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________________ प्रद्युम्नकुमार-चुपई जेतलु थालइ ते संहरइ वडइ भागि भांगूं ऊगरइ बांभण कहइ सांभलि हो बाल अधिक पेटमाहि ऊपनी झाल ४२३ निहुतरिउ लोक सयल परिहरु मुझ बांभणनइ पूरु करु लाडू प्रमुख सवि आगलि धरिउ तउ सयल विप्रइ संहरिउ ४२४ तु राणी मन विलखी होइ इणि खाधी सघली रसोइ बांभण कहइ हूं भूखिउ हजी भात मेल्हि तूं कांइ जइ तिजी ४२५ राणी चित्ति ऊपनी रीसि कहि आणीनइ भाण प्रीसि भूखिउ बांभण तेणइ समइ थालि आगलि पाछु वमइ ४२६ सघल मांडवु उबकी भरिउ बांभण एहवु कुतिग करिउ, मांनभंग राणी तू करी कुमर गयु खोडु रूप धरी ४२७ (विकृत रूपे रुक्मिणीने महेले) नमिउ नमिउि चालइ बेवडउ लाठी लेई हीडइ बापडउ वडा दांत नइ विरूई देह तिहांथी आवइ मातागेह ४२८ खणि खणि रूपणि वझडइ आवासि खिणि खिणि ते जोइ बिडं पासि मूंह नइ रिखि जे कह्यां अहिनाण ते हूया आज मिलइ सुत जाण ४२९ रूपणिनइ मनि विसंभु थयु एतलइ ब्रम्हचार तिहा गयु नमस्कार तव रूपणि करइ धर्मवृद्धि खूधु उचरइ ४३० करइ आदर नइ विनु करइ कनयसिधासण बयसण देइ समाधान पूछइ समझाइ भूखिउ भूखिउ कही विलविलाइ ४३१ (विद्याप्रभावथी रुक्मिणीनी रंजाड) सखी बोलावी जणावी सार खीर रांधु म लाउ2 वार जिमण करवा लागी घणी समरी कुमरि अगनियंभणी ४३२ अन्न न सीझइ चूल्ह उ धूधूइ वली वली भूखइ कूकूइ हूं सतिभामानइ घरि गयु अन्न न पामिउ भूखिउ रिहिउ ४३३ जे कीधु ते लीयु ऊदालि मुझनइ भूख लागी ततकालि रूपणिनइ मनि ऊपनी कांणि तु लाडू ते आपइ आणि ४३४ 1. सहरइ 2. लउ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002633
Book TitlePradyumnakumara Cupai
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKamalshekhar, Mahendra B Shah
PublisherL D Indology Ahmedabad
Publication Year1978
Total Pages196
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size9 MB
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