा लागी. आथी पण संतोष न पामत ए ओरमान माताए ए छोकरी उपर आळ मूकीने राजाने भरमाव्यो के, "छोकरी कुचारित्र्यनी छे, जुओ तेना शरीर उपर सगर्भावस्थाना चिन्हो जणाय छे." ज्यारे ए छोकरीना भाईए आ आळनी वात जाणी त्यारे ते बहेन अने भाई महेलमांथी भागी छूट्या... इत्यादि...
१. Folktales of Mahakoshal P 361-363 by Verrier Elwin २. ‘Folklore in the Central Provinces of India' by M. N. Venkataswami of Nagpur जुओ 'The Indian Antiquary Vol. XXV (Feb. 1876 ) p. 48
Page #83
--------------------------------------------------------------------------
________________
७६
प्रद्युम्न कुमार-चुप
आम भारतना अनेक भाषाना कथा - साहित्यमां आ भ्रष्टाचारनां आळनु घटक समावती अनेक कथाओ प्राप्त थाय छे. विदेशो कथासाहित्यमा पण आ कथाघटकना अनेक कथाओमां उपयोग थयेला छे. डॉ. भायाणोए तेना उदाहरणार्थे प्राचीन मिसरी साहित्यमांथी "बे वंधुओनी वार्ता"नो, "इलिएड "मांनी बेलेरे। फोननी कथानो तथा “बाइबल " मांथी जोसेफ अने पोटिफरना प्रसंगना उल्लेख कर्यो छे.' ते उपरान्त ग्रीक साहित्यमांनी "Phaedra and Hippolytus" नी कथामा पण भ्रष्टाचारनां आळनी वात आवे छे. कथा टूकमां आ प्रमाणे छे* :
थेसस (Theseus) नामना राजाने हिप्पोलिटा (Hippolyta ) नामनी राणीने हिप्पोलिटस नामे पुत्र हतो. पछीथी थेसस, फएड्रा नामनी बीजी स्त्रीने परण्यो. त्यारपछी हिप्पोलिटसने तेना पिताए पिथ्येअस (Pittheus) नी पासे मोकल्यो. जेणे पोताना ट्रोशननी गादीना वारस तरीके तेने दत्तक लीधो.
हिप्पोलिट से ट्रोझनमां आर्टेमिस ( Artemis ) देवीनु देवळ बंधाब्युं. आ बाबत एफडाइट नामनी देवीने अपमानजनक लागी. तेथी हिप्पोलिटसने शिक्षा करवाना हेतुथी तेनी अपरमा फएड्रा तेना प्रेममां पडे एम विचारखा लागी.
reसनी गेरहाजरीमां फएड्रा हिप्पोलिटसनी पाछळ ट्रोझनमां आवी अने त्यां तेणे हिप्पोलिटसनी कसरतशाळानी सामे एक देवळ बंधाव्यु के जेथी ते हिप्पोलिटस ज्यारे नग्न थई कसरत करे त्यारे तेने जोई शके आम ते हिप्पोलिटस प्रत्येनी कामवासनामां खूब बळवा मांडी. तेणे हिप्पोलिटस प्रत्येनो मातृभाव छूपावी राख्यो. पण ते दिवसे दिवसे सुकावा लागी आ बाबत तेनी वृद्ध धात्री जाणी गई तेथी तेणे हिप्पोलिटस उपर फएड्राने प्रेमनी मागणी करतो कागळ लखवानु जणान्यु फएड्राए ते प्रमाणे पोतानी कामवासना तृप्त करवा माटे जणावतो पत्र हिप्पोलिटस उअर पाठव्यो हिपोलिटसे ते कागळ बाळी नाख्यो अने धुंआ आ थतो फएड्राना खडमां आवी मोटेथी ठपका आपवा लाग्यो. पण त्यां तो फएड्राए पोताना कपडां फाडी नाख्यां अने मोटेथी बूमो पाडवा मांडी 'मदद मदद, मारा पर बळात्कार थाय छे'. पछो तेणे पोते गळे फांसो खाधो अने पाछळ हिपोलिटस पर भयंकर आळ मूकती गई ईत्यादि.
.
आम आ कथामा अपरमाता पुत्र पर भ्रष्टाचारनु आळ ओढाडी पोते ए आळने वधारे सचोट बनाववा गळे फांसो खाई मरी जाय छे जेथी एम साबित थाय के भ्रष्टाचार आदरनार व्यक्तिए पोतानुं कार्य पतावो ए कार्यनी जाण न थाय ए माटे भ्रष्ट थयेली व्यक्तिनुं निकंदन ज काढी नाख्युं छे. ग्रीककथा उपरांत इरानी साहित्यमां पण एक कथानकमां आ कथाघटकनों उपयोग थयो छे.
कवि फिरदौसीना 'शाहनामा' मां राजा काउस ( Kai Kaus) नी कथामां आ वात आवे छे. १. 'शोध अने स्वाध्याय' पृ. २८२
२. The Greek Myths Vol. I, P. 356 Robert Graves.
३. The Shahnāma of Firdausi Vol. II. page 200. Translated into English by Warnar Arthur George and Warnar Edmond तथा जुओ Mythology of all Races Iranian Mythology) Vol Vl. P. 336. Ed. by Albert J.
Cornoy
Page #84
--------------------------------------------------------------------------
________________
भूमिका
पर्शियानो राजा काउस, सूडाबा (Sudaba) नामनी एक स्त्रीने परण्यो हतो. ते द्वेषिली हती. ते पोतानो आगली शोक्यना सियावूष (Siyawush) नामना युवान पुत्र उपर मोहित थई अने तेनी पासे तेणे अघटित मागणी करी. सियावूषे ते मागणी नकारी एटले तेणे तेनो विनाश करवा तेना पर भ्रष्टाचारनु आळ ओढाडयुं. त्यारबाद कोई डाकणथी तेने बे राक्षसी बाळको थया छे एवो दोषारोप तेनी अपरमा तेना पर मूके छे. तेमांथी सियावूष मुक्त थाय छे. छतां पण तेनी मा तेने देशनिकाल करे छे.
दुष्ट राणी सूडाबानी माफक ज चीननी लोककथामां राणी टा-ची (Ta.chi)नी कथामां पण ते तेना ओरमान पुत्र उपर भ्रष्टाचारनु आळ मूके छे, ते कथाघटक निरूपायु छे. ते कथा टूकमां आम छे:'
पा-आइ-काओं (Po-I-Kao) ए वन वांग (Wen Wang )नो मोटो पुत्र हतो. चाउ (Chau ) नामना राजाए वेन वांगने जीती जेलमां पूर्यो हतो. पाँ-आइ-काऑए पोताना पिताने मुक्त करवा अथाग प्रयत्न कर्यो. चाउने प्रसन्न करवा तेणे घणी समृधि साथे दस सुदर युव तिओ अने सफेद मुखवाळा अजब यादशक्ति धरावता वांदराओ मोकल्या.
कसनसीबे पॉ-आइ-काऑनी उपर राजा चाउनी मानीती रखात टा-ची (Ta.chi) कामातुर थई अने तेणे पॉ-आई-काओने पोतानी जाळमा फसाववा घणा प्रयत्नो कर्या, परंतु ते निष्फळ गया. अंते तेणे पाँ-आइ-काओ- उपर भ्रष्टाचारनु आळ मूक्यु. राजा चाउए तपास करी पॉ-आइ-काऑने निर्दोष जाहेर कर्यो. त्यारबाद टा-ची पॉ-आइ-काओने अनेक रीते हेरान करवा लागी. तेथी पॉ-आइ-काओए राजाने आ दुष्ट टा-चीथी पोताने दर मोकलवा विनंती करी. ते वखते टा-चीए पॉ-आई-काऑनु अपमान कर्यु. तेथी गुस्सामां पॉ-आइ-काआँए तेने वीणा वडे फटकारी. ओथी तेने क्रूर रीते मारी नाखवामां आव्यो अने तेनु मांस तेना पिताने खावा मोकल्यु इत्यादि...२
आम आपणे जोई शकीए छीए के मोटा भागे अपरमाता के पालकमाता पोताना आकपंक अने यवान पुत्रना रूप-यौवनथी आकाँई कामातुर थाय छे, अघटित मागणी करे छे अने दरेक वखते ए सुपुत्र ते अघटित संबंधनो अनादर करी, माता द्वारा भ्रष्टाचारनु आळ पोताना गीरे वहोरी ले छे. क्याँक भाभी दियर उपर, तो कोइ स्त्री परपुरुष उपर पण ए जरीते कामातर थाय छे. परंतु ज्यारे पोतानी अघटित मागणीनो ते व्यक्ति द्वारा अनादर थाय छे त्यारे पोतार्नु कपट छूपाववा तेना पर भ्रष्टाचारनु आळ ओढाडे छे. आम आपणे भारतीय परं. परा तथा विदेशो परंपराना कथासाहित्यमा 'भ्रष्टाचारनु आळ' ए कथाघटकनो व्यापक पीते उपयोग थयेलो जोई शकीए छीए. (६) परपुरुष साथे छानो संबंध राखती पत्नी
१. Myths and Legends of China by F.T.C. Warner. P.192
२. पर्शियानी राणी सुडाबा अने चीननी राणी टा-ची (Ta-chi) ना आ भ्रष्टाचारना आळनी कथाना तुलनात्मक अभ्यास माटे जुओ Some Shahanama Legends and their Chinese Parallels by Coyajee J.C., Journal and Proceedings of Asiatic Society of Bengal Vol. 24.P. 191 (New Series)
Page #85
--------------------------------------------------------------------------
________________
प्रद्युम्नकुमार-चुपई
आ एक हलका प्रकारनु स्त्री-चरित्र छे. घणी वखत स्त्रीनी कामवासना एटली बधी उद्दिप्त होय छे के ते पोतानु गौरव, लज्जा के फरजनु भान भूली पोताना पति उपरांत इतर परपुरुष साथे अयोग्य संबंध बांधी कामभोग भोगवती होय छे. पति आ वातथी अजाण होय छे अने पत्नी तेनो लाभ लई पोतानी कामवासनाने संतोषे जती होय छे. आ रीते ते एटली हदे असंयमी बनी जाय छे के पोताना वासनाने संतोषवा माटे पोताना जारना हाथनो असह्य मार पण सहन करे छे. एटलुज नहि पण मारेक तो ते जारनो आज्ञाने वशवती पोताना पतिनु निकंदन पण काढी नाखती होय छे. केटलीक वार पतिने पोतानी पत्नीना आ व्यभिचारनी खबर पडो जाय छे, त्यारे पत्नो पोतानी निर्दोषता पुरवार करवा बीजा अनेक प्रकारना स्त्री-चरित्रो अजमावे छे. केटलीक वार चालाक पति पोतानी पत्नीनी आ प्रकारनी युक्तिआने निष्फळ बनावी तेनु' पोल उघाडु पण पाडे छे. क्यारेक पत्नी पोतार्नु भ्रष्ट चारित्र्य छुपाववा पति उपर सामु आळ पण मूके छे, तो क्यारेक पोताना यार साथे मनमानी मोज करवा माटे कर बनी पोते ज पोताना हाथे पतिनो कांटो दूर पण करती होय छे.
आमां मात्र नीच कुळनी के हलका वर्णनी स्त्रीओ उत्तम कूळना परपुरुष साथे ज आवो अयोग्य संबंध राखे छे एवं नथी, के स्त्री पोताना पांगळा कुरूप के निधन पतिथी कंटाळीने कोइ सशक्त, देखावडा अने धनवान परपुरुष साथे पोतानी कामवासनानी भूख भांगवा जाय छे एवं य नथी. परन्तु 'कामांधो नैव पश्यति' ए न्याये उत्तम कूळनी स्त्रीओ नीच वर्णना पुरुषो साथे पण कामभोग आचरे छे अने पोताना गुणवान, रूपवान अने मोभादार-धनवान पतिने छोडीने रस्ते रखडता कूबडानी साथे अनीति आचरती होय छे.
डॉ. जनक दवेए पोताना अप्रकट महानिबंधमां' "नारीनी नीच प्रीति' ए कथाघटकनो केटलाक दृष्टान्तो साथे विचार कर्यो छे. तेमां तेमणे नीचेना दृष्टातोनु आ कथाघटक परत्वे निरूपण करेलु छ :
१. भर्तृहरिनी कथा २. दृष्टान्तशतकमांनी भतृहरिनी कथाने मळ्ती एक बीजी कथा ३. धर्मोपदेशमाला-विवरणमांनी "दोषबाहुल्ये नूपुरपंडिता कथा" ४. तेमां ज नारीनी नीच प्रीतिन एक बीजु कथानक ५. तेमां ज वळी एवु त्रीजु कथानक ६. दोषबाहुल्ये नूपुर-पंडिता कथाना प्रथम अंशना रूपान्तर समो शामळनी 'सूडाबहोतेरी'नी 'कोण मूरख ?' ए शीर्षकवाळी कथा ७. पंडित शुभशीलगणिकृत "विक्रमचरित्रम्"मां 'स्त्रीचरित्र वीक्षण संबन्धः' मांनी बे कथाएक "रत्नमंजरीकथा", बीजी "राज्ञीचरित्रवीक्षणम्" ८. शामळनी पंचदंडनी वार्तामा पांचमा दंडनी प्राप्तिनी वार्ता ९. पंडित शुभशोलग कृत "विक्रमचरित्रम्"मांनो छाहडनी वार्ता १०. शामळनी "सिंहासनबत्रीशी" मानी वहाणनी वार्ता ११. तेमांनी ज मेना-पोपटनी वार्ता १२. 'स्त्रीचरित्रनी नवीन वार्ताओ" नामना पुस्तकमांनी "कोडीलाल अने चतुरानी वार्ता” १३. ए पुस्तक मांनी ज त्रीजी 'रतनशी सोनी तथा तेनी स्त्री कूलवतीनी वार्ता" १४. ए पुस्तकमांनी ज छठी 'जहांदारशाह अने हरमनूरझांहानी वार्ता” १५. ए पुस्तकमांनी ज "अमरासिह अने तेनो स्त्री जारमती' नी कथा १६. "वरदा" पत्रिकामांनु लाखा फूलाणीनु कथानक १७. "कथासरिसागर"-शक्तियशालेबक, तरंग २ जो"मांनी "सिंहबळ अने तेनी राणीनी कथा १८.शुभशोल8. Shāmal's Sinhāsanbatrisī Preparation of an Authentic Edition
of Tales Nos. 28,29,30,31 From the Original Manuscripts together with a Critical Study of these Tales p.638-675.
Page #86
--------------------------------------------------------------------------
________________
भूमिका
७९
गणिकृत विक्रमचरित्रम्,, (गु. अनुवाद प्रकरण ४९) नी एक कथा १९. ए पुस्तकमांनी ज 'बे माछलाने हसवानु कारण' ए कथा. २०. "कथासरित्सागर-कथापीठलंबक",-५मा तरंगनी एक कथा २१. "जंबुस्वामी रास"-कर्ता यशोविजयजी-संपादक रमणलाल शाह, पांचमो अधिकार, तरंग ८ मां ढाळ १ ली. पृ. ११४-१२२ मांनी एक कथा. २२. "कथासरित्सागरशक्तियशालंबकनी 'घट अने कर्पर नामना चोरनी कथा', "धनदेवनी वहनी कथा" 'रुद्रसोमनी स्त्रीनी कथा' "शशीनी कथा, "एक नागदेव अने तेनी कथा", तरंग ७मानी 'यशोधर अने लक्ष्मीधरनी कथा', तरंग ९ मानी "व्यभिचारी नारीनी कथा". तरंग १० मानी "सिंहाक्षनी राणीनी कथा', तरंग ५मानी "अस्थिमुग्धनी कथा".
आम डॉ. दवेए "कथासरित्सागर", "स्त्रीचरित्रनी नवीन वार्ताओ" तथा शुभशीलगणिकृत "विक्रमचरित्रम्' माथी मोटे भागे कथाओ टांकी छे अने ते द्वारा स्त्रीचरित्रना वैविध्यनो ख्याल आप्यो छे..
आ उपरात में पण अहीं बीजा केटलाक नवा कथानको द्वारा आ कथाघटकनो विचार करवानो प्रयत्न करेलो छे.
आचार्य हरिभद्रसूरि विरचित प्राकृत ग्रंथ 'समराइच्चकहा' मां समरादित्य राजाना चोथा भवनी कथामा 'यशोधर चरित्र" आवे छे. अहीं यशोधर नामना श्रमण पोतानो वृत्तान्त कहे छे
"विशाला नामनी नगरीमां अमरदत्त नामनो राजा हतो. आ भवनी पहेलाना नवमा भवमां सुरेन्द्रदत्त नामनो हुँ तेमनो पुत्र हतो. मारी मातानु नाम यशोधरा हतु. अने ते वखते नयना वली नामनी मारी भार्या हती.
एक दिवस मारो पोतानो सफेद केश हाथमां आवतां मने वैराग्यभाव जागृत थयो अने में ते वात नयनावलीने कही. त्यारे नयनावलीए खूब अनुरागपूर्वक पोते पण दीक्षा लेशे एम जणाव्यु. पछो तेना अनुरागनो प्रशंसा करता करतो हुँ शयनगृहमा जई सूई रह्यो.
एटलामां नयनावली हुँऊ घी गयो छु एम जाणी पलंग ऊपरथी उतरीने वासघरमांथी बहार. नीकळी. नक्की मारा भावि वियोगथी कायर बनी ते आत्महत्या करशे-एम धारी, तलवार लई हु तेनी पाछळ गयो. त्यां तो राणीए राजमहेलनु रक्षण करनार एक कूबडाने जगाडयो. कूबडाए राणीनो सुगंधी चोटलो पकडीने भूमि उपर पछाडी. छतां राणीए तेने आलिगन अने चुंबन करी शांत कर्यो. आ जोई मारु मन विरक्त थई गयुं अने धर्म तरफ वधु खेंचायो. दीक्षा लेवानो निश्चय करी पाछो हु शयनगृहमां आवी सूई गया. एटलामां नयनावली पाछी आवी. १. "समराइच्चकहा" मूळ कर्ता-आचार्य हरिभद्रसूरि-गुर्जरानुवाद : आचार्य हेमसागरसूरि
पृ.१२०-१२७. २. जारना हाथनो मार खावानी वात नीचेना कथानकोमां पण प्राप्त थाय छे. १. 'धर्मों.
पदेश विवरण' मांनी 'दोष बाहुल्ये नूपुरपंडिता' नी कथामा राणी पोताना जार महावत वडे मोडा थवा बदल सांकळनो मार खाय छे. जुओं-डॉ. जनक दवेनो महानिबंध पृ. ६४३ २. पंडित शुभशीलगणिकृत विक्रमचरित्रम् अन्तर्गत गगनधूलिनी वार्तामां ज्यारे रुक्मिणी मोदक लई जाय छे त्यारे मोडा थवा माटे तेने जार तमाचो मारे छे. जुओ डॉ. जनक दवेनो महानिबंध पृ. ६२१. ३. 'स्त्रीचरित्रनी नवीन वार्ताओ'मां 'कोडीलाल अने चतुरा'नी वातामा चतुरानो यार तेना नाककान कापी नाखे छे. जुओ डॉ. जनक दवेनो महानिबंध पृ.६२४. ४. आगळ पृ. ५८१ पर काश्मीरनी लोककथानी एक वार्तामा पण जार वढे डांगनो मार खाती स्त्रीनी वात आवे छे.
Page #87
--------------------------------------------------------------------------
________________
प्रद्युम्नकुमार-चुपई
त्यारबाद नयनावलीए विचार्यु के, 'राजा दीक्षा लेशे अने हु नहीं लडं तो मने मोटुं कलंक लागशे. जो पति मृत्यु पामे अने मंत्री पोते वचन थी बाळ राजाना पालन माटे मने पति पाछळ मरती रोकशे, तो तेटल कलंक नहि लागे. माटे कोई पण उपाये महाराजाने मारी नाखु'. एम विचारी तेणे भोजनमां झेर भेळव्यु. ते भोजन खावाथी मने झेर चढयु, हुँ सिंहासन ऊपरथी पटकाया. ते वखते सेवको राजवैद्योने बोलाववा गया. "वैद्य बोलाववा ठीक नहि" एम चिंतवती राणी व्याकुळ बनी, पोतार्नु वस्त्र मारा मुख उपर नाखती, हाहारव करती मारा देह उपर पडो. कोई न देखे तेवी रीते अने पोतानां वस्त्रो अस्त व्यस्त थई गया होय ए रीते रुदन करती एवी तेणीए अंगूठो अने आंगळीओ वडे गळे टूपो मारी मारा प्राण हरी लीधा."
आम आ कथामां राणी जेवी उच्च वर्णनी अने प्रेमाळ तथा मोभादार पति पामेली स्त्री कबडा साथे अनीति आचरे छे अने छेवटे पोताना पतिनु निकंदन काढी नाखे छे.
भा उपरांत परपुरुष साथे अघटित संबंध राखती पत्नी, पोताना ए कपटनी पोताना पतिने खबर पडे छे त्यारे सामु ते तेना पर चोरीनु आळ मूके छे-एवं वृत्तान्त आपणे 'श्री उपदेशप्रासाद' मांनी काष्टमुनिनी कथामां जोईशंः'
राजगृहनगरमां काष्ट नामे श्रेष्टिने वज्रा नामे कुलटा स्त्रीथी देवप्रिय नामे पुत्र हतो. ते. श्रेष्ठिए पोपट, मेना अने एक कूडो पाळया हता. अने घरनी संभाळ राखवा माटे एक ब्राह्मणना पुत्रने राख्यो हतो. एकदा श्रेष्ठ बहारगाम गयो त्यारे तेनो स्त्री आ युवान ब्राह्मणपुत्र साथे विषयसुख भोगववा लागो. आ जोई मेना तेने उपदेश देवा जतां वज्राए क्रोधथी पकडीने अग्निमां नाखी दीधी. ते जोई पोपट मौन रह्यो.
एक वखत ते वज्राने घेर बे मुनि भिक्षा लेवा माटे आव्या. तेमाथी वृद्ध मुनिए नानानिने का के 'आ कूकडानु मस्तक मांजर सहित जे खाय ते राजा थाप.' ते वचन पेला. ब्राह्मणपुत्रे सांभळी, तेणे वज्राने कूकडाने मारी तेनु मस्तक मांजर सहित पकावो आश्वानु कह्य वज्राए तेम कयु. परंतु ब्राह्मणपुत्र स्नान करवा गयेलो अने एटलामा पोतानो पुत्र निशाळेथी भूख्या आग्यो हतो, एटले तेणे कडानु मस्तक पोताना पुत्रने खवडावी दीधु. आ वात ब्राह्मणपुत्रे ज्यारे जाणी त्यारे तेणे वज्राने पोताना पुत्रने मारी तेना पेटमाथी कूडानु मस्तक लावी आपवानु को. वज्राए ते वात स्वीकारो. ते वात पुत्रनी धावमाता सांभळी गई, एटले ते निशाळेथी परभारी ज पुत्रने लई चालती चालतो चपानगरीना उद्यानमां आवी. त्यां ते गामनो राजा अपुत्र मरण पाम्यो होवाथी, प्रधानोए पंचदिव्य कर्या हता. ते पंचदिव्ये उद्यानमा सुतेला पेला पुत्रने प्रमाण को. आम ते देवप्रिय राजा बन्यो.
अहीं केटलेक काळे काष्ट श्रेष्ठि परदेशथी घरे आव्यो एटले पोपटे तेने सर्व वात कही. ते सांभळीने श्रेष्ठिए वैराग्य पामो दीक्षा लीधी. राजाना भयथी वज्रा पण ब्राह्मणपुत्रनी साथे पोताना गामथी नीकळी दैवयोगे पोताना पुत्रनां राज्यवाळा नगरमां आवीने रहेवा लागी.
१.
"श्री उपदेशप्रासाद"-कर्ता श्री विजयलक्ष्मीसूरि. गु० भाषांतर :-श्री जैनधर्मप्रसारक सभात्रीजी आवृति, पांचमा तपस्वी प्रभावक विषे कायमुनिनु दृष्टांत पृ० १५६-१५८
Page #88
--------------------------------------------------------------------------
________________
भूमिका
काष्टमुनि विहारना क्रमे फरतां फरतां ते न नगरमां आध्या अने अकस्मात ते वज्राना घरे भिक्षा माटे आल्या. वज्राए पोताना पतिने ओळखीने विचार्य, “जा आ मने ओळखशे तो मारी हेलना करशे" आथी तेणे भिक्षाना पात्रमा भिक्षानी साथे पोतानु एक आभूषण मूकी दई पोकार को. तेथी राजसेवकोए ते साधुने चोर धारीने पकडी राजा पासे लई गया. ते वखते राजा पासे बेठेली धात्रीए तेने ओळखीने राजाने का के, "आ तारा पिता छे", एटले राजाए सर्व वृत्तान्त जाणी, पिताने हवा इच्छती माताने गाम बहार काढी मूकी अने पोते श्रावक थयो.
आम अहीं भ्रष्ट थयेली स्त्री, बेवफाइनी हदे पहोंची, पोताना पुत्र अने पतिनु कासळ कादवा तैयार थई जाय छे. . काश्मीरनी लोककथामां पण एक एवी कथा छे के जेमां जारना कहेवाथी पत्नी पतिर्नु कासळ काढी नाखे छे. पण पळी तेना फळरूपे ज जार तेने तरछोडी जाय छे त्यारे पोतानु कपट छूपाववा अने पोताने निर्दोष पुरवार करवा स्त्रा केयूँ चरित्र करे छे तेनो वृत्तान्त जोईए':
एक वेपारी तेनी पत्नीने घरे मूकीने वेपाराथें बहारगाम गयो. आ बाज वेपारीनी पत्नी एक फकीर साथे विलास करवा लागी. एक दिवस वेपारी घरे पाछो आग्यो,
आ गामनो राजा रात्रे नगरचर्या जोवा नीकळतो हतो. ते वखते मध्यरात्रीए ए वेपारीना घर पासे आवी ऊभो अने जोयु तो वेपारीनी पत्नी रांधेला भातनी थाळी माथे मूकी क्यांक जती हती. राजा छपातो छपातो तेनी पाछळ पाछळ गयो अने जोयु तो ते एक फकीर पासे गई अने थाळी मूकीने प्रणाम करी ऊभी रही. अने फकीरने भात आरोगवा विनंति करी. त्यारे फकीरे पोतानी डांगथी तेने फटकारी अने मोडा आववा माटे कारण पूछाय. एटले वेपारीनी स्त्रीए पोतानो पति घरे पाछो आव्यो छे अने तेथी मोडं थई गयु एम कही भात खावा जणाव्यु. पण फकीरे भात खावानी ना पाडीने का के "तुं ताग पतिर्नु माथु कापी लाव तो ह' भात खाऊं." जारनी ए वात पण मान्य राखी स्त्री घरे गई अने पोताना ऊंघता पतिनु माथु कापी नाख्यं अने फकीर पासे लावी त्यारे फकीरे तेने डांग वडे फटकारी कह्य के "तु तारा पतिने वफादार नथी, तो मने क्याथी वफादार रहेवानी ?"-आम कही ते चाल्यो गयो. राजा आ बधु जोतो रह्यो.
___सवारना राजाए शोरबकोर सांभळ्यो के, "वेपारीने चोरोए मारी नाख्यो छे." वेपारीनी स्त्रीए पण 'पोताना पतिने चोरोए मारी नाख्यो छे.' एवी वात राजाने करी. राजा जाणतो हतो के वेपारीने कोणे मारी नाख्यो छे. लोको गुनेगारने शोधवा मांड्या इत्यादि...
एम मनाय छे के स्त्री स्वभावथी ज चंचळ हृदयनी होय छे. मेडिये पूरो के जंगलमानां एकान्तमा एकली राखो, पण जो तेनी कामवासना उद्दिप्त थशे तो जारकर्म करवा विविध युक्तिओ अजमावशे. १. Hatim's Tale- "Kashmiri Stories and Songs"
प्रष्ठांक १३ थी १७, कर्ताः-Aurel Stein & G. A.Grierson. २. जारना हाथे स्त्रीमार खाय छे-ए कथानक माटे जुओ: पृष्ठांक ५७८
Page #89
--------------------------------------------------------------------------
________________
८२
प्रद्युम्नकुमार-चुपई
काश्मीरनी एक बीजी लोककथामां आवी ज एक वात आवे छे.' एक दिवस शिकार करता एक राजोने एक फकीर मळयो अने तेणे राजाने कंइक मागवा कह्य. राजाए एक सुन्दर परनी मागी. फकीरे कयु के, “हु तने ते आपीश पण चेती जजे के, स्त्री बेवफा ज निवडशे.” राजाए का', 'कइ वांधो नहि.' फकीरे तेने सुन्दर पत्नी आगी. राजाए ते राणी माटे जंगलना एकान्तमा एक महेल बंधाब्यो अने बने एटलो वधारे समय तेनी साथे रहेवो लाग्यो.
एक दिवस ते राणीए राजानी गेरहाजरीमा महेल नोचेथी सुन्दर अने युवान एवा वजीरने जतो जोयो, ते तरत ज तेना प्रेममां पडी अने तेने उपर बोलाव्यो. आ प्रमाणे रोज तेओ गुप्त रीते मळवा लाग्यां. एकबीजानां मन खूब मळी गयां त्यारे वजीरे शहेरथी राजमहेल सुधीनु गुप्त भोयर खोदाव्यु अने ते मार्गे रोज ते राणी पासे आववा लाग्यो.
एक दिवस वजीरे एक मोटी मिनबानी गोठवी अने राजाने आमंत्रण आप्यु. पेली राणी पण वेशपलटो करी त्यां आवी. राजाए तेने ओळखी लीधी. छतां चोकस खात्री करवा माटे राणीना वस्त्रना छेडाने हळदरनो डाघ पाडी दीधा अने चाल्यो गयो.
रात्रे ज्यारे ते महेलमां राणी पासे आव्यो त्यारे तेणे ते ज हळदरनो डाध तेना वस्त्रना छेडे जोयो. तरत ज तेणे तलवारना झाटके राणीनो शिरच्छेद कर्यो अने बीजे दिवसे राजपाट छोडी फकीर बनी गयो.
"अखेराज देवडा" नी कथामां पण आ ज कथाघटकमो उपयोग थयेलो छ :
शिरोही नगरमां अखेराज देवडो राज्य करतो हतो. तेनु लग्न झालावाडमां एक झालीनी साथे थयु हतु, पण परण्यां पछी अणबनाव ५ तां राजाए बीजु लग्न कयु. झाली मवनाबना होई तेनु चित्त खूब कामातुर रहेतुं.
एक दिवस दिल्हीना बादशाहनो शाहजादो देशाटने नीकळयो हतो, ते फरतो फरतो आ राणीना महेल नीचेथी नीकळयो. आवो कान्तिमान शाहजादो जोई झालीनु मन चळी गयु अने संदेशो पाठवी पोतानी इच्छा संतोषवा जणाव्यु, पण गभर शाहजादाए पोतानो छावणीए आववा जणाव्यु. रात्र राणी शाहजादानी छावणीनां आवी अने तेने शाहजादाए पोतानी पासे राखी दिल्ही चाल्यो गयो.
सवारे ज्यारे अखेराजने आ वातनी खबर पडी त्यारे ते अने सेनो भाणेज उमेदसिंग दिल्ही गया. रस्तामा पोताना ओळखीता नटोनी साथे दिल्हीना राजा पासे ढोलवाळाने वेशे तेओ गया. शाहजादानु माथु खाळामां लईने बेठेली झालीने जोतां प्रचंड आवेगमां आवी ते जोरथी ढोल बजाववा मांडयो. झालो अखेराजने ओळखी गई अने शाहजादाने ओळख आपी. शाहजादाए ढोलवालानु मस्तक कापी नाखवानो हुकम कर्यो. आ हुकम दोर उपर चढेला मटे सांभळयो अने विचार कर्यों के "लाख मरजो पण लाखनो पाळवावाळो मरशो नहि". तेथी ते दोर उपरथी ऊतरी राजा पासेथी ढोल लईने पोते वगाडवा मांडयो. सिपाइओए आवीने बोल वमाडता नटनु माथु बाढी नाल्यु. १. "Folktales of Kashmir'-by J. H. Knowles [ Second
Edition P.227-228] २, "भारत लोककथा"-प्रथम गुच्छ, पृष्ठांक १थी १७. संपादक "गुजराती" प्रेस.
Page #90
--------------------------------------------------------------------------
________________
भूमिका
८३
आ बाजु अखेराज अने उमेदसिंग बग्नेए झालीने पकडवानो निश्चय कर्यो अने दरबारगढमां दाखल थया. पण चोतरफ अंगारानो खाई हती. ते वखते वफादार उमेदसिंग ते खाईनी वच्चे पहेला जईने ऊधो पडयो, तेनी पीठ उपर थईने अखेराज सामी बाजु पहोंची, वृक्षना सहारे जलदीथी राजमहेलमां जई, शाहनादाने वाढी नाखी, झालीने पकडीने पाछा उमेदसिंगनी पीठ पर थईने कुदी सामे जतो रह्यो.
सवारे बादशाहने शाहनादाना मरणनी खबर पडी स्यारे ते वखते झालीने न जोवाथी खात्री थइ के आ अखेराजनुं काम छे. तेथी तेनी पाछळ लश्कर मोकल्यु. तेमांथी बे सिपाइओ लश्करनी बहार आगळ नीकळी गया अने रस्तामां राजाने तथा झालीने पकडी लीधा अने अखेराजने बांधी, ते बन्ने नमाज पढवा माटे पासेनी वावमां ऊतर्या.
आ बाजु अखेराजे युक्तिपूर्वक पासे ऊभी ऊभी मलकाती झालीने कयु के "तें नीचकृत्य तो कयु. पण आ मलेच्छना हाथे मरवा करता हु तारा जेवी रजपूताणीने हाथे मरवा धारु छ. तो मारी तलवारथी तु मने मारी नाख.” आ सांभळी खुश थती राणीए विचाय के 'लावने टाढे पाणीए खस कादु', एम विचारी तलवार लइ ते जेवी राजा उपर घा करवा नाय छे के तरत ज राजाए एवी करामत करी के झालीनो झटको बांधेला बंधनो उपर पडयों. बंधन तूटी गया अने राजा मुक्त थइने झालीने पकडी, पावमां नमान पढता बे सिपाइने खलास करी, शिरोही चाल्यो. त्यां जई झालीने नीवती भीतमा दाटी.
बीजी आ प्रकारनी अनेक कथाओमां बेवफा पत्नीनो पति कां तो स्त्रीना कपटनो भोग बनी मृत्यु पामे छे, कां तो स्त्रीनो नीच वृत्तान्त जाणी संसार पर वैराग्य भावता साधु बनी जाय छे. पण आ अखेराजनी कथामां ते खूब बहादुरीपूर्वक अने युक्तिपूर्वक बेवफा पत्नीना वेरनो बदलो लइने न जपे छे.
