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________________ परिशिष्ट-२ वेदनी बिहु अठवीस मोहकर्म आयकर्म चिहु भेदे शर्म नामकर्म तेडोत्तर जाणि गोत्रकर्म बिहु भेदे मांणि अंतरायना पांचइ भेय आठकर्मनी प्रकृति। एय अठावनसु सघली थाइ नरनइ एकसुवीस बधाइ एकसुसतर तियेच बंध बिडोत्तरसउ देवह बंध एकोतर सउ नारिक तणी पकृति बंध ए चिहुंनी भणी सत्तरी कोडाकोडि मोहिनी नामगोत्र थिति वीस एहनी च्यार कर्मनी त्रीस कोडाकोडी आऊखु तेत्रीस सागर जोडि आऊखु आठह कर्मह तणु थितिबंध ते सूत्रई भणिउं अनभाग तेहज रस जांणि प्रदेसदलना संचय आणि च्यारि भेद बंध तणा भण्या मोक्षतणा नवभेदह सुण्या सतपद परुवण पहिलु तेय . द्रव्य प्रमाण बीजु निसुणेय खेत्र त्रीजु फरसना चउ जांणि काल पांचमु हीअडइ आंणि अंतर छठउ भाग सातमु भावसिद्ध कहीइ आठमुं अल्पबहुत्व नव, होइ मोक्षतणा नव भेदह जोइ सतपद परुवण कहीइ जेय पंचेंद्रीनइ मोक्ष कहेय नरगति त्रस क्षायक समकित्त केवलन्यान क्षायक चारित्त केवल दर्शन दो उपयोग सेषपदइ नहु मोक्ष योग द्रव्य सिद्ध अनंता कह्या लोकभागि असंख्यइं रह्या अधिक फरसना सिद्धहतणी सिद्ध आय अनंता घणी अंतर सिद्ध सिद्धनई नही नवि आबाधा सुखीया सही निगोद एकना जीवह घणा तेहनइ अनंतभागि सिद्धितणा भाव क्षायक पारणामिक होइ नपुंसक सिद्ध थोडा जोइ तेह थकी स्त्री सिद्ध संख्यात अठोतर सुपुरुष विख्यात 1. प्रत्तति 2. खंध 3. अपयोग 11 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002633
Book TitlePradyumnakumara Cupai
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKamalshekhar, Mahendra B Shah
PublisherL D Indology Ahmedabad
Publication Year1978
Total Pages196
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size9 MB
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