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________________ ४१ भूमिका आळ' इत्यादि कथास्वरूपों के कथाघटक विषयक विगतपूर्ण माहिती तेमणे आपेली छे.' डॉ. भारती वैद्ये तेमना • मध्यकालीन गससाहित्य १२मीथी १८मी सदी” नामना पुस्तकमां केटलीक रासकृतिओना अभ्यास परथी ते रासागत कथासामग्रीमांथी मळता विविध कथाघटकोनो अभ्यास करेलो छे. आ उपरांत डॉ. जनक दवेए पण एमना अप्रकाशित महानिबंधमां शामळनो "सिंहासनबत्रीशी " नो २८ थी ३१ सुधीनी वार्ताओनां केटलाक महत्त्वनां कथास्वरूप के कथाघटकोने तारवी, तेमनुं मुख्यत्वे भारतीय कथापरं पराने अनुलक्षीने तुलनात्मक अध्ययन करेल छे. * हिन्दीभाषामां डॉ. सत्येन्द्रे तेमना “मध्ययुगीन हिन्दी साहित्यका लोकतात्त्विक अध्ययन " - ए नामनां पुस्तकमां केटलीक कृतिओमांना कथाघटकोनी तारवणी करी तेने लगती कथा ओना उल्लेखा करेला छे. तेमां तेम " प्रद्युम्नचरित "मांना केटलांक कथाघटकोनी तारवणी करी तेने लगती कथाओ सामान्य उल्लेख कर्यो छे. अहीं, में संपादित करेली वा. कमलशेखरनी " प्रद्युम्न कुमार चुपई "मांना केटलाक महत्त्वनां अने रसप्रद कथाघटकानी तारवणी करी तेने लगतां जेटलां बनी शक्यां छे तेटलां कथानको संकलन करी, तेनेा सामान्य अभ्यास रज् कर्यो छे. कथासाहित्यनी विशाळता अने तेनु वैविध्य एटल अगाध छे के अहीं तारवेला कथाघटको अंगे षण बीजी घणी दृष्टान्तात्मक माहिती प्राप्त थाय. अहीं में जे कथाघटकोनी तुलनात्मक माहिती आपी छे ते दृष्टांतरूप के प्रतिनिधिरूप ज समजवी. ते उपरात बीजा अनेक रूपान्तरो प्राप्त थवानी शक्यता छे ज. तुलनात्मक अध्ययन करेल कथाघटको : ( १ ) कोई बेदरकार - बेध्यान पात्र द्वारा ऋषि-मुनिनो अनादर अने तेथी क्रोधित बनेला ते ऋषि-मुनि द्वारा कराती शिक्षा. (२) चित्रपट द्वारा अनुराग (३) जन्मतां ज बाळक अपहरण (४) मोटा भाईनी इर्ष्या अने विजेता नानो भाई (५) आळ - भ्रष्टाचारनु आळ (६) परपुरुष साथै छानो संबंध राखती पत्नी (७) छळ-कपट द्वारा दिव्य विद्या के वस्तुनी प्राप्ति (८) पिताथी विखूटा पडेला पुत्रनुं अज्ञात पिता साथै युद्ध के स्पर्धा १. कोई बेदरकार - बेध्यान पात्र द्वारा ऋषिमुनिना अनादर अने तेथी क्रोधित बनेला ते ऋषिमुनि द्वारा कराती शिक्षा : - भारतीय पौराणिक कथा - साहित्यमां ऋषिमुनिना पात्रनुं आलेखन अनेकविध रीते थयेलुं छे. तेओ दैत्योना संहारक के भक्तोना परम उद्धारक होय छे. तेओ पोताने प्रसन्न करनार व्यक्तिने वरदान आपी तेना जीवनने समृद्ध बनावी दे छे, तो क्यारेक तेओ पोताने क्रुद्ध करनार व्यक्तिना जीवनने क्रोधना साक्षात् अवतार बनी, छिन्नभिन्न करी नांखे छे. तेओने समृद्धिनी १. जुओ तेमनुं पुस्तक 'शोध अने स्वाध्याय'. २ "Shamal's Sinhasanbatrisi : Preparation of an Authenticedition of Tales Nos. 28, 29, 30, 31 from the original Mss together with a Critical Studay of These Tales", 1964. ६ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002633
Book TitlePradyumnakumara Cupai
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKamalshekhar, Mahendra B Shah
PublisherL D Indology Ahmedabad
Publication Year1978
Total Pages196
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size9 MB
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