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________________ ६. ६२४ ६२५ ६२६ चतुर्थ सर्ग सयल कुटुंब मनि हयु उछाहु कुमर प्रदिमनन]उ थयु वीवाहु यादव सवि रलीयायत थया गाई वाई घरि लेई गया थयु वीवाह गयु घरि लोग करइ राज बहु विलसइ भोग देखी सतिभामा गहबरइ सुकि साल बहु परि इम करइ (भानुकुमारनो विवाह) तु सतिभामा मांडिउ ऊपाय कहइ विजवेगा खेचर जाइ रयण संचइ पाटण कहवाइ रयणचूड तिहां निवसइ राय विजवेगु जई वीनवइ सेव सतिभामा हु मोकलिउ देव अम्हसिउ अति तुम्हे करु सनेह भानुकुमरनइ पुत्री देह सयलराय विद्याधर मिली द्वारिकांनगरी आवइ रली घणउ नगरमाहि करी उछाह भांनुकुमरनु हूउ विवाह मानिउ बोल कुटंबइ मिली खेचरराय ठामि पहुता वली संयंवरा लेइ द्वारिकां। जाइ मंडप मांड्यां वस्त्र आछाइ तोरण रोप्यां घरि घरि बारि कनककलस सोहइ सीहदूयारि सयल कुटंब .... .... .... भानुकुमरनु हूउ वीवाह तिहां ते राजा राजि करंति विवहपरइ ते भोग भोगवंति राजरिद्धि विलसइ प्रघमण ते समवडि न दीसइ कवण2 ६२७ ६२८ ६२९ ६३० 1. द्वारिका 2. अंतेः प्रद्युम्नवीवाहनो नाम चतुर्थः स्वर्गः Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002633
Book TitlePradyumnakumara Cupai
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKamalshekhar, Mahendra B Shah
PublisherL D Indology Ahmedabad
Publication Year1978
Total Pages196
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size9 MB
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