________________
प्रद्युम्नकुमार-चुपई
तो द्वारिकागमन प्रसंगे नारद द्वारा बनावेला विमानने तोडीने प्रद्युम्ने करेला तेमना उपहासनो प्रसंग वा. कमलशेखरे, कवि सधारुनी माफक ज लगभग अक्षरशः भाषान्तर करीने ज वर्णव्यो छे. कवि सधारु कहे छ :
"नारद खण विमाण रचि फरइ, कंद्रप तोडइ हासी करइ । वहुडि विम्वाणु धरह मुनि जोडि, खण मलयद्धउ धारइ तोडि ।२९१। विलखवदन भो नारद जाम, करइ उपाउ मयणु हसि ताम । मणि माणिकमय उदक करंतु, रचि विमाण खण धरइ तुरंतु ।२९२। विद्यावल तह रच्याउ विमाणु, जहि उदोत लोपि ससि भाणु ।
धुजा घंट घाघरि सजूतु, कुणि तिह चढयो नारायणपूत ।२९३। वा. कमलशेखरे उपर्युक्त वर्णननुं आलेखन नीचे मुजब कयु छ :
"नारद एक विमान करि धरइ, कुमर भांजि हासी ते करइ, वली... वि[मान]......जोडि, क्षणइ कुमर ते नांखइ तोडि ३४१ विलखवदन थयु नारद जाम, करइ विमान कुमर हसि ताम, विद्याबलि तिहि करिउ विमाणु, जिहि उद्योतिहि लोपिउ भाणु ३४२
ध्वजा घंट घूघरी संजुत्त, रिखिसिउं चडिउ नारायणपुत्त, . प्रद्युम्न द्वारा रुक्मिणीहरणना प्रसंगे प्रद्युम्न रुक्मिणीनो हाथ झाली, यादवसभामां आवी जे रीते यादवोने रुक्मिणीनी मुक्ति माटे पडकार फेंकी युद्ध माटे ललकारे छे, ते प्रसंगना वर्णनमां कवि सधारुए जे आलेखन कयु छे तेमां अने वा. कमलशेखरना ते प्रसंगना आले. खनमां लगभग कशो ज फेर नथी. कवि सधारुनु वर्णन जुओ:
"कोपारूढ मयण जव भयउ, वाह पकरि माता लीए जाइउ सभा नारायणु वइठउ जहा, रूपिणि सरिस सपतउ तहा ।४६३। देख सभा बोलइ परदवणु, तुम सो वलियो खत्री कवणु हउ रूपणि ले चल्यो दिखाइ, जाहि वलु होइ सु लेहु छुडाई ।४६४। तू नारायण मथुराराउ, तइ कंस भान्यो भरिवाउ ।
जरासंध तई वधौ पचारि, मो पह रूपिणि आइ उवारि ।४६५। ए ज प्रमाणे वा. कमलशेखर उपर्युक्त प्रसंगने आलेखता कहे छ :
"कोपारूढ पजनह थयु, बाह साही माता लेई गयु सभा नारायण बइठउ जिहां, रूपणिसिंउं संपतउ तिहां-४९२ देखि सभा बोलिउ परदवण, तुम्ममाहि बलवंत क्षत्री कवण है रूपणि लेई चालिउ दिखाइ, जिहि बल होइ सो लिउ छोडाई-४९३ तूं नारायण मथुराराय, तई कंस भांजिउ भडवाइ,
जरासिंधु तइ हणिउ पचारि, मुज कन्हइ रूपणि आवी ऊगारि-४९४ आवा तो अनेक उदाहरणो बीजां आपी शकाय एम छे, ज्यां कवि सधारुनी कृति "प्रद्युम्नरिमांथो अनेक घटनाओने वा. कमलशेखरे सहेजसाज शाब्दिक फेरफार साथे प्राचीन गुज. रातीमां भाषान्तर करी पोतानी कृतिमा आलेखेली छे.
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org