मध्यप्रदेशनी एक कथामां एक दुष्ट राणीना वृत्तान्तमां पण आवा ज प्रकारनां कथाघटकन निरूपण थयु छे.' जेमां एक राजा-राणी राणीनी माने घेर जवा नीकळया छे. त्यां रस्तामां तरस लागतां एक कूवा पासे आवे छे. त्यां एक फकीर सारंगी वगाडतो होय छे. राजाराणी त्यां आराम करवा रोकाय छे. जमी परवारी राजा सूइ गयो. पण राणी अने पेला फकीरनी आंखो मळतां प्रेम जाग्यो. राणी फकीरनी पासे आवी कहेवा लागी, "प्रेमने खातर ह तारी साये ज आवीश". त्यारे फकीरे, राणीने तरस्या थवाना बहाने राजाने कृवामांथी पाणी भरी नाववा माटे जणावी, ज्यारे राजा कुवा पासे जाय त्यारे धक्को मारी कुवामा धकेली दई मारी नाखवा जणाव्यु. राणीए ते प्रमाणे कर्यु अने त्यांथी फकीर अने राणी भागी गयां अने नाचगान करतां दिवसो गुजारवां लाग्यां.
आ बाजु राणीए धक्को मारता राजा कुवामां पड्यो, परन्तु ते वच्चे दोरडु पकडी लटकी रह्यो हतो. एवामां कोइ एक लामसेननी मददथी ते बहार आष्या अने तेनु ऋण चकववा तेना नोकर तरीके तेनी साथे तेने गाम गयो.
-
१. “The Rani's Lover" From- 'Folktales of Mahakoshal' --by Verrier Elwin. First Edition-p. 315-316
Page #91
--------------------------------------------------------------------------
________________
प्रद्युम्नकुमार-चुपई
" पेलो फकीर अने राणी ते जगाममा नाचवा-गावा आव्यां अने त्यां राणीए 'लामसेननी साथे राजाने ओयो, पण बोली नहि. ते गामना राजा पासे आ फकीर अने राणीए रातभर सुंदर नृत्य कर्यु एटले राजाए प्रसन्न थई वरदान मागवा कह्यु. एटले राणीए कह्यु के, 'लामसेननो नोकर छे तेने शूळीए चढावो.' राजाए हुकम करी तेने बोलाव्यो, त्यारे नोकरे पोते राजा छे एम कही पोतानी बनेली बधो वितककथा पेला लामसेननी साक्षीए राजाने कही संमळावी, त्यारे राजाए फकीर अने राणीने मारी नंखाव्यां.
आ रीते कथा साहित्यमां बीजा अनेक दाखलाओ भर्या छे, जेमां अनेकविध रीते आ घटकनु निरूपण थयेलु छे. विश्वभरना कथा-साहित्यमां व्यापक एवा आ कथाघटकनां, अहीं तो मात्र वैविध्यसभर, थोडाक ज दाखला आप्या छे. ७. छळ कपट द्वारा दिव्य विद्या के वस्तुनी प्राप्ति
__ कोइ व्यक्ति द्वारा अलौकिक वस्तु के विद्यानी, तेना मालिक पासेथी युक्तिपूर्वक प्राप्ति करवानो प्रसंग केटलीक कथाओमां निरूपायो छे. पालकमाता कनकमोला पासेथी तेणीनी कामवासना तृप्त करवानी हा पाडी प्रद्युम्न प्रथम तेना बदलामां तेणीनी त्रण विद्याओ प्राप्त करी ले छे. आम एक वखत विद्याप्राप्ति थई गई पछी "तमे तो मार पालन कयु, एटले मारी माता थाओ अने विद्या दीधी एटले गुरु थया छो. तेथी माता अने गुरु साथे कोइ व्यक्तिने अनीति शोभे नहि". एभ जणावी कनकमालाने ठगीने प्रद्युम्न चाल्यो जाय छे.
आवो न प्रसंग जैन परंपराना "रावण-उपरंभा"ना वृत्तान्तमा निरूपायो छे'. टूकमां कथा भा प्रमाणे छः
एक वखते दुर्लध्यपुरमा रहेला इन्द्रराजाना पूर्वदिक्पाळ नलकवरने पकडवा माटे कंभकर्ण वगेरे रावणनी आज्ञाथो गया. त्यां ते नलकबरे आशाळी विद्याथी पोताना नगरनो सो योजन पर्यंत अग्निमय किल्लो करेलो हतो.
कंभकर्ण वगेरे त्यां आवी ते किल्लानी सामे पण नोई न शक्या अने किल्लाने दुर्लध्य गणी पाला आव्या अने ते खबर रावणने पहोंची. ते सांभळी रावण पोते त्यां आग्यो अने ते किल्लो सर करवानो पोताना बंधुओ साथे विचार करवा लाग्यो.
ते समये रावणनी उपर अनुरागी थयेली नलकूबरनी पत्नी उपरंभाए एक दूती मोकलीने रायणने कह्य के. "उपरंभा तमारी साथे क्रीडा करवाने इच्छे छे. आकिल्लानु रक्षण करमार आशाळी नामनी विद्या ते तमारे आधीन करशे. तेथी तमे आ नगर तथा नलकूबरने तावे की शाकशो. वळी सुदर्शन नामे एक चक्र तमे साध्य करशो". दृतीनी आ वातने विभीषणे स्वीकारी त्यारे रावणे कुलाचार विरुद्धनो वात मानवानी ना पाडी. स्यारे विभीषणे कह्य.
२.
मध्यप्रदेशमा जे युवाननु कुटुम्ब, कन्यानी परनी तरीकेनी किंमत आपी न शके अने तेथी भावि ससराने त्यां तेने बे, पांच के सात वर्ष कान करवा माटे मोकले ते युवानने लामसेन (घरजमाइ) कहे छे. जुओ : 'Folktales of Mahakoshal'-by
Verrier Elwin-p. 315 २. 'त्रिषष्टिशलाकापुरुषचरित' - पर्व ७ मुं -सर्ग २जो. (गुज. भाषां. पृ. ३६-३८)
Page #92
--------------------------------------------------------------------------
________________
भूमिका
८५
"उपरंभा भले आवे ने तमने विद्या पण आपे. शत्रु तमारे वश थाय एटले पछी तमे तेने अंगीकार करशो नहि. वाणीनी युक्तिथी छोडी देनो." रावणे आ वचनो स्वोकार्या.
उपरंभा त्यां आवी पहोंची. तेणे आशाळी विद्या रावणने आपी. ते उपरांत बीजां व्यंतररक्षित अमोधशस्त्रो आप्यां. पछी रावणे ते विद्याथो ते किल्लो सर करी नलकूबरने पकड़ी लीधो. सुदर्शन चक्र रावणने त्यांथी प्राप्त थयु . पछी नलकूचर नमी पड्यो एटले रावणे तेनु नगर तेने पाल्छु सोंपी दीg.
पछी रावणे उपरंभाने को, "तोरा कूळने योग्य एवा तारा पतिने ज तु अंगीकार कर कारण के ते मने विद्यादान दीधु एटले तुं तो मारे गुरुस्थाने छे. तेम ज परस्त्रीने हु माता अने बहेनने ठेकाणे ज जोऊ छ" आम कही तेने कलकूबर राजाने सोंपी.
दिव्य विद्याओनी जेम छळ-कपटथी तेना मालिकने बनावीने दिव्य वस्तुओनी प्राप्ति पण थाय छे. राजस्थाननी लोककथामा 'राजकुमारी फूलमदे"नी कथामां आ प्रकारना वृत्तान्तनु निरूपण थयु छे'. ढूंकमा कथा आ प्रमाणे छः
फूलमदे नामनी रामकुमारीने पोताना साहस अने पराक्रम वडे एक रजपूत जीतीने परणे छे. अने पोताने देश जवा नीकळे छे. रस्तामा एक जादुगर मळे छे. ते आ सुंदर राजकन्याने पोतानी पासे राखी जवानु कहे छे, अने तेना बदलामां एक जादुइ गदा पोते तेने आपशे एस जणावी "आ गदा, तेनो मालिक जे प्रमाणे हुकम करशे ते प्रमाणे करशे.” एम कह्य. रजपूते हुकम कर्यो के, "जादुगरने मार", तरत ज गदा जादुगरने मारवा लागी. ज्यारे खुब मार खाधो त्यारे जादुगरे जादुइ गदा अने राजकुमारो बन्ने रजप्तने भापी दीधां.
सांजने टाणे बीजा गाममां बीजो एक जादुगर मळयो. तेणे पण रजपूतने राजकुमारीने पोतानी पासे राखी जवानु कह्य' अने तेना बदलामा पोते जादुइ दोरडु तेने आपशे एम एम कही, "आ दोरडु' हुकम थतां आखा सैन्यने कोइनी पण मदद विना बांधी शकेले" एम जणाव्यु. रजपूते तेनी पासे राजकुमारी मूकी अने जादुई दोरडु लई तरत ज तेने जादुगरने वांधी लेवानो हुकम कर्यों अने गदाने मार मारवानो हुकम कर्यो. खूब मार खाधो त्यारे जादुगरे दोरडु अने राजकुमारी बन्ने रजपूतने आपी दीधां.
त्यारबाद पोताना गामनो राजा के जे आ राजकुवरी मागे छे, तेने पण जादुई गदा अने दोरडा वडे हरावी दे छे अने राजपाट भोगवे छे. __ उपर प्रमाणेनी ज कथा, "गुजरात तथा काठियावाड देशनी वारता" मांनी “बेलाराणी"
की वार्तामा निरूपाइ छ.२ एमां एक राजकुमार पोतानी भाभीनु महेणु' टाळवा बेलाराणी पणीने आवे छे त्यारे रस्तामां तेना बे गुरुओने आ बेलाराणी आपवाना बहाने छेतरी तेमनी पासथी अनुक्रमे उपरनी कथा प्रमाणे ज, जादुइ सोटो अने दोरडू लई ले छे.
१. 'Princess Fulamde' From : 'Folktales from Rajasthan'
- p. 47-51 -by Birla L. N. २. 'गुजरात तथा काठियावाड देशनी वारता'-भाग २ जो. पृ. १३०-१३४. सं. गुजरात
वर्नाक्युलर सोसायटी तरफथी हीरालाल त्रिभोवनदास पारेख (आवृत्ति २ जी)
Page #93
--------------------------------------------------------------------------
________________
प्रद्युम्नकुमार-चुपई
आ उपरांत बंगाळनी लोककथामां "त्रण भाइओ" नामनी वार्तामां पण कंईक आवा ज प्रकारनु कथानक कहेवायु छे.' कथा ढूंकमां नीचे प्रमाणे छ:
त्रण भाईओ नसीब अजमाववा चाल्या. रस्तामां मोटा भाईने रूपं अने वचेट भाईने सोन मळयूं एटले तेओ घरे चाल्या गया. नाना भाईने रस्तामा एक जादुई रेशमी रूमाल मळयो, जेमांथी खाद्यपदार्थ खूटतां ज नहि.
एक दिवस एक पहाडी माणसने तेणे दिव्य रूमालमांथी खाद्यपदार्थ काढी आप्या. एटले पेला पुरुषे रूमालना बदलामां तेने म्यानमां घालेली तलवार आपवानु जणाव्यु अने कयु के, "आ तलवारने म्यानमांथी खेंची बहार काढो, तेटली वार म्यानमांथी बार सहस्त्र योद्धाओ नीकळी तमारुं धारेलु कार्य पार पाडशे.” नाना भाईए रूमाल आपी तलवार लीधी, ने थोडे दूर जई म्यानमांथी तलवार बहार काढ़ी बार सहस्त्र योद्धाने बोलावी, पेला पुरुष पासेथी पोतानो दिव्य रूमाल पडावी लेवानु जणाव्यु. तेओए तरत ज पेला पुरुष पासेथी रूमाल लावी आप्यो. आ ज प्रमाणे आगळ ते रूमालना बदलामा, दिव्य टोपी के जेने अवळी वाळी माथे पहेरवाथी चारे दिशामां मोटा अवाज थाय, तथा एक सींगडु के जेने वगाडवाथी ज्यांसुधी तेनों अवाज संभळाय त्यां सुधीनी तमाम जमीन उपर एक पण झाडपान के घर रहे नहि-एम बे वस्तुओ ले छे अने पछी तलवार द्वारा सैनिकोने बोलावी ते बन्नेना मालिक पासेथी रूमाल पडावी ले छे. त्यारबाद आ दिव्य वस्तुओनी मददथी ते राजानी राजकुमारीने परणी सुखी थाय छे.
आम जोई शकाय छे के "छळ-कपट द्वारा दिव्य विद्या के वस्तुनी प्राप्ति" नु कथाघटक केटलीक कथाओमां निरूपायुं छे. (८) पिताथी विखूटा पडेला पुत्रनुं अज्ञात पिता साथे युद्ध के स्पर्धा
पिताथी एकदम नानी वयमां पुत्र विखूटो पडे तेनां अनेक कारणो होय छे. पतिना अणगमतां कार्यथी पत्नी पतिने छोडी चाली जाय छे. साथे पोतानो नानी वयनो अणसमजु दीकरो लेती जाय अने एम पितापुत्र विखूटा पडे. अथवा अकस्मात पति-पत्नी छूटा पडी जाय, त्यारबाद पत्नीने पुत्र जन्मे. आम पुत्रना जन्मथी ज पितापुत्र विखूटा होय. कदिक पति कोई कारणवशात् पत्नीनो त्याग करे. त्यारबाद पत्नीने पुत्र जन्मे, आम त्यारे पण पुत्रना जन्मथी ज पिता तेनाथी विखूटो होय छे. क्यारेक नानी वयमा ज पुत्रनु अपहरण थतां पितापुत्र विखूटा पडी जाय छे. क्वचित एम पण बने के राजा कोई कन्याने त्यां जई तेने परणे पछी अमुक दिवसो तेनी साये वितावी पोतानां राज्यमां पाछो आवे अने ते कन्याने भूली जाय. त्यारबाद कन्याने दीकरो जन्मे. आम जन्मथी ज पुत्र-पिता विखूटा पडे छे.
आम विखूटा पडेला पिता-पुत्रनु अचानक क्यांक मिलन थाय, ते प्रसंगे कदिक कोई बाबत परत्वे ते बे वच्चे विसंवाद थाय अने तेमांथी, परस्पर अजाण होई, युद्ध थाय. अथवा तो कदिक पिताथी विखूटो पडेलो पुत्र पोताना पिताने मळवा जाय, परंतु ते पहेलां पिताने पोताना पौरुषनी प्रतीति कराववा, तेमनी साथे युद्ध करी तेमने पराजय पमाडे, अने पछी पोतानी ओळखाण आपे. आम पिताथी विखूटा पडेला पुत्रनु अणओळखायेल पिता साथे युद्ध थाय तेवु निरूपण कथासाहित्यनी अनेक कथाओमां थयेलु आपणने प्राप्त थाय छे. १. 'भारत लोककथा' -भाग ८मो-पृ. १५२-१५६. प्र. गुजराती प्रिन्टींग प्रेस.
(ई. स. १९१९)
Page #94
--------------------------------------------------------------------------
________________
भूमिका
रामायणमा लोकापवादना भयथी राम, सीतानो त्याग करे छे. त्यारबाद सीताने लव-कुश नामना पुत्रो थाय छे. आश्रममां ऊछरतां आ बालको रामनां अश्वमेध यज्ञमां घोडाने पकडे छे अने त्यारे राम अने लव-कुश - एक बीजाथी अणजाण एवा पिता-पुत्रो वच्चे युद्ध थाय छे. रामायणनी आ सर्वविदित कथामां पति द्वारा पत्नीनो त्याग थाय छे। अने त्यार बाद पुत्रोनो जन्म थाय छे. आ प्रमाणे अहीं पुत्रोमा जन्मथी ज पिता तेनाथी विखूंटा होय छे.
वि. सं. १४१० मां
शालिभद्रसूरिए रचेला 'पंचपंडवचरित्र रासु मां पण आ कथासार आम छे:' हस्तिनापुरमा शांतनु नामे राजा हतो, तेने शिकारनो खूब शोख हतो. शिकार करता एकवार शांतनु जंगलमा दूर नीकळी गयो. त्यां गंगाकिनारे वनमां एक मणिमय महेलमां जह्रु राजनी पुत्री गंगाने जोई तेने ते परण्यो. तेमने गांगेय नामे पुत्र थयो.
गंगाए राजाने शिकारनी लत छोडाववाना प्रयत्न कर्या, पण राजा न मान्यो छेवटे राजाना शिकारशोखथी छेडायेली गंगा पुत्रने लई पियर चाली गई. आमने आम चोवीस वर्ष वीती गयां.
एकवार राजा शिकार करतो गंगातटे आवे छे. त्यां बे भाथां अने हाथमां धनुष्य लई एक वीर बाळक आवे छे. राजाने ते पोते वननो रखेवाळं होई, वनना लोकोने हैरान नहि करवानी विनंति करे छे. पण राजा तेना वचननी अवगणना करेछे. छेवटे राजा अने बाळक वच्चे युद्ध थाय छे. युद्धनी वात जाणी बाळकनी माता गंगा आवे छे अने बाप- दीकरानी परस्पर ओळखाण करावे छे..
८७
आम आ कथामां पत्नी, पतिनो त्याग करी, नाना बाळकने लई जाय छे अने एम पिता-पुत्र विखूटा पडे छे. त्यारबाद वर्षो बाद पिता-पुत्र वच्चे विसंवाद थतां युद्ध थाय छे.
आ उपरांत जैनसाहित्यनी प्रसिद्ध करकंडुनी कथामां पण आ प्रकारना वृत्तान्तनुं निरूपण थयेलु छे. परंतु तेमां पति-पत्नी अकस्माते छूटा पडी जाय छे अने त्यार बाद परनाने पुत्र जन्मे छे. आम अहीं पण पुत्रना जन्मथी ज पिता छूटा पडी गया होय छे अने त्यारबाद पुत्र पण दैवयोगे राजा बनी पिता साथे अजाणतां युद्ध करे छे. कथा ट्रकमा आम छे:
कलिंगदेशना राजा दधिवाहनने पद्मावती नामनी राणी हती. एकवार तेओ विहार करता हता तेवामां हाथी तोफानी बनतां बन्ने विखूटा पडी गया. त्यारबाद राणीए हताश बनी दीक्षा लीधी. ते पछी करकंडुनो जन्म थयो. दीक्षित साध्वीनो पुत्र एटले जन्मतां ज तेना त्याग करवामा आव्यो. आम ए एक चांडाळता हाथमां आग्यो अने चांडाळपुत्र कहेवायो.
एक वार करकंडु अने तेना मित्रो रमता हता तेवामां एक चमत्कारिक दंड तेमना हाथमां आव्यो अने तेमांथी ब्राह्मणपुत्र साथे ते दंड कोने आपको ते बाबतमां झघडो थयो. चांडाळो ब्राह्मणो साथै झघडे ए चलावी न लेवाय - ए हिसाबे करकंडुए नगर छोड्यु. दंडना प्रभावे करकंडु कांचनपुरनो राजा थयो.
आ बाजु दधिवाहने धारिणी नामनी स्त्री साथे लग्न कर्या. तेमने एक पुत्री जन्मी दधिवान अने शतानिक राजा वच्चेना युद्धमां दधिवाहनने नासवु पड्युं. पण त्यारबाद दधिवाहनने
१. “ मध्यकालीन राससाहिय" डॉ. भारती वैद्य, पृ. १८३-१८४.
२. अहीं " शाकुन्तल" ना दुष्यंतना तेना पुत्र साधना मेलापनो प्रसंग याद आवे छे. ३ " मध्यकालीन राससाहित्य" डॉ. भारती वैद्य, पृष्ठांक ३५२-५३
Page #95
--------------------------------------------------------------------------
________________
प्रद्युम्नकुमार-चुपई
प्रधान अने बीजाओनी मददथी राज्य मळ्यु. पण पछी द्विजपुत्रने दान आपवामा आवेला एक गाम संबंधमा एकबीजाने न पिछानता करकंडु अने दधिवाहन वच्चे युद्ध थयु. त्यां साध्वीए
आवीने पितापुत्रने परस्परनी ओळखाण आपी. दधिवाहने करकंडुने राजपाट सोंपी दीक्षा लीधी. पछी करकंडुए पण दीक्षा लोधी.
आ उपरांत उदयभानु कृत 'विक्रमचरित्र रास'मां पण आ प्रकारनु कथानक आवे छे. जेमां राजा कन्याने परणी तेनी साथे थोडो वखत रही पछी पोताना राज्यमा चाल्यो जाय छे अने कन्याने भूली जाय छे. त्यारबाद कन्यानो पुत्र पोताना पिताना राज्यमां जई तेमने पोताना पौरुषनी प्रतीति कराववा अनेक पराक्रमो करे छे अने अंते पिताने मळे छे. ट्रॅकमां कथा आ प्रमाणे छः
उज्जैनीमां विक्रम नामे राजा हतो. तेणे स्वप्नमां लीलावती नामनी कन्याने जोई. त्यारबाद एक अवधूतना जणाब्या मुजब ते लीलावतीना देशमा जई युक्तिपूर्वक तेने परण्यो. त्यारबाद विक्रम कमास त्यां रह्यो. दरमियान लीलावती गर्भवती थई. राजा घरे जवा तैयार थयो, त्यारे लीलावतीने तेणे पाटडा उपर गाथामां नामठाम बधुं लखी आप्यु अने पछी-'तारा पुत्र सिवाय कोईने आ वात कहीश नहि'-एम कहो उज्जैनी आवी राजपाट संभाळी लीधु.
__ आ बाजु लीलावतीने पुत्र जन्म्यो. मोटो थतां 'न-बापो' कही निशाळियाए तेने महेणु मायु. आथी मा पासे आवी तेणे बाप विषे पूछयु. माए विक्रमे दीघेली गाथा आपी अने कह्य, 'ए मने धूतीने परणी गयां'. कुंवरे कां', 'जो हुँ तेने अनेक रीते धूतु त्यारे ज तारो पुत्र खरो'. मातानी रजा लईने ते उज्जैनी आध्यो. त्यां चंपक नामना वणिक साथे तेनी दोस्ती बंधाई अने तेनी मददथी तेणे युक्तिपूर्वक नापित अने कापडियाने झघडाव्या. राजाए आ धूताराने पकडवा माटे इनाम कादयं. तेनु बीई' अनुक्रमे जयराम नामना शेलोते, दामोदर नामना पुरोहिते. अने गाग नामनी वेश्याए झडप्यु. पण ते बघांने तेणे युक्तिपूर्वक हराव्या. अंते राजाए पोते तेने पकडवा बीहुँ झडप्यु.
राजाए एक धोबीने बोलावी पोताना वस्त्रो धोवा आप्यां अने किल्लाना दरवानने का, 'मने पूछया विना कोईने बहार जवा देशो नहि. कुंवरे आ बधु जाण्यु अने ते घोबीने त्यां गयो. वहेली सवारे गधेडा उपर लूगडां लादी धोबी जवा तैयार थयो. जेवो ते बाकीना बीजा र लेवा अंदर गयो के तरत ज कुंवर गधेडु हांकी गामनां दरवाजे उपडयो अने 'आ राजानां वस्त्रो छे' एम कही दरवाजो खोलाव्यो. एटलुं ज नहि परंतु दरवाननां वस्त्रो पण साथे साये लेतो गयो.
आ बाजु धोबीए बूमराण मचाव्यु. राजाए ज्यारे आ वात जाणी त्यारे ते तेनी पाछळ पडयो. रस्तामा कुवरे गधेडाने हांकी मूक्यु अने सोड ताणी एक बाजु सूई गयो. राजाए आवीने
तो कह्य. " प्रवासी छ. में एक माणस अने गधेडाने अहीथी जतां जोयां छे अने ते नदीना पाणीमां जगयां छे'. आथी राजा घोडो बांधी, केड कसीने नदीना पाणीमां पडयो. एटले कंवर घोडा पर चढी दरवाजे आव्यो अने दरवानने का के 'राजाना हुकम विना दरवाजो खोलीश नहीं. कदाच चोर पोते आवीने ह राजा छ एम कहे तो पण द्वार खोलीश नहि.'
Page #96
--------------------------------------------------------------------------
________________
८९
भूमिका राजा नदीमां जई जुए छे तो गधेडो छे पण माणस नथी. पोताने धूतारो मळ्यो जाणी राजा पाछो आव्यो अने दरवानने पोते राजा छे एम कही दरवाजो खालवा कहy पण दरवाने तेने धुतारो धारी दरवाजो न खोल्यो, सवारे बधाए राजाने ओळख्यो.
राजाए पछी 'जो आ धूतारो मने आवीने मळे तो हु तेने मारु अधु राज्य आपुं.' एम कह्य. एटले पछी कुंवर पोते आवी तेना पगे पडयो अने का, “तम मारी माताने छेतरी तेना वेरमां में आखा नगरने छेतथु छे" राजाए खुश थई तेने पोताना अर्धा सिंहासने बेसाड्यो.'
आम आ कथामा विखूटा पडेला पिता-पुत्रनी वच्चे युद्ध नथी थतु परंतु बे वच्चेनो युक्तिपूर्वकनी स्पर्धान सुंदर आलेखन थयेलुं छे. लगभग आवा ज प्रकारनी कथा कंइक विगतफेर साथे शामळ भट्टनी सिंहासन बत्रीशीमांनी बारमी कावडियानी वार्तामा पण आलेखाई छे. तेमा पण आ ज प्रमाणे विखूटो पडेलो राजपुत्र पिताना राज्यमा जइ मालणनी मददथी सहदेव अने मूलदेव नामना पंडितोने, ललो अने पत्तो नामना हलवाइओने, वेश्याने अने छेल्ले राजाने युक्तिपूर्वक हरावे
आ रीते जोई शकाय छे के विखूटा पडेला पिता-पुत्र का तो परस्पर युद्ध करी का तो एकबीजा साथे युक्तिपूर्वकनी स्पर्धा करी परस्परनो परिचय मेळबे छे.
