SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 167
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ प्रधुम्नकुमार-चुपई ६७७ डूबरूप बेहू जण थई चहुटामांहि आव्या ते वही पजन आलवणी करइ अपार सांबकुमर बीजी करइ सार ६७४ लोक मोह्या चहुटा मझारि वलि पहुता ते सीहदुयारि बहु परिवारसिउं दीठउ राउ पजून तिहां जाई करइ व्रम्हाउ (?) ६७५ ... कवित नाद छंद घणा प्रदिमन गाइ ते आपणा अवर गीत सवे परिहरइ यादवनी बहु कीरति करइ ६७६ यादवतणउ नाम ... यु सुणतां रूपचंद कोपीयु घणां गीतनी जाणु सार किहां हूता आव्या वेकार ( रूपचंदने प्रद्युम्ने आपेलो पोतानो परिचय) नयर द्वारामति कहीइ ठाउ तिहां छइ नारायण यदुराउ पटरांणी राणी रुखभिणी वारू सहोदरि जे तुम्हतणी तुम्ह प्रति रूपणि मोकलिउ दूत बलतु ते द्वारिका पहूत तुम्हे कहिउ ते कहिउं आय तिणि सहेटि अम्हे आव्या राय ६७९ बोल बोलिउ ते करु प्रमाण सुपरि सभाष न हुइ अप्रमाण बोल पालि म धरिस संदेह बेहूं पुत्री अम्हनइ देह ६८० यतः असारे खलु संसारे वाचा सारं हि देहिनाम् । वाचा विचालिता येन सुकृतं तेन हारितम् ॥2 ३३ ६७८ (रूपचंद साथे अथडामण) वस्तु सुणिय कोपिउ कोपिउ जाणे विस्वानर घृत ढलिउं प्राण जीव बोलत गयउ रूपचंदराउ धुणवि सीस सवि अंग कंपिउ एह बोलतइ कवण जपिउ 1. आपणा 2. असारतस्य संसारस्य वाचा सारस्य देहिनां । वाचा विचलिता जेन सुक्रतं तेन हारितं ॥ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002633
Book TitlePradyumnakumara Cupai
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKamalshekhar, Mahendra B Shah
PublisherL D Indology Ahmedabad
Publication Year1978
Total Pages196
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size9 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy