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प्रद्युम्नकुमार-चुप
के. सांभळे अने तेनाथी पूर्वभवनुं स्मरण थतां आगळना भवना पति-पत्नी तरीकेनो पोतानो संबंध जुए अने पछी अन्योन्य प्रत्ये प्रीति जन्मे – आम स्मरण द्वारा बनतु होय छे.
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श्रवण द्वारा ज्यां अन्योन्य प्रत्ये प्रीति जन्माववानी योजना होय छे, त्यां कोई साधु, मुसाफर, पंखी के नारद जेवी देवी व्यक्ति के शक्ति दूर वसतां नायक-नायिकानां रूपगुणनुं एकबीजानी पासे आवी ब्यान करता होय छे अने ए रीते उभयनी हृदयभूमिमां प्रेमनां बीज रोपी जतां होय छे. दर्शन, प्रत्यक्ष अने परोक्ष उभय प्रकारनं होई, ज्यां प्रत्यक्ष दर्शननो अनुराग जन्माववामां उपयोग थाय छे त्यां नायक-नायिका कोई उत्सवप्रसंगे कोई स्थळे भेगां मळी जनां होय छे, कदि देवमंदिरे के कदि नदी-सरोवर- कांठे अनायासे मळी जतां होय छे, कदि संकटग्रस्त नायिकाने बचावता नायक साथे तेनुं मिलन योजाय छे, तो कदिक सहाध्यायीरूपे विद्याभ्यास करतां पण तेओ प्रेममां पडतां होय छे. ज्यां परोक्षदर्शन द्वारा नायक-नायिकाना हृदयमां प्रेम प्रकटाववानो होय त्यां ते परोक्षदर्शन चित्र, मूर्ति के स्वप्न द्वारा कराववामां आवे छे.
अहीं 'चित्र द्वारा अनुराग' - ए कथा - घटकनो, केटलीक कथाओ लईने सामान्य अभ्यास रजू कर्यो छे. डॉ हरिवल्लभ भायाणीए, चित्रकार पासे थी राजकुमारीनुं चित्र जोईने प्रेममां पडवानी घटना परत्वे मल्लि, मालविका - अमिमित्र, उदयन - रत्नावलीनी कथाओनो उल्लेख करेलो छे. आ उपरांत 'त्रिषष्टिशलाकापुरुष ० ' मां नेमिनाथादिना चरित्रमां धनुकुमारनी कथामां आ कथाघटकनुं निरूपण थयेलुं छे. टू कमां कथासार आ प्रमाणे छे :
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जंबुद्विपमां अचळपुर नामना नगरमा विक्रमधन नामना राजाने धारिणी नामनी राणीथी धनुकुमार नामनो पुत्र थयो. अनुक्रमे ते यौवनने प्राप्त थयो. ए अरसामां कुसुमपुर नामना नगरमा सिंह नामना राजाने विमळा नामनी राणोथी धनवती नामनी पुत्री उत्पन्न थई. अनुक्रमे ते पण यौवनमां आवी त्यारे वसंतऋतुमां उद्याननी शोभा जोवा ते सखीओ साथे त्यां गई. तेवामां अशोकवृक्ष नीचे हाथम चित्रपट लईने ऊभो रहेलो एक चित्रकार तेना जोवामां आव्यो. तेना हाथमांथी धनवतीनी सखीए बळात्कारे चित्रपट लई लीधुं तो तेमां सुंदर पुरुषनुं रूप चित्रे
तु तेनी सखीए ज्यारे आ रूपवान विषे चित्रकार ने पूछयुं त्यारे तेणे धनकुमारनं नाम जणायुं. ज्यारे नवती आ चित्र जोयुं त्यारे ते तेना अनुरागमां अत्यन्त लोन थई गई अने अनेक प्रकारनी प्रेमपीडा अनुभववा लागी ...
'समराईच्चकहा ' मां समरादित्यराजाना आठमा भवनी कथा - ' गुणचन्द्र अने रत्नवती' नी कथाम पण 'चित्र द्वारा अनुराग'नुं कथाघटक निरूपायुं छे. कथा टूकमां आम छेः *
अयोध्या नामनी नगरीमां मैत्रबळ नामना राजाने पद्मावती नामनी राणीथी गुणचन्द्र नामे पुत्र थयो. ते चित्रकळानो शोखीन हतो. ए अरसामां शंखपुरना राजा शंखायननी राणी कान्तिमतीथी रत्नवती नामनी पुत्री हती. तेना मातापिताए चतुर पुरुषोने तेने योग्य वर माटेनी शोध करवा मोकल्या, तेमांथी चित्रमती अने भूषण बन्ने अयोध्यामां आव्यां त्यां गुणचन्द्रने जोयो पण तेनो अपूर्व कान्ति चित्रमां चीतरी शक्या नहि, तेथी तेओ पाछा शंखपुरमां गया अने रत्नवती एक चित्र दोरी पाछा अयोध्या आवो कुमारने मळया अने तेनी सामे रत्नवतोनुं १. 'त्रिषष्टिशलाका पुरुष चरित्र' - पर्व ८- सर्ग १ गुजराती भाषांतर पृ. १९८ २. हरिभद्राचार्य - 'समराइच्च-कहा' गुजराती भाषांतर - हेमसागरसूरि पृष्ठांक- २९ मु.
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