उपसंहार आम “प्रद्युम्नकुमार चुपई" ए वा. कमलशेखरनी एक गणनापात्र कृति छे. कर्तानी सर्जनशक्ति अने कलाभिरुचिना आपणने तेमां दर्शन थया विना रहेतां नथी. उपरांत तेमां आवतां केटलांक कथाघटकोनो अभ्यास करतां जणाशे के तेमांथी 'चित्र द्वारा अनुराग'. 'मोटाभाईनी इर्ष्या अने विजेता नानो भाई', 'आळ-भ्रष्टाचारनु आळ' के 'परपुरुष साथे छाना संबंध राखतो पत्नी' वगेरेन अध्ययन अनेक कृतिओने लक्षमां राखोने थयुं छे. आमांथी 'मोटाभाईनी इर्ष्या अने विजेता नानाभाई' के "आळ" जेवां कथाघटकने लगती सामग्री भारतीय तेम ज इतर साहित्यमा अढळक पडेली छे. बीजा कथाघटको जेवां के 'बेदरकार-बेध्यान पात्र द्वारा ऋषिमुनिना अनादर अने तेथी क्रोधित बनेला ते ऋषिमुनि द्वारा कराती शिक्षा', 'जन्मतां ज बालकनु अपहरण', 'छलकपट द्वारा दिव्यविद्या के वस्तुनी प्राप्ति' के 'पिताथी विखूटा पडेला पुत्रनु अज्ञात पिता साथे युद्ध के स्पर्धा'-माटे अल्प प्रमाणमां समांतर प्रयोगो मळेला छे. शक्य छे के साहित्यना अखुट भंडारमांथी आने लगती इतर अनेक कथाओ मळो आवे. १. विक्रमचरित्र - कर्ता उदयभानु, संपा. ठाकोर बळवंतराय
Page #97
--------------------------------------------------------------------------
________________
Page #98
--------------------------------------------------------------------------
________________
प्रद्युम्न कुमार- चुपई
Page #99
--------------------------------------------------------------------------
________________
Page #100
--------------------------------------------------------------------------
________________
( स्तुति )
( प्रस्तावना )
यतः
श्री जिनवर सवि पय नमी
रास रचुं रलीयामणु
( सोरठदेश - प्रशस्ति )
प्रद्युम्न कुमार- चुपई प्रथम सर्ग
कृष्ण-रुक्मिणी-विवाह
सरस कथा यादवतणी कुमर पजूनह तेहतणुं
जंबूद्वीपमझारी वर
तेह मांहि सोहइ भलु
( द्वारिकानगरीनुं वर्णन )
दूहा
जिहां तीरथ छइ अतिभला अनेक मुनि-सिउ सिद्धि गया असंख कोडि सिद्धि गया वली विशेष वांदीइ त्रिणि कल्याणिक तिहां हूयां नेमजिणेसर शिक्षय - स्युं
सोरठदेस - मांहि पुरी अनेक नगरइ परवरी
1. तुरुणी तारु 2. सेत्रुज
समरी सरसतिमाय वलि बंदी गुरुपाय
तीर्थानि तटिनीतोयं तरुणी तारलोचना । तांबूलं तोयधेर्लक्ष्मीः सौराष्ट्रे रत्नपंचकम् ॥१
कहिस्युं ते इक चितु निसुणउ चारु चरितु
भरह खित्त सुपसिद्ध सोरठदेस समिद्ध
श्री सेज 2 गिरनार पुंडरीक 3 गणधार जां लगि जंबूकुमार ऊजलगिरि 1 अतिसार दिक्षा न्यान निरवाण सिद्ध हुया इणि ठाण
द्वारमती सुचंग दिसइ अतिहि उत्तंग
3. पंडरीक
4. ऊजलगरि
४
Page #101
--------------------------------------------------------------------------
________________
प्रधुम्नकुमार-चुपई
यतः वापी विप्र विहार वर्ण वनिता वाग्मी वनं वाटिका
विद्या ब्राम्हण वारि वादि विबुधा वेश्या वणिग् वाहिनी । विद्या वीर विवेक वित्त विनया वाचयमा पल्लिका वस्त्रं वारण वाजि वेसर वरं राज्यं [व] वैः शोभते ॥२
गढ मढ मंडप धवलहर जिनप्रतिमा-करी सोभती कृष्णरायनइ तपि करी सायरमझि द्वारिकपुरी गढ कंचणमय दीपतु मणिमाणिकमय सोभती पोलि पोलि दीसइ भली मणिमाणिक जड्या प्रवर
जिनमंदिर अतिसार अमरावय-अवतार रचीय धणवइ दिध बारह जोयण किद्ध पंचवन कोसीस कणयकलस वर सीस मोती वनरवाल किमाडह चुसाल
चुपई
१२
१३
१४
दीसइ विविधा परि आवास . मढ देउल मंदिर चउपास चउरासी चहूटां सुविशाल पुन्य-पवीत्र जिहां भली पोसाल चिहु दिसि सायर झलकइ नीर चिहु दिसि रखवालइ सवि वीर चिहुं2 दिसि सास्त्र भणइ झंकारु चिहु दिसि सोहइ पोलि पगारु चोर चरड नवि दीसइ कोइ कोटिधज निवसइ तिहि लोइ धर्मवत माणस अतिघणा छत्रीस पवन(?)जाति तेहतणा च्यारि वर्ण क्षत्री बंभणा वेश्य सूद्र कर्मिइ सूं घणा वसइ राजकुली छत्रीस तिहि पुरि निवसइ यादवईस दसदसारकरि सोहइ राज पंचवीर नितु सारइ काज त्रिणि खंडनु श्रीकृष्णह राउ अरीयणदल भांजइ भडवाउ बंधव बलिभद्र कुमरह जोइ तास बल नवि पूजइ कोइ कोडि छपन्न यादव अवतार साहण वाहण घणु खंधार परिगह पूरी बइठउ राउ दल सामंतन सुहइ ठाउ अगर सुगंध वास परिमलइ सोवनदंडइ चामर ढलइ 1. विवध 2. चिंह
१५
Page #102
--------------------------------------------------------------------------
________________
प्रथम सर्ग
वाजां पंचशब्द वाजंति भरहभावि नाचइ पग धरइ
घणी भाति पाउला पेखति ताल विनोद करी मनहरइ
१९
(नारदऋषितुं आगमन)
हाथि कमंडल छत्री धरी दर्भ पाटली साथिइं करी चडी विमांनि नारदरखि आइ नयर देखी मनि आणंद थाइ २० नमस्कार कीयु सारंगपाणि आसण बइसण दीया आणि सदभावइ पूछइ कृष्ण(म)हराज तुम्हे पहूता किहांथी आज अधोलोक जिनवर वंदेवि गगनथकी हुँ आविउ हेवि नगरी देखि उपनु भाउ तुमइ भेटि यादवराउ तु नारायण विनउ करेव भलु कीयु जउ आव्या देव गाम पवित्र हूउ ए सही नारदरिखि पछइ गहगही कुसलखेम सहूकेनइ अछइ देइ आसीस नइ उठिउ पछइ आवइ हरख धरीनइ जिहां कृष्णतणी पटराणी तिहां २४
२५
२६
(सत्यभामा द्वारा नारदनो अनादर )
तिहां सतिभामा करइ शंगार कंठिइ पहिरइ नवसर हार नयणि रेख काजलनी करइ तिलक ललाटिइ अपूरव धरइ कांने झालि झबूकइ दोइ रत्नजडित सइथु सिरि जोइ सोल श्रृंगार सयरि तिहां करइ तेतलइ नारदरिखि संचरिइ नारद हाथि कमंडल करी कलाचरित्र कलि देखइ फिरी सो सतभामा पीठ पेखीयु दर्पणमाहि2 रूप देखीयु विपरीत रूप हरि दीठउ जाम मनि विलखाणी सुंदरि ताम देखी कूड-कपट कीयु राउ ए लक्षण छइ यादव राउ वडी नारि रखि ऊभउ रहिउ करजोडी बइसु नवि कहिउ । तउ रीस चांपी रे नारि चालिउ सुंदरिनइ पचारि 1. सारिगपाणि 2. दप्पर्णमाहि
२७
ñ
co
Page #103
--------------------------------------------------------------------------
________________
प्रद्युम्नकुमार-चुपई (नारदमुं क्रोधपूर्वक चाल्या जq )
नारदरखि चालिउ रीसाइ सीगीपर्बति बइठउ जाइ मनमांहि बयठउ चितइ इसिउ किणिपरि मानभंग कीजि किसिउ ३० कोपानलि परजलिउ मुणिंद सिलतलि चांपु वेगि विछंद हरि पछितावु करिसिंइ घणु किणिपरि मानभंग एहतणउ । रूपिइ एहथी अधिकी होइ हरिनइ परणावं ते जोइ नारद-चरित सुणउ सहुकोइ मानभंग सतिभामा होइ गाम-नगर सवि जोइ करी दोहोत्तर सो खेचरपुरी।। खिणमाहि फिरतु चितइ सोइ कुमरि सरूप न दीसइ कोइ ३३
(कुंडनपुरमा नारदऋषितुं आगमन)
भमतु नारद आविउ तिहां कुंडनपुर नगरी छइ जिहां भीषमराजा नयरीतणु धर्म-नीम ते जाणइ घणु अति सरूप गुणलक्षणसार बइठउ देखिउ रूपकुमार दृष्टि पसारी कहिउ मुनि सोइ इणिइ अनुसारि जे कन्या होइ ३५ कर्मयोगि जउ जुडइ संयोग तु हुइ नारायण, योग
देखण गयु अंतेउर भणी जिहां बइठी कुमरि रुखमिणी ३६ (रुक्मिणी-रूपवर्णन)
अति स्वरूप सवि लक्षण चंग सिसिवयणी नइ नयन कुरंग
तेह समी स्त्री नवि दीसइ कोइ हंसगति गयगमणी सोइ ३७ (नारदऋषि अने रुक्मिणीनुं मिलन )
नारद आवत जव देखीयु नमस्कार तव सुंदरि कीयु देखि रुखमिणी बोलइ सोइ तुं पटराणी हरिनी होइ रुखमीराइ दीधी रुखमिणी ससपालराय मोटुं सुणी नयरि तेहनइ घणउ उछाह लगन वधावइ करइ विवाह ३९ 1. खेचरपुरि
Page #104
--------------------------------------------------------------------------
________________
प्रथम सर्ग
रिखिसिउं सुंदरि बोली ताम हवइ बोलणनु नही य ज ठाम जे अरिराय सुत क्षयर्नु काल ते परणवा आविउ सिसपाल ४० तां निसुणी नारदरिखि कहइ त्रिखंडलोक सहु आन्या वहइ छप्पना कोडि यादवनु नाह ते मूकी कुण करइ वीवाह ४१ पूर्वकर्म न मेटइ कोइ जेहनइ सिरजी परणइ सोइ यम रहउ कुमरि वात आपणी नारायण परणइ रुखमणी ४२ तव सुंदरि मनि ऊपनी रली रखि अइमत्तनी वात ज मिली नारद निसुणि मइ वरीयु नाह किणि जुगतिइ होसिइं वीवाह ४३ रिखि बोलइ तुम्हि एम सधरु नागपूजण देहरइ संचरु नंदनवनमाहि करु सहेट तिहां आणी करावु भेट तु जंपइ रुखमिणी कुमारि किम उलखीइ कण्ह मुरारि नारदरिखि कहइ सुणि अहिनाणि संख चक्र जस दीसइ पाणि । हरि पहिरणि पीतंबर जास बंधव नीलवस्त्र हूइ तासु सारिंगधनुष करि जेहतणइ ते नारायण नारद भणइ खरी वात कही रिखि जाइ रुखमणिरूप पटिइ लिखाइ
चडि विमानि रखि आविउ तिहां सभा नारायण बइठउ जिहां ४७ (नारदऋषितुं श्रीकृष्णनी पासे पुन: आगमन )
हाथमांहि पट देखिउ जाम हरि ऊखेली जोइ ताम रुखमणिरूप दीठउ जिसिइ कामविवहल हुउ तिसइ कइ अपछर ए देवहतणी कइ मोहणि तिलोत्तमवणी कइ विद्याधरतणी कुमारि कुणइ रूप सिखिउ संसारी नारद कहइ सुणउ तुम्ह राय कुंडनपुरि छइ एहनु ठाय ।
पुत्री राजा भीखमतणी अनोपम रूपइ छइ रुखमिणी ५० (कृष्ण द्वारा रुक्मिणीनी मागणी अने रुक्मीए करेलो तेनो उपहास )
एह वात जव कांने सुणी महितइ जइ मागी रुखमिणी दूतवचनि ते हसिउ कुमार गोपी हीनकुलइ अवतार 1. छप्पन्न 2. मुररि
Page #105
--------------------------------------------------------------------------
________________
५२
प्रद्युम्नकुमार-चुपई अन्याइए भूईं। घणउ कंसवधी इहां आविउ सुणउ मूढ मनोरथ मोटउ करइ उत्तम राय कुमरि किम वरइ
दूहा हियउं मणोरह तं करइ जं करवा असमत्थ । सग्गिहि अंब मउरीयउ तांह पसारइ हत्थ ॥३
श्लोक दास्ये मैथुनिकाया शिशुपालाय भूभुजे । उचितो ह्यनयोर्यागो रोहिणीशशिनोरिव ॥४ इति श्रुत्वा स दूतोऽपि तद्वाचं परुषाक्षराम । आगत्य कथयामास स्वामिने पीतवाससे ॥५
चउपई एह वात रुखमणि सांभली धावि आगलि कही ते वली माय तिम करु जिम हुइ एह विषम प्रीतिमेलापक जेह कृष्ण-अभिलाष माइ जाणीयु एक दूत प्रछन आणीयु कहि तु जईनइ यादवराय चीरी आपी लागी पाय
५३
- श्लोक
माघमासे सिताष्टम्यां नागपूजामिषादहम् । रुक्मिण्या सह निर्गत्य यास्याम्युद्यानवीथिकाम् ॥६ आगंतव्यं त्वया तत्र रुक्मिण्या चेत्प्रयोजनम् । अन्यथा शिशुपालोऽमूं परिणेष्यति मानद ॥७ इतश्च शिशुपालः स आहूतस्तेन रुक्मिणा । उद्वोढुं रुक्मिणीमागात् ससैन्यः कुंडिनं पुरम् ॥८ तत्रायातं शिशुपालं रुक्मिणी-वरणोद्यतम् । ज्ञापयामास कृष्णाय नारदः कलिकौतुकी ॥९
1. भूडु
Page #106
--------------------------------------------------------------------------
________________
प्रथम सर्ग
५५
५६
५७
चउपई (श्रीकृष्ण तथा बलदेवर्नु कुंडनपुर तरफ प्रस्थान )
राइ वात सवे संभली हीयडइ हरख ऊपनु वली। राम सहित रथि बइठा जिसइ रथिकारइ रथ खेडिउ तिसिइं पवनवेगि कुंडनपुरि गया वनमांहि नागभवनि जई रहा
स्थ छोडीनइ बेइठा जिसिइ दूतइ वात जाणावी तिसिइ (रुक्मिणीनुं नागपूजन करवा जर्बु)
दूतवयणि रूपणि हरखेय । मोतीमाणिक थाल भरेइ घणी सहेली भेगी करी नागपूज करिवा संचरी उतावले पूजइ नागराय आवी वनमांहि घणइ उछाय
पेखी नारायण-* रूप उलखीयु तिणि निजपति भूप (रुक्मिणीहरण)
तु रूपणि मनि गयु संदेह महनइ लेयण आविउ एह रुखमणि रथि बइठी जेतलइ पवनवेगि रथ गयु तेतलइ सहेलि धावि बूंबारव करइ धूतारा रुखमणिनइ हरइ
गाममांहि जव गई पुकार रूपीराय तव जाणी सार (रुक्मीरायनी कृष्ण साथेना युद्धनी तैयारी)
कोपारूढ थयो असवार2 साहणतणउ नवि लहीइ पार मोटा मयगलनइ मदि भर्या तीखा तुरीय तुंग पाखऱ्या पंचशब्द वाजां वाजति । राउ नीकलिउ पूठि तुरंति
सिसपालइ वात सवि सुणी ते कुण लेई गयु रुखमणी (शिशुपालनी युद्ध-तैयारी)
तिणि कोपिइ बोलिउ नरेस तुरीय पल्हाणु वेगि असेस रहवर सजु गयवर गडउ कोपारूढ सुहड रणि चड्डु 1. मांहिं
६१
६३
2. असवर
* नारायणनु
Page #107
--------------------------------------------------------------------------
________________
प्रद्युम्नकुमार-चुपड़ें
राउत करी सजउ हथीयार सिसपालनइ भीखमराइ घोडांखुरी खेह उछली तेणइ छाहिउ नवि दीसइ भाण
धनुषबाणनउ करिउ टंकार बिइ दल पूठि वेगइ जाय गयांगणि। जईनइ मिली देखी सुंदरि कह सुजाण
श्लोक
दृष्ट्वा च चकिता रुक्मिण्युवाचांकस्थिता हरिम् । क्रूरो महौजा मद्भ्राता शिशुपालश्च तत्समः ॥ १० तद्गृह्या बहवोऽन्येऽपि वीराः संवर्मिता इह । युवां त्वेकाकिनावत्र तेन भीतास्मि का गतिः ॥ ११ हसित्वा हरिष्यूचे मा भैषीः क्षत्रिया ह्यसि । केsमी वराका रुक्म्याद्याः पश्यादः सुभ्रु मदबलम् ॥१२ इत्युक्त्वा तत्प्रत्ययार्थमर्धचंद्रेण शांर्गभृत् । तालालीकघातेन नालपंक्तिमिवाच्छिदत् ||१३
सुंदरि तूं म करसि अंदोह सिसपाल रूपी दल घणुं पीहर स्वांमी माहरु एह वात कहता दल आविउ घणूं वाजां वाजइ अति निसाण वाजइ नफेरी रणतूर
1. गयणगणि
अंगुलीयकवचं चांगुष्टांगुलिनिपीडनात् । दलयामास निर्भष्टमसूरकणलीलया ॥१४ तेन पत्योजसात्यंतं रुक्मिणी प्रमदं दधौ । पद्मिनीव प्रभातार्कतेजसा विकचानना ॥१५
चउपई
बल देखाउउ माहरु तोह सघलं हणुं कटक एहणुं रुखमीराय राखेजो तेह ते देखी हीयुं रणझणउं कायरता तव पडइ पराण अति आवइ उजेणी सूर
६४
६५
६६
६७
६८
Page #108
--------------------------------------------------------------------------
________________
प्रथम सर्ग कृष्ण कहइ भाइसिउ बहू बलिभद्र तुम्हे लेई जाउ वहु
तव धाई बोलीउ शिसुपाल पडिउ फेटि किम जाइ गोवाल ६९ (श्रीकृष्ण अने शिशुपालनी वच्चे युद्ध)
वस्तु सेसपालह सेसपालह दिठ हरिराय जाणे विस्वानरि घृत ढलिउ तेम चिहुंजण क्रोध उपनु धनुषबाण लेई करी
पुत्ववयर मनमाहि सलिउं चोरी रूपणि लेइ गयु ए तइ करिउ उपाय किहां जासि तुं दृष्टिइं पडिउ तव भांजु भडवाय
चुपई दुष्ट वयण काने सांभली कोपारूढ कृष्ण थयु वली धनुषबाण लीयु जव करिई सिसपाल वींधिउ ते शिरइ दोइ पचारि वढइ वरवीर वरसइ बाण जिम जलहरनीर गदाइ गज रथ चूरंति कायर भागां दह दिसि जंति ७२ धणुह चडावी लिई सिसुपाल पांच बाण नांख्या ततकाल नारायणनंइ नांखइ बाण तव नारायण करइ पराण ७३ बेहु राय वढइ रणि वीर बिमणां बिमणां नांखइ तीर पुहवि न सूझइ तीरह पडइ दडातणी परि शिर2 रडवडइ हाथि चक्र फेरी पेसीयु छेदी सीसनइ हरिनइ दीयु रुधिरनदी जब वहती दीठ विषम झूझ इहां न्हातूं नीठ कहइ रुखमणी कृष्णसिउ आय राखु रूपचंदनइ ताय शांति करू छांडु मनवयर आपुं कुंडनपुर वरनयर सुंदविचनि करिउ पसाय छोडि मेलिहउ भीखमराय
रूपचंद पगि लागी करी आविउ नयरिइ कुंडनपुरी (वनमा श्रीकृष्ण अने रुक्मिणीना विवाह )
चालिउ हलधर हरि लेइ नारि दीठउ मंडप वनह मझारि वृक्ष अशोकनी शीतळ छांह च्यारइ जाइ पहूता तिहां 1. जांति 2. शिर
Page #109
--------------------------------------------------------------------------
________________
ܘܕ
तव त्रिहुं मनि हुउ उछाह महूयरसाद ते मंगलच्यार
मंडप रचीउ फूलइ जाइ पाणिग्रहण करी रुखमिणी
प्रद्युम्नकुमार - चुपई
लगन आज छइ करु वीवाह सूया वेद पढइ झंकार बलिभद्र दीइ हथवेलउ आंय वनमइ वसी बात कही घणी
श्लोक
बभाषे रुक्मिणी कृष्णं पत्न्यस्तव महर्द्धयः । प्रदत्ताः पितृभिः संति सहायातपरिच्छदाः ||१६ एकाकिन्यहमानीता बंदीव भवता प्रिय । हसनीया यथा तासां न भवामि तथा कुरु ॥१७ करिष्ये त्वां तदधिकामित्युक्त्वा रुक्मिणीं स्वयम् । सत्यभामागृहाभ्यर्णप्रासादेऽमुचदच्युतः ||१८
चुपई
( श्रीकृष्णनुं रुक्मिणीनी साथे द्वारिका - आगमन )
नारायण परणी पुरि गयु गूडी बांधी घरि घरि बारि रूपणिसिउं श्रीकृष्णमुरारि देखी लोक जय जय भणइ
( सत्यभामाना दूतनुं निवेदन ) सर्व विवस स्त्री भोग करंति तिणि दुखि करी विलखी खरी सतिभामाइ दूति मोकली कवण दोस ते कवण विचारि सुणी वात हलधर गयां तिहां इस वात वीनती घणी
छपनकोडि नइ आनंद यु मंगल गावइ सूहवि नारि
हसतां पयठां नयरमझारि बे पहुंता मंदिर आपणइ
सतिभामानी छाडी विंति सुकि-साल दुख ते सांभली सुणउ बलिभद्र वात पतली सुद्धि न पंछइ कृष्णमुरारि
७
राय नारायण बइठा जिहां सार करु सतिभामातणी
७९
८०
८१
८२
८३
८४
८५
Page #110
--------------------------------------------------------------------------
________________
प्रथम सर्ग
(कृष्ण द्वारा सत्यभामानो उपहास)
तव नारायण करइ कुताल रुखमणिनु लीयु उगाल गांठि बांधि संपनु तिहां सतिभामा मंदिर छइ जिहां सतिभामा हरि दीठउ नयणि रुदन करइ न बोलइ वयणि कहि वात बहू परि सांभरी कवण दोसि स्वामी परहरी
दूहा हरि समझावी नारिनय मधुरां वयण कहेइ कपटरूप निद्रा करइं से जतलि गंठि धरेइ गांठि झलती देखी करि सतिभामा छोडंति सुगंधा परिमल महमहइ सयल अंगि विलपति अंगि लगाडिउ देखि करि इम बोलइ गोपाल राणी तुम्हे ए सिउं करु रुखमणितणउ उगाल सतिभामा विलखी वदनि हरिनइ कहइ ततकाल
तुम्हे कूड कपटी हुआ ए मम बहिनि उगाल (सत्यभामा द्वारा रुक्मिणी साथे मेळाप करावधानो प्रस्ताव)
गंधरवीवीवाह करी जे तम्हि आणी नारि रूप अनोपम तेहनु जोईइ कृष्णमुरारि कहु केहनइ पगि लागसि इ बोलइ गोपीराय सतिभामा कहइ हूं वडी लागइ माहरइ पाय मुझ मनि अति उमाहलुं देखण रुखमणिरूप
वनमांहि श्रीधरि मेलसिउ इम कही चालि भूप (श्रीकृष्णनी प्रयुक्ति - सत्यभामा अने रुक्मिणीनुं मिलन)
नारायण उठी गया नारी रुखमणि पासि वाडी बहु भीतिर फली चालु देखण जासि सुखासणि चडी आवीया लिखिमीतणइ भुवनि स्वेतवस्त्र आभरणसिउ सोहइ रूपणि तन 1. सगंध
Page #111
--------------------------------------------------------------------------
________________
प्रद्युम्नकुमार-चुपई श्री-प्रतिमा लेइ करी बइसारी तिणि ठामि मूंन करी बइसी रहु . हुं जइ आवू ताम सतिभामानइ हरि कहइ जायो वनहमझारि हूं लेई आQ छु तिहां राणी रुखमणि नारि
चुपई
पाछउ आवी हरि तिहां थकी किमाउंतरि रहिउ ते लूकी सतिभामा सजाई करी सखी सहित जाइ परवरी वाविइ हाथपाय धोइ जिसिइ मालणि फूल लेई आवी तिसिई लेई पुप्फ जव देहरइ जाइ पूजी पुफि-फलि प्रणमइ पाय १०० देवि सुहासणि मुझनइ करे जिम मानइ यादव अतिखरे रूप अनोपम करु मुझतणुं पागि लागी माय मागू घj १०१ तव हरि हरखिइ हड हड! हसई2 तालोटा देई कर दोइ घसइ सतिभामा कहइ इम काइ राय वार वार तु लागइ पाय ।
१०२ एहनी भगति करे तूं घणी इणइ थांनइ बइठी रुखमिणी विलखवदनि बोलइ सतिभाय सिउं थयु जउ लागी पाय कूड-कुबुद्धि करु तुम्हि घणी ए बहिनि माहरी रुखमिणी राति-दिवस कतूहल करु गोवाल टेव न जाइं परु रुखमणिसिउ सतिभामा मिली बिइ आव्यां आवासिइ वली सवि सुख भुंजइ भोगविलास भोग पुरंदर लीलविलास १०५ प्रणम सगि3 परणी रुखमिणी कृष्णतणी वात कह घणी । बीजउ सर्ग4 जंबुवतितणु वाचक कमलशेखर कहइ सुणुः १०६
१०३
१०४
1. वच्चे वधारानो 'इ' छे, ते काढी लीवो छे. 2. हस्यइ 3. स्वणि 4. स्वर्ग 5. अंते : कृष्णेन रुखमिणी परणीत नाम प्रथम स्वर्ग.
Page #112
--------------------------------------------------------------------------
________________
द्वितीय सर्ग
जांबुवती- पाणिग्रहण
श्लोक
कृष्णेनान्येद्युरायातो नारदोऽभ्यर्च्य भाषितः । किं दृष्टं किंचिदाश्रयें भ्रमसि त्वं हि तत्कृते ॥ १९ नारदोऽप्यब्रवीद् दृष्टं श्रृणु वैताढ्यपर्वते । जांबवान् खेचरेन्द्रोऽस्ति शिवचन्द्रा च तत्प्रिया || २० विष्वक्सेनस्तयोः सूनुः कन्या जांबवती पुनः । रूपेण तस्याः सदृशी न कापि त्रिजगत्यपि ॥२१ चुपई 1
एइ वचनि नारायण हसी गगनिथकी किम परणी जाइ तव नारद कहइ हरिनइ हसी तिहां जइनइ परणु राय ते सांभलि सपराणुं थयु जांबवती तव दीठी नारि कही नारदरखि जेहवी हरी नारिनइ चालिइ जिसिइ हण हण करी हकारिउ घणुं कृष्णराइ वलि ते सवि हणी दुख वइरागिई संजिम लीइ विषसेन आविउ घण भाइ जांबुवतीनइ परणी करी रुखमणिनइ पासइ आवासि बहिनपणा बेहुजिणीइ कीध बीजइ सर्ग जांबुवती हुइ 3. स्वर्यि
1. चपइ 2. ठाया
कहइ बात ते मन उल्हसी ते परण्या विण सुख नवि थाइ खेलण गंगा आवइ धसी बल न हुइ तु बइसु ठाय गज-रथ-तुरंगम-दल लेई गयु एह सरखी नवि इणि संसारि मय दीठी कुमरी तेहवी राय जोवानइ आविउ तिसिई कृष्ण देखि बल धाइ आपणुं जांबराय कीधु रेवणी कर्म वाछित तप करि पालीइं कृष्णरायना प्रणमइ पाय
१०७
१०८
१०९
११०
१११
११२
पहुता नयर द्वारिकापुरी जांबवती मेल्ही ते पासि कृष्णमुरारइ मांन घण दीध श्रीजइ बात कहुं जूजूइ 4
११४
4. अंते : जांबुवती - पाणिग्रहण - नाम्ना द्वितीय स्वर्य.
११३
Page #113
--------------------------------------------------------------------------
________________
तृतीय सर्ग
प्रद्युम्न कुमार - विद्याग्रहण, रुक्मिणी-मिलन
( रुक्मिणी अने सत्यभामाने पुत्ररत्ननी प्राप्ति ) ( स्वप्न )
मनुषता सुख अति भोगवइ रूपणि सुपन वृषभ पेखति कृष्णरायनइ रुखमणि कहउ सुणि सुंदरि सुपन अणुसारि ( सत्यभामानुं स्वप्नविषे असत्य
सुपनवात दासीइ सांभली एह वात मनमाहि घरी स्वामी सुणउ सुपन मइ दीठ तं निसुणी कहइ कृष्णमुरारि ( रुक्मिणी-सत्यभामा वच्चे शरत
)
सतिभामा -रुखमणि बिइ जिणी सो हारइ जसु पाछइ होइ सतिभामा - रुखमणि भाखीयु तुम्हे केहनी म करु कांणि ( कौरवना दृतनुं आगमन )
चुपई
नारि बिऊंनइ गर्भ ज हवइ चडी हुं अमर विमानइ मंति रयणमझि सुपनांतर लहिउ मुझ सरिखु पुत्र होसिइ नारि कथन )
सभा नारायण बइठउ जिहा तुम्ह घरि जेठउ नंदन होइ 1. सुभा
सतिभामा आगलि कही वली कलपित स्वप्न कहइ ते करी मोटउ मयगल मुखि पइठ कुमर होसिहं तुम्ह घरबार
वातचाट करइ पुत्रहतणी ते सिर मूंडी वीवाहइ सोइ बलिभद्र तिहां कीधु साखीयु हारइ ते शिर मूंडी आणि
दूत कुरवनु आवि तिहां कुरवपुत्री परणइ सोइं
११५
११६
११७
११८
११९
१२०
१२१
Page #114
--------------------------------------------------------------------------
________________
( बन्ने राणीओने पुत्रजन्म )
मास गर्भना या संपन लक्षणवंत दीठउ कुमार पेटि हसूकु पडीयु जिसि बिहुना दूत गया जेतलइ
( ज्येष्ठ पुत्र तरीके रुक्मिणीनो पुत्र )
सतभामा दूत उसीस रहिउ हरि जागिउ तव दीठउ नयणि पहिलं हरि हरखीनेइ दीइ पछइ वधाइ बीजु दीध
(पुत्रजन्म - महोत्सव )
विहुं नारिनय नंदन हुया नारी गावइ मंगल च्यारि वाजइ भेरि तूर कंसाल वाजइ धपमप मधुर मृदंग ( धूमकेतु द्वारा प्रद्युम्ननुं हरण )
छठी राति सवि जागइ जाम आवी सिंहासणि बइठा जिसिहं जोइ रूप तव अद्योतह थयुं हरि हुलावर जव करि धरी हरि जाणइ धावि लेई गई धूमकेतु चालीउ ते ग्रही 2 सिला एक बावन गजतणी रीसइ नांखिउ तेह ज बाल 1. मधुरे 2. गृही
तृतीय सर्ग
रुखमणि जायु पुत्र एक दिन दासि आवी जणावी सार सतिभामा पुत्र जनमिउ तिसिहं सूता कृष्ण दीठा तेतलइ
रुखमणि-दूत पाग-तलि गयउ मांगइ बधाई मधुरे । वयणि रुखमणिदूत करजोडी लीइ भाइ वड्डु रूपणि-सुत कीध
आवइ घरि वधावा जूया बांभण वेद भणइ झंकार वाजइ संख मधुरस्वरि ताल घरि घरि उछव नव नव रंग
कृष्णराय पहुता ताम खोलइ पुत्र लेई मूकिउ तिसिइ प्रद्युम नाम गोपालइ कहिउ बाल धूमकेतु ले गयु हरी एय विमांसण सघलइ थई मारी नांखु समद्रिह सही लीधी ऊंची हाथिइ खणी उपरि सिला मेल्ही ततकाल
१२२
१२३
१२४
१२५
१२६
१२७
१२८
१२९
१३०
१३१
Page #115
--------------------------------------------------------------------------
________________
१६
पूरवकर्म न मेटइ कोइ रुखमणि जागीनइ कह वली
रयणी छठी रयणी छठी
वासदेव तव इम कहइ रूपणि तव कारण कहइ एह हांसु 1 कीजय नही सही को वयरी लइ गयु
कहइ कृष्ण कहइ कृष्ण
छपनु कोडि यादव तुम्हे गाम नयर पुर पाटणह यादव जइ जोयु घणुं सहू आवी हरिनइ कहइ
प्रद्युम्न कुमार - चुपई
सुणी वात रुखमणिसुत गयु सुकीला (?) मुझ टलीयुं साल
यतः
कर्म करइ ते निश्चिइ होइ आपु पुत्र जिम पुजइ रली
वाढ्य पर्बतनइ बिहुं पासि मेघकूट छइ ते मांहि देस बारहसइ विद्या जेह पासि एक दिन यात्रा जाइ तिहां खलिउं विमान न जाइ किमइ क्षण उंची क्षण नीची थाय 1. हांसुं
2. छंइ
वस्तु
हरिउ परदवण
तम्हे पुत्र लेइ गया कवणह स्वामि एम म कद्दु वयणह स्वामी आपु बाल
इम बोलइ गोपाल
सुणउ बलिभद्र नयरमझि देखणह जायु वात सुणी किहां प्रगट थाउ किहां नवि दिठ कुमार अम्हे नवि लाघी सार
चुपई
सतिभामानइ आणंद थयुं इम नाची वझावइ गाल
श्लोक
भोजने रंजितो विप्रः मयूरा घनगर्जिते । साधवो परिकल्याणे खलौ च विकलीयति (?) ॥२२
( विद्याधर संवररायने प्रद्युम्नकुमारनी प्राप्ति )
१३२
१३३
१३४
१३५
दाहोत्तरसो नयर निवास जिम संवरराय वसइ बसेस कनकमाल घरणी छ तासि प्रदिमनकुमार चांपिउ छइ 2 जिहा १३७ बावन गज सिला देखइ तिमइ ऊतरि विमानथी देखण जाइ
१३६
१३८
Page #116
--------------------------------------------------------------------------
________________
१३९
तृतीय सर्ग सिल उपाडी विद्याबलइ देखइ कुमर पडिउ सिलतलइ राइ कुमर लीधु ततकाल कनकमालनइ आउ बाल लक्षण बत्रीसइ दीठां अंगि राणी कुमर लीयु उछंगि धर्मपुत्र राजाइ कहिउ विमानि चडी आविउ गहगहिउ १४० नयरमांहि घणु उछव कीधु प्रद्युमनकुमर नाम तसु दीधु
अति सरूप अति लक्षणसार । अति वाल्हु प्रद्युमनकुमार १४१ (प्रद्युम्नकुमारनी विद्यासाधना)
बीजचंद जिम तिम वधि गयु! __ वरस सातनु बालक थयु नेसालइ मूंकीउ भणवा भणी कला बहुत्तरी आवी सुणी १४२ भरह पिंगल व्याकरण सुछंदि शास्त्र भण्या मननइ आंणंदि जैन-आगम सांभलीयां घणां मत जाण्या खटदर्शनतणां धनुषबाण झाली करवाल सिंधझझ करइ देई फाल लडण-भडण पइसार नीसार3 सवि जाणइ प्रद्युमनकुमार कुंमर पांचसइ मांहि प्रधान वाघिउ कुमर थयु रूप-निधान
जिमसंवर देखी हरखंति वली कथा द्वारिका जंति १४५ (पुत्र-वियोगिनी रुक्मिणीनो विलाप)
१४३
ढाल
रयण दिवसि रोय रुखमिणी पुत्रतणइ वियोगि मुझनइ दुख ए सही ह्युं हिव करम संयोगि माहरइ पोतइ पुन्य नहीं जे हुं पेखु बाल तव सतिभामा आवी कहइ फल लहिउ ततकाल....माहरइ.
आंकणी १४७ मणूयजनम पामी करी मइ न कीयु धर्म बालक माइ विछोहीनइ मइ बांध्यां कर्म ...मा.. १४८ कइ मइ पुरुष विछोहीया कय विछोही नारि
तिणि दुखइ हुं दुखणी एणइ संसारी... ...मा. १४९ ___ 1. गय 2. सांतनु 3. नीसारं 4. नही 5. आफणी
Page #117
--------------------------------------------------------------------------
________________
प्रद्युम्नकुमार-चुपई कइ मइ दव परजालीयां कइ फोडी पालि तरूयर मइ काप्या वली ते दुख संभालि ...मा. १५० कइ मइ तुरंफल तोडीया सवि काचां तोय कइ मइ जीव संतापीया ते फल ए जोय... ...मा. १५१ कइ मइ मुनि उवेखीया कइ वलि दीधी गालि कइ मइ जीव दुहव्या घणा अगनि करी झालि ...मा. १५२ इम झूरता आवीया
श्रीकृष्णमुरारि नयण-नीर वहइ घणूं दुख देखिउ नारि ...मा. १५३
दूहा दृज्जणजण बब्बूलवण जइ सिंचह अमीएण ।
तुअ ति कंटाविंधणा सारीरह गुणेण ॥२३1 (सत्यभामाने कृष्णे आपेलो ठपको) ।
कोप करि तव हरि कहइ सुणि सतिमामा वात रुखमणि पुत्र-दुखिइ भरी तइ किम बोली घात
१५४ सीहां लत न वीसरइ जे दिधी हरिणेण सा सकलंकी वालसिउ कालो काल गएण
१५४क (श्रीकृष्ण, रुक्मिणीने आश्वासन )
कृष्ण कहइ रुखमणि प्रतिइ धर्म करु एक चित्ति थोडे दिनि पुत्र आवसिइ तूं छइ पुन्यपवित्र स्वर्ग-मृत्यु-पाताल जिहां पुत्र करावि सार
वहिल आवीनइ कहिसि आगम पजूनकुमार (कृष्ण-रुक्मिणी पासे नारदमुं पुनरागमन)
इम समझावी आवियु विलखवदनि हरिराय तव नारदि बोलावीया आवी लागा पाय 1. आ +हो जैन गुर्जर कविओ-भाग १ लो', पृ. २७२ उपर आपेलो छे, ते प्रमाणे अहीं मकेलो छे. मूळ हस्तप्रतमां आ दूहो नीचे प्रमाणे लखेलो छ :
दृज्जणजण बबूलवण जु सींचु अमीयेण । तही ते कंटाभाजणा जातिई तणइ गुणेण ।।
१५५
१५६
१५७
Page #118
--------------------------------------------------------------------------
________________
विलखवदनि हरि पेखि करि रुखमणि घरि आवी कहइ
तृतीय सर्ग
कंदल कुतिग पेखइ घणा एहवु आविउ नारद तिहां आविउ नारद दीठउ जिसिह एक पुत्र माहरइ जे थयु करजोडी वीनवइ रुखमणी नारद कहइ अइमतु केवली रुखमणि कहइ ते सिद्धिई गयु नारद कहइ अछइ मांहा विदेव (ह)
उठिउ नारद ताम
वार वार सिरनांम
चुपई
देस विदेस करावइ घणा मनि विलखाणी रूपणि जिहां रूपणि रोवा लागी तिसिइ न जाणूं कोई लेई गयु स्वामी सुद्धि कहु सुततणी पूछउ तुम्हे जईनई वली केवलि विण ए सांसु रहिउ सीमंधिर जिन देवहदेव
( नारदनुं महाविदेहक्षेत्रमां सीमंधरस्वामी पासे गमन )
पूछी आवुं सघलू इहा सीमंधिरनइ केवल थयु
नारद कहइ हूं जाई तिहां तु नारद तव तिहांथी गयु नारद समोसरणि जव जाइ चक्रवर्ति 2 मुनि पूछइ तिहां ( सीमंधरस्वामीकथित प्रद्युम्नहरणनो जंबूदीवि भरहखित्त वसेस नगर शिरोमणि द्वारिकापुरी वासदेव नारायण जिहां नारायणि राणी रुखमिणी तेहनइ पुत्र एक जव थयु चांपि तेउ शल लेई तलइ पूर्वजन्म वयर सांभरी तेतलइ आविउ संवरराय
1. अचंभु.
2. चकवृर्ति.
