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भूमिका
१९
वसुदेव इत्यादिने रंजाडवा, रुक्मिणी- प्रद्युम्न - मिलन: प्रद्युम्न द्वारा रुक्मिणीनुं हरण, यादवो अने प्रद्युम्न वच्चे युद्ध, प्रद्युम्न कृष्ण बच्चे युद्ध, प्रद्युम्न कृष्ण मिलन, प्रद्युम्न - लग्नोत्सव, सांचकुमारनो जन्म प्रसंग, सांच सुभानु क्रीडाओ, सुभानुविवाह, रुक्मीपुत्री साथेना विवाहनो प्रसंग, नेमिनाथ कथा, नेमिनाथ द्वारा द्वारिकाना विनाशनुं कथन, प्रद्युम्न द्वारा जैनदीक्षा ग्रहण अने मोक्षप्राप्तिना सर्व प्रसंगोनो क्रम बराबर कवि सधरु कृत "प्रद्युम्नचरित" नी माफक ज राखवामां आव्यो छे. एटलु ज नहि परंतु उपर्युक्त महत्त्वना प्रसंगोनी अंदर बनती इतर नानी नानी विगतो पण सधारुनी कृतिनी जेवो ज आलेखवामां आवो छे. जेम के, श्रीकृष्ण अते रुक्मिणीनो वनमां विवाह थवो, रुक्मिणीना उगाल द्वारा सत्यभामानो उपहास, जे सोळ गुफाओमांथी प्रद्युम्ने दिव्यवस्तुओ ने विद्याओ प्राप्त करी ते गुफाओ, वस्तुओ अने विद्याओनां नामो, रुक्मिणी साना प्रद्युम्नना मिलन वखते रुक्मिणीनी मागणी संशेषवा प्रद्युम्न द्वारा पोतानुं बाळस्वरूप बताव, प्रद्युम्न द्वारा रुक्मिणीना हरण वखते प्रद्युम्न, कृष्ण सहित यादववीगेनी वीस्तानो जे रीते उपहास करे करे छे तेनी विगतो, युद्धप्रस्थ न समये कृष्णने नडतां अपशुकनो, प्रद्युम्नने दीक्षा न लेवा माटे आग्रह करतां माता-पिताने प्रद्युम्ननी समजावट इत्यादि सर्वघटनाओ, तेनी नानी नानी विगतो अने तेनो आलेखनक्रम, वा. कमलशेखरे बराबर कवि सधारु कृत प्रद्युम्न चरितनी माफक ज राख्यो छे.
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घटनाओ अने वर्णनोनुं आलेखन :
आलेखननी दृष्टिए जोइए तो वा. कमलशेखरे मोठा भागनी घटनाओ अने वर्णनोनुं आलेखन बराबर कवि सधारुनी माफक ज करेलुं छे. जेमां केटलेक ठेकाणे वा. कमलशेखरे, कवि धारुए प्राचीन हिन्दी कृतिमां करेला आलेखननु मात्र प्राचीन गुजराती भाषान्तर ज मूकी दधुं छे. तो वेटलेक ठेकाणे अक्षरशः पंक्तिनी पंक्तिओ उठावीने ज मूकी दीधी छे. प्रथम केटलीक घटनाओनुं आलेखन जोइए.
सत्यभामा द्वारा नारदना अनादरनी घटना कवि सधारु आम आलेखे छे : "नारद हाथ कमंडल धरइ, काल रूप देखत फिरइ ।
सो सतभामा पाछर ठियउ, दर्पण माझ विरूप देखियउ ॥ ३१॥ विपरित रूप रिषि दिठउ जाम, मन विसमादी सुंदरि ताम । देखि कूडिया कीयउ कुतालु, साति करत आयउ वेताल ||३२|| वडी वार रिषि ठाढउ भयउ, दुइ कर जोड न वणिसण कहिउ । उपनो कोपु न सक्यउ सहारि, तर नाना रिषि चल्याउ पयारि ॥३३॥
उपर्युक्त वर्णननुं ज रूपान्तर करी वा कमलशेखर ए ज घटनाने आम वर्णवे छे : "नारद हाथि कमंडल करी, कलाचरित्र कलि देखइ फिरी, सो सतभामा पीठ पेखोयु, दर्पणमांहि रूप देखीयु - २७ विपरीत रूप हरि दीठउ जाम, मनि विलखाणी सुंदरि ताम, देखि कूड कपट कीयु राउ, ए लक्षण छइ यादवराउ- २८ ast वारि रखि ऊभउ रहिउ कर जोडी बइमु नवि कहिउ, तड रीसे चांपी रे नारि, चालिउ सुंदरिनई पयारि २९
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