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________________ प्रथम सर्ग ५५ ५६ ५७ चउपई (श्रीकृष्ण तथा बलदेवर्नु कुंडनपुर तरफ प्रस्थान ) राइ वात सवे संभली हीयडइ हरख ऊपनु वली। राम सहित रथि बइठा जिसइ रथिकारइ रथ खेडिउ तिसिइं पवनवेगि कुंडनपुरि गया वनमांहि नागभवनि जई रहा स्थ छोडीनइ बेइठा जिसिइ दूतइ वात जाणावी तिसिइ (रुक्मिणीनुं नागपूजन करवा जर्बु) दूतवयणि रूपणि हरखेय । मोतीमाणिक थाल भरेइ घणी सहेली भेगी करी नागपूज करिवा संचरी उतावले पूजइ नागराय आवी वनमांहि घणइ उछाय पेखी नारायण-* रूप उलखीयु तिणि निजपति भूप (रुक्मिणीहरण) तु रूपणि मनि गयु संदेह महनइ लेयण आविउ एह रुखमणि रथि बइठी जेतलइ पवनवेगि रथ गयु तेतलइ सहेलि धावि बूंबारव करइ धूतारा रुखमणिनइ हरइ गाममांहि जव गई पुकार रूपीराय तव जाणी सार (रुक्मीरायनी कृष्ण साथेना युद्धनी तैयारी) कोपारूढ थयो असवार2 साहणतणउ नवि लहीइ पार मोटा मयगलनइ मदि भर्या तीखा तुरीय तुंग पाखऱ्या पंचशब्द वाजां वाजति । राउ नीकलिउ पूठि तुरंति सिसपालइ वात सवि सुणी ते कुण लेई गयु रुखमणी (शिशुपालनी युद्ध-तैयारी) तिणि कोपिइ बोलिउ नरेस तुरीय पल्हाणु वेगि असेस रहवर सजु गयवर गडउ कोपारूढ सुहड रणि चड्डु 1. मांहिं ६१ ६३ 2. असवर * नारायणनु Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002633
Book TitlePradyumnakumara Cupai
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKamalshekhar, Mahendra B Shah
PublisherL D Indology Ahmedabad
Publication Year1978
Total Pages196
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size9 MB
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