________________
प्रथम सर्ग कृष्ण कहइ भाइसिउ बहू बलिभद्र तुम्हे लेई जाउ वहु
तव धाई बोलीउ शिसुपाल पडिउ फेटि किम जाइ गोवाल ६९ (श्रीकृष्ण अने शिशुपालनी वच्चे युद्ध)
वस्तु सेसपालह सेसपालह दिठ हरिराय जाणे विस्वानरि घृत ढलिउ तेम चिहुंजण क्रोध उपनु धनुषबाण लेई करी
पुत्ववयर मनमाहि सलिउं चोरी रूपणि लेइ गयु ए तइ करिउ उपाय किहां जासि तुं दृष्टिइं पडिउ तव भांजु भडवाय
चुपई दुष्ट वयण काने सांभली कोपारूढ कृष्ण थयु वली धनुषबाण लीयु जव करिई सिसपाल वींधिउ ते शिरइ दोइ पचारि वढइ वरवीर वरसइ बाण जिम जलहरनीर गदाइ गज रथ चूरंति कायर भागां दह दिसि जंति ७२ धणुह चडावी लिई सिसुपाल पांच बाण नांख्या ततकाल नारायणनंइ नांखइ बाण तव नारायण करइ पराण ७३ बेहु राय वढइ रणि वीर बिमणां बिमणां नांखइ तीर पुहवि न सूझइ तीरह पडइ दडातणी परि शिर2 रडवडइ हाथि चक्र फेरी पेसीयु छेदी सीसनइ हरिनइ दीयु रुधिरनदी जब वहती दीठ विषम झूझ इहां न्हातूं नीठ कहइ रुखमणी कृष्णसिउ आय राखु रूपचंदनइ ताय शांति करू छांडु मनवयर आपुं कुंडनपुर वरनयर सुंदविचनि करिउ पसाय छोडि मेलिहउ भीखमराय
रूपचंद पगि लागी करी आविउ नयरिइ कुंडनपुरी (वनमा श्रीकृष्ण अने रुक्मिणीना विवाह )
चालिउ हलधर हरि लेइ नारि दीठउ मंडप वनह मझारि वृक्ष अशोकनी शीतळ छांह च्यारइ जाइ पहूता तिहां 1. जांति 2. शिर
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org