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________________ भूमिका ४३ कझुं. त्यारे चन्द्रगतिअ तेने बे धनुष्य आप्या अने कछु के, 'जो आ बे धनुष्यमाथी एकने पण राम चढावशे तो तेनाथी अमे पराजित थई गया एम समजशु, पछी ते तमारी पुत्री सीताने सुखेथी परणे'. त्यारबाद रामे ते धनुष्य मिथिलानी भर सभामां चढायुं त्यारे चन्द्रगति विलखो थई भामंडळ सहित पोताने स्थानके गयो. आम अह्न ऋषि, पोतानो अनादर करावनार व्यक्तिनुं अपहरण करावी तेने शिक्षा करे छे. ए ज रीते 'त्रिषष्टिशलाका पुरुष ० ' मां 'द्रौपदी चरित्र' मां पण आ कथाघटकने निरूपता वृत्तान्तनुं कथन छे. कथानो टूक सार आ प्रमाणे छे : पांडवो ज्यारे हस्तिनापुरमां द्रौपदी साधे हर्षथी क्रीडा करता हता त्यारे एक वखत नारद फरता फरता द्रौपदीने घेर आव्या. त्यारे आ अविरत छे एम जाणीने द्रौपदीए तेमनो सत्कार कर्यो नहि. तेथी आ द्रौपदी केवी रीते दुःखी थाय एम विचारता नारद धातकीखण्डना भरतक्षेत्रमां गया. त्यांचंपानगरीमा रहेनारा कपिल नामना वासुदेवनो सेवक, अमरकंका नगरीनो स्वामो पद्मनाभ राजा व्यभिचारी हतो तेनी पासे आव्या. त्यारे तेणे पोताना अन्तःपुरनी सर्वं स्त्रीओ बतावीने क' के 'हे नारद ! तमे आवी स्त्रीओ कोई स्थानके जोई छे ?' ते वखते नारदे द्रौपदीना रूपना तेनी पासे वखाण कर्यां अने चाल्या गया. त्यारबाद पद्मनाभ राजाए, द्रौपदीने मेळववा पाताळवासी देवनी मददथी, तेनुं अपहरण क अने भोग भोगववानुं जणान्यु, द्रौपदीए कह्यु' के 'एक मासनी अंदर जो कोई मारो संबंधी अहीं नहीं आवे तो पछी हुं तमारुं वचन मान्य राखीश' त्यारबाद कृष्ण, पद्मनाभ साथै भयंकर युद्ध खेली, द्रौपदीने पाछी लाव्या. आम ऋषि-मुनिनो ज्यारे ज्यारे बेदरकारी के बेध्यानपणाथी अनादर थाय छे, त्यारे तेना फळरूपे व्यक्तिने मुनि द्वारा ज लवातां संकटो सहन करना पडे छे. (२) चित्रपट द्वारा अनुराग' कथासाहित्यमा नायक-नायिकाना प्रणय संबंधनी अनेक कथाओ अनेक रीते कहेवाई छे. प्रणयनी ए लीलाओनी रसाळ कथाओए कथासाहित्यनी ताजगीने ओसरवा नथी दीधी. आ प्रणयकथाओमां नायक-नायिकाना सफळ के विफळ प्रणयनी कथाओ केम अने केवी रीते शरू थाय छे तेनो वृत्तान्त खरेखर रसिक छे. सामाजिक अने नैतिक बंधनो वच्चे पण नायक के नायिकाना हृदयम प्रेमनु प्रथम वार बीजारोपण अनेक रीते थई जतु होय छे. ज्यां स्त्री-पुरुष छूटथी एक बीजाने मळतां होय त्यां तो प्रथम दृष्टिए प्रेम जागी जवानी शक्यता होय छे, पण ज्यां नायक के नायिका एक बीजाथी दूर अने अन्योन्यथी अजाण होय छे त्यां कथाकार माटे उभयना प्रणय-मिलननो कोयडो आवीने ऊभो रहे छे. आवी परिस्थितिमां कथाकार नायक-नायिकाना हृदयमां अनुराग जन्माववानी इतर अनेक योजनाओ शोधी पोतानी कथामां निरूपे छे. नायक-नायिकाना हृदयमां प्रेमांकुर त्रण रीते फूटता होय छे-दर्शनथ, श्रवणथी अने स्मरणथी एक बीजानी पासे के दूर वसता नायक-नायिका, अमुक वस्तु के २ व्यक्तिने जुए १. २ Motif - Index T11. 2 मां आ कथाघटक समाववामां आव्युं छे. आ विषय परत्वे डॉ. हरिवल्लभ भायाणीना एक संशोधनात्मक लेख 'प्रेमकथा ओमां अनुरागबीजनो उद्गम ' - ' शोध अने स्वाध्याय' - पृ. २८७ - २८९ मां सारी एवी माहिती आपेली छे. Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002633
Book TitlePradyumnakumara Cupai
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKamalshekhar, Mahendra B Shah
PublisherL D Indology Ahmedabad
Publication Year1978
Total Pages196
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size9 MB
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