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________________ प्रद्युम्नकुमार-चुपई ५. आळे-भ्रंशाचारनु आळ' एक व्यक्ति द्वारा अन्य व्यक्ति उपर जुठो दोषारोप मूकवानां कथाबिंब के कथाघटकों निर्देश आपणने भारतीय परंपराना साहित्य उपरांत विदेशी साहित्यमां पण अनेक ठेकाणे जोवा छ. आ प्रकारनां कथाघटक परत्वे डॉ. हरिवल्लभ भायाणीए तेमना 'शोध अने स्वाध्याय नामनां पुस्तकमा 'लोककथामां आळ'' ए शर्षक नीचे एक माहितीसभर संशोधनात्मक लेख आपेलो छे. त्यां तेमणे प्रपंचना एक प्रकार तरीके आळने शंका अने वहेम करतां जुदु दावी आळनो लोककथामा कई कई रीते उपयोग थयो छे तेनु विश्लेषण कयु छे. प्रथम तेमणे आळना उद्भव परत्वे विचार करतां दर्शाव्यु छे के 'आळ का तो अकस्मात-योगानुयोगथी आवे, कां तो कोईथी हेतुपूर्वक उद्भवित होय. प्रागर्वाचीन समयमा तेमज निरक्षर समाजोमां ने लोककथानी सृष्टिमां आळ मोटे भागे उद्भावित ज गणवानु रहे. कथाओना निरूपणनी जुदी जुदी कोटिओ अनुसार तेना उदभावक तरीके मनुष्य के अलौकिक सत्व पण होय. कोई वार मनुष्य इतर सत्ताथी प्रेराया वगर स्वतंत्रपणे आळनो उद्भावक होय, तो क्यांक मनुष्य के अलौकिक सत्त्व नसीब के कर्म जेवा व्यापक बळथी राईने आ प्रकारचें कार्य करतु निरूपायु होय छे. समूहमां लोकोथी मूकायेलु आळ ते लोकापवाद'. आम आळनो उद्भव अने तेना उद्भावकनो विचार कर्या पछी तेओए तेना कारणोमां मनुष्यकृत स्वतंत्रपणे मूकायेला आळमां, स्वभावगत दुष्टता, निष्कारण शत्रुता, टीखळवृत्ति, परपोडनवृत्ति, वेर, अदेखाई, स्वार्थ ने प्रभुत्ववृत्ति इ.ने कारणभूत गणाव्या छे. आळ चोरीनु, चारित्र्य-भ्रष्टतानु, मनुष्यवधनु के विद्रोहन एम अनेक प्रकारनु होय छे. आ आळ ज्यारे सत्य हकीकत आपमेळे योगानुयोगथी बहार आवे त्यारे ऊतरी जाय छे. अथवा तो आळनो भोग बनेली व्यक्तिनी निजी आगवी शक्ति द्वारा के अलौकिक बळनी सहायताथी पण ऊतरी जाय छे. आ उपरांत केटलीक वखत अंतरनो डंख असह्य बनता आळ मुकनार पोते ज कार्यसिद्धिने अंते आळ ऊतारवानी गोठवण करे छे. आळ परत्वेना उपर्युक्त विश्लेषण पछी तेओए दृष्टान्त लेखे संयोगोथी उदभावित आळमा स्यमंतक मणि अने मेतार्य मुनिना दृष्टान्त आप्यां छे, तो अलौकिक व्यक्ति के शक्तिथी उभावित आळमां गुणश्री, नळ -दमयंती अने पद्मश्रीना कथानकोनु संक्षेपमा आलेखन करे छे. लोक के व्यक्तिथी ठभावित आळमां सीताना लोकापवादनु दृष्टान्त टांक्युं छे, तो व्यभिचारनी मागणी नकारनार पर बलात्कारना दाखलाओमां प्राचीन मिसरी-साहित्यनी "बे बंधुओनी वार्ता" नो, "इलि अड" मांनो बेलेरोफोननी कथानो, 'बाईबल" मांना जोसेफ अने पोटिफरना प्रसंगनो, 'चुल्ल पदुम" के "कुणाल" जातक जेवी जातककथ'ओनो, रामायणनी शूर्पणखानी वातनो, कथासरित्सागरनी केटलीक कथाओनो, "हंसावली" नी वार्तानो तथा "पुरन भगत"नी दंतकथानो उल्लेख करेलो छे. १. Stith Thompson कृत 'Motif Index of Folk-Literature'-ए ग्रंथमां 'False Accusation-ए कथाघटकना, के-२१०थी-२१९९ सुधी क्रमांकोमां, आ कथाघटकनो क्रम के२१११ दर्शावायो छे अने तेनु नामाभिधान 'Potiphar's wife' तरीके थयु छे. 'Standard Dictionary of Folklore'-ए पुस्तकमां तेना पृ. ८८२ उपर तेनी विगतो प्राप्त थाय छे. २. पृष्ठांक २७० थी २८६ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002633
Book TitlePradyumnakumara Cupai
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKamalshekhar, Mahendra B Shah
PublisherL D Indology Ahmedabad
Publication Year1978
Total Pages196
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size9 MB
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