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प्रद्युम्नकुमार-चुपई
स्पृहा करतां आदर अने भक्तिनी किंमत वधारे होय छे. आवा निस्पृह ऋषिमुनिओ, राजाओना मुख्य सलाहकार, संकट समयना मददगार अने हितेच्छु होई तेमने मन खूब पूज्य होय छे. आथी ज ज्यारे ज्यारे तेओनु आगमन पोताना शहेरमां, सभामां के अंतःपुरमां थाय छे त्यारे गजवीओ तेमना हृदयपूर्वकनो सत्कार करे छे. उत्तम चारित्र्यवाळा आ ऋषिमुनिओ कशा अवरोध विना छुटथो गमे त्यां गमे त्यारे जई आवी शके छे अने ज्यां ज्यां तेओ जाय आवे छे त्यां त्यां तेमनो आदरपूर्वक सत्कार करवामां आवे छे.
हवे ज्यारे आ ऋषिमुनिओर्नु आगमन थयुं होय त्यारे जो यजमान द्वारा तेमना सत्कार न थाय, तो स्वमानने सर्वथी अधिक मानता आ ऋषिमुनिओ, ते अविवेकी व्यक्तिने तेनी शिक्षा करी, तेनो बदलो ले छे. कथा-साहित्यमां आ प्रकारना दृष्टान्तो मळी आवे छे.
आवा दृष्टान्तोमां कदोक यजमान व्यक्ति कोई विचारमा तल्लीन होय अने ते वखते कोई ऋषिन आगमन थाय तो ते बेध्यान व्यक्ति तेमनो आदर करी शकती नथी. आथी क्रोधित बनी ते ऋषिमुनि तेने शिक्षा करे छे. पुराण-प्रसिद्ध दुष्यन्त-शकुन्तलानी कथामां दुष्यन्तना प्रेममां रंगायेली शकुन्तला, पोताना प्रियतमना विचारोमां लीन थई, बारणे आवेला दुर्वासा मनि प्रत्ये बेध्यान बनी, तेमनो सत्कार करवानो विवेक चूके छे त्यारे दुर्वासा मुनि पोताना आदरनो बदलो त्यांने त्यां ज शाप आण चूकवे छे-जे व्यक्तिना विचारोमा लीन थई ते मुनि-सत्कारनो धर्म चूके छे, ते ज व्यक्ति तेने, याद कराववा छतां पण शापना प्रभावे भूली जाय छे. व्यक्तिविशेष प्रत्येनो अति प्रेम विवेक चुकावी तेना ज वियोगर्नु कारण बने छे.
क्यारेक कोई व्यक्ति आगन्तुक ऋषिमुनिना बिहामणा वेषथी गभराई जई, तेनो आदरसत्कार करवाने बदले दूर भागे छे, त्यारे पण ऋषिमुनिनु स्वमान घवाय छे अने ते, अनादरनां वेरनो बदलो ले छे. 'त्रिषष्टेिशलाकापुरुषचरित्र'मां सीताचरित्र अंतर्गत आबु दृष्टान्त प्राप्त थाय छे. ते टूकमां आ प्रमाणे छे' :
जानकीना रूपनु वर्णन सांभळीने तेने जोवा माटे नारद ऋषि आव्या अने कन्यागृहमां प्रवेश को. पीळां नेत्रवाळा, पीळा वाळवाळा, मोटा पेटवाळा, हाथमा छत्री अने दंड राखनार, मात्र लंगोटी धारण करनार, कुश शरीरवाळा अने ऊडता वाळवाळा भयंकर नारदने जोई सीता भी कंपती कंपती 'हे मा!' अम बोलती गर्भागारमा पेसी गई. आ सांभळीने दासीओ तथा द्वारपाळो तत्काळ दोडी आव्या अने नारदने पकडी लीधा. त्यां तो शस्त्रधारी मारो नाम बोलता दोडी आल्या. नारद तेमनी पासे थी मांड मांड छटी, ऊडीने वैताढयगिरि
आव्या अने विचार्यु के 'आ गिरिनी दक्षिण श्रेणिमा भामंडळ नामे चन्द्रगतिनो युवान पुत्र छे तो एक पट ऊपर सीताने आलेखी तेने बतायु जेथी ते बळाकारे तेनुं हरण करशे अटले तेणेमारी ऊपर जे कर्यु तेनो चद ठो मळशे' आवो विचार करी नारदे सीतानु अनुपम रूप पट ऊपर आलेखी भामंडळने बत' घु, भने तेने सीता प्रत्ये कामातुर बनान्यो तेथी ते कामथी पीडाव' लाग्यो. ज्यारे चन्द्रगतिअ आ वात जाणी त्यारे नारदषिने बोलावी सीतानो वृत्तान्त पछयो. त्यारे नारदे सीताना खूब गुणगान गायां.
तेथी चन्द्रगतिए तरत ज जनकराजानु अपहरण कर्यु अने तेनी पुत्री सीतानी, पोताना पुत्र भामंडळ माटे, मागणी करी. पण जनके, 'ते तेो दशरथना पुत्र रामने आपी दीधेली छे' एम
१, त्रिषष्टि शलाकापुरुषच रेत्र'--पर्व ७- सर्ग ४. गुज. भाषांतर--पृ. ७१
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