एहवां माणस उपजइ तिहां धर्मवात ते जाणइ घणी धूमकेत सुर लेई गयु भूखिइ तरसिंह ते टलवलंइ
१९
१५८
१५९
१६०
१६१
१६२
घणु अचंभु देखी थाय
एहवा माणसु पुए जइ किहां ? १६४ वृत्तान्त )
धर्मवंत तिहां सोरठदेस
सागरमाझ देवे करी
१६३
१-६५
१६६
१६७
धूमकेत चालिउ इम करी
कुमर देखि लीयु घणइ उछाहिं १६८
Page #119
--------------------------------------------------------------------------
________________
प्रद्युम्नकुमार-चुपई तेहनइ राणी छइ कणयमाल आणी आपिउ तेहनइ बाल
धर्मपुत्र करिथापिउ तेह बात कही ते स्वामी एह (प्रद्युम्नना पूर्ववृत्तान्त विष नारदनो प्रश्न )
श्लोक
कथं वैरं धूमकेतोस्तेनाभूत्यूर्वजन्मनि ।
भूयोऽपि नारदेनैवं पृष्टः स्वामीत्यवोचत ॥२४ (प्रधुम्नकुमारना पूर्वभवो १. अग्निभूति - घायुभूतिनो भव )
चुपई जूंबूद्वीप भर(त)खेत्रह ठाम मगधदेसि मोटं सालिगाम मनोरम नामि वन अभिराम वसइ वासि विप्रह सोमदेव नाम १७० अगनिज्वाल तेहनी स्त्री अछइ तेणइ पुत्र बिई जाया पछइ। अगनिभूति-वायभूति कुमार विद्यावेद पढ्या ते सार १७१ लोकमांहि प्रसिद्ध हुया भोग भोगवइ अति घणा2 जूया इणि अवसरि पहुता वनि जती एहवी विप्र सुणी वीनती १७२ तिहां आव्या वाद करवा भणी वात्त सिउं जाणु शास्त्रह तणी
जाणहु तु कहु अम्ह प्रतिइं पूर्वभवि अम्हि कुण ह्या उभिई १७३ (२. शियाळयानो भव)
तव चेलु बोलिउ ततकाल तुम्हे पूरवभवि हूया सयाल आ चांबड3 खाधउ घणु हलि बांधिलं जे हाली तणुं १७४ अति आरतइ बेहु मूया विप्रतणइ घरि पुत्र तुझे ह्या न मानु तउ कहुं अहिनाण पूछउ हाली मूकउ जाण १७५ मूकी जइ पूछि4 ते वली मूकु कहइ मइ सांभली जातीसमरण उपनमोहि साचु कहिउं इणि न्यानी तो हि १७६
1. पढय
2. पण
3. चाबड
4. मछि
Page #120
--------------------------------------------------------------------------
________________
१७८
१७९
१८०
१८१
तृतीय सर्ग मूकु कहइ माहरा हलतणुं . सीयाले चांबड खाधुं| घणूं
तिहां मूया इहां अवता ... .... (बीजो, चोथो, पांचमो अने छठ्ठो भव)
विप्र द्वेषि मारण आवीया रयणदेवइ ते थंभीया तिहां बिहुं लीयू चारित्र सार त्रीजइ भवि सोहम अवतार चउथइ भवि सेठपुत्रह होइ पूर्णभद्र माणिभद्रह जोई
लेई चारित्र सोहमि सुर हुया रायपुत्र छठइ भवि जूया । (मधु-केटभनो भव)
मधु-कीटभ बि भाई थया2 तव वयरी सवि नासी गया राजाइ कीधु मधुराय सहू आवीनइ प्रणमइ पाय कीटभनइ पद दीयुं युवराज बिहूं मिलीनइ सारइ काज ब्राह्मण सोमदेवनु जीव कनकरथ राजा हूउ कीव अगनिज्वाला-जीव सो ईहां जोइ चंद्राभा तसु राणी होइ एक दी कनकराय3 हित करी मधुराजा तेडिउ नहुंतरी भोजनि घणी भगति अति करी मधु लेई गयु चंद्राभा हरी राणी चंद्राभातणइ वियोगि कनकरथिराइ छांड्या भोग तापस थईनइ भूखइ मूउ धूमकेतदेव जोतिष हूउ मधु-चंद्राभा वाद करी| मधु-कीटभसिउ चारित्र वरी सुक सातमइ देव सुजाण बेहूं हूया इंद्र समाण मधु-सुर-जीव रूपणि-सूत हुउ धूमकेत स्त्री-वयर लेई गयुं सीमंधिर कहइ रखि तुम्हि सुणउ मायपुत्र वियोग घणउ ।
सोल वरस जव जाई वही रुखमणि पुत्र मिलइ ते सही (रुक्मिणीना पूर्वभयो)
पूरवि भवि कर्म बांध्या घणा रुखमणि फल लाधा तेहतणां कहु स्वामी किणि परि बांधीयां सांभलि रिखि इण परि सांधीया
اس
१८३
سے
१८५
१८६
१८७
1. खाध
2. थाया
3. कलकराय
4. मघराजा
5. बांधयां
Page #121
--------------------------------------------------------------------------
________________
२२
प्रधुम्नकुमार-चुपई जंबूद्वीप भरह खित्तह ठाम मगधदेस! लक्ष्मी तिहि गाम सोमदेव तिहार विप्रह होइ तस घरणी लिखिमीवती जोइ एकवार ते विनह मझारि लिखिमीवती आवी ते नारि वनमांहि अति क्रीडा करी मयूरांड ते हाथइ धरी पीला इंडॉ4 मेल्ही करी भवण भणी जावा सांचरी तेतलइ आवी माय मयूरी इंडां देखी पाखलि फिरी कों को करती पासइ फिरइ इंडां उपरि नवि अणसरइ पासू नवि मेल्हइ एकइ घडी वार वार जोइ बापडी सोल घडी हुई जेतलइ धाराधर वूठइ तेतलइ धोवाणां इंडां7 जेतलइ उलखि ऊपरि बइठी तिसिइ इंडां8 सेव्यां सोले घडी मयूरी अति हरखइ चडी क्रमि क्रमि ईडांथी ते हूउं मोर एक अनोपम जूउ लिखिमीवती ते आवी वली देखी मोरनइं घj ऊछली लीयु मोर न लाई वार मयूरी10 तव करइ पुकार लेई मोरनइ ते घरि गई पूठिइ धाइ मयूरी थई मोर पांजरइ घालीउ जिसिई मयूरी फेरा दिइं तिसई क्रों क्रों शबद करीनइ रोइ लोक घणा आवी तिहां जोइ माय-पुत्रनुं घणु सनेह खिणि खिणि आवां देखइ तेह १९६ मयूरी न मेरहइ पंजरुं दिवस-राति पुत्र खरखरूं लोक घणा आव्या मिली मूकि मोर पहुचइ मन रली सोलमास राखिउ ते मोर बांधा कर्म तिहिं अतिहि कठोर सोलमासनां सोल वर्ष थीयां मोर-मयूरी वनमांहि गयां १९८ लिखिमीवती इम बांधिलं कर्म नवि जाणिउं ते धरमह मर्म चाली एकदा निज भुवनि उदार हारइ11 पहिरइ ते सिणगार 1. मगधदेश 2. विहां 3. मूयूरांड 4-5. इडा 6-7-8 ईडां 9. सोन्या 10. मोयूरी 11. हरइ
१९४
Page #122
--------------------------------------------------------------------------
________________
२३
२०५
. तृतीय सर्ग मुनिवर सुमतिगुप्तआवीयु लिखिमीवतीनइ नवि भावीयु रे रे मलिन जा तुं परहुं () इहां कांइ आविउ अणनुहुंतरिउ २०० यूं थुकार2 तिणि माहणिनि कीयु मुनिवर काढी बार तव दीयु फल दुगंछाकर्महतणु सचर सतम दिनि विणठउं घणुं २०१ अगनिमांहि पइसीनइ मुंई धोबीघरि रासिभी हुई वलि मूई ते भारइ करी त्रीजइ भवि हूइ सूकरी । २०२ चुथइ भवि थई कूतिरी अगनि बलीनइ हाथई करी भरुचछि नयरि नदी नरबदा माछीकुलि आवी एकदा २०३ दुर्गधा दोभागिणि क्काण (?) भव पंचमतंणा अहिनाण तेणइ दुर्गघि न रहइ कोइ पूरव पापतणा फल जोइ २०४ धीवरि अलगू घर ते करी तिहां राखी ते माहइ छोकरी मोटी बईरि जव ते हुई नाव एक बांधी ते जूइ वाही नाव आजीवका करइ इण परि पेट पाराभव भरइ समाधिगुप्तमुनि विहारह करी नदी नर्बदा आविउ फिरी २०६ कंठि आवी काउसग्ग करिउ माहामासनी ताढिइं भरिउ दुर्गधा दीठउ धीवरी किम ए सहसिइ सीतह खरी २०७ दया उपनी ते रिखितणी तिणइ आणी चारिह घणी वींटी मुनिवरनइ ते गई प्रभात4 समइ ते आवी रही २०८ ते मुनिवरनइ वांदइ जिसिइं जातीसमरण ऊपर्नु तिसिइं हई हई देव मय सिउं कीयु ए मुनिवर देखी थूकीयु वार वार पगि लागी करी खमावइ पूरवभव चरी मइ कीधां जे मोटां पाप तेहना पाम्यां मइ संताप सांमी ते मुझनइ तुं छोडी वलि वलि वांदइ बे कर जोडि मुनिवरि श्रावकनु धर्म दीयु साधवी साथिई विहारह कीयु २११ 1. समतिगुप्ति 2. धुंधूकार 3. दुर्गधि 4. प्रभात 5. वादइ
२०९
२१०
Page #123
--------------------------------------------------------------------------
________________
२४
प्रद्युम्नकुमार-चुपई विहार करतां इक गामि आवीया नायल श्रावक तिहां भावीयां नायलनइ घरि रही धीवरी अणसण करी सुरी अवतरी २१२ पंचावन पत्योपम आय पूरी आयु तिहां रुखमणि थाइ
मयूरी पुत्रवियोगह करी वरस सोल सुत आवइ फिरी २१३ (नारद ऋषितुं संवररायने त्यां गमन)।
नारदिरखि सांभलीयु सहू वांदी चालिउ आणंद बहू वैताढ्यपर्वत मेघकुटपुरइ संवरराया बइंठउ छइ घरइ २१४ नारदरखि2 आव्या जेतलइ ऊठी पगि लाग(इ) तेतलइ संवरराइ दीधू बहू मान कहइ हूं देखं तुम्ह संतान २१५ तव प्रद्युमनकुमर आणियु पेखी नारद वखांणीउ ।
रूप कुमरनुं देखी करी आविउ नयर द्वारिकापुरी+ २१६ (नारदऋषितुं रुक्मिणी पासे आगमन)
जेहां ते बयठी छइ रुखमिणी आवी वात कही सुततणी लिखिमीवतीनी वात सांभली वार वार पूछइ ते वली २१७ खरूं कहिउं सीमंधरदेव भगति करुं हूं तेहनी हेव
प्रतिमा सीमंधरनी करी पूज करइ ते इक चित्ति धरी २१८ (पुत्रागमन वखतनी अंधाणीओ)
जिती एक आविउ मुझ घरिइ तेणइ वात कही इण परइ ताहर घरइ कस छइ बहू सोनाना जव देखइ सहू २१९ अफल अंब छ तुझ घरतणा जव फलफूल तूं देखइ घणा तव घर-वाडी सूकी अछइ आलीमाली देखिसि पछइ २२० सूकी वावि छइ तुम्ह घरतणी पाणी भरी देखिइ रुखमिणी .. अंचल धुला पीला होइ खीर झरइ थण देखी सोइ २२१ ए अहिनाणह मिलइ जव सही तव तुम्ह कुमर मिलइ गहगही कही सहिनाण गयु ते जाम रूपणि संतोखाणी ताम २२२
1. संवररांय
2. नारदि
3. प्रद्यमनकुमार
4. द्वारिकापुरी
5. घण
Page #124
--------------------------------------------------------------------------
________________
तृतीय सर्ग
२२५
Y
लक्षण जोइ अहिनाणतणा इम कहितां दिन वुल्या घणा
वात सुणउ हिव कुमरहतणी किणि परि विद्या पामी घणी २२३ (संवररायना पांचसो पुत्रोनो सिंहरथराजा साथेना युद्धमा पराजय)
तिहां निवसइ सिंघराय नरेस तेह सिउ मांडउ जूझ नरेस जिम संवरराय कहइ सुजाण कुण भांजेसिई सिंघरथठाण
२२४ दूहा कुमर पांचसइ तव कहइ राय करु पसाउ अम्हे जई तिहां जीपस सूर सिंघरथराउ तव ते दल लेई चालीया हीई धरी अभिमान गज-रथ-तुरंगम पाखऱ्या पायक मिल्या प्रधान ते सवि सिंधरथि त्रासव्या करी सिंघवाद्य जूझ
ते देखी प्रद्युमन! कहइ भाई नासइ अबूझ (सिंहरथ अने प्रद्युम्ननुं युद्ध)
तव ऊठिउ पजून तिहां पीयनइ कहइ सुजाण सामी तुम्ह पसाउ करु सिंघरथ2 टालू ठाण राय कहइ तूं नान्हडु न जाणइ जूझह वात नान्हउ सींह3 एवडु करइ मोटा गजघात
२२९
२२८
यतः
दाजावा जु जण मिल (?) बोलावइ अप्पाण4 । मइ दिठइ जु पग भरइ तु मुज जणणि अप्रमाण ॥२५ अज्ज वि नयण न उग्घडइ नखइ न लीधउ मग्ग । उद्यवि सिंघकिसोरडइ गयघड भडवा लग्ग ॥२६
किम हूं नान्ह उ तुझ कुंमर तव आदेस हूउ जिसइ
जाणसि जूझह भेद चालीउ वेगि वछेद
२३०
1. प्रद्यमन
2. संघरथ
3. सीह
4. आप्पाण
Page #125
--------------------------------------------------------------------------
________________
प्रद्युम्नकुमार-चुपई बाल कुमरह आवतु देखिउं सिंघरथिराया हु मोटउ ए लहूयडउ केम जझय ति थाय इम चीतवतां 2 रायनइ बोलावइ कुमार हू आविउ3 अति लहूयडउ दिउ तुम्हे जुझ अपार
२३१
२३२
चुपई
२३३
२३४
२३५
२३६
२३७
वचन सुण्या तव धाया। सूर जेम वहइ नदीनां पूर सगणी सीगिणि पाली पटा कटारी कातरि करि कटा हरसी फरसी नइ हडबडी तखारि सेल गदा लि वडी छत्रीसइ हाथिइ हथीयार जूझ करइ आवी अपार घोडासिउ घोडा ते भिडइ हाथी हाथी आवी जडई रथसिउ रथ संग्राम करंति नीसत नर ते नासी जति पालइ पाला घणं आफलइ सूर सूर वेगा सिहं मिलई हाकइ ताकइ नइ धसमसइ कायरपुरुष पाछे राखसइ धाई धंबड नांखइं तीर सेल फेरवी नाखइ वीर मोगरसिउ मोड मियमत्त तेतलइ सिंघरथ आय पहुत सिंघजुध सिंघरथि मांडियु कुमरि अनेरुं जुझ छाडीयु तिहां आवी सिंघ युद्ध करंति संवरराय आवी जोयति बेहुं सिंघतणी परि भडइ पाळे पगि उसरि वलि जुडइ उछालिउ ते सिंधरथराय6 भूमि पडिउ तव चांपिउ पाय झांटि साहि झूडइ कुमार पग साही पेटि दिध प्रहार
मुख साहीनइ पाड्या दंत पजूनकुमर नान्ह उ बलवंत (सिंहरथराजानो प्रद्युम्नकुमारे करेलो पराजय)
हारिउ सिंधरथ गयु भडवाय बांधी आणिउ घालि पाय जय जय सबद हुउ जेतलइ जिम संवर बोलिउ तेतलइ 1. सिघरथि 2. चीतवतां 3. याविउ० 4. ध्याया 5. मोडय मियमित्त 6. सिघरथरायं
२३८
२३९.
२४०
२४१
Page #126
--------------------------------------------------------------------------
________________
तृतीय सर्ग
७
२४२
२४५
माहरइ पुत्र पांचसइ अछइ ते ऊपरि तूं आवीउ पछइ गुणे करीनइ तू वडवीर दीठउ मई तू साहसधीर । बांधिउं छोडिउ सिंघरथराय तेहनइ कीधु घणउ पसाय गज रथ तुरंगम दीधा घणा वस्त्र अपूरव पहरणतणा २४३ पयदल घणू देई राय पहुतु कीधु आपणइ ठाय
कुमर पांचसइ विसंवाद थयु जीवतव्य आपणउ आज ज गयउ २४४ (पांचसो भाइओनी इर्ष्या अने प्रद्युम्ननो कांटो काढवानी युक्ति)
एतलु राय न राखिउं मान बालकपणि कीउ प्रधान सघला रांक मिला बापडा कुमर-मारण उपाइ पडा जिम एहनु भाजइ भडवाय आपणनइ मांनइ ते राय सोलगुफा देखाडउ आज जिम थाइ निःकंटक राज २४६ एह वात मम... .... ...1 वेगि लेई चालु परदवण बोलाविउ पांचसइ... ....
. . . . . . . . .वनह-मझारि २४७ सवि आव्यां ते कुमरह मिली जोइ वन ते मननी रली भणइ कुमर देखु परदवण विजयगिरि . . . . . . .. २४८ जे नर पूंजकरण तिहां जाइ तेहनइ पुन्य परापति थाइ सुणी वात हरखिउ मनि वीर चडी जोइ2 ते साहसधी[र] २४९
श्लोक अहो अमेघजा वृष्टिरहो अक्क-समफलं । अहो पुराकृतं पुण्यं यद् दृष्टो नाथ लोचने ॥२७
चुपई
२५०
जिनमंदिर बंद्या जिनदेव
... . ... ... .टेव जव जोइ ते पोलि पगार तव फुफारव सुणिउ अपार तेणइ हांकिउ प्रद्युमनकुमार3 किम आविउ रे इहां गमार विसहररूपइ आवी लडइ तव साहिउ धाई पूंछडइ 1. ज्यां आ प्रमाणे खाली जगा राखी छे, त्यां प्रतमां पाठ खूटे छे. 2. योइ 3. प्रद्यमन
२५१
Page #127
--------------------------------------------------------------------------
________________
प्रद्युम्नकुमार-चुपई हाथि फेरीवी अधोमुख कीयु तेहतणउ बल सवि भंजीयु देखी बल सांकिउ ते सही कहइ वात ते ऊभु रही पूरव जे हुतुं कणयुराइ राज छांडिनइ व्रत लीध भाइ सोल विद्या आपु हित करी . ए विद्या तुझ काजिई धरी
२५२
२५३
श्लोक
विद्या सह मतव्येन हातव्यं क्रम शंक्षयो (?) ।
विद्यया लालितो मूर्खः पश्चात् संपद्यते रिपुः ॥२८ (सोळ विद्याओ)
चुपई अहि धोणी तस! राजातणी लिइ संभालि विद्या आपणी हीयालोकणी न(?म)इमोहणी जलसोखणी रयणिदेखणी २५४ गगनगमण पातालगामिणी सुभदरसिणी खुधाकारिणी अगनिथंभनइ जलभारणी बहुरूपणि प्राणीबांधणी २५५ गुटिकासिद्धि धराबांधणी धारबंध अंजनसिद्धितणी सोलह विद्या आपी सार उपरि दीधु मुगटशृंगार २५६ .... .... .... .... .... .... .... ....2 हरखइ लेई आविउ तिहां रमइ पांचसइ भाई जिहां . २५७ मनमांहि थिउ अचंभु घणउ प्रद्युमन4 वात कहुं ते सुणउ कालगुफा कहीइ तस नाम कालासुरदेवनु ठाम
२५८ सुणी वात गुफाई गयु ते देखी सुर उभु थयु हाकिउ कुमर देवइ जेतलइ साही हणिउ देव तेतलइ २५९ कुमर प्राक्रम देखी तेय आविउ छत्र-चामर करि लेय पाय लागीनइ दीधा सोय पुण्यतणां फल एह ज जोइ २६० ते लेईनइ आविउ जिसइ5 त्रीजी गुफा देखाडी तिसइ नागगुफा देखी वरवीर न बीहइ कहथी साहसधीर - २६१ 1. सत
2. शरतचूकथी आ कडीनो पूर्वार्ध लहियाथी लखवो रही गयो छे. 3. अचंभु 4. प्रद्यमन 5. जिसइ
Page #128
--------------------------------------------------------------------------
________________
फफाकार कीयु फणटोप धाई पकडिउ पन्नगपूंछ उतलीबल देखिउ कुमार चंद्रसिंघासण आपिउ आणि विद्या तीन तूं लिइ माह गाम-नगर-पुर- घर - कारणी
एतल लाभ कुमरनइ थयु नाहता देखी कहइ रखवाल सरोवर जे 1 सुर 2 रखि रहिउ इणि वचनि बोलिउ आकरु अगनिकुंडि गयु तिहाथी वीर तूठउ सुरवर बलवंत जाणि ते लेई आधुनीकलिउ पाकां आंब ते तोडी खाय मुझ तुर तोडइ आंब कुण वीर कुमर कोपि तिहि पासइ गयु वयण पचारी जीतु देव पुप्फमाल बि हाथइ करी प्रद्युमन 4 ते लेईनइ गयु दुधर गयवर धायु धसी
आगलि गयु एक वावडी ते ग्रही पूछि फेरवइ सोइ प्रगट हुई नइ सेवा करी तव मलयागिरि ऊपरि गयु
1. जो 5. कुंभछलि
तृतीय सर्ग
2. सर
ते देखवि ऊपनु कोप उपाडी नाखी तस मूंछ ए समवडि नही को संसारि नागसेज पावडी वखाणि नागपास नइ सेना करी दुष्टजीव आवत वारणी वली ते नाहण सरोवरि गयु सरोवर मांहिथी नीकलि बाल ए जलि नाहण कुणि तुझ कहिउ रक्षपालि लहिउ ऊतर खरु आवत दीठउ साहसधीर अगनिपुट आपिउ उ ते आणि अंब एक दीठउ ते फलिउ अंबदेव पहूतु आय मूंह सिउ आवि भडउ ते धीर तेहसिउं जूझ मेलावर थयु कर जोडीनइ वीनवइ हेव वली पावडी आगलि धरी वनमांहि जाई हरखित थयु आहणिउ कुंभस्थलि 5
गज गयु खसी 6 विसहर एक दीठउ पावडी विलखवदनि ते फणधर होइ काममूंद्रडी आपी छुरी करइ साद ते ऊभउ थयु
4. प्रद्यमन
3. आंपिउ
6. खिसी
२६२
२६३
२६४
२६५
२६६
२६७
२६८
२६९
२७०
२७१
२७२
२७३
Page #129
--------------------------------------------------------------------------
________________
३
प्रद्युम्नकुमार-चुपई अमरदेव तिहां आविउ धसी ते जीतु प्रद्युमनइ। हसी अमरदेव तिहां आदर करइ कंकणयुगल ते आणि धरइ २७४ सिखर मुगटनइ वस्त्रहसार ऊपरि आपिउ नवसरहार आघु बारसेण गुफाई गयु कुमर जई तिहां उभु थयु तिणि ठामिई अमर छइ कोइ वाराहरूप करइ ते सोइ रुप सूयरनुं करीनइ लडिउ हणिउ कुमरि दंतूसलि पडिउ २७६ पुफबाण दीयु तेणि देवि विजयसंख आपिउ तिहि खेवी .... .... पर वलि आघु जाइ दुष्टजीव जिहां बइठा आय २७७ दीठउ वीरमाणस बांधीयु तेय छोडिनइ साथिई लीयु जिणि विजाहरि . . . रिउ ते पणि मित्र करी अणसरिउ २७८ ते विद्याधर लागी पाय । इंद्रजाल विद्या दिई भाइ तव वसंतमनि हुयु उ[छाह] .... .... .... करिउ विवाह २७९
दूहा ते साथइ वनि जाइ आवी लागु पाय चालिउ वनिहि तुरंति तालतमालह भंति
२८०
२८२
विद्याधर लागा पगे जूझ करिउ वनजक्ष तिहां कुसुमबाण2 तेणइ सुरि दीयु सरल तरल पेखइ घणा सिला फटिकनी दीपती जपइ जाप ते अतिघणा विद्याधर ते पूछीया रति नामा ए सुंद[री] ए कन्या परणु कुमर तव मनि हरख हूउ घणुं एतलं लेईनइ गयु कुमर सरूप देखी करी 1. प्रद्यमनइ 2. कुसमबाण
२८३
रूडा इणि संसारि नारी छइ ए कवण .... .... ....रूव परदमण मइ ए तुम्हनइ दीध कुमर वीवाह ज कीध भाइ पंचसइ3 पासि वयण कहइ उल्हासि
२८४
२८५
3. पंचमइ
Page #130
--------------------------------------------------------------------------
________________
।
२८६
२८७
तृतीय सर्ग जिहा जिहा आपणि मोकलिउ तिहि तिहि मरणह ठाम एहनइ तिहां सहूइ मिल्या नारिप्रमुख लाभ ताम प्रद्यमनकुमारतणुं बल
देखिउ भाई जाम सवि कुमर आवी करी तेहनइ करइ प्रणाम
वस्तु2 पुन्य बलवंत बलवंत
अछइ संसारि पुन्य सेवइ सुर सयल पुन्य पुहवि अरिहंत भाखइ पुन्यइ अणचित्तिउं फलइ मरणभय ते पुण्य राखइ रिद्धिवृद्धि पुन्यइ मिलइ पुन्यइ राजभंडार पुन्यइ सवि आवी मिलइ जिम प्रदिमनकुमार
२८८ (प्रद्युम्ननी विद्याप्राप्ति)
चुपई विद्या सोलइ लेई सार चमर-छत्र सिरि मुगट अपार नागसेज ते रयणे जडी अगनिपटउ वीणा पावडी विजयसंखनु साद अपार चंद्रसिंघासण सेखरहारि हाथिइ काममुद्रडी धरी पुप्फवास करि कडिहि छरी २९० कुसुमबाण4 ते हाथइ लेई कुंडलयुगल कांनि पहिरेइ कंकणयुगल पुप्फमाल धरी राजकुमरि बिइ परणी करी २९१ प्रदिमनकुमर लेई आवीयु राइनइ मनि ते अति भावीयु
घणी भगति करि लागु पाय राजा मिलवा ऊभु थाय २९२ (कनकमालानी प्रद्युम्न पर आसक्ति)
मिली कुमर घरिमाहि गयु कनकमालनइ आणंद थयु विनउ करीनइ प्रणमइ पाय पुत्र देखी रांणी परवसि थाइ २९३ कामातुर ते थयु शरीर धाई साहिउ अंचलि वीर कामवचन स्त्री कहइ तिहां घणा कुमरइ नवि मांन्यां तेहतणा २९४ 1. तिहिं 2. वस्त 3. अगनिपडउ4. कुसम 5, कुडल
२८९
Page #131
--------------------------------------------------------------------------
________________
प्रधुम्नकुमार-चुपई (आसक्तिनुं कारण)
छेहडउ छोडावि वनिइं आवीयु रिखि दीठउ बयठउ भावीयु पाय पणमी बइठउ जिसिइं मुनिवरि कुमर बोलाविउ तिसिइ २९५ कनकमाल माता मुझतणी मुझनइ देखी कामिइ हणी छेहडउ छोडावी आवीउ इहां आधी वात न जाणं! तिहा २९६ यत:
किं न पश्यति जात्यंधो कामांधो नैव पश्यति ।
न पश्यति मदोन्मत्तो अर्थी दोषो न पश्यति ॥२९ (प्रधुम्ननो जन्म-वृत्तान्त)
तव मुनिवरनां वयणह सुणी कहुं वात तुझ मातातणी भरतखेत्रमांहि सोरठदेस नयर द्वारामति सोहइ नसेस २९७ कृष्णराय तिहां साहस धीर तह समवडि को नही जग वीर तेहनी घरणि अछइ रुखमिणी जिहि जस कीरती वाधी घणी २९८ तेह समी नवि पूजइ कोइ प्रदिमनकुमर माय तुज्ञ होइ धूमकेतु वयरइ तूं लीयु मोटी सिल हेठि चांपीयु २९९ एणइ जिमसंवरि पालिउ आणि ते प्रद्यूमनकुमर तूं जाणि पूरवभवि तुम्ह हुतु नेह भोग भोगव्या अतिहि सनेह ३०० इणि भवि तेहथी अपनु राग तुझनइ कहुं ते देखी लाग
जु ए तुझसिउ प्रेमरसलीन छलकरि लिइ जई विद्या? तीन ३०१ (कनकमाला पासेथी विद्याप्राप्ति)
कुमर सुणीनइ वली घरि गयु कनकमाल पासि ऊभु थयु त्रिणि विद्या जु मुझनइ देहि जुगतु ताहरुं वयण सणेहि वात कुंमरनी काने सुणी प्रेमलबधि अकलाणी घणी जिमसंवरनी न करी काणि त्रिण्हइ विद्या आपी आणि ३०३ कनकमाल कहइ पूरु रली कुमरतणइ पगि लागी वली कुमर कहइ माता मम कहूं जुगताजुगतिइ आपणी रहु .. 1. जाणं 2. वद्या
३०२
३०४
Page #132
--------------------------------------------------------------------------
________________
हसि करि हाथ साहीनइ मिला भोग भोगवु अतिह गहगही ( भ्रष्टाचारनुं आळ )
चालिउ कुमर वचन सांभली रोइ सकइ फाटइ हीयु कनकमाल ते विसमं धरइ उर-थणहर! मुह फाडइ तेय
तृतीय सर्ग
स्त्री- पुकार जव कुमरे सुणी राणी कहइ पूत थापिउ राय
)
( संवरराय अने प्रद्युम्न वच्चे युद्ध [सु]णी वयण राउ कोपइ चडिउ कुमर पां[च] सइ लेई हकारि मिली कुमर सवि एकठा थया तुम्हे आलोकण विद्या कहु तव सांणु साहस धीर च्यारिसइ नवाणू घाल्या वावि
दूहा
राती तु रंगिइ रमइ विरती हरइ पराण । स्त्री रूठी तं करइ जिम ते रा ॥३० चुपई
सु. ... एक कुमार जिमसंवररायइ बइठउ जिहां सयल कुमर वा[वी घाली ] सुणी वयण कोपिउ मनि राय रहवर साजु गयवर गुडइ पायक सवि हीयरइ करी
2. पुहुता
1. थणहव
सामी हिव मुझ आस्या फली हूं तम्हारी दासी सही
कनकमालानइ आशा टली मूंहि इसउ कूकूउ कीयु कूटइ सिरनइ कूकू करइ केस छोडि मोकला मेल्हेय
******
कालसंवर सेन धाई घणी मुझनइ तेय विगोइयु आय
जिम घी अधिक अगनिमांहि पडिउ वेगि पहुता 2 वनहमझारि पजूनकुमरनइ तेडवा गया कुमर सुणीनइ नवि सासहिउ नागपास बांध्या वडवीर उपरि वाली सिला सुभावि रायनइ जई जणावु सार आवी कुमर पुकारिउ तिहां उपरि दीधी सिल ते पालि आज कुमर भांजुं भडवाय तुरीय पल्हाणइ पाखर पडइ चतुरंगसेन घणी तिहां करी
३०५
३०६
२०७
३०८
३०९
३१०
३११
३१२
३१३
३१४
Page #133
--------------------------------------------------------------------------
________________
प्रद्युम्नकुमार-चुपई
३१५
३१६
३१७
३१८
३१९
आविउ साम्हउ आणंद धरी पायकसिउं पायक रणि भडइ राउतसिउं राउत रणि जडइ
रहवरसिउ रहवर संग्राम त्रूटइ कूटइ मुंड रुलइ ताम (सवररायनी कनकमाला पासे त्रण विद्यानी मागणी)
हारिउ तिहां जिमसंवरराय चतुरंगसेन दिसोदिसि जाइ विद्याधरराय विलखु थयु रह वाली नगरमांहि गयुं ऊतावलु आविउ स्त्री पासि मागी विद्या मनह उल्हासि निसुणि वयण अकुलाणी बाल जाणे2 ते वज्रहणी ततकाल स्वामी ते विद्या लेई गयुं इणि वचनि राय विलखु थयु
सयर3 विलू रिउ जव राइ दीठ स्त्रीनइ करि नखि लोही पइंठ (स्त्रीचरित्र)
वस्तु एम नरवय नरवय
सुण्यां जव वयण विद्याधर कारण करइ स्त्रीचरित्र देखीय कंपिउ हुं4 राय इणि भोलविउ मूंहसिउ ते य वलीय जंपिउं प्रेमलबध कारण करी
आपी विद्या तीन हवइ हुँ सिउ उपाय करुं विद्या लेई गयु छीन
चुपई देखी चरित्र बोलिउ ते राय हवइ आविउ मुझ मरणह ठाय स्त्रीतणु जे वेसासह करइ तेय माणस अखूटइ मरइ स्त्रीचरित्र चितइ ते राय तेणि दुखि अति विलखु थाइ जूटुं6 बोलइ जूटुं लवइ निज प्री मेल्हि अवर भोगवइ स्त्रीनइ साहस बिमणु होइ स्त्रीचरित्र नवि जाणइ कोइ स्त्रीनी बुद्धि नीची नितु रहइ उत्तम छोडि नीच संग्रहइ 1. प्रतमां पाठ खूटे छे.. 2. जेणे 3. सांसर 4. है 5. तीत ६. जूं हूं
३२०
३२१
३२२
३२३
Page #134
--------------------------------------------------------------------------
________________
३२५
तृतीय सर्ग
गाथा अन्नं रमइ निरक्खइ अन्नं अन्नं चिंतेइ भास अन्नं । अन्नस्स देइ दोसं कवडकूडी कामिणी वियडा ॥३१
- चुपई एहवी असतीतणु सभाउ जोउ जिम ऊजेणी राउ स्त्री-विस्वास बिंबि कीयु घणु स्त्रीनइ सुपिउ राज आपणउ ३२४ वली जे राउ यशोधर कहिउ अमयमहीदेवि जे सुख लहिउ । विस-लाडूया देइ मारिउ राउ कोई कूबडउ रमिउ करि भाउ वलि त्रीजउ निसुणउ तुम्हि जाण हूयू नयरि पाटणि पयठांण हापुसेठ वसइ तिणि कालि त्रिणि स्त्री तेहनी सुह लालि ३२६ सूतु सेठ तव वांणि बांधीयु प्रीय बांधीनइ ते स्यूं कीयु छांडी हापासेठनी कांणि धूरत एक घरि घालिउ आणि ३२७ परणिउ छांडि नाह सुपीयार धूरत आणि कीयु भरतार स्त्रीसाहस कोई अंत न लहइ स्त्रीचरित्र कवि केता कहइ ३२८ अभयाराणी करीय विनाण सुदंसण लगि गया पराण रावण-राम जु बांधी। राडि विग्रह सूपर्णखा लगाडि सीतहरण लंका परजली जोउ परियाण रावणर्नु वली घणी अक्षोहणि दल सांहारि कृष्णइ आणी द्रपदी नारि ३३० जिमसंवर कहइ3 दोष तुझ नही कनकमाल सि(१) रोष पूरवलखित न मेटइ कोइ प्रदिमन विद्या लेई गयु सोइ ३३१ असुभकर्म जव आवइ वही सुजन हुइ ते वयरी सही दोस न कनकमाल तुझतणुए लहिणु लाभइ आपणु ३३२
गाहा वज्जति गुणा विचलंति वल्लहा सज्जना इ विहडंति ।
विवसाए नत्थि सिद्धि पुरिसस्स परंमुहा दीहा ॥३२ ___ 1. बाधी 2. सूर्पमखा 3. कहइ 4. व्रजति 5. नित्य ---
३२९
" mmm
Page #135
--------------------------------------------------------------------------
________________
प्रद्युम्नकुमार-चुपई (यमसंवर तथा प्रद्युम्न वच्चे पुन: युद्ध)
चुपई जिमसंवरराय कोप करइ सयल दल लेई संचरइ तव परिदवण रीसाणु1 जाम नागपास लेई मुकिउ ताम ३३३ ते दल नागपासि बांधि अहिउ राउ एकल ऊभु रहिउ । राउ प्रति आवी रिखि कहइ पुत्र ऊपरि वयर सिउं वहइ ३३४ वलतु राजा कहइ रखि सुणउ स्त्रीथकी ए कलेसह घणउ ते सांभली कुमर पासि गयु नारद देखी ऊभु थयु रिखि बोलइ सुणु परदवण बापह बेटा विग्रह कवण जेणि प्रतिपाली कीयु तूं राय तेहनु किम भांजीइ भडवाय ३३६ नारद वात कहइ समझाइ बिहुँ........ .... हरखह थाइ एतलु मुझ पछतावु थयु चतुरंगसेन संहरी गयु
३३७ सुणी कुमरि मनि मेलिहउ कोह नागपास .... .... .... कुमरमनि हरखिउ राय घणउ कुमरनइ करिउ पसाय ३३८ रखि कहइ जणणि तुम्हतणी करइ उसरि तुम्हारी घणी
वचन अम्हारु जु मनि धरु घरह भणी सांमहणी करु ३३९ (प्रधुम्न द्वारा नारदनो उपहास)
नारद वात कही तुम्हे भली मुझनइ केवलि कही सो मिली हरखी वात कहइ परदवण मुझनइ वेगि पहुचाडइ कवण ३४० नारद एक विमान करि धरइ कुमर भांजि हासी ते करइ वली वि[मान] .... .... जोडि क्षणइ कुमर ते नांखइ तोडि ३४१ विलखवदन थयु नारद जाम करइ विमान कुमर हसि ताम ।
विद्याबलि तिहि करिउ विमाणु जिहि उद्योतिहि लोपिउ भाणु ३४२ (प्रधुम्ननुं द्वारिका प्रति प्रयाण)
ध्वजा घंट2 घूघरी संजुत्त रिखिसिउं चडिउ नारायणपुत्त जिमसंवरराय सम दिइ जाइ घणी भगति करि लागु पाय । 1. रासुणु 2. घंट
पाय
३४३
Page #136
--------------------------------------------------------------------------
________________
३४८
तृतीय सर्ग माहरी माय कनकमालतणी तुम्हे भगति करजो घणी
इम कही चालिउ पजूनकुमार गिरि1 परबत मेल्हा अपार ३४४ (भीलवेशी प्रद्युम्न द्वारा भानुनी जाननी पजवणी )
वन उपरि वलि पहुतु जांम उदधिमाल2 तिहा दीठी ताम घणी जानजानणीइ मिली भानु-विवाहण जाइ वली ३४५ ए कन्या पहिलूं तुझ कही नारदि वात जणावी सही तुझनइ हरी धूमकेत गयु तव ए भाननइ मागणु थयु ३४६ रिखि कहइ तुझ नही ए खोडि । हुइ सक्ति तु लेइ विछोडि नारदवयण कुमर मनि धरइ । आपण वेस भीलनु करइ ३४७ घणइ कांधि सर लेई हाथि उतरि मिलिउ तेहनइ साथि पवनवेगि ते आगलि थयु देइ आखानइ ऊभु थयु4। हूं दांणी नारायणतणु दिउ दाण मुझ लागइ घणु वडी वस्तु आपु मुझ योगि । जिसइ जावा दिउं सघलं लोक ३४९ मुहुल भणइ निसुणि मुझ वयण वडी वस्तुमाहि मांगइ कवण अम्हे आपु तु सो तुं लेइ अम्हनइ आगलि जावा देइ ३५० भील रीसाणु दिई तव आण इणि परि किम तुम्ह लाभइ जाण भली कन्या जु आपण आहि ते मुझनइ आपी तुं जाहि ३५१ हरिनंदन परणइ ते जोइ अरे भील किम मांगइ सोइ । भील भणइ कुमरी दिउं सार हूं नारायणतणउ कुमार ३५२ महलुउ कहइ म कहि तूं मूढ जूठाबोल मोटउ कूढ त्रिणि खंडनु कृष्ण नरेस तेहनु पुत्र न हूइ भीलवेस ३५३ वाट छांडीनइ ऊवट जाइ केडइ भील कोडि बि धाइ
अरे मूढ गमार कांइ थाइ आण भांजीनई किहां तू जाइ ३५४ (प्रद्युम्नकुमार द्वारा उदधिमालानु हरण)
कुमरि ऊदाली लीधी पराणि चाली वेगिई चडिउ विमाण
भील देखी कुमरी ते डरइ शोक-संताप घणउ दुख धरइ ३५५ __ 1. गिर 2. उदिधमाल 3. साकत 4. थुयु 5. साताप
Page #137
--------------------------------------------------------------------------
________________
प्रद्युम्नकुमार-चुपई पहिलं प्रद्युमनकुमारनइ वरी भानु-वीवाहण पछइ संचरी नारद निसुणि माहरी वात हवइ भील करइ मुझ घात ३५६ तेह भणी परमेसर-सरण लिउ सन्यास कइ निश्चिई मरण तु नारद मनि हूउ संदेह विरूयु वचन इणि बोलिउं एह ३५७ तव रिखि कुमर प्रतिइ कहइ घणूं प्रद्युमन2 करु रूप आपणूं लक्षण बत्रीस सोवनमय अंगु रूप अनोपम जिसु अनंगु. ३५८ उदधिमालि देखउं ते रूप जाणे बयठउ [६]दहभूप
उदधिमालनइ रखि समझाइ चलिउ विमान सुभाविइ जाइ ३५९ (प्रद्युम्ननुं द्वारिकापुरी पासे आगमन)
आविउं विमान न लागी वार नयर द्वारिकांतणइ पयसार देखि नयर बोलय परदवण दीपइ पदारथ मोती-रयण धण-कण-कंचण दीसइ भरी नारद वसइ कवण ए पुरी
सिरि सोवन-कलस झलकति भरी नीर नइ नारी जंति (नारदऋषि द्वारा द्वारिकावर्णन)
६०
३६१
वस्तु
भणइ नारद नारद अ कहीइ द्वारिकापुरी जनम तुम्ह हूयु इहा कूया वावि वलि वन पवर बहु पयार जिणवरभवण
निसुणि परदवण वसइ पासमांहि सायर निरमल फटिक-मणि-जडिउ सरोवर घणा धवलहरे आवास पोलि गढ चिहुपासि
३६२
चुपई
३६३
कुमर भणइ नारद निसुणेइ केकेहनां ए भवनह एय वलतू रखि कहइ सुणउ कुमार यादवना घर ए अतिसार नगरमधि धवलहर उत्तंग पंचवर्णमणि-जटित सुचंग 3गरुडध्वज ते हरि-आवास सोवनकलस डंड सोहइ जास _1. सदेह 2. प्रद्यामन 3. गुरुड
३६४
Page #138
--------------------------------------------------------------------------
________________
३६५
३६६
३६७
३६८
३६९
तृतीय सर्ग सिंहध्वजाइ बलिभद्र जोइ मीढाध्वजि घर वसदेव होइ जिहिध्वज विद्याधर अहिनाण ब्राह्मण वेद पढइ पुराण जिहां कलकलाट सुणीइ घणु ते आवास सतिभामातणु कनककलस सोहइ जिहि बारि ध्वज दीसइ गयणंगणि फार मणिमयगज दीसइ चउपासि ते तुम्ह मातातणु आवास
सुणी वचन हरखिउ परदवण तेह चरित्र नवि जाणइ कवण (प्रधुम्ननो द्वारिका-प्रवेश)
उतरि विमाननइ ऊभु थयु चाली कुमर नगरमांहि गयु हरिनंदन मोटउ एक .... .... बलि करइ कला नवनवी चाउरंग दल सेन संजुत्त भानुकुमर दीठउ आवंति ते देखी पूछइ कुमार एह कलयल सिं........ निसुणि वयण तव कहिउं विचार एह हरिनंदन भानुकुमार
एहथी नयरि घणु उछाह ए ते कुमर जिहतणउ विवाह (मायामयी अश्व अने प्रद्युम्ने लीधेलो वृद्ध ब्राह्मणनो वेश) :
तव पजून करइ उपाइ हवइ एहनु भांजु भडवाय बूढउ वेस विप्रनु करिउ चंचल तुरीय वैक्रय करिउ स्वेतवर्ण तुरीय करइ हीस च्यारइ पाय पखालइ दीस च्यारि च्यारि अंगुल जिहि कान राग वाग पघवाहइ सान एहवु अश्व पा[खरी]
साही वाग आगलि गयु धरी भानुकुमरि दीठउ ए एहवु ब्राह्मण गरढउ घोड जहु(?) जईनइ बाभण पूछिउ तिहा [ए] घोड लेई जाइ किहां बांभण भणइ ठाम आपणउ तेजी समुदवालिकातणउ । भाइ। सुणिउ भानुकुमर-2 नाम तेह भणी आणिउ तुरंगम ताम सुणि हो विप्र हूं भानकुमार अश्वरयण आपु मुझ सार निसुणि विप्र तूं माहरु वयण लिई सोवननइ आपि अश्वरयण विप्र कहइ दुडावी जोइ सुणिउ कुमर हर्षभरि सोइ 1. माइ 2. मानकुमरनु
३७०
३७१
३७२
W
३७३
३७४
३७५
३७६
Page #139
--------------------------------------------------------------------------
________________
३७८
३७९
३८०
३८१
प्रधुम्नकुमार-धुपई (भानुकुमारनो उपहास)
कोपारूढ तुरंगमि चडिउ खेलावतां ऊपरिथी पडिउ पडतां दांत पड्या जेतलइ लोक हांसा करइ तेतलइ ए नारायणतणउ कुमार ए समवडि कोइ नही असवार विप्र भणइ कांइ हसु एतला ते2 तरुणाथी बूढा भला दूरिहूंति करि आविउ आस भांनकुमरि ते कीयु निरास
कुमर भणइ विप्र तूं वडु एणइ घोडइ किम तुम्ह चडउ (प्रद्युम्ननु अश्वारोहण)
हं गरढउ जोईइ टेकणउ देखाउउ बल जिम आपणउ जिण दसवीस चडावण जाइ तिम तिम बांभण भारे थाइ तुरीय चडावण आविउ भान तव रिखि विप्रनइ कीधी सान जण दसवीस करिउ भडिवाय चडति भांनु4 गलि दीधु पाय चडी विप्र असवारी करइ अंतरीक ते घोडउ फिरइ
देखी सभा अचंभु थयु चमकार करि ऊंचु गयु (प्रद्युम्न द्वारा बे मायामयी अश्वन निर्माण )
वली सो पुरुष विद्याबले होइ बिंइ घोडी नीपजावइ सोइ वन-उद्यान राउल जिहा घोडा लेईनइ पहुतु तिहा तुरंगम लेई वनमांहि जइ देखि रखवाला ऊभा थाइ एणइ वनि चारि न चारइ कोइ कापइ चारि विगूचइ सोइ रखवालानी कीधी मनोहारि काम मूंद्रडी दीइ ऊतारि रखवाला घणु हरखा सहू घोडा बिहुंनइ चराविउ बहू फिरिफिरि घोडा वनमाहि चरइ तलइनी माटी ऊपरि करइ देखी रखवाला कूटइ हीयुं बिहु घोडे वन चउपट कीयु भाई लिइ ताहरी मुद्रडी खाधू वन अम्ह आरति पडी आघउ वीर पहूंतु तिहा सतिभामानी वाडी जिहां 1. हास 2.
