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________________ भूमिका ३९ मिजवानी अर्थे बांधेला पशुओनो पोकार सांभळी, परण्या विना ज पाछा वळे छे अने संयम धारण करे छे, ते आखाय प्रसंगमा (कडी७०२ थी ७०८) कविए अहिंसानो आदेश दीधो छे. तो नेमिनाथ प्रभुना उपदेशथी जालि, मयालि इत्यादि यादवकुमारो, कृष्णनी पटराणीओ तथा चीजा लोको अने प्रद्युम्नकुमार पोते संसारना अढळक सुखने ठोकर मारी दीक्षाग्रहण करे छे. अथवा तो प्रद्युम्ननी पूर्व जन्मनी कथाओमां ज्यां ज्यां तेणे चारित्र्यग्रहण कयु छे त्यां तेने देवलोक के उत्तम मनुष्यकुळमां जन्म मळ्यानु कथन छ- ए सर्व ठेकाणे कविए संयमनो महिमा गायो छे. अंतमां दीक्षाव्रत अंगीकार करता प्रद्युम्नकुमारने तेना मातापिता तेम न करवा वीनवी द्वारिकानु राज्य भोगववा कहे छे, त्यारे प्रद्युग्नकुमार जे उपदेश आपे छे तेमां कविए संसारना सर्व संबंधो अने वस्तु प्रोनी असारतानुं खून वेधक निरूपण कयु' छे. कृष्ण ज्यारे प्रद्युम्नने तेना विद्याबळ अने पुरुषार्थनां वखाण करी दीक्षा लेवा करतां द्वारिकानुं राज्यसुख भोगववान कहे छे त्यारे ते सर्वनी असारतार्नु, प्रद्युम्नना जबाब द्वारा, कवि आम वर्णन करे छे: नारायणना वयण सुणेय, वलतु ऊतर पजमन देइ केहनां राज-भोग घरबार, सुपनांतर जेहर्बु संसार इस कायाका कुण भरुंसा, जगजाइ सुपनंतर जइसा. सर्व तिजइ जीव चलइ एकला, वीछड्या पीछइ मिलन दुहेला ७४० केहनां धन पवरख बल घणा केहना बाप कुटुंब कहतणा घडीमांहि जाइ विहडाइ, आविई मरणि न सइ रहवाइ ७४१ पोताना पुत्रने दीक्षा लेवा तत्पर थयेल जाणी रुक्मिणी विलाप करती कहे छे के, "हे पुत्र ! तुं केवी रीते भिक्षा मांगीश, अने माथाना केशनु लूंचन करतां तो घणु कष्ट पडशे, माटे तु संयम न लईश." त्यां प्रद्युम्न शरीरनी क्षणभंगुरता समजावी संसारनी असारता समजावतां उपदेश आपे छे: लावन्य रूप शरीरह सार, जिम रूठई तु हूठ सहू छार म करि शरीर दुख बहूत, कहनी माइ नइ केहना पूत ७४५ अरहटमाल जिम ए संसार, स्वर्ग पाताल पुहवि अवतार पूर्वजन्मनउ संबंध जाणि, मिलइ जीवइ ठाणोठांणि ७४६ कर्मना सिद्धांतनुं प्रतिगदन करवा पात्रना दुःखनु कारण एना पूर्वजन्मनी करणी छे, एनी साबिती माटे पूर्वजन्मनी कथाओ उपरांत बीजा अनेक प्रसंगे अमुक कार्यना कारणरूपे कर्मने ज गणवामां आव्यु छे. अनेक पंक्तिओमों कर्मनु माहात्म्य कविए दर्शाव्यु छ : कर्मयोगि जउ जुडइ संयोग, तु हुई नारायणनु योग ३६ पूर्वकर्म न मेटइ कोइ, जेहनइ सिर जी परणइ सोइ ४२ पूवकर्म न मेटइ कोइ, कर्म करइ ते निश्चिइ होइ १३२ परवि भव कर्म बांध्या घणा रुखमणि फल लाधा तेहतणां १८७ सोलमास राखिउ ते मोर, बांधा कर्म तिहिं अतिहि कठोर सोल मासनां सोल वर्ष थीयां,मोरमयूरी वनमांहि गया १९८ फल दुर्गछाकर्मह तणु, सचर सतम दिनि विणठ घणु २०१ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002633
Book TitlePradyumnakumara Cupai
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKamalshekhar, Mahendra B Shah
PublisherL D Indology Ahmedabad
Publication Year1978
Total Pages196
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size9 MB
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