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________________ ७१७ ७१८ ७१९ ७२० षष्ठम सर्ग तुम्ह दर्शनि हूं दुतर तरिउ तुम्ह दर्शनि संसार नवि फिरिउ करी स्तुति नइ हरखिउ राय नरकोडिमांहि बइठउ जाइ जिनवरवांणी मुहि नीसरइ सुर नर जीव सयल मनि धरइ कृष्ण कहइ ए द्वारापुरी स्वर्ग! समान अहीई अवतरी गढमांहि छपन कोडि गहइगहइ बहुत्तरि कोडि बाहरि ते रहइ छप्नन्न कोडि यादव तेहतणा बीजा लोक वसइ तिहां घणा (द्वारिकानगरीनु भविष्य ) पूछी वात नारायण रहइ मननु सांसु श्रीजिन कहइ द्वारिकनयरी निश्चल होइ अम्हनइ तुम्हे कहु वलि सोइ श्रीजिन कहइ कृष्ण तुम्हे सुणउ नयरी हुसिइ उपद्रव घणु क्षय करसिइ द्वीपायन वली मदिरापांनथी कहइ केवली यादव सयल जलेसिइ इहां हरि-हलधर उगरिसिइ तिहां जराकुमरनइ बांणइ करी हरिनूं मरण हुसिइं इणपरि सुणी वात श्रीजिनवर पासि सयल द्वारिकां हुई विणास द्वीपायन तापस थई गयु जराकुमर वनवासी थयु नेम-जिनेस्वर वांदी करी नारायण नयरइ संचरी मदिरा करतां वारिउ सहू मदिराभाठी फोडी बहू (यादवकुमारो द्वारा द्वैपायनमुनिनु अपमान) एकदा कुमर खेलवा गया2 मध्यान्हइ ते तिरस्या थया नीर जोइवा जाइ जिसिइ मधु हेठि नीर दी ठ]उं तिसिइ मांहि महूडां पडीयां बहू आवी नीर आरोगिउं सहूं : मदिरापानि कुमर ऊछल्या द्वीपायननइ जाई मिल्या झूटा साह्यां द्वीपायनतणां घटि मुठि नइ गडदा घणा मारइ कुमर निसंकहपणइ ध्यांनि छंडावित्रं ते आपणइ3 : 1. स्वH 2. गय्या 3. आपणइ ७२२ ७२३ ७२५ ७२६ ७२७ 10. Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002633
Book TitlePradyumnakumara Cupai
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKamalshekhar, Mahendra B Shah
PublisherL D Indology Ahmedabad
Publication Year1978
Total Pages196
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size9 MB
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