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प्रद्युम्नकुमार-चुपई निसुणि वयण मा हुँ कहं तुझ नारद लेई आविउ मुझ . वली परदवण कहइ कर जोडि उदधिमाल मइ लीई विछोडि (प्रद्युम्न साथे रुक्मिणी यादवोनी सभामां)
हसी वयण रूपिणि तब कहइ उदधिमाल कन्या किहां रहइ तव कुमर कहइ समझाइ बोलइ एक हूं मागू माइ बांह साहीनइ सभामझारि लेई जायु यादवह पचारि भणइ माइ सुणि साहसधीर ए यादवमांहि बलवंतवीर बलभद्र-कन्हइ घणुंय परांण ए आगलि कोइ न सकइ जांण पांचइ पांडव पांचइ जणा अतुलबल कुंतानंदणा छपनकोडि जादव बलबंद जेहनइ भय बीहइ त्रिखंड एहवा खित्री वसइ बहूत किम तू जीपसि ए[क]लु पूत
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वस्तुछंद
ताम कोपिउ कोपिउ रणि त्रोड भड अतुलबल हरावू रणि पंडवह नारायण हलधर जिणवि इक जिनवरसिउ नवि चलइ
भणइ परदवण मलउ मान यादव असेसह जीपिसि सर्व सूरा नरेसरह सयल करुं संहार स्वामी नेमकुमार
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चुपई
कोपारूढ पजूनह थयु बाह साही माता लेई गयु
सभा नारायण बइठउ जिहां रूपणिसिउं संपतउ तिहां ४९२ ( रुक्मिणीने छोडाववा यादवोने आहवान)
देखि सभा बोलिउ परदवण तुम्हमांहि बलवंत क्षत्री कवण हूं रूपणि लेई चालिउ दिखाइ जिहि बल होइ सो लिउ छोडाइ ४९३ तूं नारायण मथुराराय तइ कंस भांजिउ भडवाइ जरासिंध तइ हणिउ पचारि मुझ कन्हइ रूपणि आवी ऊगारि ४९४
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