त 3. तुरुणाथी 4. भानु
३८२
३८३
३८४
३८५
३८६
३८७
Page #140
--------------------------------------------------------------------------
________________
३८८
३८९
३९१
३९२
तृतीय सर्ग (सत्यभामानी वाडीमा प्रवेश)
घणा तरूवर देखइ कुमर फूलिहि परिमल मोह्या भ्रमर जाइ जूही पाडल अपार विउलसिरीनइ वेलि विचार कूजउ मरूउ नइ कणवीर रायचांपु केवडउ गंभीर गुलाब अगर तगर मंदार दमणउ वालु सुगंध अपार अंबज नीरि सदा फलतणा केलां द्राखइ बीजुरां घणां चारुली नारंगि2 लींबूई3 खजूरी खरणि दाडिम जूइ नालेरी फोफल घणी फली बोरि कुठ अंबिली अंमली
वाडी देखी अचंभु4 थयु बिइ वानर नीपाई गयु (मायामयी वानरो द्वारा उद्यानभंग)
वानर तेह वाडीमाहि जाइ तिणि सवि वाडी घाली खाइ सघलां फल-फूल सहरी चउड-चपट वाडी सवि करी लंका जिम कीधी हनुमंति तिम वाडी कीधी बलवंति। भानकुमर बइठउ छइ जिहां माली आवि पुकारिउ तिहां स्वामी तुम्हे म लाउ वार माय-बाडीनी करु हिव सार
वानर बिइ वाडीमांहि आइ तिणि सवि वाडी घाली खाइ (मायामयी मच्छर आदिथी भानुकुमारनी रंजाड)
कुम कुम उतावल धायुं तिहां वानर वाडि तोडइ जिहां प्रदिमनकु[म]र ते हासू करइ मायामइ मत्सर तिहा करइ तिणि गमि भान संपतु जाइ माछर खाधइ पाछु पुलइ भानु भाजनइ मा कन्हि गयु लगनि एय आलीगारु थयु ततखिणि बहु वरकांमिणि मिली भांनुनइ तेल चडावइ वली तेल चडावी करइ सिणगार अहवि गावइ मंगल च्यार रथ जोतर्या तुरीय तोखार ऊपरि चडि बइठउ कुमार तव प्रदिमन करइ तेतलइ चडी तुरंतु ज्योतिरथु चलइ बेहू रथ एकठा भिडाइ भानु पाडी घोडा घरि जाइ पडिउ भानु तव विलखी थई गातां आवी रोता गई 1. तुरवर 2. नारिग 3. लीबूइ 4. अचंभु
३९३
३९४
३९५
३९६
३९९
Page #141
--------------------------------------------------------------------------
________________
४२
प्रद्युम्नकुमार-चुपई (सत्यभामानी वावडीना जळन शोषण )
भानुकुमर ऊभु न थवइ उपाडीनइ घरि लेई जाइ वलि कुमर ते बांभण थई करि धोवती कमंडल लेई ४०० लाठी ठेकतु चलिउ सुभावि क्षण एक मांहि पहूतु आवि. उभु थयु आवीनइ तिहां सतिभामानी वावडी। जिहां . ४०१ भूखिउ बांभण जीमण करइ पाणी पीइ कमंडल भरइ सुणि'हो विप्र वात मुझतणी एह वापी सतिभामातणी ४०२ इहां पुरुष न पइसइ जाण तूं किम आविउ विप्र अजाण तु बाभण कोपिउ ततकाल तस सिर मुंडइ साही वाल ४०३ कांन नाक केन्हां लीयां चडी(?) ते ली पयठउ विप्र वावडी वली .... बुद्धि उपाई घणी समरी विद्या जलशोषणी ४०४ भरी कमंडल नीकलिउ सोय पछइ3 वावडी सूकी जोइ सूकी देखि अचभी4 नारी गयु बांभण चहुटामझारि ४०५ आखडी पडीनइ ऊभु रहिउ फूटि कमंडल नदीजल वहिउ बूडण लागी पाणीहारि कहइ वाणीया ताणइ वारि ४०६ नयरलोक सवि कुतिग मिलिउ एतलु करी तिहाथी चलिउ
वली आविउ ते नयरमझारि ऊभु रहिउ वसदेव घरबारि ४०७ (मायामयी मेंढा वडे वसुदेवनो उपहास)
दूहा वली एक मीढउ विकवी आविउ वसदेव पासि कहइ मुझ मीढउ जोइ तूं आणिउ अति उल्हासि वसदेव तव इम कहिउँ छोडी मेल्हाउ विप्र एह जोइ बल मीढातणुं लक्षण कहिस्यु तेह
चुपई तव तिणि मीढउ मेल्हिउ छोडि देखत सभां पग गयु तोडि। वसदेवराय भूमि गिरि पडिउ लोक सहू तिहां जोवा जुडिउ ४१० 1. वाडी 2. सोणि 3. पूछइ 4. अंचभी 5. जोयु
.... ४०९
Page #142
--------------------------------------------------------------------------
________________
४१२
४१५
तृतीय सर्ग (ब्राह्मणवेशे प्रद्युम्न सत्यभामाने महेले)
तिहा ते सघली सभा हसाइ वलि सतिभामानइ घरि जाइ कांधि धोती जनोई धरइ द्वादश तिलक ते सदाइ करइ ४११ च्यारि वेद अचूक पढंति पटरांणी घरि गयु तुरंति ऊभु थयु जई सीहद्यारि पोलीए जई जणावी सार जेतला बांभण मांहि घणा । सतिभामा वरज्या! आपणा सांभली भणतां ऊपनु भाउ ते बांभण मांहि तेडाइ राणीतणउ आकारण थयु ठीगतु ठीगतु बांभण गयु आखा-पाणी हाथिइ लेइ राणीनइ आसीसह देइ ४१४ तूठी राणी करइ पसाउ मागि विप्र जिहि ऊपरि भाउ सिर कंपत बांभण तव कहइ बोल तम्हारु साचु हवइ वयण एक कहू तुझ सार भूखिउ बांभण दिउ आहार । हूं आपु सोवनभंडार. तूं सिउं मागइ ए आहार ४१६ ऊठउ विप्र तुम्हे भोजन करु बीजा विप्रनइ कहइ. जा परु निसुणउ वातं प्रदिमनतणी मोकली मूकी विद्या झंझणी उपराऊपरि बाभण पडइ सिर फूटइ कू करि लडइ । रांणी वात कहइ समझावि ए भरडानइ आमान अल्यावि ४१८ तव राणीनइ कहइ परदवण साथ द्रायउनइ भूखिउ कुण खुधा वियाई सुण विचार मुझनइ मूठी एक दिउ आहार ४१९ सतिभामा कहइ भोजन करु वढवाडीयानी वात परिहरु बइठउ विप्र अधासण मारि बइसण आणी आपु नारि झारी दीधी हाथ पखालि . आणी फलहलि प्रीसी थालि चुरासी तुलडीइ जांणि सालणां घणां परीस्या आणि ४२१ मांडा वडां परीस्या सबल सर्व मेली कीधु एक कवल भात परीसइ भातह खाइ आपण राणी बइठी आइ ४२२
५२०
1. वरर्जया
Page #143
--------------------------------------------------------------------------
________________
प्रद्युम्नकुमार-चुपई जेतलु थालइ ते संहरइ वडइ भागि भांगूं ऊगरइ बांभण कहइ सांभलि हो बाल अधिक पेटमाहि ऊपनी झाल ४२३ निहुतरिउ लोक सयल परिहरु मुझ बांभणनइ पूरु करु लाडू प्रमुख सवि आगलि धरिउ तउ सयल विप्रइ संहरिउ ४२४ तु राणी मन विलखी होइ इणि खाधी सघली रसोइ बांभण कहइ हूं भूखिउ हजी भात मेल्हि तूं कांइ जइ तिजी ४२५ राणी चित्ति ऊपनी रीसि कहि आणीनइ भाण प्रीसि भूखिउ बांभण तेणइ समइ थालि आगलि पाछु वमइ ४२६ सघल मांडवु उबकी भरिउ बांभण एहवु कुतिग करिउ,
मांनभंग राणी तू करी कुमर गयु खोडु रूप धरी ४२७ (विकृत रूपे रुक्मिणीने महेले)
नमिउ नमिउि चालइ बेवडउ लाठी लेई हीडइ बापडउ वडा दांत नइ विरूई देह तिहांथी आवइ मातागेह ४२८ खणि खणि रूपणि वझडइ आवासि खिणि खिणि ते जोइ बिडं पासि मूंह नइ रिखि जे कह्यां अहिनाण ते हूया आज मिलइ सुत जाण ४२९ रूपणिनइ मनि विसंभु थयु एतलइ ब्रम्हचार तिहा गयु नमस्कार तव रूपणि करइ धर्मवृद्धि खूधु उचरइ
४३० करइ आदर नइ विनु करइ कनयसिधासण बयसण देइ
समाधान पूछइ समझाइ भूखिउ भूखिउ कही विलविलाइ ४३१ (विद्याप्रभावथी रुक्मिणीनी रंजाड)
सखी बोलावी जणावी सार खीर रांधु म लाउ2 वार जिमण करवा लागी घणी समरी कुमरि अगनियंभणी
४३२ अन्न न सीझइ चूल्ह उ धूधूइ वली वली भूखइ कूकूइ हूं सतिभामानइ घरि गयु अन्न न पामिउ भूखिउ रिहिउ ४३३ जे कीधु ते लीयु ऊदालि मुझनइ भूख लागी ततकालि रूपणिनइ मनि ऊपनी कांणि तु लाडू ते आपइ आणि ४३४ 1. सहरइ 2. लउ
Page #144
--------------------------------------------------------------------------
________________
तृतीय सर्ग
लाडू आधु नारायण खाइ दिवस च्यार लगइ भूखि न थाइ रूपणि मनि बीहती कहइ कांई कांई हूं जाणुं छं हीइ ४३५ तु रांणी मनि विसमु कहइ एहवु पुत्र रहइ कुण घरइ जु कहूं तु कहिणु न जाइ इणि रूपइ नारायण न पीतीयाइ (?) ४३६ तु रूपणि मनि थयु संदेह जिमसंवर-घरि वाधउ। एह विद्याबल ए कन्हइ घणु धरि प्रभाव सही विद्यातणु तव रू[प]णी2 पूछइ तस नाम सामी कहु आपणू ठाम किहांहूंती तुम्ह हूउ आवणु दीधी दीख कहु गुर कवण जनमभूमि हूं पूछउ तुझ माता-पिता कहइ तूं मुझ लीयु व्रत बालक शा भणी वात पूछु हरखइ तुझतणी । ४३९ एणी वातइ रीसाणु सोइ गुरु बाहरी दीख किम होइ नांम ठाम गोत्र पूछइ तिस्यू सही तुम्हे व्याह करेसिउ किसुं ४४० अम्हे परदेसि दिशांतरि फरु भिक्षावर्तिइ भोजन करूं सिउ तूठी तुं मुझनइ देसि रूठी तु सिउ मुझ कन्हइ लेसि ४४१ खोडउ दीठउ रीसाणु जाम मनि विलखाणो रूपणि ताम वली मनावइ बे कर जोडि हूं भूली तुम्हे म धरु कोप ४४२ तव कुमर बोलइ तिणि ठाय मनमांहि तूं कांइ झूरइ माइ साचं वचन कहइ तूं मुझ जिम हुँ4 ऊत्तर आपुं तुझ
४४३ तुं जंपइ मनि करीय उछाह जिम रूपणिनउ हूयु वीवाह जिम परदवण पुत्र घरि थयु धूमकेत जिम हरी लेई गयु ४४४ जिमसंवर-घरि वधिउ कुमार मुझनइ कहिउं नारदरिखि सार बीजा वचन मुझ कहीयां जेह सवि संहिनाण पूरीयां तेह ४४५ हजीय पुत्र न आविउ सोय तिणि कारणि मनि विलखी होय सतिभामा-घरि घणउ ऊछाह भानुकुमरनु आनिउ वीवाह ४४६ हारी होड न सीधूं काज तिणि कारणि सिर मुंडइ आज माता पासि कथांतर सुणिउ हाथ कूटीनइ माथू धुणिउं ४४७ 1. वाधुउ 2. रूण 3. आपणू 4. हं 5. ऊछह
Page #145
--------------------------------------------------------------------------
________________
४६
प्रद्युम्न कुमार- चुपई
आज न रूपणि मनि विलखाई प्रदिमनकुमार करी बुधि घणी ( सत्यभामानी दासीओनुं रुक्मिणीना निज माता उझलमांहि धरइ एतलइ बहु वरकांमिणी मिली अछइ रूप रूपणिनूं जिहां पाय पडीनइ वीनवइ तासि तुम्हे दूहवण न मानु लगार निणि व[य] सुंदरि इम कहइ
हुं जाउं । पुत्र मिलइ तूं आइ समरी विद्या बहुरूपिणी
...
इम किम ढलइ भाख आपणी छुरु काढीनइ हाथइ लीयु - सुणउ चरित्र प्रदिमनतणूं हाथ आंगुली घरी उतारि नाक कान तिणि कधी खोडि रोती नीकली नयरमझारि हूउ अचंभु वडु बजोग रोवत रोवत राउलि गई विरूप देखी पयंपइ सोइ तव ते बोलइ विलखी हुई नाक कान जव जोइ सोइ सुणी चरित्र चर' आविउ तिहां विटंबी नारि सिर मुंड्यां घणां निसुणि वयण वली रूपणि कहइ तव ते प्रगट हउ परदवण 1. जाणंउ 2. आवर 4. कडीनो पूर्वार्ध शरतचूकथी लहियाथी लखावो रही गयो छे. 5. पइपर 6. वर
7. कांप्यां
8. सहइ
केशमुंडन माटे आगमन ) रूपणिरूप अवर' एक करइ गावत गावत आवइ रली ते वरनारि पहुती तिहां सतिभामा मोकल्यी तुम्ह पासि सिरना केम ऊतारि दिउ भार बोल तुम्हारु साचु वहइ ४५१
4
मूंडउ सीस कहइ रुखमिणी रूपणि सीस ते आगइ दीयु नावी सिर- मूंडिउ आपणउ वली मूंडी नावीनी नारि गाती हूंती नारी जोडी (?) कवण पुरुषि ए विगोई नारि हासू करइ नगरनु लोग सतिभामा कन्हई ऊभी थई तुम्हे कुणि मोकली विगोइ रूपणि घरि अम्हे पहुती जूई नाविणि सघली ऊठी रोइ रूपणि राउ बइठा जिहां नाक कान काप्यां7 अम्हें सुण्यां नवि हूं जाणं है है इस ते समवडि रूपइ पूजइ कवण 3. तुम्हरु
४४८
४४९
४५०
४५२
४५३
४५४
४५५
४५६
४५७
४५८
४५९
Page #146
--------------------------------------------------------------------------
________________
तृतीय सर्ग (रुक्मिणी साथे प्रद्युम्ननु मिलन )
रूप मनोहर लक्षण सार रूपणि उलखीयु कुमार सोल वरसे पुत्र मुझ मिलिउ माहरु दु[ख] सयल हिव टलिउ ४६०
. वस्तुछंद जिसइ रूपणि रूपणि
दीठउ परदवण वदन चूंबि आलिंगीयु हसी वयण उठि कंठि लागीयु हवइ माहरु जनम सफल पुत्र आवई आरति भागीय दस मास मइ उरि धरिउ सही ए दुख महंत बालपणइ नवि दिठ मइ ए पछतावु पुत्त
चुपई मातातणा वयण निसुय पंच वरसनु बाल गुणेयु। क्षणेक मांहि वृद्धि सो करइ वली ते कुमर करी संहरइ ४६२ खिणि आलइ खिणि लाडइ-चडइ खिणि खिणि छेहडइ वलगइ पडई खिणि खिणि जे मनि मांगइ तेइ घणउ मोह ऊपायु जेइ ४६३ एतलु चरित्र तिहां तिणि कीयु वली आणइ रूपइ थीयु (?) माता वचन सुणउ एक मुझ कुतिग एक दिखाडुं तुझी ४६४
___ 1. अते : इति प्रदिमनकुमार-चरित्रे विद्या-ग्रहण, रुखमिणी माता मिलनो नाम तीय स्वर्ग:
Page #147
--------------------------------------------------------------------------
________________
चतुर्थ सर्ग
प्रद्युम्नविवाह (सत्यभामा द्वारा बलिभद्र पासे दूतप्रेषण )
एतलइ अवर कथांतर हूउ सतिभामाइ दूत मोकलिउ जूउ तुम्हे बलिभद्र ह्या लागणा एहवा काम रुखमिणीतणा ४६५ दूत जाईनइ पहुतु तिहां बलिभद्रकुमर बइठउ छइ जिहां ।
युगति विगति तिणि वीनवी घणी एहवां काम कीया रूखमिणि (बलिभद्र द्वारा वृद्ध रुक्मिणी पासे दूतप्रेषण)
हलधर कुपिउ दूत मोकलइ रूपणि घरि गयु तेतलइ
ऊभउ रहिउ जई सीहदूयारि मांहि जई जणावी सार ४६७ (प्रद्युम्न द्वारा ब्राह्मणरूपे दूतनो अवरोध)
कुमर बुद्धि मनमांहि धरइ गरढउ वेस विप्रनु करइ मोटउ पेट नइ विपरीत देह बारइ आडउ पडि रहिउ तेह ४६८ तव ते दूत बोलइ तिहि ठाइ ऊठि विप्र अम्हे माहि जाइ तु ते बांभण बोलइ। ईम उठी न सकू लगारइ कीम ४६९ सुणी वयण उठिउ रीसाइ साही नांखिउ एकइ ठाइ जाणिउं रखे ए बाभण मरइ ब्राम्हण-हत्याथी ते डरइ इसिउं जाणीनइ पाछा गया बलिभद्र2 आगइ आवी रह्या बांभण एक बारणइ पडिउ जाणे दिवस वीसनउ मडिउ ४७१ ते छतां अम्हे न लहं पयसार रुधि पडिउ ते पोलि-दुवार
पग3 साहीनइ नांखिउ4 जिसिइ मरवा ऊठिउ बांभण तिसिई (बलिभद्रन आगमन)
सुणी वयण बलिभद्र परजलिउ कोपारूढ होइनइ पुलिउ
जण दसवीस एकठा थया पवनवेगि रूपणि-घरि गया ४७३ : 1. बोलइ 2. ललिभद्र 3. पगा 4. नांखिउ 5. थाया
४७२
Page #148
--------------------------------------------------------------------------
________________
४७४
४७५
चतुर्थ सर्ग ऊमा थया जई सीहदुयारि दीठउ बांभण पडिउ दुयारी । हलधर तव ब्राम्हणनइ कहइ मूंकी बारणं पाछउ रहइ तिहां बांभण हलधरसिउ कहिउ सतिभामा परि भोजन लहिउ सरस आहार उदर अति भरिउ उठी न सकू पेट आफरिउ . तव बलिभद्र कहि सि वात ए कारटियानु सरह खात बांभण खरु लालची होइ घणउ खाइ जाणइ सहू कोइ .४७६ तिहां रीसाइ विप्र इम कहिउ अहो खरं निरदइ तुझ हीयु अवर करइ बांभणनी सेव विप्र दुखनु बोलइ केव ४७७ तव ऊठिउ बलिभद्र रीसाइ साही पगनइ बाहरि जाइ काइ विप्रनइ दिउ तुम्हि गालि बांहि धरीनइ ए निकालि पूछइ कुमर रुखमिणी पासि कुण ए आविउ छइ आवासि छपनकोडि मुखमंडणसार ए कहीइ बलिभद्रकुमार
४७९ सिघल जूझ ए जाणइ घणउ ए छइ पीतरीउ तुम्ह तणउ साही पगनइ बाहरि गयु विप्र पाउ पडीनइ रहिउ ४८० देखि अचंभु। बलिभद्र कहइ गुप्तवीर ए को कुण रहइ
नांखी पाउ भुंइ ऊभु थयु ततखिणी सिंघरूप विक्रयु (प्रद्युम्ननु सिंहरूपे बलिभद्र साथे युद्ध)
हलधरि आयुध2 लीयुं संभालि बिहु दिइ मांहोमांहि गालि अखाडउ करि झूझइ भिडइ बेहं सबल मुल्ल जिम लडइ ४८२ उलालिउ हलधर पडिउ जई तिहां छपनकोडि नारायण जिहां । देखि अचंभु सघल लोग भणइ कान्ह ए हूउ विजोग ४८३ एतली वात इहूं ते रही आधी कथा रुखमिणिनी सही पूछइ रूपिणि पुत्र तुम्हे सुणउ किहां सीखिउ झूझ तइ घणु ४८४ मेघकूटपर्वत नइ ठाइ जिमसंवर तिहां निवसइ राइ
सुणउ वयण माय रुखमिणी ते कन्हइ विद्या सीखी घणी ४८५ - 1. अचुंभु 2. आयुंध 3. माहोमाहि 4. पर्वत 5. नवसइ
%3
Page #149
--------------------------------------------------------------------------
________________
४८६
प्रद्युम्नकुमार-चुपई निसुणि वयण मा हुँ कहं तुझ नारद लेई आविउ मुझ . वली परदवण कहइ कर जोडि उदधिमाल मइ लीई विछोडि (प्रद्युम्न साथे रुक्मिणी यादवोनी सभामां)
हसी वयण रूपिणि तब कहइ उदधिमाल कन्या किहां रहइ तव कुमर कहइ समझाइ बोलइ एक हूं मागू माइ बांह साहीनइ सभामझारि लेई जायु यादवह पचारि भणइ माइ सुणि साहसधीर ए यादवमांहि बलवंतवीर बलभद्र-कन्हइ घणुंय परांण ए आगलि कोइ न सकइ जांण पांचइ पांडव पांचइ जणा अतुलबल कुंतानंदणा छपनकोडि जादव बलबंद जेहनइ भय बीहइ त्रिखंड एहवा खित्री वसइ बहूत किम तू जीपसि ए[क]लु पूत
४८७
४८८
४८९
४९०
वस्तुछंद
ताम कोपिउ कोपिउ रणि त्रोड भड अतुलबल हरावू रणि पंडवह नारायण हलधर जिणवि इक जिनवरसिउ नवि चलइ
भणइ परदवण मलउ मान यादव असेसह जीपिसि सर्व सूरा नरेसरह सयल करुं संहार स्वामी नेमकुमार
४९१
चुपई
कोपारूढ पजूनह थयु बाह साही माता लेई गयु
सभा नारायण बइठउ जिहां रूपणिसिउं संपतउ तिहां ४९२ ( रुक्मिणीने छोडाववा यादवोने आहवान)
देखि सभा बोलिउ परदवण तुम्हमांहि बलवंत क्षत्री कवण हूं रूपणि लेई चालिउ दिखाइ जिहि बल होइ सो लिउ छोडाइ ४९३ तूं नारायण मथुराराय तइ कंस भांजिउ भडवाइ जरासिंध तइ हणिउ पचारि मुझ कन्हइ रूपणि आवी ऊगारि ४९४
Page #150
--------------------------------------------------------------------------
________________
चतुर्थ सर्ग दस1 दशार तुम्हे बूझउ जेउ झझतणउ ते जाणइ भेउ जादव मिलउ तुम्हे छपनकोडि बल करि रूपणि लिउ विछोडि ४९५ बलिभद्र तं बलीयु बरवीर रण-संग्रामि तूं साहस-धीर हल सोहइ तुम्ह कन्हइ हथीयार मुझ कन्हइ रूपिणि लिउ ऊगारि ४९६ त् अर्जुन2 खंडगवण-दहण तूझ पुरषारथ जाणइ सहू जण4 तइ वयराटि छुडी6 गाइ मुझ पासइ रूपणि लिउ छोडाइ ४९७ भीम गदा करि सोहइ तुझ परतप7 आज दिखाडउ मुझ खीरि पांचनुं भोजन खाइ हवइ संग्रामि वढइ कां नइ आइ ४९८ निसुणि वयण सहदे जोइसी जोस जोइ किसु होइसी हरखिइ वात पूछइ परदवण बिहुमांहि जीपइ हारइ कवण ४९९ निकुलकूवर तूं प[व]रख-सार तुम्ह कन्हइ कोंत सोहइ हथीयार हवइ तुंम्ह थयु मरणह ठाय मुझ पासि रूपणि छोडावु आय ५०० तुम्हि नारायण हलधर हृया छल करी कुंडनपुरि गया सयल वात जाणी तुम्हतणी चोरी हरी आणी रुखमिणी ५०१ प्रदिमनकुमर बोलिउ तिणि ठामि कांइ न आवी तुम्हे करु संग्राम बोल एक हुं बोलुं भलु तुम्हि सवि क्षित्री हूं एकलु ५०२
वस्तु
निसुणि कोपिउ कोपिउ ताम श्रीकृष्ण जाणे10 विश्वानरि घृत ढलिउ जाणे कि सिंघ वनमांहि गंजिउ सायर जिम ऊछलिउ सयनु सर्व यादव विसजिउ भीम गदा लेई आरुहिउ अर्जुन1 लीयु कोडंड12 निकुल कोपि करि कोंतु लीयु तु हारिउ ब्रमंड
५०३
1. द्रंस 2. अर्जन 3. तूंझ 4. ज वण 6. वच्चे “गा" वधारानो छे. 7. परतग 8. सग्रामि 10. लहियाथी आगळ वधारानो “ जा” लखाइ गयो छे. 12. कोडंडं
5. वयाराटि
9. रुखमिण 11. अर्जन
Page #151
--------------------------------------------------------------------------
________________
५०७
प्रद्युम्नकुमार-चुपई (युद्धनी तैयारी)
चुपई साजण सजु थाउ वहिलाउ थयु सनद्ध-बद्ध यादवराउ रहवर साजउ गयवर गुडउ जईनइ सुहड आज रणि भिड ५०४ आदेस थयु सुभट रणि चाल्या गही टोप करइ केतला केय करइ सजइ करताल केई चालइ बांधी चाल ५०५ केई हाथइ लिइ हथीयार केई घोडा आणइ सार केई माता गयवर गुडइ केई सुहड साजइ रथि चडिइ ५०६ केई तुरीइ पाखर घालि केई आयुद्ध लिइ संभालि केई टाटर झंझण लेइ केई माथई टोपा देइ1 । ५०७ केई पहिरइ आंगि सनाह एहवा हई चालइ रणमाहि केई कुंत लीइ करि साझि केई असिवर नीकलइ माझि ५०८ केई सेल समारइ फिरी केई कडिहि बांधइ छुरी। केई कडिइ कटारी बांधि केई चाल्या तीरह सांधि केईतणइ नवि वात समझाइ केई सुहड ते साम्हा थाइ जिणि ए रूपणि हरी परांणि सो नर नही तुम्हारइ माणि सर्व क्षित्री हिव एकठा मिलु घटाटोप करि सांम्हा चल उछी बुद्धि म करु पाय हवय थयु मरणनु ठाय चाउरंग दव तव मिलिउ तुरंत हय-गय-रथ-पायक-संजुत्त सिरि वरछत्र ते सोवनवांन आकासि हुई चाल्यां विमान ___५१२ एहवां सयन चाल्यां सपरांण वाजा वाजइ ढोइ निसाण
घोडां खुरी उछली अति खेह जाणे गाजिउ भाद्रव-मेह __ ५१३ (सेनाना प्रस्थान समये अपशुकनो)
वामइ दिसा करंकइ काग वाट कापी जाइ कालु नाग महीयारी दाहिणी पडिहार दखिण दिसि बोलइ फेफार ५१४
५१०
1. टइ
Page #152
--------------------------------------------------------------------------
________________
५१६
५१७
५१८
चतुर्थ सर्ग वनमांहि दीसइ जीव असंख ध्वजागमि बइसइ ते पंखि सारथि कहइ सुणउ तुम्हे राउ एणइ सुकनि नवि दीजइ पाउ तउ केसव बोलइ तिणि ठाइ शकुन सो गणइ विवाहण जाइ
सारथिनइ समझावइ सोइ कर्मइ लिखिउ न टालइ कोइ (प्रद्युम्न द्वारा सेनानिर्माण)
चाल्या सुहड न मान्या सुण देखी सेन आकुलाणउ परदवण माता रूपणि घालि विमाणि पितातणी तव न करी कांणि प्रदिमनकुमरइ मनि बुधि धरी समरी विद्या सेनाकरी
जेहवउ तेहनु बल देखीयु तेहवउ आपण सेना कीयु (युद्धवर्णन)
बेहुं दल साम्हां मेलीइ सुभट साजि धनुष करि लीइ कोई वारू 1 लिइ करवाल जाणे जीभ पसारी काल मयगलसिउ मयगल रणि भिडइ रहवरस्यूं रहवर आथडइ राउत पायक वढइ पचारि पड्या ते ऊठी कइ पुकारि को हाकई कोइ हणइ कोई मारि मारि तिहां भणइ कोई भिडइ समरंगणि गाजि कोई कायर नासइ भाजि कोई करइ धनुष2 टंकार कोई असिवर करइ प्रहार कोई कहइ तूं जई रण गाहि कोई हाक दीइ रणमाहि देखी समरंगणि बोलइ राउ अर्जन भीम तुम्हारं ठाउ सहदे निकुल कहीइ तुझ पवरख आज देखाडु मुझ वली पचारि बोलइ हरिदेव दसहि दसार सुणउ वसदेव बलिभद्रकुमर ठाम तुम्हतणउ देखाडउ बल आज आपणउ कोपिउ भीमसेन लेई चडइ हाथि गदा लेई रणि भिडइ गयवर-सिरि सो करइ प्रहार भाजइ क्षित्री नही लगार
५२०
५२१
५२२
५२३
५२४
५२५
1. लिलिइ 3. देाडु
2. धधनुष 4. ठाम
Page #153
--------------------------------------------------------------------------
________________
५२६
५२७
प्रद्युम्नकुमार-चुपई सहदे हाथि लीइ हथीयार निकुल कुंत लेई करइ प्रहयार हलधर झझ न पूजइ कोइ हल आयुध जे हाथइ होइ यादव भिडइ सुहड वर वीर जे संग्रामइ सूरा धीर
दसदिशार नइ वसदेव भिडइ घणा सुहड रणमांहि पडइ (धराशायी बनेली यादवसेना)
प्रदिमनकुमर कोप मनि धरइ मायारूप झझ घणूं करइ भुंइ सुहड सयल रणि पड्या देखइ अमर विमाणहि। चड्या पाटर पाखर हयवर पडे2 त्रुटे छत्र जे रयणह जडे ठामि ठामि जे मयगल मत्त ते संग्रामि गया गयगत्त सेना झूझि पडी रणि जांमि विलखवदन हरि हूयु ताम हाहाकारु करइ तव कान्ह कोई वीर अछइ बलवान
५२८
५२
५३०
वस्तु
पडया यादव यादव पडया पंडव अतुल बल जिणि चालंति भुई थरहरइ ते सवि क्षत्री इणि जीया । कालरूप ए अवतरिउ
देखि वरवीर जेहनइ हाकि सुर-साथ कंपइ सबल साथ सहु कोइ जंपइ ए अचरिज महंत4 यादवकुल-क्षयंत
५३१
चुपई
फिरि फिरि सेना देखइ राय क्षित्रि पड्या न सूझइ ठाय मोती-रयणमाल जे जड़यां दीसइ छत्र ते बेटां पड्यां ___५३२ हयवर गयवर पड्या संजुत्त ठामि ठामि मोटा मयमत्त ठामिइ लोही वहइ असराल ठामि ठामि किलकिइ वेताल ५३३ रुधिर शोषीनइ करइ पोकार जिमनइ जाइ जणावी सार व्यंतर प्रेत चालु सहू कोइ लिउ ग्रास जिम त्रपता होइ ५३४ 1. निमाण 2. पड 3. जो 4. महांत 5. व्यातर
Page #154
--------------------------------------------------------------------------
________________
५३८
५३९
चतुर्थ सर्ग (युद्धसज्ज थता श्रीकृष्ण)
दीठी सेन पडी भुंइ जाम कोपारूढ कृष्ण ताम ततक्षणि हाथि लीइ करि चाउ अरीयणदल भांजु भडवाय ताउ कुमार मनि कोपइ चडिउ जाणे परबत खडहडिउ हालइ महीयलि सलकइ सेस तव संग्रामि चलिउ रायकेस ५३६ जव रणि चालिउ रथ आपणउ तव फरकिउ लोचन जीमणउ वली जीमणुं। आंगज करइ सारथि निसुणि स्युं स्यु सुख करइ ५३७ रणि संग्रामि सेनु सवि हणी वाली लेसु राणी रुखमिणी तु न ऊपजइ कोप सरीरि कारण स्यु कहीइ रणिधीर ततक्षण सारथि लागु कहण अचंभु कृष्ण एही कवण तुम हाकइ भाजइ अरि सामटा जिम केसरि गंधइ गजपटा तव बोलइ केसव वरवी वरवी निसुणि वयण तूं क्षत्री धीर तइ मुझ सेन सयल संहरिउ मुझ भांमिणि लेई सिउ करिउ __५४० पुन्यवंत तुं4 क्षित्री कोइ तुझ ऊपरि मुझ कोप न होइ
जी(?) जीवीदान मइ दीधू तोइ पाछी रूपणि आपु मोइ ५४१ (प्रद्युम्न द्वारा श्रीकृष्णनी वीरतानो उपहास) ।
तु हसी बोलइ परदवण इसी वात कहइ रणि कवण तुझ देखत मइ रूपणि हरी तुझ देखत सवि सेना पडी ५४२ जे तूं रणमांहि जीतिउ विगोय. तेह सिंउ हवइ साथ किम होइ। लाज न हुइ तुम्ह हरिदेव मुझकन्हि भामिनि मांगइ केव ५४३ मइ तू सुणिं झूझ आगलु हवइ मइ दीठउ ताहरु तलु कांई नु हुइ तुम्हारइ कीइ सेन पडी तुम्हे हारिउ हीइ ५४४ तु प्रदिमन हसी करि कहिउ तइ सवि कटक पडिउ सांसहिउ ताहरु मन मइ परखिउं आज तुझनइ पणि नही रूपणि काज ५४५ छोडी आस तइ परिगहतणी वली तइ छोडी ते रुखमिणी जाउ ताहरइ मनि किसी नही आहि पभणइ कुमर जीव लेई जाहि ५४६ 1. जामणु 2. सारदि 3. कारण 4. तं
Page #155
--------------------------------------------------------------------------
________________
प्रधुम्नकुमार-चुपई (कृष्ण-प्रद्युम्न-युद्ध)
मनि पछताणउ यादवराइ मइ एहि सिउं बोलिउ सदभाइ ए मूंहसिउ बोलिउ आकरु हवइ मारे जाइ जिम परु ५४७ ऊपनु कोप थई चिचि कांणि धनुष चडाविउ सारंगपाणि अर्धचंद्र! तिहि साधिउ बाण हवइ एहनुं देखू सपराण ५४८ सांघिउ धनुह दीठउ जाम कोपारूढ पजून हूउ ताम कुसुम-बांण मेलिहउ परदनण धणुहर भांजि गयु महमयण ५४९ हरिने चापह बेटे जिसिइ बीजं धनुष संभालिउ तिसिइ वली कुमरि सर दीनु छोडि उडी3 धनुष गयु गुण त्रोडि ५५० कोपारूढ कृष्ण तव थयु त्रीजु धनुष चडावी लीयु मेल्हइ बांण कुमर तुडि चडिउ तेहूं बांण त्रुटि धरि पडिउ ५५१ कृष्ण संभारइ धणहर तीन खिणिमइ कुमर लेइ सवि छीन हसि हसि वात कहइ परदवण तह समु नही क्षत्री कवण ५५२ कहिपहि सीखिउ पवरिख घणु मूहनइ सिउं कहिनइ गुर आपणु धणुह-बाण छीन्या तुम्हतणा तेऊ राखि न सक्या आपणा ५५३ तुझ पुरुषाक्रम दीठउ आज इणि पराणि किम भोगवइ राज वली कुमार बोलइ ते इम कंस जरासिंधु जीतु किम विलखवदन नारायण थयु मायारथ करीनइ गयु तिणि आरूढउ यादवराय हाथइ धनुष चडावी जाइ ५५५ अगनिर्वाण मेल्हिउ हरि जाम तेहनु ताप न सहाइ ताम अगनिवांण4 थायु प्रज्वलंति चिहुंदिसि झाल घण तेज करंति ५५६ कुमरतणू दल पाडूं जाइ अगनिझालि ते आकुला थाइ दाझइ हयवर गयवर घणा न्हासइ कटक पजूनहतणा ५५७ कोपारूढ थयु परदवण तेहनी हाक सह[इ] ते कवण पुप्फवात करि धणहर लीयु साथइ मेघबांण परठीयु 1. अद्धचंद्र 2. कुसम 3. उडि 4. अगनिवांण 5. परदियु
५५४
Page #156
--------------------------------------------------------------------------
________________
4G
चतुर्थ सर्ग मेघनाद घनघोर कति जल थल महीयलि नीर भरंति पाणी आगि उल्हाणी ताम यादवसयन वही जाइ गाम ५५९ रहवर छत्र जे दीसइ भला पाणी प्रवाही सयल वही वल्या हयग[य] वाहणि वहइ विसेस राय रांणा पाला पुलइ जेस ५६० तव पचारि बोलइ गोपाल कइ ए सुक-मंगलनी चाल नारायण मनि थयु संदेह किहां हूतु ए वरसइ मेह नारायण अचंभु करइ
मारुतबांण हाथिइ तव धरह मेल्हउ बांण वायर्नु! जाम नाठा मेघघटा सवि तांम वाई सयल सैन्य धडहडइ ऊडी छत्र महीमंडलि पडइ चाउरंग दल ऊडिउ ते जाइ हय गय रहवर माठू थाइ ५६३ तव पजून कोप मनि कीयु परबतबांण हाथि करि लीयु मेल्हउं बाण रणि जाइ वहिउ रुधि वायनइ2 आड रहिउ ५६४ कोपिउ द्वारिकांतणउ नरेस पजून पराक्रम दीठउ वसेस . . वज्र प्रहार करइ तव सोइ परबत फाटि खंडोखंडि होइ ५६५ देवनुबांण कुमरि हाथि लीयु नारायण सांम्हउ मूकीयु तव केसव मनि विसमु होइ एहनुं चरित्र न जाणइ कोइ ५६६ मइ हणि जीतु कंस पचारि जरासिंधु मइ घालिउ मारि मइ सुर-असुर साथि रण वहिउ एह गिरूयु जे रणि अडि रहिउ ५६७ तव धनुष नाखी गोपालि चंद्रहास करि लीयु संभालि वीज सरिखु झलकइ करवाल जाणे जीभ पसारी काल ५६८ जव ते खड्ग हाथि करि लीयु चंद्ररयण डावइ करि दीयु रथथी ऊतरि चाल्यां6 भड जांम त्रिणि खंडा अकुलाणां8 ताम ५६९ इंद्र चंद्र फणधर खल्या जाणे गिर-परबत टलटल्या कृष्ण कोपि रणि धायु10जांम रूपणि मनि आलोचइ ताम ५७० 1. थायन 2. वीयनइ3. वज्र 4. देवतु 5. जेणे 6. चल्या 7, खड़ 8, अकुलाण 9. जोणे 10. धायु
Page #157
--------------------------------------------------------------------------
________________
५७२
प्रधुम्नकुमार-चुपई बिहुं पवाडे माहरूं मरण जूझहि कांन्ह पडइ परदवण
नारद निसुणि एक मुझ वात हवडां एय करेसिइ घात (रणभूमिमां नारदन आगमन)
जव बिहु सुहड भिडइ पचारि वेगइ नारद जई निवारि रूपणि वयण सो मनमांहि धरइ विमानथी हरखिइ ऊतरइ रणि पजून-नारायण जिहां नारद जाइ संपतु तिहां हरि कुमर रथि दीधउ पाउ वाहइ कृष्ण कुमरनइ घाउ ५७३ नारदरिखि क्षण पहुतु जाइ बांह साहीनइ हरि रहइ
तव हसि नारद लागु' कहण कृष्ण सांभलु तुम्हे अम्ह वयण ५७४ ( श्रीकृष्ण अने प्रद्युम्ननो परस्पर परिचय)
कहु तुझसिउ वात बहुत एह परदवण तुम्हांरु पूत लही दिनि धूमकेत लेई गयु जिमसंवरि घरि मोटउ थयु एणइ जीतिउ सिंहरथ पचारि [पुण्यवंत ए देव मुरारि सोलह विद्या लाभह योग कनकमालसिउं हूयु वियोग पजूनकुमर गिरूयु वरवीर रणि संग्रामइ साहस धीर एह कुंमर पुरषाक्रम घणउ ए हवउ नंदन रूपणि तणउ ५७७ एतलइ कुमर रखि पासइ जाइ तेहसिउ वात कहइ समझाइ ए छइ भलु पिता तम्हतणउ जेहनु बल दोठउ अति घणउ तु प्रदिमन चलिउ तिणि ठाइ जाई लागु केसवपाइ तव नारायण उल्हसिऊ हीयु पजून ऊपाडि उछंगइ लीयु धन्य रुखमणि जे उदरइ धरिउ धन्य रयणि जे ए अवतरिउ
धन्य ठाम जिहि ए वृद्धि गयउ धन्य दिन आज मेलु थयु (नारद द्वारा नगरप्रवेशनो प्रस्ताव )
तु नारदरिखि बोलइ ईम चालु नयरइ7 कुसलहखीम कुमर पजन घरि करु प्रवेस नगरी उछव करुं असेस 1. रूंपणि 2. लांगु 3. जिमसवरि 4. संग्रांमइ 5. रूंपणि 6. ऊपांडि 7, नायरइ8. निगरी
५७६
Page #158
--------------------------------------------------------------------------
________________
चतुर्थ सर्ग नारायण मनि विसमइ थयु परिगहसयल झूझिणि गयु यादव मुगट पझ्या संग्रामि सोभा किम हूइ जातां गामि ५८२ नारदि कहिउ सुणु परदवण तू मोहिन संकेलइ मयण क्षत्री सुहड उठइ गुणवंत रणसंग्रामि जे बलवंत
५८३ छपनकोडि यादव बलचंद दसदिसार उठ्या प्रचंड
हय गय रहवर वलीऊ पांण ऊठ्या महीतलि पड्यां विमांणि ५८४ (प्रद्युम्न- आगमन अने नगरजनोनो आनंदोत्सव)
दूहा
५८५
कुमरप्रद्युमन देखि करि लेई उछंगइ चूंबीयु सफल जनम आज मुझ हूयु सेना सवि उठी करी
आणंदिउ हरि राऊ वलिउ निसाणे घाउ जि घरि आयु पुत्त आवी करइ सावत्त
५८६
चुपई
५८७
५८८
सेना सवि ऊठी घर जाम छपन कोडि घरि चाल्या ताम पजन आवइ नयर मझारि चडी आवासइ जोइ नारि कृष्ण-कुमर जव घरि आवीया सयल लोकनइ मनि भावीया गूडी ऊछली घरि घरि बारि कांमिणि गावइ मंगल च्यारि घरिइ वधावां आवइ बहू नगरलोक तिहां जोइ सह । विप्र ते च्यारि वेद ऊचरइ वरकांमिणि तिहां मंगल करइ पूर्णकलस सिरि लीइं समारि आगलइ थई चाली वरनारि नयरइ उछव करइ सवि जण जव नयणइं दीठऊ परदवण सिंहासणि बइसारिउ सोइ कुंकमतिलक करइ सहू कोइ दही द्रो सिरि अक्षत देइं मोती मांणिक थाल भरेय
५८९
५९०
1. परिग्रह
Page #159
--------------------------------------------------------------------------
________________
६.
( यमसंवरनुं द्वारिका - आगमन )
कुमरह सिरि आरती उतारि एतलइ मेघकूटनुं धणी
माणिक कंचणमाल संजुत्त पवनवेग विद्याधरराय
प्रद्युम्न कुमार - चुपई
( यमसंवर अने श्रीकृष्णं प्रथम रतिवामा जे कन्हइ कुमारि जिमसंवरि भेटिउ हरिराउ
तइ बालु पालिउ परदवण तव रूपणि बोलइ तिणि ठाय किमइ न ऊरण थाउं तुझ घणउ आविनइ करिउ ऊछाह
मिलन )
सतिभामा ते वातह सुणी सुणतां दसकु पडीयु पेटि सतिभामा कन्हइ आयु दूत कुमर तिहां आविउ मति घरी ( कुबजादासीनुं रूपपरावर्तन )
देई आसीसि चाली वरनारि संवरराजा कीरति घणी
कुबजादासी दीठी जिसइ कह रे ताहरु कांइ विरूप दासीनइ तव गुटिका दीघ सतिभामा कन्हइ आवी जिसिइ दासी पगि लागी जेतलइ स्वामिनि हूं ते कुबजादासि
1. भाख
द्वारिकनयरी आय पहुच जेहनी सेन न सुझइ ठाय
ते आणी द्वारिकांमझारि कृष्ण कहइ तुम्हे कीउ पसाउ
(प्रधुम्ननुं सिद्ध पुरुष रूपे सत्यभामा पासे गमन )
तुझ सम सुज[न] नही को कवण कनलमालइ लागी पाय
पुत्र भीख 1 तइ दीधी मुझ कुमरपजून थापिउ वीवाह
वदनि हूई आमणदूमणी विवाह पुत्रनउ न हूउ नेटि रुखमणित जणाविउ सूत सिधपुरुषनुं रूपह करी
सिधपुरुष बोलावी तिसइ तुम्ह भेटिइ होसइ सरूप रूप अनोपम तेहनूं कीध दासीनूं रूप दीठउ तिसइ राणी बोलावइ तेतलइ सिद्धपुरुष वांदिउ जई पासि
५९२
५९३
५९४
५९५
५९६
५९७
५९८
५९९
६००
६०१
Page #160
--------------------------------------------------------------------------
________________
६०२
चतुर्थ सर्ग तेणइ रूप अनोपम करिउ मा हरूं काज! इणीपरि सरिउं सतिभामा कहइ सुणि तूं दासि सिद्धपुरुष आणु मुझ पासि सिद्धपुरुष प्रति दासी भणइ घरि आवु सतिभामा तणइ सिद्धपुरुष तव आविउ हसी सतिभामा देखी उल्हसी । ६०३ सतिभामां जव लागी पाय सिद्धपुरुष कहइ मागु माय
तव हरखी सतिभामा नारि कहि स्वामी सुकिसंकट वारि ६०४ (प्रधुम्न द्वारा सत्यभामानी रूपविकृति )
माहरु रूप अनोपम करे जिम अधिक मुझ मानइ हरे सिद्ध कहइ सतिभामा सुणउ मूंडउ मस्तक तुम्हे आपणउ ६०५ मुहुंडइ मसि लगाडउ घणी मंत्र जपु तुम्हे मुझकन्हइ भणी स्वामी इम किम रूपह थाइ भोली मंत्रिइ कुरूप सवि जाइ2 ६०६ स्वामी तुम्हे करू पसाउ मूंडउ माथउ विहला थाउ तव ते सिद्धिइ सिर मुंडीयु मिसि लेई मुंडं खरडीयु उँ गडबडाय स्वाहा ए मंत्र सिद्धि साहिउ ए मोटउ तंत्र रही एकांति जपु ए जाप रूप अपूरव थाइ आप4 सतिभामा उरामांहि जई मंत्र जपइ एकमनी थई
एतलं करी सिद्ध ते गयु रुखमणिनइ तव आणंद थयु ६०९ (प्रद्युम्ननां लग्ननी तैयारी)
धरी लगन नइ जोसी गया यादव सवि रली[याय]त थया मंडप मंडाव्या तेहरइं ठांमि ठामि ते तोरण करइ । ६१० पटुलां बांध्यां विस्तारि कनककलस तिहां सोहइ बारि भोजन करीय ... ... . विधविध भात पकवानहतणी ६११ नुहंतरिवा आव्या सवि राइ रूपणिनइ मनि हर्ष न माइ मंडलीक जे पुहवि असेस आव्या घरि......[न] रेस ६१२ 1. काजाः 2. जाइ 3. सहिउ 4. आणूप
६०७
Page #161
--------------------------------------------------------------------------
________________
६.२
६१३
६१४
६१६
६१७
प्रद्युम्नकुमार-चुपई अंग बंग कलिंगहतणा द्वीपि समुद्रइ भूपह घणा लाट भोट गाजण कास्मीर चौड कान्हड नइ मालव कीर पूरव दक्षण [ग]जरदेस मेवात मारूयाडि मध्य वसेस द्रवड चवड कन्हडह तिलग सोरठदेस सोहइ अतिचंग गोडदेस उत्तरनइ मलबार एहवा सोल सहस उदार।
ए देस तणा जे मोटा राइ नहुँतरइ आया घणइ उछांइ (विवाहोत्सव)
संख-शबद मांगलिकह वाउ राय वालिउ निसाणे घाउ . भेर. तूर वाजइ असराल मुंहुंवडि वीणा आलवइ ताल विप्र वेद च्यारइ उचरइ घरि घरि कामिणि मंगल करइ बहु कलयल नगरी ऊछलिउ पजन-वीवाह पुन्यइ फलिउ रयणजडित छत्र सिरि वर धरइ कनकडंड चामर शिरि ढलइ
कणयमुगट सिरि उदय करंति जाणे सूरकिरण झलकति (सत्यभामागें केशमुंडन)
वरघोडइ बोली रूख मिणी सांभरी वात सतिभामातणी तेडवा गया कुमर ते घरइ सतिभामा दीठी इणिपरिद देखी कुमर हस्या हडहडी ए कुणि उपाय पाडी बापडी वयरी गयु विगोइ घणुं दुख कहूं केहनइ आपणूं सतिभामा मिसि धोई करी रूखमणितणइ घरिइ सांचरी सतिभामा तुम्हे बाई सुणउ पहिलु बोल बोलिउ ते घणउ हसमसि वात कहाइ घणी त बोलि रांणी रुखमिणी । त्रिणिखंड2 जव राजइ मुझ3 तउ सिरि केस उतारु तुझ केस ऊतारण लागी जाम केस पखइ सिर दीठं तांम रुखमिणी मूंड मूंडइ ते वली सुकि वगोई पूगी रली 1. धणः 2. खांडः 3. मझ
६१८
६
६२०
६२१
६२२
६२३
Page #162
--------------------------------------------------------------------------
________________
६.
६२४
६२५
६२६
चतुर्थ सर्ग सयल कुटुंब मनि हयु उछाहु कुमर प्रदिमनन]उ थयु वीवाहु यादव सवि रलीयायत थया गाई वाई घरि लेई गया थयु वीवाह गयु घरि लोग करइ राज बहु विलसइ भोग
देखी सतिभामा गहबरइ सुकि साल बहु परि इम करइ (भानुकुमारनो विवाह)
तु सतिभामा मांडिउ ऊपाय कहइ विजवेगा खेचर जाइ रयण संचइ पाटण कहवाइ रयणचूड तिहां निवसइ राय विजवेगु जई वीनवइ सेव सतिभामा हु मोकलिउ देव अम्हसिउ अति तुम्हे करु सनेह भानुकुमरनइ पुत्री देह सयलराय विद्याधर मिली द्वारिकांनगरी आवइ रली घणउ नगरमाहि करी उछाह भांनुकुमरनु हूउ विवाह मानिउ बोल कुटंबइ मिली खेचरराय ठामि पहुता वली संयंवरा लेइ द्वारिकां। जाइ मंडप मांड्यां वस्त्र आछाइ तोरण रोप्यां घरि घरि बारि कनककलस सोहइ सीहदूयारि सयल कुटंब .... .... .... भानुकुमरनु हूउ वीवाह तिहां ते राजा राजि करंति विवहपरइ ते भोग भोगवंति राजरिद्धि विलसइ प्रघमण ते समवडि न दीसइ कवण2
६२७
६२८
६२९
६३०
1. द्वारिका
2. अंतेः प्रद्युम्नवीवाहनो नाम चतुर्थः स्वर्गः
Page #163
--------------------------------------------------------------------------
________________
पंचम सर्ग
सांव-प्रद्युम्न-पाणिग्रहण
६३२
६३३
६३४
६३५
(सीमंधरस्वामी कथित भवान्तर)
पूर्व विदेह पुखलावती! जिहां पुंडरगिणीनगरी जे तिहां सीमंधर2 जिन तिहां छइ देव सुर नर अहनिसि सारइ सेव त्रिगढइ बइठा करइ वखाण बारइ परषदा सुणइ सुजांण एकइ देवइ वांणी सुणी पूछी वात भवांतरतणी पूर्व सहोदर स्वामी किहां केहनइ घरि ऊपनु जिहां भरहखित्त सोरठवरदेस . द्वारिकांनयरी कृष्ण नरेस बहु गुणवंतनइ सोभागिणी कृष्णतणी भार्या रुखमिणी तेहनइ उदरि आवी ऊपन प्रदिमनकुमर नाम संपन तेहनइ रूपि न पहुचइ कोइ कृष्णराय घरि विलसइ सोइ
सुणी वयणनइ प्रणमी पाय सुरवर ते देवलोकिइ जाइ (सत्यभामानी श्रीकृष्ण पासे पुत्रप्रार्थना)
कृष्ण गयु सत्यभामा घरिइं राणी दीठी शोकह भरइ तुम्हि कुणि दूहव्यां ए कारण भणु स्वामी एक वयण मुझ सुणु एक पुत्र छइ रुखमणितणु तेहनु पराक्रम सुणीय घणु
ए सरिखु पुत्र दिउ हिव तुम्हे जिम रुलीयायत थाउ4 अम्हे (कृष्णने दिव्यहारनी प्राप्ति)
कृष्ण कहइ हूं आपुं सही पौषधशाला आविउ वही करी उपवास देव ध्याईयु हरिणेगमेष देव आईयु 1. पुषलावतीः 2. सीमंधरि 3. नरयरीः 4. थांउं
६३६
६३७
६३८
Page #164
--------------------------------------------------------------------------
________________
६४०
पंचम सर्ग सुर प्रणमीनइ बोलइ इसिउं स्वामी तुम्ह जोईई छइ किसू हरि जंपइ पजूनह जिसु पुत्र एक मुझ आपु तिसु पुव सहोदर जे मुझतणु ते सनेह मुझ करतु घणु हवइ हूं देव हुयु अतिसार रयणजडित तिणि आपि तु हार ६४१ ... य हार जे पहिरइ सोइ तस घरि नंदन एहवु होइ इम कहीनइ सुर ठामई गयु पजन प्रतिइ हरि जाई कहिउ ६४२ पजन .... .... .... समझाइ पुत्र एक हूं आपु माइ
घणइ पुत्रि मुझ नथी काज तुझ एक पुत्रइ पाम्या राज ६४३ (प्रधुम्ननी युक्तिथी सत्यभामारूपे जांबनतीनी कृष्ण पासेथी हारप्राप्ति )
वली। कुमरनइ कह .... मिणी जंबवती छइ बहिनि मुझतणी निसुणि पुत्र तू तेहनइ दिउ हार जिम तुझ सरिखु होइ कुमार ६४४ तव प्रदिमन .... .... विचारि जंबवती2 तेडी नारि काममुद्रडी पहिरु माय सतिभामानइ रूपइ थाइ ६४५ सोल शंगारह पहिरी करी कु . . . . . . जाइ ते खरी जिहां बइठा श्रीकृष्ण मुरारि तिहां गई जांबवती नारि ६४६ देखी रूपनइ हरि हरखीयु जंबुवती तु मु . . . . . . रखीयु सतिभामा3 जाणी ते भार वक्षस्थलि ते घालिउ हार
६४७
६४८
(कृष्ण पासे सत्यभामान आगमन)
घाली हार आलिंगन करिउ तेहनइ उदरि देव अवतरिउ जंबवती गई घरि जिसिइ सतिभामा आवी ते तिसइ कृष्णइ मनिई विमासइ इसिउं कामइ तृपती न हुई ए किसुं स्त्रीनइ तृपति न हुइ किमइ बोलावी सतिभामा तिमइ कहइ रांणी सिउ आवी वली हजी न पहुती तुझ मन रली स्वामी पहिलं आवी नही एह बात मुझनइ सिउं कही 1. बलों 2. जवतीः 3. सेतिभामा. 4. रुली
६४९
६५०
Page #165
--------------------------------------------------------------------------
________________
प्रधुम्नकुमार-चुपई नारायण बुद्धि चितइ घणी नारी वंचिउ सही रुखमिणी
हार अहिनाणइ जाणिसु तेह सतिभामा भोगवी सनेह (सत्यभामा तथा जांबुवतीने त्यां पुत्रजन्म)
तेणइ समइ सोहम सुरदेव सुर घणा करइ तस सेव आऊखू नइ भव पूरु करिउ ते सतिभामा उरि अवतरिउ ६५२ बिहुँ रांणी घरि पुत्र जनमीया घणा महोछव कृष्णइ कीया। लक्षणवंत बेहु गुणि भरया स्वरूपइ जिसा अमर अवतरया ६५३ जांबवती पुत्र शांबकुमार सतिभामानइ सुभान सुत सार शांबकुमरनइ। हार पहिरावि कृष्ण अंकि म्हेल्हइ ते धावि ६५४ बेहं कुमर खरा सुपीयार एकइ दिनि लीधु अवतार
बेहूं वृद्धि हुया ससि भाइ बेहूं भणइ गुणिइ एक ठाइ ६५५ (सांबकुमार अने सुभानुकुमारनी द्यूतक्रीडा)
एक दिवसि बिइ जइ रमइ कोडि सुवन्न दीयु ते गमइ सांबकुमरि जीतिउ तिणि ठाय हारिउ सुभानकुमर घरि जाइ सतिभामा कहइ सुणउ कुमार कूकडा खेलावउ ते सार जेहनइ हारइ ते वलि दीइ दोइ दोइ कोडि जीपइ ते लीइ ६५७ तु कूकडा मुक्या मोकला ऊपराऊपरि वढइ आकला कुमर सुभानतणु गयु मोडि संबकुमरि जीती बे कोडि ६५८ घणउ खेलइ तिइं पाछइ कीयु संबकुमरि जीती धन लीयु
कुमर सुभाननइ आवी हारि विलखी थई3 सतिभामा नारि ६५९ (सुभानुकुमारना विवाह)
वली वात विमासी तिहा दूत मेलिहउ विद्याधर जिहा जइ दूतनइ वीनविउ राय सुभाननइ पुत्री दिउ तुम्हे आय ६६० विद्याधर मनि हूउ उछाह दीधी कुमरी कीयुं वीवाह कुमर सुभान विवाहिउ जांम तव रूपणि मनि चितइ ताम ६६१ 1, शाबकुमरः 2. सितिभामाः 3. थीइ
Page #166
--------------------------------------------------------------------------
________________
पंचम सर्ग
ur
दूत मोकलिउ घणइ उल्हासि आविउ रूपचंद्रनइ पासि स्वामी वात सुणउ मुझतणी हूं तुम्ह कन्हइ मेलिहउ रुखमिणी ६६२ संबकुमार कुमर परदवण तेह पवरख जाणइ सव कुण जिम अम्ह तुम्हसिउं वाधइ नेह बिहु कुमरनइ बेटी देह ६६३ सुणी वात रुखमीराय कहइ रुखमणि हजी कांई नवि लहइ यादववंसि पुत्र जे होइ तेहनइ बेटि! दिइ ते कोइ ६६४ कही वात दूत समझाइ तूं कहिजे रुखमणिनइ जाइ आगइ तइ पवाडु कीयु वात कहतां ते दूखइ हीयु ६६५ तइ सिसिपाल मराविउ सही तुझथी माहरी नाम अति गई हजी वयण कहइ तू एह बेटी किम दिउ सिउं सनेह सुणी क्यण विलखाणु दूत द्वारिकनयरी आय पहूत वात कही रुखमणिनइ सहू रुखमीराय न दिइ ते वह भाई रुखमणि प्रति एहवु कहिउं अम्हतुम्हमांहि किसुं सुख रहिउं
पहिलं काम तइ अँडु2 कीयु तुम्हनइ छोडि डूंबनइ दीयु ६६८ (मानभंग थयेली रुक्मिणीने प्रद्युम्न द्वारा सान्त्वन)
निसुणि वात विलखाणी वयणि दुखभरि अपातिइ3 नयणि मानभंग एणइ माहरु कीयु ते कहतां मुझ दूखइ हीयु अश्रूपाति दीठी रुखमिणी पूछी वात माइ आपणी कवण काजि मा तुम्हे दुख धरु तेय वयण वेगइ ऊचरु रूपचंदनी वात सवि कही ते वयण मुझ सालइ सही मइ जाणिउ मुझ भाई अछइ .... वात किम करी ते पछइ ६७१ निसुणि वयण परदवण रीसाइ हीन वचन तेणइ बोलिउं माइ
रूपचंदनइ जीपू पचारि छ. . . . इ पर' नारि ६७२ (साब-प्रद्युम्ननु कुंडिनपुर तरफ प्रस्थान : चांडाळवेशे वीणावादन)
पजूनइ चीतवी ते बुद्धि घणी समरी विद्या बहुरूपिणी सांव-पजनकुमर गहगह्या पवनवेगि कुंडन ... या
६७३ 1. बोटिः 2. भुईं 3. आंशुपातिइिः 4. अंपातिः 5. रूपचंदन्नी
६७०
Page #167
--------------------------------------------------------------------------
________________
प्रधुम्नकुमार-चुपई
६७७
डूबरूप बेहू जण थई चहुटामांहि आव्या ते वही पजन आलवणी करइ अपार सांबकुमर बीजी करइ सार ६७४ लोक मोह्या चहुटा मझारि वलि पहुता ते सीहदुयारि बहु परिवारसिउं दीठउ राउ पजून तिहां जाई करइ व्रम्हाउ (?) ६७५ ... कवित नाद छंद घणा प्रदिमन गाइ ते आपणा अवर गीत सवे परिहरइ यादवनी बहु कीरति करइ ६७६ यादवतणउ नाम ... यु सुणतां रूपचंद कोपीयु
घणां गीतनी जाणु सार किहां हूता आव्या वेकार ( रूपचंदने प्रद्युम्ने आपेलो पोतानो परिचय)
नयर द्वारामति कहीइ ठाउ तिहां छइ नारायण यदुराउ पटरांणी राणी रुखभिणी वारू सहोदरि जे तुम्हतणी तुम्ह प्रति रूपणि मोकलिउ दूत बलतु ते द्वारिका पहूत तुम्हे कहिउ ते कहिउं आय तिणि सहेटि अम्हे आव्या राय ६७९ बोल बोलिउ ते करु प्रमाण सुपरि सभाष न हुइ अप्रमाण
बोल पालि म धरिस संदेह बेहूं पुत्री अम्हनइ देह ६८० यतः असारे खलु संसारे वाचा सारं हि देहिनाम् ।
वाचा विचालिता येन सुकृतं तेन हारितम् ॥2 ३३
६७८
(रूपचंद साथे अथडामण)
वस्तु
सुणिय कोपिउ कोपिउ जाणे विस्वानर घृत ढलिउं प्राण जीव बोलत गयउ
रूपचंदराउ धुणवि सीस सवि अंग कंपिउ एह बोलतइ कवण जपिउ
1. आपणा 2. असारतस्य संसारस्य वाचा सारस्य देहिनां ।
वाचा विचलिता जेन सुक्रतं तेन हारितं ॥
Page #168
--------------------------------------------------------------------------
________________
एहनइ लेई बाहिरइ बांह साही वनमांहि धरु
पंचम सर्ग
सूली रोपु जाइ म ते जाइ पलाइ
६८१
चुपई
६८२
६८४
ग्रीव ग्रही तव करइ पुकार इंबडूब! अम्हे रह्या अपार हाथ आलवणि सींगालीयां । हाट चुहुटां सवि भरि गयां ततखिणि पुरुवर थई पुकार रूपचंदराइ जणावी सार . रहवर गयवर हय पल्हणाइ क्षण एक मांहि पहुता आय ६८३ संबकुमर परदवणह जिहां रूपचंदराय आविउ तिहां. एक तका(?) सवि एकइ साथ सींगां लेई आलवणि हाथ देखि डंब मनि चितइ राउ नीचजातिनइ किम करूं घाउ धनुष चडावि बाणि जव हण्या ते पांहि अवर मिल्यां चुं गणा ६८५ कोपारूढ पजून तव थयु धनुष चडावी ऊभु रहिउ
अगनिबांण जउ मूंकिउं जिसइ झूझत क्षत्री नाठा तिसइ ६८६ (रूपचंद अने तेनी कन्याने लई प्रधुम्ननुं द्वारिकागमन)
भागी सेन गयु भडवाउ बांधिउ मांमु गलइ देई पाउ लेई कन्यानइ रूपचंदराय द्वारिकांनयरी पहूता आय रूपराय लेई पहुतु तिहा नारायण बइठउ छइ जिहां
रूपचंद हरि दीठउ नयणि अरे राक सिउं बोलिउ वयणि () ६८८ (श्रीकृष्ण द्वारा रूपचंदनी मुक्ति)
तव हसि4 कृष्ण वात इम कही ए भाणेज तुम्हारु सही ए विद्याबल6 पवरख घणु जिणि जीतु पिता आपणु ६८९ तव हसि माधव कीयु पसाउ बांधिउ छोडिउ रुखमीराय रूपचंद पजूनकुमार
हसि आव्या रूपणि घरि बारि ६९० 1. डूंबड़बः 2. सीगाः 3. जाणावीः 4. हंसिः 5. वीतः 6. विद्यबल:
Page #169
--------------------------------------------------------------------------
________________
७०
( रूपचंद अने रुक्मिणीनुं मिलन )
भेटी जाइ बहिनि आपणी घइ आदरि तिहां भोजन करिउ भाइ बहिनि भाणेजा भली निसुणि वयणनइ हूयु उछाह
प्रद्युम्नकुमार - चुपई
1. जांइ 5. आनदः
( प्रद्युम्न तथा सांबकुमरनो विवाह
)
मंडप मांडयां घणइ मंडांणि छपन कोड यादव मनरुली संख भेर तिवलना नाद ढोल दमांमां नइ दडवडी बेहूं कुमर हथलेवा थया नयरी घरि घरि हूउ उछाह संब पजून परण्या पंचासि रुखमणि सवि वहूयर परवरी
घणु मोह धरिउ रुखमिणी सत्तरभक्ष भोजन परवरिउं 2 एक एक पाँहि गुणनिली 3 दीधी कन्या करइ वीवाह
ठामि ठामि ते तोरण जांणि बिहु कुमर परणाव्या 4 वली सोहइ रणतूर नफेरी साद मादल वाइ मंडपि चडी पाणिग्रहण करी घरि गया सतिभामा पेटि पडीयुं दाह कन्या सघली रूपनिवास करइ धर्म नित आनंद घ
2. परविरउं
4. परण्याव्याः
3. गुणनिलाः 6. अंते : सांब - प्रद्युमन पाणिग्रहण नाम्नो पंचम स्वर्ग
६९१
६९२
६९३
६९४
६९५
६९६.
