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________________ ६.२ ६१३ ६१४ ६१६ ६१७ प्रद्युम्नकुमार-चुपई अंग बंग कलिंगहतणा द्वीपि समुद्रइ भूपह घणा लाट भोट गाजण कास्मीर चौड कान्हड नइ मालव कीर पूरव दक्षण [ग]जरदेस मेवात मारूयाडि मध्य वसेस द्रवड चवड कन्हडह तिलग सोरठदेस सोहइ अतिचंग गोडदेस उत्तरनइ मलबार एहवा सोल सहस उदार। ए देस तणा जे मोटा राइ नहुँतरइ आया घणइ उछांइ (विवाहोत्सव) संख-शबद मांगलिकह वाउ राय वालिउ निसाणे घाउ . भेर. तूर वाजइ असराल मुंहुंवडि वीणा आलवइ ताल विप्र वेद च्यारइ उचरइ घरि घरि कामिणि मंगल करइ बहु कलयल नगरी ऊछलिउ पजन-वीवाह पुन्यइ फलिउ रयणजडित छत्र सिरि वर धरइ कनकडंड चामर शिरि ढलइ कणयमुगट सिरि उदय करंति जाणे सूरकिरण झलकति (सत्यभामागें केशमुंडन) वरघोडइ बोली रूख मिणी सांभरी वात सतिभामातणी तेडवा गया कुमर ते घरइ सतिभामा दीठी इणिपरिद देखी कुमर हस्या हडहडी ए कुणि उपाय पाडी बापडी वयरी गयु विगोइ घणुं दुख कहूं केहनइ आपणूं सतिभामा मिसि धोई करी रूखमणितणइ घरिइ सांचरी सतिभामा तुम्हे बाई सुणउ पहिलु बोल बोलिउ ते घणउ हसमसि वात कहाइ घणी त बोलि रांणी रुखमिणी । त्रिणिखंड2 जव राजइ मुझ3 तउ सिरि केस उतारु तुझ केस ऊतारण लागी जाम केस पखइ सिर दीठं तांम रुखमिणी मूंड मूंडइ ते वली सुकि वगोई पूगी रली 1. धणः 2. खांडः 3. मझ ६१८ ६ ६२० ६२१ ६२२ ६२३ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002633
Book TitlePradyumnakumara Cupai
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKamalshekhar, Mahendra B Shah
PublisherL D Indology Ahmedabad
Publication Year1978
Total Pages196
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size9 MB
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