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________________ प्रधुम्नकुमार-चुपई (आसक्तिनुं कारण) छेहडउ छोडावि वनिइं आवीयु रिखि दीठउ बयठउ भावीयु पाय पणमी बइठउ जिसिइं मुनिवरि कुमर बोलाविउ तिसिइ २९५ कनकमाल माता मुझतणी मुझनइ देखी कामिइ हणी छेहडउ छोडावी आवीउ इहां आधी वात न जाणं! तिहा २९६ यत: किं न पश्यति जात्यंधो कामांधो नैव पश्यति । न पश्यति मदोन्मत्तो अर्थी दोषो न पश्यति ॥२९ (प्रधुम्ननो जन्म-वृत्तान्त) तव मुनिवरनां वयणह सुणी कहुं वात तुझ मातातणी भरतखेत्रमांहि सोरठदेस नयर द्वारामति सोहइ नसेस २९७ कृष्णराय तिहां साहस धीर तह समवडि को नही जग वीर तेहनी घरणि अछइ रुखमिणी जिहि जस कीरती वाधी घणी २९८ तेह समी नवि पूजइ कोइ प्रदिमनकुमर माय तुज्ञ होइ धूमकेतु वयरइ तूं लीयु मोटी सिल हेठि चांपीयु २९९ एणइ जिमसंवरि पालिउ आणि ते प्रद्यूमनकुमर तूं जाणि पूरवभवि तुम्ह हुतु नेह भोग भोगव्या अतिहि सनेह ३०० इणि भवि तेहथी अपनु राग तुझनइ कहुं ते देखी लाग जु ए तुझसिउ प्रेमरसलीन छलकरि लिइ जई विद्या? तीन ३०१ (कनकमाला पासेथी विद्याप्राप्ति) कुमर सुणीनइ वली घरि गयु कनकमाल पासि ऊभु थयु त्रिणि विद्या जु मुझनइ देहि जुगतु ताहरुं वयण सणेहि वात कुंमरनी काने सुणी प्रेमलबधि अकलाणी घणी जिमसंवरनी न करी काणि त्रिण्हइ विद्या आपी आणि ३०३ कनकमाल कहइ पूरु रली कुमरतणइ पगि लागी वली कुमर कहइ माता मम कहूं जुगताजुगतिइ आपणी रहु .. 1. जाणं 2. वद्या ३०२ ३०४ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002633
Book TitlePradyumnakumara Cupai
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKamalshekhar, Mahendra B Shah
PublisherL D Indology Ahmedabad
Publication Year1978
Total Pages196
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size9 MB
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