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प्रद्युम्नकुमार-चुपई अमरदेव तिहां आविउ धसी ते जीतु प्रद्युमनइ। हसी अमरदेव तिहां आदर करइ कंकणयुगल ते आणि धरइ २७४ सिखर मुगटनइ वस्त्रहसार ऊपरि आपिउ नवसरहार आघु बारसेण गुफाई गयु कुमर जई तिहां उभु थयु तिणि ठामिई अमर छइ कोइ वाराहरूप करइ ते सोइ रुप सूयरनुं करीनइ लडिउ हणिउ कुमरि दंतूसलि पडिउ २७६ पुफबाण दीयु तेणि देवि विजयसंख आपिउ तिहि खेवी .... .... पर वलि आघु जाइ दुष्टजीव जिहां बइठा आय २७७ दीठउ वीरमाणस बांधीयु तेय छोडिनइ साथिई लीयु जिणि विजाहरि . . . रिउ ते पणि मित्र करी अणसरिउ २७८ ते विद्याधर लागी पाय । इंद्रजाल विद्या दिई भाइ तव वसंतमनि हुयु उ[छाह] .... .... .... करिउ विवाह २७९
दूहा ते साथइ वनि जाइ आवी लागु पाय चालिउ वनिहि तुरंति तालतमालह भंति
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विद्याधर लागा पगे जूझ करिउ वनजक्ष तिहां कुसुमबाण2 तेणइ सुरि दीयु सरल तरल पेखइ घणा सिला फटिकनी दीपती जपइ जाप ते अतिघणा विद्याधर ते पूछीया रति नामा ए सुंद[री] ए कन्या परणु कुमर तव मनि हरख हूउ घणुं एतलं लेईनइ गयु कुमर सरूप देखी करी 1. प्रद्यमनइ 2. कुसमबाण
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रूडा इणि संसारि नारी छइ ए कवण .... .... ....रूव परदमण मइ ए तुम्हनइ दीध कुमर वीवाह ज कीध भाइ पंचसइ3 पासि वयण कहइ उल्हासि
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3. पंचमइ
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