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________________ तृतीय सर्ग लाडू आधु नारायण खाइ दिवस च्यार लगइ भूखि न थाइ रूपणि मनि बीहती कहइ कांई कांई हूं जाणुं छं हीइ ४३५ तु रांणी मनि विसमु कहइ एहवु पुत्र रहइ कुण घरइ जु कहूं तु कहिणु न जाइ इणि रूपइ नारायण न पीतीयाइ (?) ४३६ तु रूपणि मनि थयु संदेह जिमसंवर-घरि वाधउ। एह विद्याबल ए कन्हइ घणु धरि प्रभाव सही विद्यातणु तव रू[प]णी2 पूछइ तस नाम सामी कहु आपणू ठाम किहांहूंती तुम्ह हूउ आवणु दीधी दीख कहु गुर कवण जनमभूमि हूं पूछउ तुझ माता-पिता कहइ तूं मुझ लीयु व्रत बालक शा भणी वात पूछु हरखइ तुझतणी । ४३९ एणी वातइ रीसाणु सोइ गुरु बाहरी दीख किम होइ नांम ठाम गोत्र पूछइ तिस्यू सही तुम्हे व्याह करेसिउ किसुं ४४० अम्हे परदेसि दिशांतरि फरु भिक्षावर्तिइ भोजन करूं सिउ तूठी तुं मुझनइ देसि रूठी तु सिउ मुझ कन्हइ लेसि ४४१ खोडउ दीठउ रीसाणु जाम मनि विलखाणो रूपणि ताम वली मनावइ बे कर जोडि हूं भूली तुम्हे म धरु कोप ४४२ तव कुमर बोलइ तिणि ठाय मनमांहि तूं कांइ झूरइ माइ साचं वचन कहइ तूं मुझ जिम हुँ4 ऊत्तर आपुं तुझ ४४३ तुं जंपइ मनि करीय उछाह जिम रूपणिनउ हूयु वीवाह जिम परदवण पुत्र घरि थयु धूमकेत जिम हरी लेई गयु ४४४ जिमसंवर-घरि वधिउ कुमार मुझनइ कहिउं नारदरिखि सार बीजा वचन मुझ कहीयां जेह सवि संहिनाण पूरीयां तेह ४४५ हजीय पुत्र न आविउ सोय तिणि कारणि मनि विलखी होय सतिभामा-घरि घणउ ऊछाह भानुकुमरनु आनिउ वीवाह ४४६ हारी होड न सीधूं काज तिणि कारणि सिर मुंडइ आज माता पासि कथांतर सुणिउ हाथ कूटीनइ माथू धुणिउं ४४७ 1. वाधुउ 2. रूण 3. आपणू 4. हं 5. ऊछह Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002633
Book TitlePradyumnakumara Cupai
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKamalshekhar, Mahendra B Shah
PublisherL D Indology Ahmedabad
Publication Year1978
Total Pages196
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size9 MB
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