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________________ ५२ प्रद्युम्नकुमार-चुपई अन्याइए भूईं। घणउ कंसवधी इहां आविउ सुणउ मूढ मनोरथ मोटउ करइ उत्तम राय कुमरि किम वरइ दूहा हियउं मणोरह तं करइ जं करवा असमत्थ । सग्गिहि अंब मउरीयउ तांह पसारइ हत्थ ॥३ श्लोक दास्ये मैथुनिकाया शिशुपालाय भूभुजे । उचितो ह्यनयोर्यागो रोहिणीशशिनोरिव ॥४ इति श्रुत्वा स दूतोऽपि तद्वाचं परुषाक्षराम । आगत्य कथयामास स्वामिने पीतवाससे ॥५ चउपई एह वात रुखमणि सांभली धावि आगलि कही ते वली माय तिम करु जिम हुइ एह विषम प्रीतिमेलापक जेह कृष्ण-अभिलाष माइ जाणीयु एक दूत प्रछन आणीयु कहि तु जईनइ यादवराय चीरी आपी लागी पाय ५३ - श्लोक माघमासे सिताष्टम्यां नागपूजामिषादहम् । रुक्मिण्या सह निर्गत्य यास्याम्युद्यानवीथिकाम् ॥६ आगंतव्यं त्वया तत्र रुक्मिण्या चेत्प्रयोजनम् । अन्यथा शिशुपालोऽमूं परिणेष्यति मानद ॥७ इतश्च शिशुपालः स आहूतस्तेन रुक्मिणा । उद्वोढुं रुक्मिणीमागात् ससैन्यः कुंडिनं पुरम् ॥८ तत्रायातं शिशुपालं रुक्मिणी-वरणोद्यतम् । ज्ञापयामास कृष्णाय नारदः कलिकौतुकी ॥९ 1. भूडु Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002633
Book TitlePradyumnakumara Cupai
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKamalshekhar, Mahendra B Shah
PublisherL D Indology Ahmedabad
Publication Year1978
Total Pages196
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size9 MB
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