Page #170
--------------------------------------------------------------------------
________________
षष्ठम सर्ग
नेमकुमार - दीक्षा - केवलज्ञान, प्रद्युम्न-दीक्षा - ज्ञान-निर्माण
( रूपचंदराजानुं कृष्ण द्वारा बहुमान )
रूपचंदराजानइ !
हाथी घोडा आपि करि
कुडनपुर 2 नगरइ जइ मनवंछित सुख भोगवइ
चउबारु प्रासाद तिहां प्रतिमा चुवीस जिनतणी सत्तरभेद पूजा करी अनेक तीरथ वंदि करि
( प्रद्युम्न द्वारा जिन चैत्यालयोनी वंदना )
इरछंतर ते कुमर दोइ तीरथि जइ यात्रा करइ
( नेमि वृत्तांत )
हवइ दूहा
कृष्णइ दीधूं मान
साथइ दीयु प्रधान
पालइ 3 आपणू राज
सारइ धरमह काज
एतलइ अवर कथांतर सुणइ परणवा आविउं तोरणबार जीव घणा बांध्या बहू बंधि स्वामी तुम्हारा गुरव काजि जीव वधी करिस्यु आहार धिग धिग ए वीवाह सिरइ 1. राजाननइ 2. कुंमडनपुरि 5. अवर 6. संबधि
समकित पामिउ सार अष्टापद उदार
सोवनमयी ऊत्संग
पूजइ नव नव अंगि
चाल्या अति उल्हासि आव्या द्वारिका पासि
चुपई
त्रिभुवनपति श्रीयादवतणउ नेमकुमारि तिहां सुणी पोकारि कहि रे सारथि किस संबंधि जीव आंणी घाल्या ए राजि धिंग धिग ए संसार असार कर्मबंध छूटसि कि परइ
3. पालाइ
4. समकित
६९७
६९८
६९९
७००
७०१
७०२
७०३
७०४
Page #171
--------------------------------------------------------------------------
________________
७२
प्रद्युम्न कुमार - चुपई
इम चीतवीनइ जीव छो [डिया ] जीव छूटा ते दिहं आसीस जीव मेल्हावी पाछु वलिउ स्वांमी मुझभणी करु पसाउ धिग धिग ए राजीमती नारि धिग धिग ए मुझ जीवितपणुं वीवाहइ मुझ नथी काज घर आवीन [दा] नह दीयुं वांदी कुमर द्वारिकां आइ सत्तरभक्ष भोजन ते सार सनसतपणा (?) धवलहर आवास अगर चंदन बहु परिमल वास (नेमिनाथनी केवळझान प्राप्ति )
सुख भोगवतां कालह गयु समोसरण तव रचिउं सुरिंदि आवइ वेमांनिक दस चंद आवइ वीस भुवनपतितणा आवइ गोरी नइ गोविंद आवइ छपन कोड युद मिली आवी अग्र महिषी वांदिवा आवी सवि गोपीनी नारि त्रिणि प्रदक्षण देई सार तिहां गोविंद कुरइ गुण थुति जय कंदर्प क्षयंकर देव जय कमठ दुष्ट क्षिउकरण 1. सजिमनुः
2. कुसमः
बंधनि बांध्या ते त्रोडिया भलइ सार कीधी जगदीस यादव सवि आवी टलवलिउ राजीमती परणीनइ जाउ धिग धिग ए परणवूं संसारि धिग धिग ए वीवाह जीमणू अम्हे लेसिउं संजिमनुं । राज नेमिजिनेश्वरि संजिम लीयु भोगविलास घणा विलसाइ अमृत भोजन करइ आहार दिन दिन करइ ते भोगविलास सरस तंबोल कुसुमगंध 2 जास
७०५
७०६
७०७
७०८
७०९
७१०
एइ अवसरि नेमि केवल थयु विचि बइठा श्री नेमजिणंद आवइ सूरिंज नइ विलि चंद आवइ बत्रीस वितरपति घणा आवइ कुमर चड़या गयंद आवइ बलिभद्र वहिल वहिल वली ७१३ परिवार सहित आवी तव सिवा सख मिल्या ते पोलि दूयारि जई वांधा श्रीनेमकुमार भलइ दीठी मइ एवडी जुति जय असुरासुर कीधा सेव
जय मुझ जनमि जनमि तूं सरण ७१६
७११
७१२
७१४
७१५
Page #172
--------------------------------------------------------------------------
________________
७१७
७१८
७१९
७२०
षष्ठम सर्ग तुम्ह दर्शनि हूं दुतर तरिउ तुम्ह दर्शनि संसार नवि फिरिउ करी स्तुति नइ हरखिउ राय नरकोडिमांहि बइठउ जाइ जिनवरवांणी मुहि नीसरइ सुर नर जीव सयल मनि धरइ कृष्ण कहइ ए द्वारापुरी स्वर्ग! समान अहीई अवतरी गढमांहि छपन कोडि गहइगहइ बहुत्तरि कोडि बाहरि ते रहइ
छप्नन्न कोडि यादव तेहतणा बीजा लोक वसइ तिहां घणा (द्वारिकानगरीनु भविष्य )
पूछी वात नारायण रहइ मननु सांसु श्रीजिन कहइ द्वारिकनयरी निश्चल होइ अम्हनइ तुम्हे कहु वलि सोइ श्रीजिन कहइ कृष्ण तुम्हे सुणउ नयरी हुसिइ उपद्रव घणु क्षय करसिइ द्वीपायन वली मदिरापांनथी कहइ केवली यादव सयल जलेसिइ इहां हरि-हलधर उगरिसिइ तिहां जराकुमरनइ बांणइ करी हरिनूं मरण हुसिइं इणपरि सुणी वात श्रीजिनवर पासि सयल द्वारिकां हुई विणास द्वीपायन तापस थई गयु जराकुमर वनवासी थयु नेम-जिनेस्वर वांदी करी नारायण नयरइ संचरी
मदिरा करतां वारिउ सहू मदिराभाठी फोडी बहू (यादवकुमारो द्वारा द्वैपायनमुनिनु अपमान)
एकदा कुमर खेलवा गया2 मध्यान्हइ ते तिरस्या थया नीर जोइवा जाइ जिसिइ मधु हेठि नीर दी ठ]उं तिसिइ मांहि महूडां पडीयां बहू आवी नीर आरोगिउं सहूं : मदिरापानि कुमर ऊछल्या द्वीपायननइ जाई मिल्या
झूटा साह्यां द्वीपायनतणां घटि मुठि नइ गडदा घणा मारइ कुमर निसंकहपणइ ध्यांनि छंडावित्रं ते आपणइ3 : 1. स्वH 2. गय्या 3. आपणइ
७२२
७२३
७२५
७२६
७२७
10.
Page #173
--------------------------------------------------------------------------
________________
७४.
तापस घणूं संता पिउ जिसिइ कुमरे शाप 2-वात सांभली विलखवदनि नगरीमाहि गया कहइ द्वीपायनि दीधु शाप 3 तव हरि - हलधर जाइ सहू हरि- हलधरनइ मेल्या बेय इम निसुणी नयरइ आवीया द्वीपायन 4 हूयु अग्निकुमार तप देखी देव पाछा वलइ नेमनाथ तिहां आव्या वली ( नेमजिनेश्वर पासे दीक्षा लेवा जालि मयालि उवयालि कुमार भानु सुभानु सांबह वली पटराणी आठइ हरितणी नेमतणी जिणि वाणी सुणी दसदिशार नइ राजन घणा दीक्षा लेवा सहू सांमहिउ विलखवदनि हरि बोलइ वयण कुण बुद्धि ऊपनी तुझ आज राजधुरिधर जेठउ पूत तुझ पवरख जाणइ सहू कोइ कालसंवर जाणइ [तु]झ हीयु तइ रूपणि हरी मुझतणी
( कृष्णने प्रधुम्न द्वारा वैराग्योपदेश
नारायणनां वयण सुणेय केहनां राजभोग घरबार 1. सपः
2. शार्पः
प्रद्युम्न कुमार - चुपई
भस्मशाप। दीधु ते तिसिइं मदिमाता तव टलीया वली हरि आगलि जई ऊभा रह्या स्वामी अम्हनइ लागुं पाप पाय लागी खमावइ बहू ऊगरइ जे वलि संजिम लेय बार वरस आंबिल तप कीया आवइ करिवा नयर संघार तपबलि नयर किमइ नवि बलइ लोक घणा चारित्र लिइ रली प्रद्युम्ननो प्रस्ताव )
पुरिससेण वीरसेणह सार संजिम लोयां मननी रली यादवतणी अनेकह जणी संजिम लेवा आवइ घणी लोक घणा ते नायरहतणा पजून कुंमरि जईनइ कहिउं हा मुहि पूत पूत परदवण द्वारिकानुं तूं भोगवि राज तुझ विद्याबल छइ बहूत एम पुत्र किम संजिम होइ हूं रणमांहि तइ विलखु कीयु तइ रणि सुहड कीया रेवणी
)
वलतु ऊतर पजूमन' देइ सुपांतर जेवु संसार
३. शार्पः
4. द्वीपयन
७२८
७२९
७३०
७३१
७३२
७३३
७३४
७३५
७३६
७३७
७३८
७३९
5. पजूनन
Page #174
--------------------------------------------------------------------------
________________
षष्ठम सर्ग
यतः
७४४
इस कायाका कुण भ सा जग जाइ सुपनंतर जइसा सर्व तिजइ जीव चलइ एकला वीछड्या पीछइ मिलन दुहेला ७४० केहनां धन पवरख बल घणां केहना बाप कुटुंब केहतणां
घडीमांहि जाइ विहडाइ आविई मरणि न सइ रहवाइ ७४१ (रुक्मिणीनो विलाप)
पुत्रवयण सुणि हरि विलखाइ वलि रूपणि [कं पती आइ करण कल्पांत2 करइ ते घणू किमहि पूत्र रहइ आपणउ
७४२ तइ संयम लेवा मन कीयु हिव किस देखि हरखइ मुझ हीयु किणपरि तूं भिक्षा मांगेस दुख घj ऊपाडन केस ७४३ वली ते रूपणि लागी कहण म लेसि संजिम पूत परदवण
मायतणा वयण निसुणेय कुमर प्रदिमन ऊत्तर देय (रुक्मिणीने प्रद्युम्न द्वारा वैराग्योपदेश)
लावन्य रूप शरीरह सार जिम रूठइ तु हूइ सहू छार म करि शरीर दुख बहूत केहनी माइ नइ केहना पूत अरहटमाल जिम ए संसार स्वर्ग4 पाताल पुहवि अवतार पूर्वजन्मनउ संबंध जांणि मिलइ जीवइ ठाणोठांणि
७४६ (प्रद्युम्न द्वारा दीक्षाग्रहण अने तपश्चर्या)
इम समझावी रुखमणि माय नेमजिन पासि पहूता आय नारायणनु इयु आदेस पंचमुठि ऊतार्या केस पुत्रि माइ महाव्रत उचर्या दस भेदे संजिम आदर्या बावीसइ परीसह सहइ पजूनऋषि मदन घणूं दहइ ७४८ चउथ छठ अठम तप करइ । श्रीजिन-आन्या हीयडइ धरइ मासखमण करइ ते घणां इम करतां करम खपइ आपणां ७४९ बारह भिखू-पडिमा वही खीणी देह हूई तव सही रयण चीतवइ अणसण करुं नेमजिन वांदी पूर्छ खलं ७५० 1. मिलएहेला 2. कल्पाप 3. कीयां 4. स्वर्गः
७४५
-
आटेस
७४७
Page #175
--------------------------------------------------------------------------
________________
प्रद्युम्नकुमार-चुपई प्रभात समइ पजून अणगार जई वांद्या श्रीनेमकुमार जिनवरि पजून बोलाविउ तांम आव्या तुम्हे संलेहण काम ७५१ सत्य सत्य वाणी जिनराज तुम्ह आदेसइ सारं काज करु वछ संलेहण खरी सेजगिरि सिहरि संचरि ७५२ हरखइ वंद्या नेमजिणंद वलि वंद्या गणहर मुनिवृंदि]
खमी खमावीनइ चालीया सिद्धिक्षेत्र सेचूँजि आवीया ७५३ (केवळज्ञाननी प्राप्ति)
शिला पूजि सांथारु करइ अणसण सुक्लधांन ते धरइ घातिककर्म सघलां क्षय करी अंतसमय केवलसिद्धि वरी केवलमहोछव देवे करिउ धन्य ए यादवकुलि अवतरिउ
धन्य ए नेमजिनेश्वर-सीस इंद्र सयल जस करइ जगीस ७५५ (ग्रंथकारनो परिचय)
विधिपक्षगछि धर्ममूर्तिसूरि विजयवंत2 ते गुण भरपूरि
कमलशेखर रहीया चउमासि मांडलि नयरइ घणइ उल्हासि ७५६ (रचनामिति)
संवत सोल छवीसइ करी दूहा चुपई हीयडइ धरी
काति सुदि नइ दिन त्रयोदसी कीधी चुपई मन उल्हसी (ग्रंथकारनी शुभकामना) वणारीस वेलराजतणा
सीस दोइ तेहनां गुंण घणा श्री पुण्यलब्धि उवझायां ईस बीजा लाभशेखर वणारीस तास सीसि रची चुपई सुणियो भवीयां इक मंन थई चरित्र प्रदिमनकुमारहता भणता सुणतां सुख घणूं ७५९
1. अवतारिउः 2. विजवंत 3. अंते : इति प्रद्युम्नचरित्रे रिचे। नेमकुमार दीक्षा केवलन्यान । प्रद्युम्नकुमार दीक्षान्यान निर्वाणनाम्नो षष्टम स्वर्गः समाप्त ॥ इति प्रद्युम्नकुमार चुपई समाप्त । स्वर्णगिरि मधे । कू. लालजीलिखित्तं ।
Page #176
--------------------------------------------------------------------------
________________
परिशिष्ट १
वा० कमलशेखर-कृत " नवतत्त्व चोपाई"
सरसति सामणि समरूं माय पास जिणेसर पणमुं पाय कहूं नवतत्त्व संखेपि विचार जिणि जाणि हुइ समकित सार चऊदभेद जीवह वखाणि अजीवतणा वली चऊदह जाणि पुण्यतणा छइ बइतालीस ब्यासी पाप तणा सजगीस भेद बइतालीस आश्रवतणा संवरना सतावन घणा बार भेद निज्जरना जांणि बंधतणा चउ भेद वखांणि मोक्षतणा नव भेदह भणु जीवतणा हिव भेदह सुणु सूखिम बादर एकेंदीया बि ति चुरिंदी नई संनीया असंनीया सातमा सुणु अपजता पजता गुणु आहार शरीर इंद्री विचित्त ऊसास वचन मन छ पजत्ति च्यारि पजत्ति सघला एकेंदि। पंच गणिजइ बि ति चुरिदि पंच पजत्ति असंनी जांणि संन्नि पचंदीनइ छइ आणि अधूरी करइ ते अपर्यापतु पूरी करइ ते पर्यापतु चऊदभेद ए जीवहतणा चेतनना लखिण छइ घणा इंद्री पांच बल त्रणि होइ सास ऊसास आऊटुं जोइ एकेंद्री सयल नई च्यारि विगलंदी छ सत अठ सारि असनि पंचंदी नइ नव जाण सयनीया नइ दस छइ प्राण एक आदि चऊदह लगि जांणि भेद जीवना हीयडइ आणि चऊदभेद अजीवह जेह एकमनां सांभलयो तेह धर्म अधर्म अनइं आकाश खंध देसप्रदेस विमासि एकेकाना त्रणि वणि भेद ए नव हुआ म करि मनि खेद धर्म ते जे चालिउ जाइ अधर्म एकइ ठामि रहाइ
१९ जह
११
Page #177
--------------------------------------------------------------------------
________________
नवतत्व चोपाई
१३
जिहां जिहां जातां माग ज थाइ आकाशास्तिकाय ते कहिवराइ समइ आदि सागरोपम जाणि दसमु प्रवर्तन काल वखाणि पुद्गलास्ति हिवइ कहीइ तेय पूरण-गलण-सभाव छइ जेय च्यार भेद पुद्गलना हूया खंध देस प्रदेस परिमाणआ खंध ते आखु कहिवाइ ऊणेरु ते देसह थाइ तेह थकी अति थोडु होइ प्रदेस भेद तेह तूं जोइ एक खंडथी बि नवि थाइ चउथु भेद परमाणु' कहवाइ पुद्गलास्ति वलि कहीइ जेय च्यारसई ब्यासी भेदह तेय अजीवतणा चऊद भेद हुआ पुण्यतत्त्वि बयतालीस जूया साता सुख कहीइ जेतलं देव-मनुष्य-तिरि-आऊटुं भलं सुरनरगति आनुपूर्वी भली अदारिक वैक्रय गुणनिली देव नारकी वैक्रय होइ बीजा जीव अदारिक जोइ आहारक शरीर चऊदपूरवी करइ तेजस कार्मण सवि जीव धरइ पंचशरीर कह्यां ए अंगि प्रथम त्रिहुंना2 अंगोपांग पंचेंद्रीपणुं लहइ जे सार वरण सेत रत्त पीत उदार गंध अपूरव हुइ जेय मधुर खट्ट कषाय रस तेय हलूउ सुंहाल चीगटु
ऊहनु फरिस रूडु सामटु वज्र रिखभ नाराच संघयण समचतुश्र संठाणह जेण वज्र कहि जइ खीली होइ रिखभ अरथ पाटु ते जोइ नाराच बिहुँ पासे आंकुडा समचुरस संठाणह वडा त्रस बादर थिर प्रत्येक नाम पर्याप्ति आदेय ज ताम सुभग नाम सुभ रूडु तेह सुसर नाम जस हुइ जेह तीर्थंकर निर्माणह नाम अगुरुलघु आतप अभिराम उद्योत पराघात सुभ सास सुभगति गोत्र उच्चेरह तास पुण्यतणा बयतालीस ह्या पापतणा ब्यासी जूजया मतिन्यान बीजुं श्रुतन्यान अवधिन्यान मनपर्यवन्यान 1. परिमांण 2. तिहुँना
Page #178
--------------------------------------------------------------------------
________________
केवलन्यान पंचमुं होइ चख्य अचख्य अवधि दर्शन निद्रा सुखदं जागइ ते जाणि • प्रचला प्रचला थीणधीय क्रोध मांन माया नई लोभ पचखाण संज्वलणा च्यारि वेद पुरुष स्त्री नपुंसका भय दुगंछा नारकी आय एकेंदी बेंदी होइ च्यारिजाति ए पापह तणी
साधारण अथिर असुभ अनादेय अजसपणुं
उपघात असुभवरण 2 अशुभरस विण फरिसचउ
परिशिष्ट
नारच अरधनाराचह होइ निग्रोध सादि संठाणह भणु नीच गोत्र वीर्या अंतराय भेद पापना व्यासी हुआ इंद्री पांच कषाय च्यार पंचवीस क्रीया मइ सूत्रि सुणी परतावणी प्राणघातकी परिगह मिछितदिठ पुठकी सामंत आणवण वेयारणी साथी समदाई कीया
1. आपघात
2. अनुभ
ए पांचइनां आवरण जोइ केवल दर्शननां आवर्ण निद्रा निद्रा प्रचला मांणि मिछित असाता वेदनी कहीय अनंतानबंध अपचखाणी थोभ च्यारि चउक सोलह ए सारि हासुं रति अरति शोका तिर निस्य गति आनुपूरवी थाय तेंदी चुरेंदी जोइ
थावर सूखिम अपजत सुणी
दोहा
दोभाग दुस्वर जाणि विरूई कुगति वखाणि
किन्ह नील दुगंध रिखभनाराचह खंध
चुपई
कीलक छेवढं संघयण जोय वामण कुबजक हुंडकपणुं दान लाभ भोग उपभोग थाइ कहूं आश्रव बइतालीस जूया अव्रति पांच त्रणि योग विचारी काई अहिगरण परद्वेषणी आरंभी अपचखाण माइकी कर्मबंध कीजइ पडुचकी
नीसथी यंत्रई नांखणी सावद्य करावइ ते प्रयोगीया 3. अपभोग 4. सहथी
७९
२५
२६
२७
२८
२९
३०
३१
३२
३३
३४
३५
३६
Page #179
--------------------------------------------------------------------------
________________
नवतस्व चोपाई
अवधि वस्तला जइ मेल्हीइ अनाभोग क्रीया ते कही प्रेमक्रीया द्वेषकी होइ ए आश्रवना बइतालीस सामाइक छेदोपठाइ यथाख्यात पांचभु वली सीत उष्ण तृषानइ2 खुधा अस्त्रीचरीया सिज्ज निसेय आक्रोस रोग सकार त्रिणफास अन्यान समकित हुइ जेह जितीधर्म दस भेदे कहुं विणय अजव मदव तप सोय भावण बार कहुं संखेव विरगत भव असूच्य सही निजरण धर्म बोधि भावण बार इर्या भाषा एषणा सही त्रिणि गुपति मन वचनह काय कमलशेखर कहइ संवर करु अणसण तप नइ ऊणोदरी रसत्याग ते आंबिल होइ संलीनइ इंद्री संवरु प्रायछित्त दस भेदि आलोइ । सिज्जाय पांच प्रकारे कही काउसग कीजइ एक ठामि बार भेद निज्जरना हुआ न्यानावरणी पंच प्रकार
1. अरीवही 2. त्रिषा
गमनागम नजिक कीजीइ अनवकांक्षिणी जाणु सही इरीवही। पंचवीसमी जोइ संवरि सतावन्न कहीसि परिहारविशुद्ध सूखिमसंपराय चारित्र पांच कह्यां केवली डांस अचेल अरति ए द्विधि याचन्या मल वध कहेय । अलाभ प्रज्ञा दुइ जास। ऊपना खमइ परीसह तेह संयम सत्य क्षिमा गुण लहु अकिंचणपणुं ब्रह्मव्रत' होय अध्रुव असरण एकत हेव आश्रव लोकह सवर कही पंचसमिति4 कहीइ उदार आदान पारिठावणी कही संवरि सतावन ए थाइ । निज्जर बारे भेदे खरु व्रति संखेप निवी ते धरी कायकिलेस संलीनह जोय छ भेदे बाहिय तप धरु विनय यावच दस भेद जोय ध्यान ध्याईइ अति गहगही अभ्यंतर तप ए कह्या सामि कहूं चु भेद बंधना जुआ दरसनावरणी नवभेद सार 3. ब्रहमवत 4. पंचसमति
४६
Page #180
--------------------------------------------------------------------------
________________
परिशिष्ट-२ वेदनी बिहु अठवीस मोहकर्म आयकर्म चिहु भेदे शर्म नामकर्म तेडोत्तर जाणि गोत्रकर्म बिहु भेदे मांणि अंतरायना पांचइ भेय आठकर्मनी प्रकृति। एय अठावनसु सघली थाइ नरनइ एकसुवीस बधाइ एकसुसतर तियेच बंध बिडोत्तरसउ देवह बंध एकोतर सउ नारिक तणी पकृति बंध ए चिहुंनी भणी सत्तरी कोडाकोडि मोहिनी नामगोत्र थिति वीस एहनी च्यार कर्मनी त्रीस कोडाकोडी आऊखु तेत्रीस सागर जोडि आऊखु आठह कर्मह तणु थितिबंध ते सूत्रई भणिउं अनभाग तेहज रस जांणि प्रदेसदलना संचय आणि च्यारि भेद बंध तणा भण्या मोक्षतणा नवभेदह सुण्या सतपद परुवण पहिलु तेय . द्रव्य प्रमाण बीजु निसुणेय खेत्र त्रीजु फरसना चउ जांणि काल पांचमु हीअडइ आंणि अंतर छठउ भाग सातमु भावसिद्ध कहीइ आठमुं अल्पबहुत्व नव, होइ मोक्षतणा नव भेदह जोइ सतपद परुवण कहीइ जेय पंचेंद्रीनइ मोक्ष कहेय नरगति त्रस क्षायक समकित्त केवलन्यान क्षायक चारित्त केवल दर्शन दो उपयोग सेषपदइ नहु मोक्ष योग द्रव्य सिद्ध अनंता कह्या लोकभागि असंख्यइं रह्या अधिक फरसना सिद्धहतणी सिद्ध आय अनंता घणी अंतर सिद्ध सिद्धनई नही नवि आबाधा सुखीया सही निगोद एकना जीवह घणा तेहनइ अनंतभागि सिद्धितणा भाव क्षायक पारणामिक होइ नपुंसक सिद्ध थोडा जोइ तेह थकी स्त्री सिद्ध संख्यात अठोतर सुपुरुष विख्यात 1. प्रत्तति 2. खंध 3. अपयोग
11
Page #181
--------------------------------------------------------------------------
________________
नवतस्त्र चोपाई एक समइ एतला सिद्ध थाइ भाव अनंतर थोडा थाइ परंपरा अनंत गुण सिद्ध तेहज अल्पबहुत्व प्रसिद्ध नवभेद ए मोक्षतणा जाणंता हुइ। गुण घणा भावि करी सदहि नवतत्त्व आपण मांनइ हुइ समकित्व अंतरमहूरत समकित धरइ ते नर अरधुं पुद्गल करइ वाचक कमलशेखर इम कहइ गणिइ भविइ(?) सिद्ध पदवी लहइ ६४ विधिपक्षि गछि ए उदयु भाण श्री धर्ममूर्तिसूरि सुजाण तास पसाइं लहीया भेय बिसइ छिहत्तरी हुआ तेअ संवत सोल नवोत्तर वरसि सूरति आसू त्रितीया दिवसि रची चुपई सोहामणी भणतां गणतां हुइ बुद्धि घणी2
1. हइ 2. अंते : इतिश्री नवतत्त्व चउपई संपूर्ण । पं. रविचंद्र लखित्त साधवी गंगाई पठनार्थ । लेखक पाठकयो सुभं भुवः ।
Page #182
--------------------------------------------------------------------------
________________
परिशिष्ट-२ वा० कमलशेखर-कृत “सामायिके बत्रीश दोषनो भास"
[ वा. कमलशेखरनी उपर्युक्त कृतिनी, एक प्रत भारतीय विद्या भवन, चोपाटी रोड, मुंबई -७ ना हस्तप्रतना भंडारमाथी. अने बीजी प्रत श्री अनंतनाथजी दहेरासर, भातबजार, मुंबई-९ ना हस्तप्रतना भंडारमांथी, अम कुले बे प्रतो मने मळी छे. त्यां तेमनो अनुक्रमे क्रमांक न २५२/३१-३२ अने नं. २४०४ छे. प्रथम भारतीय विद्या भवनवाळी प्रत संपूर्ण छे, ज्यारे बीजी अनतनाथजीना दहेरासरवाळी प्रतनां बे पानां मळतां नथी, अने त्रीजा पाना पर उपर्युक्त कृति तेनी ६ ही कडीथी शरू थाय छे. आम बीजी प्रतमा प्रथमनी पांच कडीओ मळती नथी. नीचे जे कृति ग्रन्थस्थ करी छे, ते भारतीय विद्या भवनवाळी हस्तप्रतना आधारे करेली छे अने बीजी प्रतमांथी मळता महत्त्वना पाठांतरो नीचे फूटनोटमां नोध्या छे. जोडणी मूळ हस्तप्रतनी ज राखी छे.
(वीर जिणंद समोसर्याजी - ओ ढाल)
समरसि भरि समता करउ जी, छंडी सयल आरंभ, उभयकाल तुम्हे आदरउ जी, मूकी मन नउ दंभ रे ।१। जीवडा बत्रीस दोष निवारि, करिने सामायक सार रे - जीव० जिम पामउ भव पार रे जी,
।२। आंचली ॥ पहिलउ दोष ए पालठी जी, तिजीइ च्यारि प्रकारि, पग हेठा पग ऊपरिई जी, वस्त्र हाथ परि थाइ रे ।३। जीव० बीजउ दोष आसण तणउ रे, आघउ पाछउ थाइ, दृष्टि चपल श्रीजउ सुणउ जी, एकइ ठामि न रहाइ रे ।४। जीव० दोष चउथइ काई करइ जी, सावद्य घर व्यापार, पंचम थांभादिक तणउ जी, ऊठीगण लिइ सार रे ।५। अंग उवंग संकोचनइ जी, राखइ छठउ प्रमादि, सयरइं आलस मोडता जी, सत्तम दोषह छांडि रे ।६। जीव० आठमइ2 पग हाथ आंगुली जी करडक करइ असार, नवमइ सयर'तणी मली जी, ऊतारइ निरधार रे ।७। जीव० दसम दोष खाजि खणइ जी, वंछइ वीसामण अग्यारिक निद्रा6 प्रमादह जे करइ जी, दोष कायाना बार रे ।८। जीव० ___ 1. छठइ 2. अठमि 3. सयरि 4. खाजज 5. अगारि 6. नीद
Page #183
--------------------------------------------------------------------------
________________
सामायिके बत्रीश दोषनी भास
पढम दोष क्यणह तणउ जी, बोलइ कुवचन बोल, बीजउl सहसा कारि सुणउजी, अणविमासिउं बोलइ रे ।९ जीव० राग नाद आलति करइ जी, जीजउ लोडण दोष, आपछंदइ चउथइ चवइ जी, इम करइ वयण पोष रे ।१०। जीव० सूत्र संखेपइ ऊचरइ जी, पंचम दोष अपार, छठइ दोषिइ कलह करइ जी, मांडइ राडि3 असार रे ।११। जीव० सातमइ विकथा करइ जी, राजादिक सुविचार, आठमइ4 हासू अति हसइ जी, दांत काढइ घण भारि रे ।१२। जीव० नवमइ सीध्र ऊतावलू जी,5 सूत्र पतावी जांइ, दसमइ दोष हिवा सांभलऊजी, कहइ तु आवि जाइ रे ।१३। जीव० दोष वचनना दस ह्या जी, मनना दस कहुं हेव, मन अविवेक पहिलइ हुया जी, सामाइक सखेव रे ।१४। जीव० जस कीरति वंछइ बीजइ जी, चितइ मनह मझारि, धन्नलाभ हुइ त्रीजइ जी, इम मन9 दोष सभारि रे ।१५। जीव० चउथउ दोषह मनतणउ जी, गरव आणइ अपार, दोष पांचमइ 10 बीहतउ जी, सामाइक करइ छार रे ।१६। जीव० छठइ दोषई मनि धरइ जी, नव नीयाणा वात, सत्तम संसय अणसरइ जी, नवि जाणइ धर्म वात रे।। ।१७। जीव० अठमदोष।2 ते जाणीइ जी, रोसई सामाइक थाइ, नवमउ इणिपरि भावीइ जी, विनय रहित कराइ रे ।१८। जीव० दसमउ दोषह मनतणउ जी, भगति सहित नवि होइ बार दस दस इम गिणउ जी, काय वयण मन जोइ रे ।१९। जीव० कमलशेखर वाचक कहइ जी, समता करउ रे सुजाण, दोष बत्रीसइ परिहरइ जी, ते पामइ सिवठाण 3 रे। ।२०। जीव०
(
)
1. मूळ प्रतमां “त्रीजउ" छे. 2. चुथु 3. राडिमांडि 4 अठमि 5. जीने बदले "रे" 6 मूळ प्रतमां "दोसमइ” छे. 7. हिवइ 8. आवज 9. मनि 10. पंचमि 11. न जाणइ धर्मह वात रे 12. अठमि दोषि 13. ठाम 14. अंते : इति श्री सामायिके बत्रीस दोष भास संपूर्णः ॥
Page #184
--------------------------------------------------------------------------
________________
"प्रद्युम्नकुमार - चुपई” अन्तर्गत महत्त्वना शब्दोनी सूची अने नोंध
वा. कमलशेखर-कृत "प्रद्युम्न कुमार चुपई” मांथी केटलाक असामान्य अने कूट लागता शब्दोनी तेना अर्थ साथे अहीं यादी आपी छे. पहेलां महत्त्वनो शब्द, त्यारबाद जे कडीमां ते प्रथम बार प्राप्त थतो होय तेनो संख्यांक, त्यारबाद तेनो अर्थ अने पछी ते शब्दनी, जरूर होय त्यां, व्युत्पत्ति के तेनो अवान्तर क्रम दर्शाव्यो छे, थोडाक शब्दोना अर्थ स्पष्ट नथी त्यां तेनी बाजुमां प्रश्नार्थ मूकेलो छे. कोईक ठेकाणे शब्दनो चोक्कस अर्थ प्राप्त न थतां तेना संदर्भने अनुलक्षीने अर्थ आपवानो प्रयास करेलो छे. कृतिमां ठेर ठेर वपरायेला एकना एक शब्दने, जो तेना अर्थमां फेर न पडतो होय तो, जे कडीमां ते प्रथम वार प्राप्त थतो होय तेनो ज मात्र संख्यांक आपीने, मूकवानुं स्वीकार्य छे. जो एनो जुदो अर्थ थतो होय तो तेनो कडीक्रम दर्शावी तेनो जुदो अर्थ आप्यो छे.
