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पंचम सर्ग
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दूत मोकलिउ घणइ उल्हासि आविउ रूपचंद्रनइ पासि स्वामी वात सुणउ मुझतणी हूं तुम्ह कन्हइ मेलिहउ रुखमिणी ६६२ संबकुमार कुमर परदवण तेह पवरख जाणइ सव कुण जिम अम्ह तुम्हसिउं वाधइ नेह बिहु कुमरनइ बेटी देह ६६३ सुणी वात रुखमीराय कहइ रुखमणि हजी कांई नवि लहइ यादववंसि पुत्र जे होइ तेहनइ बेटि! दिइ ते कोइ ६६४ कही वात दूत समझाइ तूं कहिजे रुखमणिनइ जाइ आगइ तइ पवाडु कीयु वात कहतां ते दूखइ हीयु ६६५ तइ सिसिपाल मराविउ सही तुझथी माहरी नाम अति गई हजी वयण कहइ तू एह बेटी किम दिउ सिउं सनेह सुणी क्यण विलखाणु दूत द्वारिकनयरी आय पहूत वात कही रुखमणिनइ सहू रुखमीराय न दिइ ते वह भाई रुखमणि प्रति एहवु कहिउं अम्हतुम्हमांहि किसुं सुख रहिउं
पहिलं काम तइ अँडु2 कीयु तुम्हनइ छोडि डूंबनइ दीयु ६६८ (मानभंग थयेली रुक्मिणीने प्रद्युम्न द्वारा सान्त्वन)
निसुणि वात विलखाणी वयणि दुखभरि अपातिइ3 नयणि मानभंग एणइ माहरु कीयु ते कहतां मुझ दूखइ हीयु अश्रूपाति दीठी रुखमिणी पूछी वात माइ आपणी कवण काजि मा तुम्हे दुख धरु तेय वयण वेगइ ऊचरु रूपचंदनी वात सवि कही ते वयण मुझ सालइ सही मइ जाणिउ मुझ भाई अछइ .... वात किम करी ते पछइ ६७१ निसुणि वयण परदवण रीसाइ हीन वचन तेणइ बोलिउं माइ
रूपचंदनइ जीपू पचारि छ. . . . इ पर' नारि ६७२ (साब-प्रद्युम्ननु कुंडिनपुर तरफ प्रस्थान : चांडाळवेशे वीणावादन)
पजूनइ चीतवी ते बुद्धि घणी समरी विद्या बहुरूपिणी सांव-पजनकुमर गहगह्या पवनवेगि कुंडन ... या
६७३ 1. बोटिः 2. भुईं 3. आंशुपातिइिः 4. अंपातिः 5. रूपचंदन्नी
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