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________________ प्रद्युम्नकुमार-चुपड़ें राउत करी सजउ हथीयार सिसपालनइ भीखमराइ घोडांखुरी खेह उछली तेणइ छाहिउ नवि दीसइ भाण Jain Education International धनुषबाणनउ करिउ टंकार बिइ दल पूठि वेगइ जाय गयांगणि। जईनइ मिली देखी सुंदरि कह सुजाण श्लोक दृष्ट्वा च चकिता रुक्मिण्युवाचांकस्थिता हरिम् । क्रूरो महौजा मद्भ्राता शिशुपालश्च तत्समः ॥ १० तद्गृह्या बहवोऽन्येऽपि वीराः संवर्मिता इह । युवां त्वेकाकिनावत्र तेन भीतास्मि का गतिः ॥ ११ हसित्वा हरिष्यूचे मा भैषीः क्षत्रिया ह्यसि । केsमी वराका रुक्म्याद्याः पश्यादः सुभ्रु मदबलम् ॥१२ इत्युक्त्वा तत्प्रत्ययार्थमर्धचंद्रेण शांर्गभृत् । तालालीकघातेन नालपंक्तिमिवाच्छिदत् ||१३ सुंदरि तूं म करसि अंदोह सिसपाल रूपी दल घणुं पीहर स्वांमी माहरु एह वात कहता दल आविउ घणूं वाजां वाजइ अति निसाण वाजइ नफेरी रणतूर 1. गयणगणि अंगुलीयकवचं चांगुष्टांगुलिनिपीडनात् । दलयामास निर्भष्टमसूरकणलीलया ॥१४ तेन पत्योजसात्यंतं रुक्मिणी प्रमदं दधौ । पद्मिनीव प्रभातार्कतेजसा विकचानना ॥१५ चउपई बल देखाउउ माहरु तोह सघलं हणुं कटक एहणुं रुखमीराय राखेजो तेह ते देखी हीयुं रणझणउं कायरता तव पडइ पराण अति आवइ उजेणी सूर For Private & Personal Use Only ६४ ६५ ६६ ६७ ६८ www.jainelibrary.org
SR No.002633
Book TitlePradyumnakumara Cupai
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKamalshekhar, Mahendra B Shah
PublisherL D Indology Ahmedabad
Publication Year1978
Total Pages196
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size9 MB
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