कोई शब्दनी सविस्तर नोंध माटे कोई पुस्तकनो के लेखनो उल्लेख कर्यो होय तो मात्र कर्ता के संपादक नाम नीचे पादटोपमां आपेलुं छे, ज्यारे ते पुस्तक विषेनी इतर माहिती संदर्भग्रन्थोनी सूचिमां आपेली छे.
अ. गु. - अर्वाचीन गुजराती अप. - अपभ्रंश
अर. अरबी
इ. - इत्यादि
जू गु.
जूनी गुजराती अखूटइ - ३२१ आयुष्य के जीवनकाळ खूटया वगरनुं मृत्यु
१.
२.
संक्षेपोनी समज नीचे प्रमाणे छेः
प्रा.
प्राकृत
T. -
पृष्ठांक
(जुओ "अनुशीलनो" पृ. ९६-९७ ) अचरिज - ५३१ अचरज, आश्चर्य [सं. आश्चर्य - प्रा. अच्छारिय ] अचंभु - २५८ घणुं आश्चर्यजनक [सं. अत्यद्भुत = प्रा. अच्चन्भुय ] अणसण - २१२ आहारत्याग, उपवास [ सं . अनशन ]
अधाशण - ४२० अर्धासन, उभडक बेसवु
अपछर ४९ अप्सरा
• अल्यावि - ४१९८ अलाववुं, अलावी
-
-
असराल ५३३ - पुष्कळ, अत्यंत, मोटु (जुओ"
अनुशीलनो" पृ. ९८; "प्राचीन फागु संग्रह'
. २१५
पृ. २४२) अहवि - ३९७ सौभाग्यवती स्त्री, अविधवा [ सं अविधवा = प्रा. अविहवा, अविहव] अनाणि ४५ घाणी, निशानी [सं. अभिज्ञान=प्रा. अहिण्णाण ]
अंतेउर - ३६ राणीवास (सं. अंतःपुर = प्रा. अतेउर)
फा. - फारसी
भ. गो. मं- भगवद् गोमंडल - शब्दकोश सं. - संस्कृत
-
-
"अनुशीलनो" - कर्ता डॉ. हरिवल्लभ भायाणी.
“प्राचीन फागु- संग्रह" संपा. डॉ. भोगीलाल ज. सांडेसरा तथा सोमाभाई धू. पारेख, भावृत्ति बीजी,
Page #185
--------------------------------------------------------------------------
________________
८६
शब्दसूची
अंदोह • ६६ विमासण आकारण • ४१४ नोतलं, तेडु, कहेण, संदेशो आखडी-४०६ ठोकर खाईने पडवु. स. आस्खलित आखा - ३४८ (१) आखा पाणी - ४१४ चोखा अने पाणी (सं. अक्षत = प्रा. अक्खय) आघु -२७५ आगळ (जू. गु. अग्गहउ) आछाई - ६२९ आच्छादन करीने (सं. आच्छादित) आफरिउ -४७५ आफरो चडवो आमणदूमणी - ५९७ दुःखी, सचिंत (सं. दुर्मनस् = प्रा. दुम्मण) आमान - ४१८ आमान्न, "ब्राह्मणने अपातुं काचुं अनाज, सीधुं" आरुहिउ -५०३ आरोहण कर्यु, चड्यो आलव- ६१६ आलाप करवो, गाबु
सिं. आलपू = प्रा. आल] आलवणी - ६७४ वीणा (सं. आलापिनी = अप. आलवणी) आलीगारु - ३९६ अटकचाळु, तोफानी आलीमाली - २२० लीलुंछम, फळद्रुप. [अ. गु. आलालीली] आलू - १७४ लीलु, भोर्नु, (सं. आई = प्रा. अल्ल) आहि - ३५१ बळ, हिंमत, (जुओ "कान्हडदेप्रबंध" - खंड २जो. कडी १५२
"साहस प्रभावि एतली आहि, राणी पइठी जमहर माही") उगाल - ८६ पाननो चाबेलो कचो उछाई - ६१५ उत्साहही(१) उझल - ४४९ मोझल, पडदो, बुरखो उतलीबल - २६३ "अतलीबल", "अतुल्य बळबाळो" [से. अतुलित + बल]
(जुओः सिंहासनबत्रीशी' वार्ता १९मी, कडी ९५ "ढांढा अतलीबल परमां माठ"
तथा कडी ७१६: "अतुलीबल ह आप".) उबकी - ४२७ ऊलटीथी उमाहलं - ९४ आतुर, उत्सुक (सं. उन्माथ = प्रा. उम्माह) (जुओ "पउमचरिउ' 'नी
_शन्दसूचि पृ. ९.) उरी - ६०९ ओरडा, कोठडी (सं. अपवरक = प्रा. आअरय, उअरय) उल्लव - ५५९ बुझावg (अ. गु. आल्हवq) (देश्य : उल्हव ) उवज्झाय - ७५८ उपाध्याय, जैन साधुनी एक पदवी (सं. उपाध्याय = प्रा. उवज्झाय)
"कान्हडदेप्रबंध - कर्ता कवि पद्मनाभ, संपा. के. बी. व्यास. "सिंहासन बत्रीशी' कर्ता शामळ भट्ट, संपा. डो. हरिवल्लभ भायाणी. "पउम-चरिउ" कर्ता स्वयंभूदेव, संपा. डो. हरिवल्लभ भायाणी,
Page #186
--------------------------------------------------------------------------
________________
प्रद्युम्नकुमार-चुपई
८७ उसरि - २३९ पाछा हठीने (जू. गु. मां उसर पाछा हठवु) (जुओः “विमलप्रबंध"
खंड १लो, कडी ७९, “एक भणइ वरि मारूं, मरूं, पणि हूं पाछउ नवि उसरं" (सं.
उत् + स = प्रा. ऊसर) (सं. अप + सु = प्रा. भोसर) ऊदाल - ३५५ बलात्कारे पडावी लेवु - (सं. उदालित - प्रा. उद्दालिअ) ऊपायु- ४६३ उत्पन्न कयु (से. उत्पादित = प्रा. उप्पाइय) ऊरण - ५९६ ऋणमुक्त (सं. उद् + ऋण) ऊवट - ३५४ आडो रस्तो [ सं. उद्वर्मन् = पालि अने प्रा. उवह ] "उबट" शब्दमां
सं. वर्मन् अन्तर्गत छे ए कालक्रमे भुलाई गयु, परिणामे "उवटवाटि" (कान्हादेप्रबंध,
खंड १, कडी ४६) जेवा प्रयोग पण मळे छे. कमठ – ७१६ काम क्रोध, मोह, मान, माया, लोभ ई. आठ कर्मनो समूह (सं. कर्म +
अष्ट) करका - ५१४ ककळg (कागडानु) (8) कलयल - ६१७ कोलाहल कंदल - १५९ वादविवाद, युद्ध, लडाई काती - ७५७ हिन्दुओना वर्षना प्रथम महिनो - कार्तिक (स. कार्तिक - प्रा. कशिय
जू गु. काती) कारटियो -४७६ मरनारना अगियारमाने दिवसे करवामां आवती क्रिया करावनार ब्राह्मण
[सं. "करट", देश्य करट्ट ] काणि - १२० शरम (देश्य) किलकइ - '५३३ किलकारी करवी (वेताळ इ. नो अवाज) कीर - ६१३ देशविशेष कुतिग - १५९ कुतूहल - नवाई (सं. कौतुक) कू कू इ- ४३३ कू कू एम अवाज करवो - क (४१८) (३०७) कूकूड
(३०६) (से. कुक्कवाद) केता - ३२८ केटला कोसीस - १० कोट उपरनो कांगरो (से. कपिशीर्षक) कोह - ३३८ क्रोध खडहडिउ - ५३६ खखडी पड्यो, तूटी पड्यो खंधार - १७ सैन्यनो पडाव, छावणी, शिबिर (सं. स्कन्धावार) खेह -६५ धूळ, रज गमइ - ६५६ गुमावी, हारी, (१) गयगत्त -५२९ गजगात्र (१) गरढउ - ३७३ घरडा, वृद्ध गहबरइ - ६२५ गभरावा लागी गंजिउ -५०३ गर्यो
Page #187
--------------------------------------------------------------------------
________________
८
शब्दसूची
गाह -५२२ अवगाहन करवू गिरि पडिउ - ४१० पडी गयो (सरखावो हिन्दी- गिरना-पडवू) गिरूयु - ५६७ गरवो गुड - ३१४ हाथीने कवच इत्यादिथी सज्ज करवो "गडउ" - ६३, गुडई - ३१४ गुरव - ७०३ गौरव (सं. गौरव - प्रा. गउरव) गूडो - ८१ नानो धजा (जुओ: "प्राचीन फागु-संग्रह" पृ. २५३) घरणी - १३७ पत्नी (सं. गृहिणी) चउडचपट - ३९२ सफाचट करी नाखवू चउपट - ३८६ चोगान (गुज, "चोपटु, चोफटु)(सं. चतुःपट्ट - प्रा. चउपट्ट) चरड - १४ चोर, लूटारो, (सं. चर + स्वार्थिक “ट" - प्रा. चरड) चहूंटा - १२ बजार, चौद्ध (सं. चतुर् + हट्ट - प्रा. चउहट्ट) चाउ - ५३५ चाप , धनुष्य चिचि - ५४८ (१) चीरी – ५४ चिठी ("Lexicographical Studies in Jain Sanskrit" -मी
"चीरिका” शब्दनो अर्थ 'कापडनो नानकडो टूकडो” एम आप्यो छे अने "चिाडक"
तथा “चिठडिका" ना अर्थ "टूकी नोंध अथवा संदेशो" एम छे. जुओः पृ. १३५) चुसाल - ११ चोक (सं. चतुःशाला - प्रा. च उसाल) चु -६८५ चार चूल्हउ - ४३३ चूलो (सं. चुल्ल) छार - ७४५ राख (सं. क्षार) छाहिउ - ६५ छवायेलो (सं. छादित ) छेहडउ - २९५ छेडो, वस्त्रनो छेवटनो भाग (सं. छेद - प्रा. छेअ - अप. छह + स्वा
र्थिक प्रत्यय 'ड') जगीस - ७५३ इच्छा जुओ ("प्राचीन फागु-संग्रह" पृ. २५६)
पई -४४४ बोले छे (सं. जल्पति - अप जंपई) जानणीइ - ३४५ जांदरणी, जानरणी जीप - जीतवू, फत्तेह मेळववी जीपइ-४९९, जीपसि ४९०, जीपसिउ - २२५, जीपू
६७२, (सं. जि - प्रा. जिप्प) जीवीदान - ५४१ जीवितदान जु - ३२९ जोडे जुइ-६५६ जुगार जूइ (सं. धूत - प्रा. जूध ) जूजूई-११४ जुदां जुदां संटी-७२७ नाना ऊंचा केश, झांटि-२४० ; झूटा-७२७ ( देश्य )
१.
"Lexicographical Studies in Jain Sanskrit" -Ed. Dr. B. J. Sandesara and J. P. Thaker. (1962)
Page #188
--------------------------------------------------------------------------
________________
9
टाटर - ५०७ बोची ढंकाय एव ं बख्तर (भ.गो.मं. पृ. ३७५० )
ठाउ ५२३ स्थान, ठाम, ( सं. स्थाम, पालि थाम-प्रा. ठाम-अप ठाउ-जू. गु. ठाउं ठाथ ) ठेकबु - ४१४ लाठीनो आधार लेवो. ठेकतु ४०१, ठीगतु-४१४ (देश्य ) डोम, चांडाल, डूब
डुंब - ६६८
तोखार - ३९८ घोडो [ प्रा. तुक्खार, तोक्खार ] (जुओ 'शब्दकथा' पृ. २१)
तिवल - ६९४ ढोलक ( अर. तब्ल-तब्लह अर्वा गु. “तबलुं " )
प्रद्युम्न कुमार-चुप
तुहि - ५५१ स्पर्धा, चडसाचडसी (सं. तुलित, प्रा. तुडिअ ) ( जुओ "अनुशीलनो" पृ ११०-१२ ) तुरीय- ६१ घोडो ( सं . तुरग )
तुलडी ४२१ दोणी ( गुज. तोलडी. )
दमामा ६९४ एक रणवाद्य, नोबत ( फा . दमामह )
दुहव्या - १५२ दुःख आप्यु
दूतर- ७१७ तरवाने असमर्थ (सं. दुस्तर - प्रा.दुत्तर - जू. गु. दूतर ) कुबेर ( सं. धनपति )
ras - ९
घवलहर-८ घोळेलो महेल ( सं. धवलगृह )
प्राय- ४१९ धरायुं, तृप्त थयुं
धूधूइ - ४३३ [ धुमाडाथी ] धुंधवाय
धू बड - २३७ मोटा मल्ल (देश्य )
नहुँतरी - १८२ निमंत्रण आपी; निहुंतरिउ - ४२३, नुं हुंतरिवा-६१२
नाह-- ४१ नाथ, स्वामी
नीठ-७५ नक्की
नेटि - ५९७
नक्की
परंपइ - ४५६ बोली ( सं. प्र+जल्पति-अप पयंपइ ) पखइ - ६२३ विना
पघवाह - ३७२ पांगोठु, पेंगडो
पचारि २९२ हेरान करी, महेणु मारी ( अप. पच्चारि ) पजून- २ प्रद्युम्न ( सं. प्रद्युम्न-अप पज्जुण्ण-जू. गु. पजून ) पडिहार - ५४८ दरवान, द्वारपाल ( सं. प्रतिहार = प्रा. पडिहार ) पठाण - ३२६ नगर विशेष, (सं. प्रतिष्ठान - प्रा. पट्ठाण ) परतग - ४९८ परचो
परुं - १०४ दूर, अलग
पवरख - ५५३ पौरुष, पवरिख - ५५३
पवाडु - ६६५ पराक्रम. पवाडे - ५७१
पहि-५५३ पासे
पाउला - १९ नर्तको
१. " भगवद्गोमंडळ शब्दकोश", कर्ता-भगवतसिंहजी. " शब्द कथा", कर्ता डो. हरिवल्लभ भायाणी.
२.
८९
Page #189
--------------------------------------------------------------------------
________________
शब्दसूची
पाखर-३१४ घोडार्नु जीन पाखर्या-६१ घोडाने जीन पाथरी सज्ज कर्या पाटर-५२९ (१) पायक-२२६ पाळा, पगे चालनारा, पायदळ, ( सं. पादातिक-प्रा. पाइक ) पाहि-६८५ पासे, पांहिई-६९२ (सं. पक्षस्मिन्-अप. पक्खहिं, पक्खइ, पाखइ, पाहइ) पीय-२२८ पिताने, (सं. पितृ-प्रा. पिई) पुरुषाक्रम-५५४ पुरुषार्थ अने पराक्रम. पुरषाक्रमे-५७७ पुल-जवु, पळवू. पलाइ-६८१, पुलइ-३९६, पुलिउ-४७३ पुहवि-२८८ पृथ्वी पूजइ-१७ पहोंचे (सं. पूर्यते-प्रा. पुज्जा) "ज'नो "ग" थवाथी जू. गु, मां "पूगई"
पण थाय छे. पूगी-६२३ फलहलि-४२१ भोजननी वानी लेखे भोजन साथे पीरसातां फळो, सूको मेवो, (जुओः "परव" १९६५:२मां पृ. १११ थी ११६ डॉ. हरिवल्लभ भायाणीनो “फलहलि के फलहुलि" उपरनो लेख.
फेटि-६९ (1) फेफार-५१४ शियाळ (१) बूडण-४०६ डूबवा। भडवाउ-१६ पराक्रमनो गर्व (सं. भटवाद) भरडो- ब्राह्मण, भरडानई ४१८, जैनो तिरस्कारमा ब्राह्मणने "भरडो" कहे छे. ( सं. भरटक ) भरहभावि-१९ भरतनाट्यना भाव अनुसार भाठी-७२४ तवो (सं. भ्राष्ट्र) मेउ-४९५ रहस्य (सं. भेद-प्रा. भेअ ) मडिउ-४७१ मड, मयगल-६१ हाथी (सं. मदकल-प्रा. मयगल-गुज. मेगळ ) मल-४९१ मर्दन करतुं (प्रा. मलू) महमयण ५४९ कृष्ण (सं. मधुमथन-प्रा. महमहण ) महलुउ - ३५३ मोवडी, मुहुलु - ३५० महयर - ७९ वांसळी मादल - ६९४ एक वाद्य, मुरज, मृदंग (सं. मर्दल = प्रा. मद्दल)
(सर. गु. मां "मादळियुं" - मादळना आकारनं घरेणु) माठू - ५६३ ओछा माम - ६६६ गौरव, (जुओः "नल-दवदंती रास" पृ. १६.) मियमत्त - २३७ मयमत्त ने बदले, मदमत्त मुहुंडई -६०६- मुखे. (से. मुख = प्रा. मुह + स्वार्थिक "ड") मुंहुंवडि - ६१६ मोखरे १. नल - दवदंतो रास', कर्ता-महिराज, संपा. डॉ. भोगीलाल ज. सांडेसरा.
|
Page #190
--------------------------------------------------------------------------
________________
रली
रलीयाम
रलीयायत
-
४३ आनंद
१ रळियामणु (रलि + आवणउ )
६३८ आनंदित (रलि + आयत )
राउत - ६४ राजा (सं. राजपुत्र = प्रा. रायउत्त, सर गुज. रावत )
राउलि - ४५६ अंतःपुरमा (सं. राजकुलि)
राउलु ३८३ राजानुं. (सं. राजकुल)
रूपणि - ५९ रुक्मिणी (सं. रुक्मिणी = प्रा. रुप्पिणी-जू. गु. रूपिणी-रूपण) रेवणी - ११९ हेरान करवुं
लहिणु - ३३२ लहेणु
लहूयडङ – २३१ नानो, लघुवयस्क (सं. लघुक प्रा. लहुअ + स्वार्थिक"ड" ) लाउ - ३९४ लगाडं ( प्रा. लायू )
लागण - ४६५ (१)
-
लूकी - ९९ छुपाईने (प्रा. लक्क् ) लोइ - १४ लोक (सं. लोक-प्रा. लोय)
वछ - ७५२ घरस
-
वडई - ४२९ (१)
वणारीस ७५८ वाचनाचार्य
वहूयर
वनरवाल ११ आसोपालव आदिना लीलां तोरण (सं. वन्दनमाला = प्रा. वंदणमाला. पछीथी वंदुरवाल, वंदरवाल, वांदरमाल, वनरवाल जेवां रूपो जू. गु. मां मळे छे.)
वाग
३७२ लगाम, [सं. वल्गा - प्रा. वग्गा, जु. गु. वाग) वाण काथी, दोरडु, वाणि ३२७
-
-
-
-
प्रद्युम्नकुमार-चुप
६९६ वढू (सं. वधूक)
विउलसिरी - ३८८ बोरसली, (सं. बकुलश्री
विगूच
विगोइ
1
४५५ तिरस्कार करवो फजेतो करवो, व्याकुळ करवु .
2
विगोइ ६२०, विगोईयु - ३०८ (जुओ "अनुशीलनो” पृ. १२२ थी १२६) विछोही - १४९ विरहित करी (प्रा. विच्छोह )
विटंबी - ४५८ विडंबी, हेरान करी
-
प्रा. वडलसिरी)
व्याकुळ विगूचइ - ३८४ (प्रा. विगुत्त, गुज. वगूत, विगूच वगेरे.)
विणठड
गुज. मां "विठु " ) (जुओ "अनुशीलनो” पृष्ट १६१ )
३५७ वर, भूडुं (प्रा. विरूअ )
-
-
प्रा. विलक्ख)
त्रिरूयु विलखाणी २८ लज्जा पामी, छोभीली पडी गई (सं. विलक्ष विलविल - विलाप करवो, विलविलाई ४११ (अ. गु. वलवलवु - रवानुकारी ) विलूर - ऊतरडी नाखवु विलूरिउ - ३१९ (प्रा. विलूर विवहपरइ ६३१ विविध प्रकारे
गुज. वलूवु)
-
२०१ बगड्युं (सं. विनष्ट - प्रा. विणट्ठ-तेना उपरथी
-
-
९१
-
Page #191
--------------------------------------------------------------------------
________________
९२
शब्दसूची
विहड -वियुक्त करयु अलग करवु, विहडाई- ७४१ (सं. विघट्-प्रा. विहइ). वीछडया - ७४० विभक्त थयां, जुदा पइयां, वुल्या - २२३ पसार थयां (प्रा. वोल) वूठइ - १९२ वरसवा लाग्यो (सं. वृष्ट - प्रा. बुद्ध) वेकार -६७७ संगीतकार, बइकार - वइकार - वेकार. (जुओः “बुद्धिप्रकाश" ओक्टोबर १९६२
मां डॉ. भोगीलाल सांडेसरानो "बईकार संगीतकार" ए नामनो लेख. पृ. २९२-२९४.) सइथु - २६ सेंथो (सं. सीमन्तक - अप. सइथउ) सगणी - २३३ आयुधविशेष (१) सनसतपणा - ७१० (?) समिद - ३ समृद्ध सयर - २०१ शरीर (सं. शरी र- जू. गु. सईर) (जुओः “षष्टि शतक प्रकरण" पृ. १९२) सयरि - २६ शरीरे सलिउ - ७० "सलिलउ"ने स्थाने. "साल्यु" (सं. शल्य) सवि - १ सर्वे, (सं. सर्व) सहेटि -६७९ (१) संपतउ - ४९२ "संपत्तउ" ने बदले. "आवी पहोंच्यो" (सं. सं + प्राप्त -प्रा. संपत्त). सालणां - ४२१ कचूंबर, अथाणां तथा वडी-सेव इ० सूकवणी जेवां खाद्य पदार्थो, (जुओः
"परब" १९६५-२ मांनो “फलहलि के फलहुलि” ए नामनो डॉ.हरिवल्लभ भाया. णीनो लेख. पृ. ११५ तथा “वर्णक समुच्चय'' भाग १ लो, पृ. १९३ तथा भाग
२जो पृ. १८) सायत्त - ५८६ स्वागत (१) साहिउ - ६०८ साध्यु सांथारु -७५४ संथारो. जैन पारिभाषिक शब्द. "मरण नजीक आवतां ममता तजी मरण
पथारी उपर सुबु ते" (सं. संस्तार - प्रा. संथार. सरखावो-संथारियु = जैन मुनिओ
रात्रे सुवा माटे जे ऊननु कपडु पाथरे छे ते. जुओः भ. गो. म. पृ. ८६२६.) सांमहणी - ३३९ तैयारी सांमहिठ - ७३३ सामैयु सांसहिउ - ५४५ सहन कये (से. सं + सह - प्रा. संसह) सिघलु - ४८० सघळु, बर्षा सीगिणि - २३३ "सोंगिणि" ने बदले. "धनुष्य". सींगा -- ६८२, (सं. शङ्गिनी) सीमइ - ४३३ सीझे (सं. सिध्यति - प्रा. सिज्झइ) सुकि - ८३ शोक्य, सपत्नी (सं. सपत्नी - प्रा. सवत्ती, सवक्की) सुचंग -७ खूप सुंदर, चंग = सुंदर (देश्य)
१. "षष्टिशतक प्रकरण" कर्ता नेमिचन्द्र भंडारी, संपादक डॉ. भोगीलाल ज. सांडेसरा. २. "वर्णक समुच्चय" भाग -१ तथा २ संपादक : डॉ. भोगीलाल जे. सांडेसरा.
Page #192
--------------------------------------------------------------------------
________________
९3
प्रद्युम्नकुमार- चुपई सुहलालि – ३२६ सुखथी लालनपालन करेली, लाडमा राखेली (सं. सुख + लालित.) सूअ- - पोपट, सूया-७९ (सं. शुक प्रा. सुअ ) सूहवि-८१ सौभाग्यवती- एटले सधवा स्त्री (सं. सुभग - प्रा. सुहव ) सेल-२३३ भालो ( प्रा. सेल्ल) हकारिठ-१११ हांक मारीने बोलाग्यो ( प्रा. हक्कार ) हथलेवउ - ८० हस्तमेलाप, हथलेवा-६९५ हवडां-५७१ हमणां, हवे ( श्री. टी. एन. दवे "हिव+डां" उपरथी आ शब्द व्युत्पन्न करे
छे.' ) आ उपरांत जुओः "नलदवदंतिरास" पृ. १७३ हसमसि-६२२ हसीहसीने हीयरह-३१४ (१) हीयोलोकणी-२५४ अन्यना मननी वात जणावनारी विद्या हीस- ३७२ घोडानी हणहणाटी (सं. हेषारव - अप. हीस, हींस ) हंती-३७९ (पासे) थी, पंचमीनो अनुग, (जुओ: "सिद्धहेम अपभ्रंश व्याकरण"*पृ. २४.)
१. 'A Study of the Gujarati Language', टी. एन. दबे-पृ. १९६. २. "अपभ्रंश व्याकरण", कर्ता-हेमचन्द्राचार्य, संपादकः डॉ. हरिवल्लभ भायाणी.
Page #193
--------------------------------------------------------------------------
________________
Latest Price list of L. D. Series in force from 1st Nov. 1977
( This cancels all the previous price-lists of L. D. Series )
S. No.
Name of Publication
Price
Rs.
501
10/
50/
50/
10/
307–
2. Catalogue of Sanskrit and Prākrit Manuscripts : Munirāja
Shri Punyavijayaji's Collection Pt. I Compiler : Munirajā
Shri Punyavijayaji, Editor : Pt. Ambalal P. Shah, (1963) 5. Catalogue of Sanskrit and Prakrit Manuscripts, Munirāja Shri
Punyavijayaji's Collection, Pt. II. Compiler : Munirāja Shri
Punyavijayaji, Editor : Pt. A. P. Shah. (1965) 8. Kavi Lāvanyasamaya's Nemirangaratnākarachanda. Editor :
Dr. S. Jesalpura. (1965) 9. The Nātyadarpaņa of Ramchandra and Gunachandra : A Critical
Study : By Dr. K. H. Trivedi. (1966) 11. Akalarka's Criticism of Dharmakirti's Philosophy : A study
by Dr. Nagin J. Shah. (1966) 12. Jinamāņikyagani's Ratnākarāvatārikādyaślokaşatārthi, Editor :
Pt. Bechardas J. Doshi. (1967) 15. Catalogue of Sanskrit and Prākrit Manuscripts : Munirāja Shri
Punyavijayaji's Collection. Pt. III. Compiler: Mnnirāja Shri
Punyavijayaji, Editor : Pt. A. P. Shah. (1968) 16. Ratnaprabhasüri's Ratnākarävatārikā, Pt. II. Editor : Pt.
Dalsukh Malvania. (1968) 17. Kalpalatāviveka (by an anonymous writer). Editor : Dr. Murari
Lal Nagar and Pt. Harishankar Shastry. (1968) 19. The Yogabindu of Acārya Haribhadrasüri with an English
Translation, Notes and Introduction by Dr. K. K. Dixit. (1968) 20. Catlogue of Sanskrit and Präkrit Manuscripts : Shri Ac.
Devasüri's Collection and Ac. Kşantisüri's Collection : Part IV. Compiler : Munirāja Shri Punyavijayaji, Editor : Pt. A. P.
Shah. (1968) 22. The Šāstravārtāsamuccaya of Acārya Haribhadrasüri with Hindi
Translation, Notes and Introduction by Dr. K. K. Dixit. (1969) 23. Pallipāla Dhanapāla's Tilakmañjarīsāra, Editor : Prof. N.M.
Kansara. (1969)
10/
32
20/
40/
30/
20/
Nos: 1, 3, 4, 6, 7, 10, 13, 14, 18, 21, 43 are out of print.
Page #194
--------------------------------------------------------------------------
________________
p. Pt.
24. Ratnaprabhasūri's Ratnākarāvatārikā Pt. III, Editor : Pt.
8/Dalsukh Malvania. (1969) 25. Ac. Haribhadra's Neminahacariu Pt. 1: Editors : M. C. Modi 50/
and Dr. H. C. Bhayani. (1970) 26. A Critical Study of Mahāpurāņa of Puşpadanta, (A Critical 50/
Study of the Deśya and Rare words from Puşpadanta's Mahāpurāna and his other Apabhramsa works) By Dr. Smt. Ratna
Shriyan. (1970) 27. Haribhadra's Yogadşstisamuccaya with English translation,
10/Notes, Introduction by Dr. K. K. Dixit. (1970) 28. Dictionary of Prakrit Proper Names, Part I by Dr. M. L.
32/Mehta and Dr. K. R. Chandra, (1970) 29. Pramāņavārtikabhāsya Kārikārdhapādasūci. Compiled by
10/Pt. Rupendrakumar. (1970) 30. Prakrit Jaina Kathā Sahitya by Dr. J. C. Jaina (1971)
20/31. Jaina Ontology, By Dr. K. K. Dixit (1971)
50/32. The Philosophy of Sri Svāminārāyana by Dr. J. A. Yajnik. (1972) 50/33. Ac. Haribhadra's Nemināhacariu Pt. II : Edittors : Shri
50/M. C. Modi and Dr. H. C. Bhayani. 34. Up. Harsavardhana's Adhyātmabindu : Editors : Muni Shri 201
Mitranandavijayaji and Dr. Nagin J. Shah. (1972) 35. Cakradhara's Nyāyamañjarigranthibhanga : Editor Dr. Nagin 50/
J. Shah. (1972) Catelogue of Mss. Jesalmer collection : Compiler : Munirāja
50/Shri Punyavijayaji. (1972) 37. Dictionary of Prakrit Proper Names Pt. II. by Dr. M. L.
35/Mehta and Dr. K. R. Chandra. (1972) 38. Karma and Rebirth by Dr. T. G. Kalghatagi. (1972)
10/39. Jinabhadrasūri's Madanarekhā Ākhyāyika : Editor Pt.
40/Bechardasji Doshi. (1973) 40. Prācina Gurjara Kavya Sañcaya, edited by Dr. H. C. Bhayani 16/
and Agarchand Nahata, (1975) 41. Jaina Philosophical Tracts : Editor Dr. Nagin J. Shah. (1974) 42. Sanatukumāracariya Editors Prof. H. C. Bhayani and
8/Prof. M. C. Modi. (1974) 44 Pt. Sukhalalji's Commentary on the Tattvärthasutra, Translated 50/
into English by Dr. K. K. Dixit. 45. Isibhāsiyāim Ed. by Dr. Walther Schubring. (1974) 46. Haimanāmamālāšiloñcha, by Mahopādhyāya Vinayasagara.
20/47. A Modern Understanding of Advait Vedānta by Dr. Kalidas 10/
Bhattacharya pp. 4+68). (1975) 48 Nyāyamañjari (Āhnika I) with Gujarati translation, edited and 16/
translated by Dr. Nagin J. Shah, pp. 4+144,
201 -
Page #195
--------------------------------------------------------------------------
________________
49. Atonements in the Ancient Ritual of the Jaina Monks by Dr. 50/
Colette Caillat, pp. 8+210. (1975) 50. The Upabộmhana and the Rgveda Interpretation by Prof.
107T. J. Mainkar, pp. 4+60. (1975) 51. More Documents of Jain Paintings and Gujarati Paintings of
sixteenth and later centuries by Dr. U. P. Shah. (1976) 52. Jineśvarasüris' Gāhārayanakosa, Edited by Pt. A. M. Bhojak 20/
and Dr. Nagin J. Shah. (1976) 53. Jayavantasūri's Rsidattārāsa (Old Gujarati Kāyya) Edited by 16/
Dr. Nipuna Dalal. (1975) 54. Indrahamsa's Bhuvaṇabhāņukevalicariya Ed. by Munishree 16/
Ramanikvijayaji. (1976) 55. Sallekhană Is Not Suicide by Justice T. K. Tukol. (1976) 16156. Śaśadhara's Nyāyasiddhantadipa Edited by Dr. B. K. Mati Lal. 45/
(1976) 57. Fundamentals of Ancient Indian Music and Dance by
25/S. C. Banerjee. (1977) 58. Indian Philosophy Dr. Pt. Sukhlalji Sanghavi (1977)
30/59. Vasudevahindi - An Authentic Jaina Version of the Bțhatkathā 150/
by Dr. J. C. Jain. (1977) 60. Bauddha Dharma Darsanani Pāyāni Vibhāvanā (Gujarati
translation of Vidhusekhara Bhattacharya's Basic Conception of Buddhism) Trans. by Dr. Nagin J. Shah (1977).
Rs. 8/61. Sādhāraṇa's Vilāsavaikahā (Apabhramša Kāvya), Edited by 40/
Dr. R. M. Shah..( 1977) 62. Amộtacandra's Laghutattva-sphota (Sanskrit Jaina Philosophical
Kāvya) Edited with English Introduction by Dr. P. S. Jaini (To be released in April 1978)
Rs. 50/63. Ratnasüri-śişya's Ratnacüdarāsa Ed. by Dr. H. C. Bhayani (1978) 64. Early Jainism by Dr. K. K. Dixit (1978)
Rs. 28765. Jayavantasūri's śmgāramañjari Ed. by Dr. Kanubhai V. Sheth
(1978) 66. Śramana Tradition - Its History and Contribution to Indian Culture by Dr. G. C. Pande (1978)
20167. Nyāyamñjari (Āhnika II) with Gujarati translation, Edited and
translated by Dr. Nagin J. Shah. (1978) 68. Vā. Kamalasekhara's Pradumnakumāra Copai Ed. by Dr. M. B.
Shah. (1978) Aspects of Jaina Art and Architecture : Editors Dr. U. P. Shah 150/and Prof. M. A. Dhaky. (1976) [ Sole Distributor ] Sambodhi Vol. I-V Rs. 2007(Rs. 40/- per volume)
Page #196
--------------------------------------------------------------------------
________________