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भूमिका
प्रस्तुत "प्रद्युम्नकुमार-चुपई" पण वस्तुतः रासकृति ज छे. काव्यान्ते कविए भले, तेमां चोपाई छंदना सविशेष उपयोगथी, “इति प्रद्युम्नकुमार चुपई समाप्त" एम कही पोतानी. कृतिने चोपाई कही होय, परंतु काव्यना आरंभे कविए पोते ज 'रास रचु रलियामणु' १: एम कही आ कृतिने गसकृति तरीके गणावी छे. आम “प्रद्युम्नकुमार-चुपई" ए एक रासकृति ज़ छे अने तेनु मूल्यांकन पण एक रासकृति तरीके ज करवु योग्य जणाय छे. आथी प्रथम रास स्वरूपना लक्षणो तारखी तेने अधारे "प्रद्युम्नकुमार-चुपई" नु अहीं मूल्यांकन करवानो प्रयत्न करेलो छे. 'प्रद्युम्नकुमार-चुपई' मां प्रतीत थतां रासस्वरूपना सामान्य लक्षणो:
__उपर कडं ते प्रभाणे रास, प्रबंध, पवाडु, चोगई इत्यादि साहित्य-प्रकारोमा रचनादृष्टिए खास कोई फरक नथी अने रास अने आख्यान प्रकार वच्चे पण घणु साम्य रहेलु छे. आथी रासकृतिना जे लक्षणो तारवीए तेमांनां केटलांक लक्षणो उपर कहेला अन्य माहित्य-प्रकारोमां सामान्य होय ए स्वाभाविक छे. एटले ते लक्षणो चुस्त रीत मात्र रासस्वरूपनां ज छे । शकाय. अही १२मी शताब्दीथी १८मी शताब्दी वच्चे सर्जायेला राससाहित्यमांथी प्रतीत थतां सामान्य लक्षणोने रामस्वरूपना लक्षणो तरीके गणाव्यां छे अने तेने आधारे "प्रद्युम्नकुमार-चुपई". नु रासकृति तरीकेनु मूल्यांकन करेलु छे.. - डॉ. भारती वैद्य तेमना "मध्यकालीन राससाहित्य-१२मीथी १८मी सदी" नामना पुस्तकमां ते समय दरमियान रचायेली केटलीक रासकृतिओना अभ्यास परथी रासना स्वरूप विषे केटलांक चोक्कस अनुमानो बांध्यां छे, तेने अनुलक्षीने, सहु पहेलां आ साहित्य-प्रकारना आकारनो विचार करीए: : १ रासनो प्रारंभ : (क) रासनो प्रारंभ नमस्कारात्मक रहेतो. प्रारंभमां सरस्वती,२४ जिनदेवता, पंच परमेश्वर के गुरु अथवा बधांने प्रण,म करवामां आवता. सरस्वतीदेवी उपरांत अंचिका के चक्रेश्वरी देवीनु पण आ मंगळाचरणमां स्मरण करवामां आवतु. "मांकण रासो" जेवी कोईक कृतिमां अपवादरूपे प्रारंभमां गणपतिने नमस्कार करवामां आव्या छे. सामान्य रीते तिनो आस्तुतिखड ब्रद लांचो नथी होतो, छतां ज्या २४ तथैकर, देवी, गुरु इत्यादि सर्वनी आशीर्वादात्मक सुति करवामां आवी होय छे त्यां सहेजे पंदर-वीस कडीओनौ विस्तार थई जाय छे
(ख) क्यारेक रासना प्रारंभमां रचनाना विषयनो निर्देश पण करवामां आवतो अथवा वस्तु क थी लीधु ले तेनेा निर्देश पण करवामां आवतो.
वा. कमलशेखरे “प्रद्युम्नकुमार चुपई" नो प्रारंभ पण सर्व जिनश्वरो, सरस्वतीदेवी अने गरु ने नमस्कार करीने करेलो छे अने ते मात्र एक कडीमां ज. अने पछी तरत ज पोतानी रचनानो विषयनिर्देश करतां कहे छे के "यादवनी सरस कथा हूं एक चित्तथी कहीश (तेमां आवतु) प्रद्युम्नकुमारनु सुंदर चरित्र तमे सांभळो." विषयनिर्देश पछी कर्ताओ वस्तु क्यांथी लीघु छे तेनो कोइ निर्देश को नथी. आपणे आगळ जोयु ते प्रमाणे वा. कमलशेखरे कवि सधारुकत "प्रद्युम्नचरित" नो पात्र वस्तु माटे आधार लीधो हतो एटलुज नही, परंतु तेमांथी केटलीये कडीओ पोतोनी कृतिमां सीधेसीधी अथवा तो भाषान्तर करीने मकी दीधी ले. छतां वा. कमलशेखरे तेनो जराये ऋणस्वीकार कर्यो नथी.
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