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________________ षष्ठम सर्ग यतः ७४४ इस कायाका कुण भ सा जग जाइ सुपनंतर जइसा सर्व तिजइ जीव चलइ एकला वीछड्या पीछइ मिलन दुहेला ७४० केहनां धन पवरख बल घणां केहना बाप कुटुंब केहतणां घडीमांहि जाइ विहडाइ आविई मरणि न सइ रहवाइ ७४१ (रुक्मिणीनो विलाप) पुत्रवयण सुणि हरि विलखाइ वलि रूपणि [कं पती आइ करण कल्पांत2 करइ ते घणू किमहि पूत्र रहइ आपणउ ७४२ तइ संयम लेवा मन कीयु हिव किस देखि हरखइ मुझ हीयु किणपरि तूं भिक्षा मांगेस दुख घj ऊपाडन केस ७४३ वली ते रूपणि लागी कहण म लेसि संजिम पूत परदवण मायतणा वयण निसुणेय कुमर प्रदिमन ऊत्तर देय (रुक्मिणीने प्रद्युम्न द्वारा वैराग्योपदेश) लावन्य रूप शरीरह सार जिम रूठइ तु हूइ सहू छार म करि शरीर दुख बहूत केहनी माइ नइ केहना पूत अरहटमाल जिम ए संसार स्वर्ग4 पाताल पुहवि अवतार पूर्वजन्मनउ संबंध जांणि मिलइ जीवइ ठाणोठांणि ७४६ (प्रद्युम्न द्वारा दीक्षाग्रहण अने तपश्चर्या) इम समझावी रुखमणि माय नेमजिन पासि पहूता आय नारायणनु इयु आदेस पंचमुठि ऊतार्या केस पुत्रि माइ महाव्रत उचर्या दस भेदे संजिम आदर्या बावीसइ परीसह सहइ पजूनऋषि मदन घणूं दहइ ७४८ चउथ छठ अठम तप करइ । श्रीजिन-आन्या हीयडइ धरइ मासखमण करइ ते घणां इम करतां करम खपइ आपणां ७४९ बारह भिखू-पडिमा वही खीणी देह हूई तव सही रयण चीतवइ अणसण करुं नेमजिन वांदी पूर्छ खलं ७५० 1. मिलएहेला 2. कल्पाप 3. कीयां 4. स्वर्गः ७४५ - आटेस ७४७ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002633
Book TitlePradyumnakumara Cupai
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKamalshekhar, Mahendra B Shah
PublisherL D Indology Ahmedabad
Publication Year1978
Total Pages196
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size9 MB
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