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________________ १६ पूरवकर्म न मेटइ कोइ रुखमणि जागीनइ कह वली रयणी छठी रयणी छठी वासदेव तव इम कहइ रूपणि तव कारण कहइ एह हांसु 1 कीजय नही सही को वयरी लइ गयु कहइ कृष्ण कहइ कृष्ण छपनु कोडि यादव तुम्हे गाम नयर पुर पाटणह यादव जइ जोयु घणुं सहू आवी हरिनइ कहइ प्रद्युम्न कुमार - चुपई सुणी वात रुखमणिसुत गयु सुकीला (?) मुझ टलीयुं साल यतः Jain Education International कर्म करइ ते निश्चिइ होइ आपु पुत्र जिम पुजइ रली वाढ्य पर्बतनइ बिहुं पासि मेघकूट छइ ते मांहि देस बारहसइ विद्या जेह पासि एक दिन यात्रा जाइ तिहां खलिउं विमान न जाइ किमइ क्षण उंची क्षण नीची थाय 1. हांसुं 2. छंइ वस्तु हरिउ परदवण तम्हे पुत्र लेइ गया कवणह स्वामि एम म कद्दु वयणह स्वामी आपु बाल इम बोलइ गोपाल सुणउ बलिभद्र नयरमझि देखणह जायु वात सुणी किहां प्रगट थाउ किहां नवि दिठ कुमार अम्हे नवि लाघी सार चुपई सतिभामानइ आणंद थयुं इम नाची वझावइ गाल श्लोक भोजने रंजितो विप्रः मयूरा घनगर्जिते । साधवो परिकल्याणे खलौ च विकलीयति (?) ॥२२ ( विद्याधर संवररायने प्रद्युम्नकुमारनी प्राप्ति ) १३२ For Private & Personal Use Only १३३ १३४ १३५ दाहोत्तरसो नयर निवास जिम संवरराय वसइ बसेस कनकमाल घरणी छ तासि प्रदिमनकुमार चांपिउ छइ 2 जिहा १३७ बावन गज सिला देखइ तिमइ ऊतरि विमानथी देखण जाइ १३६ १३८ www.jainelibrary.org
SR No.002633
Book TitlePradyumnakumara Cupai
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKamalshekhar, Mahendra B Shah
PublisherL D Indology Ahmedabad
Publication Year1978
Total Pages196
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size9 MB
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