SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 168
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ एहनइ लेई बाहिरइ बांह साही वनमांहि धरु पंचम सर्ग सूली रोपु जाइ म ते जाइ पलाइ ६८१ चुपई ६८२ ६८४ ग्रीव ग्रही तव करइ पुकार इंबडूब! अम्हे रह्या अपार हाथ आलवणि सींगालीयां । हाट चुहुटां सवि भरि गयां ततखिणि पुरुवर थई पुकार रूपचंदराइ जणावी सार . रहवर गयवर हय पल्हणाइ क्षण एक मांहि पहुता आय ६८३ संबकुमर परदवणह जिहां रूपचंदराय आविउ तिहां. एक तका(?) सवि एकइ साथ सींगां लेई आलवणि हाथ देखि डंब मनि चितइ राउ नीचजातिनइ किम करूं घाउ धनुष चडावि बाणि जव हण्या ते पांहि अवर मिल्यां चुं गणा ६८५ कोपारूढ पजून तव थयु धनुष चडावी ऊभु रहिउ अगनिबांण जउ मूंकिउं जिसइ झूझत क्षत्री नाठा तिसइ ६८६ (रूपचंद अने तेनी कन्याने लई प्रधुम्ननुं द्वारिकागमन) भागी सेन गयु भडवाउ बांधिउ मांमु गलइ देई पाउ लेई कन्यानइ रूपचंदराय द्वारिकांनयरी पहूता आय रूपराय लेई पहुतु तिहा नारायण बइठउ छइ जिहां रूपचंद हरि दीठउ नयणि अरे राक सिउं बोलिउ वयणि () ६८८ (श्रीकृष्ण द्वारा रूपचंदनी मुक्ति) तव हसि4 कृष्ण वात इम कही ए भाणेज तुम्हारु सही ए विद्याबल6 पवरख घणु जिणि जीतु पिता आपणु ६८९ तव हसि माधव कीयु पसाउ बांधिउ छोडिउ रुखमीराय रूपचंद पजूनकुमार हसि आव्या रूपणि घरि बारि ६९० 1. डूंबड़बः 2. सीगाः 3. जाणावीः 4. हंसिः 5. वीतः 6. विद्यबल: Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002633
Book TitlePradyumnakumara Cupai
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKamalshekhar, Mahendra B Shah
PublisherL D Indology Ahmedabad
Publication Year1978
Total Pages196
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size9 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy