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________________ ३२ प्रद्युम्नकुमार-चुपई Tul. "प्रद्युम्नचरित" उपरांत वा. कमलशेखरे "त्रिषष्टिशलाकापुरुषचरित्र" नो पण आधार लीधो छे, ते पण आपणे जोयु छतां तेनो पण कर्ताओ क्यांय निर्देश नथी कर्यो. २. रासनो अत: (क) रासना अंतमां फलश्रुति आपवामां आवती. आमां रासना पठनथी, श्रवणथी के कीर्तनथी थनारा लाभ वर्णववामां आवता. (ख) केटलीक कृतिओमां कविए पोतार्नु नाम पण प्रारंभमां जणाव्यु होय छे, पण साधारण रीते कवि पोतानं नाम रचनाने अंते आपतो होय छे. आ साथे केटलीक वार य छे. आ साथे केटलीक वार कवि पोताना गच्छनी विगत, गुरुनु नाम के गुर्वावलिनुं निरूपण पण करतो होय छे. (ग) आ उपरांत रचनानो समय, रचनास्थल, रचनानो ढाळ होय तो ढाळनी संख्या अथवा पद्यसंख्या-आ बधी विगत पण कवि अंते आपतो होय छे. (घ) कवि अंतमा सहुना कल्याणनी कामना व्यक्त करतो होय छे. (च) वळी पोते रचनामां जे कां होय ते आगमथी विरुद्ध होय अथवा पोतानी कई भूलचूक होय तो ते बदल क्षमायाचना पण कवि अंते करतो होय छे, अथवा बीजानी सरखामणीमा पोतानी नम्रता पण दर्शावतो होय छे. वा. कमलशेखर “प्रद्युम्नकुमार-चुपई"ना अंतमा पोताना गच्छ तथा गच्छनायकनां नामोना उल्लेखमा जणावे छे के "विधिपक्षगच्छमां अत्यन्त गुणवान एवा धर्ममूर्तिसूरि हता (७५४)', पछी पोतान् नाम. रचनानु स्थळ तथा रचनाना समयनो निर्देश करतां जणांवे छे के "घणा उल्लासपूर्वक कमलशेखर मांडल नगरमा चोमासु रह्या हता त्यारे (तेमणे) संवत सोळसो छवीशमा कार्तिक सुदि तेरशने दिवसे दूहा अने चोपाई हैये धरीने (आ) चोपाई करो" (७५७). अहों एक विशेषता ए छे के कवि पोतानां नाम, रचनास्थल अने समयनी साथे कृतिमां सविशेष आलेखायेला छंदोनों पण उल्लेख करे छे. कर्ताए अहीं अंतमां पोताना नामनो उल्लेख करेलो छे. परंतु ते पहेला प्रथम सर्गने अंते "बीजउ सर्ग जंबवति तणु, वाचक कमलशेखर कहा सण, (१०६) एम कही पोताना नामनो उल्लेख करेलो छे. आम अहीं कर्ता पोताना नामनो पहेला अने छल्ला सर्गमां एम बे बखत उल्लेख करे छे. ए उपरांत संक्षेपमा पोतानी गरु-परंपरा दर्शावतां कवि कहे छे के "वणारीस वेलराजना बे गुणवान शिष्यो (ते) उपाध्याय पुण्यलब्धि अने वणारीम लाभशेखर (अने) तेमना शिष्ये (आ) चोपाई रती." आम अहों तेमणे पोताना गुरु, गुरुबंधु अने गुरुना गुरु एम त्रणेयनां नामनु स्मरण करेलु छे. कृतिने अंते कर्ताए तेनी कुल गाथा-संख्या ७९३नी नोंघेली छे. जो के कृतिनी वच्चे केटलेक ठेकाणे लहेशानी भलथी के गमे तेम पण कडीसख्वा लखवामां भूल थयेली छे. वळी, बहारथी उद्धत करेला लोको के गाथाओने पण कृतिमा चालु सख्यांक आपेलो छे. आथी जो कडी संख्यानी भूलो सुधारीए तथा बहारथी उद्धृत करेला श्लोको के गाथाओने न गणीए तो ते प्रमाणे कुळ ७५९ कडीओ थाय छे. अहीं सर्वना कल्याणनी कामना, कोई भूलचूक के एना माटे क्षमायाचना के अन्य कविनी सरखामणीमा पोतानी नम्रतानो वा. कमलशेखरे कोई उल्लेख करेला नथी. ३. छंदोलय : रासमा छंदोवैविध्य रहेतु, पण रासनी रचना मोटे भागे चोपाई. दुहा जेवा मात्रामेळ छंदमां थती. चोपाई, दुहा उपरांत १६+१६+१३नी त्रिपादी, सोरठा, वस्त. रोळा, त्रोटक, वदना, पद्धडिया, मदनावतार, कवित, कुंडळिया, सवैया जेवा छंद पण Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002633
Book TitlePradyumnakumara Cupai
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKamalshekhar, Mahendra B Shah
PublisherL D Indology Ahmedabad
Publication Year1978
Total Pages196
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size9 MB
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