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________________ प्रथम सर्ग रिखिसिउं सुंदरि बोली ताम हवइ बोलणनु नही य ज ठाम जे अरिराय सुत क्षयर्नु काल ते परणवा आविउ सिसपाल ४० तां निसुणी नारदरिखि कहइ त्रिखंडलोक सहु आन्या वहइ छप्पना कोडि यादवनु नाह ते मूकी कुण करइ वीवाह ४१ पूर्वकर्म न मेटइ कोइ जेहनइ सिरजी परणइ सोइ यम रहउ कुमरि वात आपणी नारायण परणइ रुखमणी ४२ तव सुंदरि मनि ऊपनी रली रखि अइमत्तनी वात ज मिली नारद निसुणि मइ वरीयु नाह किणि जुगतिइ होसिइं वीवाह ४३ रिखि बोलइ तुम्हि एम सधरु नागपूजण देहरइ संचरु नंदनवनमाहि करु सहेट तिहां आणी करावु भेट तु जंपइ रुखमिणी कुमारि किम उलखीइ कण्ह मुरारि नारदरिखि कहइ सुणि अहिनाणि संख चक्र जस दीसइ पाणि । हरि पहिरणि पीतंबर जास बंधव नीलवस्त्र हूइ तासु सारिंगधनुष करि जेहतणइ ते नारायण नारद भणइ खरी वात कही रिखि जाइ रुखमणिरूप पटिइ लिखाइ चडि विमानि रखि आविउ तिहां सभा नारायण बइठउ जिहां ४७ (नारदऋषितुं श्रीकृष्णनी पासे पुन: आगमन ) हाथमांहि पट देखिउ जाम हरि ऊखेली जोइ ताम रुखमणिरूप दीठउ जिसिइ कामविवहल हुउ तिसइ कइ अपछर ए देवहतणी कइ मोहणि तिलोत्तमवणी कइ विद्याधरतणी कुमारि कुणइ रूप सिखिउ संसारी नारद कहइ सुणउ तुम्ह राय कुंडनपुरि छइ एहनु ठाय । पुत्री राजा भीखमतणी अनोपम रूपइ छइ रुखमिणी ५० (कृष्ण द्वारा रुक्मिणीनी मागणी अने रुक्मीए करेलो तेनो उपहास ) एह वात जव कांने सुणी महितइ जइ मागी रुखमिणी दूतवचनि ते हसिउ कुमार गोपी हीनकुलइ अवतार 1. छप्पन्न 2. मुररि Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002633
Book TitlePradyumnakumara Cupai
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKamalshekhar, Mahendra B Shah
PublisherL D Indology Ahmedabad
Publication Year1978
Total Pages196
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size9 MB
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