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तृतीय सर्ग
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माहरइ पुत्र पांचसइ अछइ ते ऊपरि तूं आवीउ पछइ गुणे करीनइ तू वडवीर दीठउ मई तू साहसधीर । बांधिउं छोडिउ सिंघरथराय तेहनइ कीधु घणउ पसाय गज रथ तुरंगम दीधा घणा वस्त्र अपूरव पहरणतणा २४३ पयदल घणू देई राय पहुतु कीधु आपणइ ठाय
कुमर पांचसइ विसंवाद थयु जीवतव्य आपणउ आज ज गयउ २४४ (पांचसो भाइओनी इर्ष्या अने प्रद्युम्ननो कांटो काढवानी युक्ति)
एतलु राय न राखिउं मान बालकपणि कीउ प्रधान सघला रांक मिला बापडा कुमर-मारण उपाइ पडा जिम एहनु भाजइ भडवाय आपणनइ मांनइ ते राय सोलगुफा देखाडउ आज जिम थाइ निःकंटक राज २४६ एह वात मम... .... ...1 वेगि लेई चालु परदवण बोलाविउ पांचसइ... ....
. . . . . . . . .वनह-मझारि २४७ सवि आव्यां ते कुमरह मिली जोइ वन ते मननी रली भणइ कुमर देखु परदवण विजयगिरि . . . . . . .. २४८ जे नर पूंजकरण तिहां जाइ तेहनइ पुन्य परापति थाइ सुणी वात हरखिउ मनि वीर चडी जोइ2 ते साहसधी[र] २४९
श्लोक अहो अमेघजा वृष्टिरहो अक्क-समफलं । अहो पुराकृतं पुण्यं यद् दृष्टो नाथ लोचने ॥२७
चुपई
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जिनमंदिर बंद्या जिनदेव
... . ... ... .टेव जव जोइ ते पोलि पगार तव फुफारव सुणिउ अपार तेणइ हांकिउ प्रद्युमनकुमार3 किम आविउ रे इहां गमार विसहररूपइ आवी लडइ तव साहिउ धाई पूंछडइ 1. ज्यां आ प्रमाणे खाली जगा राखी छे, त्यां प्रतमां पाठ खूटे छे. 2. योइ 3. प्रद्यमन
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