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________________ १७८ १७९ १८० १८१ तृतीय सर्ग मूकु कहइ माहरा हलतणुं . सीयाले चांबड खाधुं| घणूं तिहां मूया इहां अवता ... .... (बीजो, चोथो, पांचमो अने छठ्ठो भव) विप्र द्वेषि मारण आवीया रयणदेवइ ते थंभीया तिहां बिहुं लीयू चारित्र सार त्रीजइ भवि सोहम अवतार चउथइ भवि सेठपुत्रह होइ पूर्णभद्र माणिभद्रह जोई लेई चारित्र सोहमि सुर हुया रायपुत्र छठइ भवि जूया । (मधु-केटभनो भव) मधु-कीटभ बि भाई थया2 तव वयरी सवि नासी गया राजाइ कीधु मधुराय सहू आवीनइ प्रणमइ पाय कीटभनइ पद दीयुं युवराज बिहूं मिलीनइ सारइ काज ब्राह्मण सोमदेवनु जीव कनकरथ राजा हूउ कीव अगनिज्वाला-जीव सो ईहां जोइ चंद्राभा तसु राणी होइ एक दी कनकराय3 हित करी मधुराजा तेडिउ नहुंतरी भोजनि घणी भगति अति करी मधु लेई गयु चंद्राभा हरी राणी चंद्राभातणइ वियोगि कनकरथिराइ छांड्या भोग तापस थईनइ भूखइ मूउ धूमकेतदेव जोतिष हूउ मधु-चंद्राभा वाद करी| मधु-कीटभसिउ चारित्र वरी सुक सातमइ देव सुजाण बेहूं हूया इंद्र समाण मधु-सुर-जीव रूपणि-सूत हुउ धूमकेत स्त्री-वयर लेई गयुं सीमंधिर कहइ रखि तुम्हि सुणउ मायपुत्र वियोग घणउ । सोल वरस जव जाई वही रुखमणि पुत्र मिलइ ते सही (रुक्मिणीना पूर्वभयो) पूरवि भवि कर्म बांध्या घणा रुखमणि फल लाधा तेहतणां कहु स्वामी किणि परि बांधीयां सांभलि रिखि इण परि सांधीया اس १८३ سے १८५ १८६ १८७ 1. खाध 2. थाया 3. कलकराय 4. मघराजा 5. बांधयां Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002633
Book TitlePradyumnakumara Cupai
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKamalshekhar, Mahendra B Shah
PublisherL D Indology Ahmedabad
Publication Year1978
Total Pages196
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size9 MB
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