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चतुर्थ सर्ग ऊमा थया जई सीहदुयारि दीठउ बांभण पडिउ दुयारी । हलधर तव ब्राम्हणनइ कहइ मूंकी बारणं पाछउ रहइ तिहां बांभण हलधरसिउ कहिउ सतिभामा परि भोजन लहिउ सरस आहार उदर अति भरिउ उठी न सकू पेट आफरिउ . तव बलिभद्र कहि सि वात ए कारटियानु सरह खात बांभण खरु लालची होइ घणउ खाइ जाणइ सहू कोइ .४७६ तिहां रीसाइ विप्र इम कहिउ अहो खरं निरदइ तुझ हीयु अवर करइ बांभणनी सेव विप्र दुखनु बोलइ केव ४७७ तव ऊठिउ बलिभद्र रीसाइ साही पगनइ बाहरि जाइ काइ विप्रनइ दिउ तुम्हि गालि बांहि धरीनइ ए निकालि पूछइ कुमर रुखमिणी पासि कुण ए आविउ छइ आवासि छपनकोडि मुखमंडणसार ए कहीइ बलिभद्रकुमार
४७९ सिघल जूझ ए जाणइ घणउ ए छइ पीतरीउ तुम्ह तणउ साही पगनइ बाहरि गयु विप्र पाउ पडीनइ रहिउ ४८० देखि अचंभु। बलिभद्र कहइ गुप्तवीर ए को कुण रहइ
नांखी पाउ भुंइ ऊभु थयु ततखिणी सिंघरूप विक्रयु (प्रद्युम्ननु सिंहरूपे बलिभद्र साथे युद्ध)
हलधरि आयुध2 लीयुं संभालि बिहु दिइ मांहोमांहि गालि अखाडउ करि झूझइ भिडइ बेहं सबल मुल्ल जिम लडइ ४८२ उलालिउ हलधर पडिउ जई तिहां छपनकोडि नारायण जिहां । देखि अचंभु सघल लोग भणइ कान्ह ए हूउ विजोग ४८३ एतली वात इहूं ते रही आधी कथा रुखमिणिनी सही पूछइ रूपिणि पुत्र तुम्हे सुणउ किहां सीखिउ झूझ तइ घणु ४८४ मेघकूटपर्वत नइ ठाइ जिमसंवर तिहां निवसइ राइ
सुणउ वयण माय रुखमिणी ते कन्हइ विद्या सीखी घणी ४८५ - 1. अचुंभु 2. आयुंध 3. माहोमाहि 4. पर्वत 5. नवसइ
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