SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 154
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ५३८ ५३९ चतुर्थ सर्ग (युद्धसज्ज थता श्रीकृष्ण) दीठी सेन पडी भुंइ जाम कोपारूढ कृष्ण ताम ततक्षणि हाथि लीइ करि चाउ अरीयणदल भांजु भडवाय ताउ कुमार मनि कोपइ चडिउ जाणे परबत खडहडिउ हालइ महीयलि सलकइ सेस तव संग्रामि चलिउ रायकेस ५३६ जव रणि चालिउ रथ आपणउ तव फरकिउ लोचन जीमणउ वली जीमणुं। आंगज करइ सारथि निसुणि स्युं स्यु सुख करइ ५३७ रणि संग्रामि सेनु सवि हणी वाली लेसु राणी रुखमिणी तु न ऊपजइ कोप सरीरि कारण स्यु कहीइ रणिधीर ततक्षण सारथि लागु कहण अचंभु कृष्ण एही कवण तुम हाकइ भाजइ अरि सामटा जिम केसरि गंधइ गजपटा तव बोलइ केसव वरवी वरवी निसुणि वयण तूं क्षत्री धीर तइ मुझ सेन सयल संहरिउ मुझ भांमिणि लेई सिउ करिउ __५४० पुन्यवंत तुं4 क्षित्री कोइ तुझ ऊपरि मुझ कोप न होइ जी(?) जीवीदान मइ दीधू तोइ पाछी रूपणि आपु मोइ ५४१ (प्रद्युम्न द्वारा श्रीकृष्णनी वीरतानो उपहास) । तु हसी बोलइ परदवण इसी वात कहइ रणि कवण तुझ देखत मइ रूपणि हरी तुझ देखत सवि सेना पडी ५४२ जे तूं रणमांहि जीतिउ विगोय. तेह सिंउ हवइ साथ किम होइ। लाज न हुइ तुम्ह हरिदेव मुझकन्हि भामिनि मांगइ केव ५४३ मइ तू सुणिं झूझ आगलु हवइ मइ दीठउ ताहरु तलु कांई नु हुइ तुम्हारइ कीइ सेन पडी तुम्हे हारिउ हीइ ५४४ तु प्रदिमन हसी करि कहिउ तइ सवि कटक पडिउ सांसहिउ ताहरु मन मइ परखिउं आज तुझनइ पणि नही रूपणि काज ५४५ छोडी आस तइ परिगहतणी वली तइ छोडी ते रुखमिणी जाउ ताहरइ मनि किसी नही आहि पभणइ कुमर जीव लेई जाहि ५४६ 1. जामणु 2. सारदि 3. कारण 4. तं Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002633
Book TitlePradyumnakumara Cupai
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKamalshekhar, Mahendra B Shah
PublisherL D Indology Ahmedabad
Publication Year1978
Total Pages196
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size9 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy