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प्रद्युम्नकुमार-चुपई
तो चिताराने पूछयु. आ सांभळी चिताराए पृथ्वीरूप राजानां वखाण करी तेनी छची बतावी. रूपलता आ चित्र जोतां ज अत्यंत कामातुर थई गई. ते जोई रूपधर राजाए चिताराने रूपलतानु चित्र आपी पृथ्वीरूप राजा पासे मोकल्यो. चित्रकारे पृथ्वीरूप राजा पासे आवी संदेशो कह्यो अने चित्रमा आलेखेली रूपलता बतावी. पृथ्वीरूपराजा ते जोई आभो ज बनी गयो. बीजे दिवसे ते मुक्तिपुर तरफ विदाय थयो. इत्यादि.......
उपग्नी कथामां, चित्रकार बजारमा राजानी छचीवाळो पडदो लटकावी राजाने आकर्षेछ, ज्यारे कथासरित्सागर'नी 'कनकवर्ष अने मदनसुंदरी'नी कथामां एक चित्रकार पोतान) निपुणतासूचक एक पडदो सिंहपोळ उपर लटकावी राजकंवरने आकर्षे छे. ट्रकमां कथा आम छे':
कना
कनकपुर नामना नगरमा प्रियदर्शननी राणी यशोधराने पेटे कनकवर्ष नामनो कुमार जन्म्यो हतो. एक दिवस आ कनकवर्ष चित्रप्रासादमां गयो, त्यां प्रतिहारे आवीने कां के विदर्भदेशमाथी रोलदेव नामनो चित्रकार आव्यो छे. पोतानी निपुणतासूचक एक पडदो सिहपोळ पर लटकावी रहेलो ते पोताने सर्वश्रेष्ठ गणे छे.' राजाए तेने तेडी मंगाव्यो अने चित्रकारनी विनतीथी तेने पोतार्नु चित्र दोरवा जणाव्युं, त्यारे त्यां बेठेलाओए कह्य के 'आ चित्रमा एकला राजाने जोवा नथी इच्छता, माटे चितरेली भींत उपर जे राणीनां चित्र आलेखेलां छे तेमाथी योग्य राणीने राजानी पडखे आलेखो.' त्यारे चित्रकारे कर्तुं के, 'आमाथी कोई राणी कनकवर्षने योग्य नती, परन्तु तेने योग्य विदर्भदेशमा कंडिनपुर नगरमां राजा देवशक्तिनी अनंतवती राणीना मदनसुंदरी नामनी राजकन्या छे.' एम कही, ए मदनसुंदरी पण राजा प्रत्ये कामातुर थई कामज्वरमां प्रजळे छे एम जगाव्यु. ते सांभळी राजाए ए मदनसुदरीनु चित्र रोलदेव पासे माग्यु त्यारे एक पेटीमाथी एक सुंदर चित्रपटमां आलेखेली मदनसुंदरी तेणे राजाने बतावी. कन्याद् अदभुत लावण्य जोई राजा तरत ज मदनवश थई गयो अने मदनसुंदरीनुं मागुं कर्यु. देवशक्ति राजाए ते वचन कबूल कयु।
आगळ जोयुं तेम कोई कथामां तापसी के कोई कथामां चित्रकार, चित्रद्वारा अनुराग उपजावधामा निमित्तरूप थाय छे. 'कथासरित्सागर'मांनी 'सुंदरसेन अने मंदारवतीनी कथा'मां कोई एक साधुडी चित्र द्वारा नायक-नायिकामां अनुराग उत्पन्न करे छे. टूकमां कथा आ प्रमाणे छे:
नैषधदेशनो राजकुमार सुंदरसेन मृगया माटे वनमा जतो हतो एवामां कात्यायनी नामनी माधडीप तेनी पासे आवी, 'राजकुमारनो विजय थाओ'-एम का', पण राजकुमारे सांभळ्य नहि तेथी ते साधुडी गुस्से थईने बोली के 'जुवानी अने बीजा गुणोने लईने तने मत्सर छे, पण ज्यारे त हंसद्वीपना राजानी मंदारवती कन्याने परणीश त्यारे तुं एटलो मदमत्त थर्डश के कोईन सांभळोश नहि !'
गजकुमारे मंदारवती विषे पूछयुं त्यारे साधुडीए तेना गुणगान गायां. त्यारबाद राजकुमारे तेन रूप बताववा का त्यारे साधुडीए झोळीमांथी वांसनी एक भू गळीमा राखेली, एक कपडा पर दारेलो मंदारवतीनी छवी राजकुमारने बतावो. चित्र जोतां ज सुंदरसेन स्तब्ध बनी गयो अने १. कथासरित्सागर'--'अलंकारवती लंक' -तरंग ५मो-गुज भाषां. पृ ६८१. २. 'कथासरित्सागर'-'शशांकवती लंबक'-तरंग ३४मो, गुज. भाषां. पृ. १२१९.
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