________________
।
२८६
२८७
तृतीय सर्ग जिहा जिहा आपणि मोकलिउ तिहि तिहि मरणह ठाम एहनइ तिहां सहूइ मिल्या नारिप्रमुख लाभ ताम प्रद्यमनकुमारतणुं बल
देखिउ भाई जाम सवि कुमर आवी करी तेहनइ करइ प्रणाम
वस्तु2 पुन्य बलवंत बलवंत
अछइ संसारि पुन्य सेवइ सुर सयल पुन्य पुहवि अरिहंत भाखइ पुन्यइ अणचित्तिउं फलइ मरणभय ते पुण्य राखइ रिद्धिवृद्धि पुन्यइ मिलइ पुन्यइ राजभंडार पुन्यइ सवि आवी मिलइ जिम प्रदिमनकुमार
२८८ (प्रद्युम्ननी विद्याप्राप्ति)
चुपई विद्या सोलइ लेई सार चमर-छत्र सिरि मुगट अपार नागसेज ते रयणे जडी अगनिपटउ वीणा पावडी विजयसंखनु साद अपार चंद्रसिंघासण सेखरहारि हाथिइ काममुद्रडी धरी पुप्फवास करि कडिहि छरी २९० कुसुमबाण4 ते हाथइ लेई कुंडलयुगल कांनि पहिरेइ कंकणयुगल पुप्फमाल धरी राजकुमरि बिइ परणी करी २९१ प्रदिमनकुमर लेई आवीयु राइनइ मनि ते अति भावीयु
घणी भगति करि लागु पाय राजा मिलवा ऊभु थाय २९२ (कनकमालानी प्रद्युम्न पर आसक्ति)
मिली कुमर घरिमाहि गयु कनकमालनइ आणंद थयु विनउ करीनइ प्रणमइ पाय पुत्र देखी रांणी परवसि थाइ २९३ कामातुर ते थयु शरीर धाई साहिउ अंचलि वीर कामवचन स्त्री कहइ तिहां घणा कुमरइ नवि मांन्यां तेहतणा २९४ 1. तिहिं 2. वस्त 3. अगनिपडउ4. कुसम 5, कुडल
२८९
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org