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________________ ४० प्रद्युम्नकुमार-चुपई पूरव लखित न मेटइ कोइ, प्रदिमन विद्या लेई गयु सोइ ३३१ असुभ कर्म जब आवइ वही, सुजन हुइ ते वयरी सही ३३२ आवी बीजी अनेक पंक्तिओटांकी शकाय ज्यां कक्एि कर्मनी महत्ता गाई छे. आम जोई शकाय छे के वा. कमलशेखरे पोतानी तिमां अनेक रीते धर्मनी देशना दीधेली छे, आथी एम कही शकाय के ''एकचित्ते यादवनी सरस कथा (२)" कहेवानी साथोसाथ धर्मोपदेश देवानो पण कविनो हेतु रहेलो छे. ४. महत्त्वनां कथाघटकोनो अभ्यासः प्रास्ताविक:- कोई पण एक प्रजानां वार्तासाहित्यनो, कोई अन्य प्रजाना वार्तासाहित्य साथे तुलनात्मक दृष्टिथी विचार करीए तो ते बन्नेमां केटलीक एवी कथाओ, फईक विगतभेदे परन्तु समान कही शकाय ए रोते रूपान्तर पामेली मळी आवे छे. ए रीते कोई एक देश विशेषना परंपरागत वार्तासाहित्यना तुलनात्मक अध्ययन बाद जणाइ आवशे के तेमांनी केटलीक कथाओमां केटलाक अंशो एवा होय छे के जे कईक विगतभेदे पण समानरीते निरूपायेला आपणने प्राप्त थाय छे. आ रोतना कथा के कथाघटकना संवादीपणामां कथा के कथाघटकनी पोतानी आगवी आकर्षक प्रतिभा उपरांत भिन्न संस्कृतिओनी परस्पर असर, अने साथे साथे भिन्न भिन्न भाषा, समाज के संस्कृतिनी नीचे मूलगत मानवप्रकृतिनी केटलीक समानता कारणरूप होय छे. Stith Thompson' नामना लोककथा विषयक विद्वाने आ जातना कथा-स्वरूप अने कथाघटक वच्चेनो तफावत समजावतां स्पष्ट कर्यु छे के कथास्वरूपनु स्वतंत्र अस्तित्व होय छे अने तेने पोताना तात्पर्य माटे अन्य कोई कथा परत्वे आधार राखवो नथी पडतो. ज्यारे कथाघटक ए एवी कथाओमांनो नानामां नानो अंश छे के जे पर परामां टकी रहेवाने समर्थ होय छे. आ प्रकारचें सामर्थ्य तेमांना असाधारण के वैचित्र्यवाळा तत्त्वने आभारी होय छे. आ रीते भिन्न भिन्न प्रजाओमा समयान्तरे अमुक कथास्वरूप के कथाघटको अनेकरूपे प्रचलित हतां, तेनो अभ्यास पाश्चात्य विद्वानोए करेलो छे. विश्वना परंपरागत कथासाहित्यनां स्वरूपोनी सूचि आने अने टोम्सने [ Arne and Thompson) तेमना 'The Type of the Folk Tale' नामना ग्रंथमां करेली छे. ते उपरांत टोम्सने तेना 'Motif Index of Folk Literature' ए नामना पांच खडोमां विभक्त पुस्तकमां कथाघटकोनी विस्तृत यादी तैयार करेली छे. आपणा गुजराती साहित्यमां आ प्रकारनी शोध अने तेना अभ्यासनी दिशामां छेल्ला दशकामां कईक प्रगति थयेली जणाय छे. डॉ. हरिवल्लभ भायाणीने आ प्रकारनी शोध अने तेना स्वाध्याय माटे आद्य अने अग्रणी गणी शकाय. "सिंहासनवत्रीशी". "वेतालपचीशी" के "मदनमोहना' जेवी कथाओना ताणेवाणे वणायेलां आवां कथाघटकोनी तेम ज "जादई पक्षी", "ठगारुं मागणु अरे ठगारी चूकवणी", "मायावी सृष्टि", "आंधळे बहेंरु". "नाची फाटेली मोजडी अने देवदमनी", "एक सांताली लोककथा" के "लोककथामां 1. 'Folk-tale'-Stith Thompson-p. 415 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002633
Book TitlePradyumnakumara Cupai
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKamalshekhar, Mahendra B Shah
PublisherL D Indology Ahmedabad
Publication Year1978
Total Pages196
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size9 MB
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